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दोषी कौन

शिखा की शादी अठरह वर्ष की आयु में ही हो गयी थी। इससे पहले कि वो समझ पाती शादी क्या है ? दूसरे परिवार में सामंजस्य कैसे बनाना है वो गर्भवती हो गयी। सबने सुना तो दंग रह गए अरे !ऐसे कैसे ? इतनी जल्दी बच्चा कैसे ? संभालोगी कैसे ? सासू माँ तो इसी चिंता में घुली जा रही थी कि वो इतनी जल्दी दादी बन जाएगी। फिर वही नसीहतों और कवायदों का सिलसिला शुरू हुआ और शिखा अचानक ६ महीने कि शादी में ही बड़ी परिपक़्व और समझदार होने लगी। उसका अल्हडपन और अठखेलियां गंभीरता का रूप लेने लगी। उधर अमित भी उससे कटा कटा सा रहता था, वो भी इतनी जल्दी परिवार की जिम्मेदारी नहीं उठाना चाहता था तो चिड़चिड़ा हो गया था।

बेचारी शिखा को तो कुछ सूझता ही नहीं था वो जब भी अपनी माँ से अपना दर्द बांटने की कोशिश करती उसकी माँ वही घिसा पिटा सा जवाब देती - 'देख शिखु- 'वो तेरा ससुराल है ,तुझे अब हमेशा वहीँ समझौता करना है और फिर ये छोटी मोटी बातें तो होती ही रहती हैं ,तू जितना सोचेगी उतना परेशान होगी 'वगैरह वगैरह। बेचारी शिखा को कुछ समझ ही नहीं आ रहा था क्या करे ? उसके इम्तिहान भी नज़दीक आ रहे थे ,उसने अमित से शादी से पहले ही कहा था -'बस मुझे पढ़ने दीजियेगा मुझे आईएएस अफसर बनना है 'और अब शिखा को अपना वो सपना धुंधलाता सा नज़र आ रहा था--- वो नैपी संभालेगी या किताबें ??? उसकी इसी चिंता के कारण उसका रक्तचाप भी लगातार बढ़ता जा रहा था। उसके गर्भ का सातवाँ महीना चल रहा था। बेचारी दिन भर घर के काम काज में पिसी रहती थी और रात में पढ़ती थी। इस बढ़ती चिंता के कारण उसका स्वास्थय दिन प्रतिदिन बिगड़ता जा रहा था। एक दिन अचानक रसोई में काम करते हुए उसे बड़ी ज़ोर से पेट में दर्द हुआ और वो रोने लगी ,सासू माँ के पास गयी तो उन्होंने कहा -'अभी कहाँ दर्द हो सकता है, अभी तो बहुत समय बाकी है? तू ऐसा कर थोड़ी देर सोजा'। शिखा अपने कमरे में जाकर लेट तो गयी किन्तु उसका दर्द लगातार बढ़ रहा था ,उससे खाना भी नहीं खाया गया। शाम को अमित ने उसे देखा तो घबरा गया और माँ से बोला - माँ शिखा को डॉक्टर को दिखा दूँ? बेचारी बड़े दर्द में है; उसकी माँ ने तुनक कर जवाब दिया" अरे! मैंने तीन बच्चो को जन्म दिया है मुझे ऐसा कभी नहीं हुआ। ये आजकल की लड़कियाँ बड़ी छुई मुई सी है- भई! ज़रा सा दर्द नहीं सह सकती , तू खाना खा ले बेटा, उसे आराम करने दे। " अमित ने खाना खाया और टीवी देखते देखते ही हॉल में सो गया। आधी रात को उसकी आंख खुली तो कमरे में गया और बिस्तर पर लेटते ही उसे बिस्तर बड़ा गीला सा महसूस हुआ उसने बत्ती जला के देखा की शिखा का वाटर बैग फट गया है और वो बेहोश पड़ी है। उसने जल्दी से सबको उठाया और शिखा को लेकर पास के नर्सिंग होम में पहुँचा। डॉक्टर उसे ऑपरेशन थिएटर में ले गए। अमित की आँखों से आंसू रुक ही नहीं रहे थे उसे अचानक अपने अजन्मे बच्चे पर अथाह प्रेम उमड़ रहा था की तभी डाक्टर बाहर आकर बोले - "सॉरी! हम दोनों में से किसी को नहीं बचा पाए ,आपने बहुत देर करदी। वो शायद बहुत देर तक प्रसव पीड़ा सहती रही और इसी जद्दोजहद में उसने दम तोड़ दिया " दो निर्दोष लोग इस दुनिया से चुपचाप जा चुके थे। उनकी इस असामयिक मृत्यु का जिम्मेदार कौन? शिखा की माँ जिन्होंने बेटी के दर्द को नहीं समझा? उसकी सास जिन्होंने अपने अनुभव को शिखा के दर्द से ज़्यादा महत्व दिया ? अमित - जो एक जीवनसाथी होने का साथ नहीं निभा पाया ? या स्वयं शिखा -जो चुपचाप सबकी सुनती रही और दर्द सहते सहते चुपचाप ही इस दुनिया से विदा हो गयी ???

श्रद्धा

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