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इंतज़ार

इंतज़ार

नमिता अपनी बालकनी में बैठी थी की अचानक उसकी नज़र एक आदमी पर पड़ी जो अपने ठेले पर ढेर सारे पौधे बेच रहा था। उस ठेले को देखकर यूँ लगता था मानो किसी सुन्दर पुष्पवाटिका में पहुँच गए हो, लाल,पीले गुलाब,बड़े बड़े जासून के फूल और खिलखिलाता हुआ मोगरा उस मोगरे की महक सूंघते ही नमिता पांच वर्ष पीछे अतीत में डूबती चली गयी।

मोगरा और रवि मानो एक दूसरे के पर्याय थे -हमेशा खुशियां बिखेरते और खिलखिलाते हुए। मजे की बात तो यह थी की रवि को मोगरे प्राणप्रिय थे इसलिए जब भी नमिता से मिलने आता -मोगरे का गजरा लाना कभी नहीं भूलता था और फिर अपने हाथो से उसकी वेणी में गजरा गूंथ कर उसकी वेणी को सूंघता रहत। कितना अजीब है ना ! हम धन दौलत कमाने के लिए कितनी जद्दोजहद करते रहते हैं , कित्नु वास्तविक खुशियां तो छोटी छोटी चीजों में ही मिल जाती है- बस तलाशने आना चाहिए।

नमिता और रवि दोनों हाइस्कूल में पहली बार मिले थे दोनों को पहली नज़र में ही एक अनोखा आकर्षण महसूस हुआ था और फिर उनकी दुनिया में एक दूजे के सिवा कोई न था। इंटर पास करते ही रवि ऐन डी ऐ की तैयारी करने चला गया। वो बचपन से ही पायलट बनने के स्वप्न देखता था और हमेशा नमिता से कहता था की मैं तो तुमसे विवाह कॉकपिट में ही करूँगा। उधर नमिता अपने पिता के स्वप्न को पूरा करने हेतु सॉफ्टवेयर इंजिनीर बनने की तैयारी में भरसक प्रयत्न कर रही थी। इस तरफ नमिता की डिग्री पूरी होते ही उसे आईटी कंपनी में अच्छी नौकरी मिल गयी उस तरफ रवि वायुसेना के लड़ाकू विमानों का दक्ष एवं निपुण पायलट बन चुका था। इतने वर्ष कैसे बीते पता ही नहीं चला समय जैसे पंख लगाकर उड़ रहा था।

रवि महीने में दो बार नमिता से मिलने नोयडा ज़रूर आता -अपनी खिलखिलाती मुस्कान और महकते हुए गजरे के साथ। दोनों साप्ताहांत साथ बिताते और एक दूजे के आलिंगन में दुनिया भुला देते थे। दोनों के परिवार में भी सबको इन दोनों के रिश्ते की गहराई का भान था और वे भी मौन स्वीकृति दे ही चेके थे।

उस दिन भी रवि नमिता से मिलने आया कित्नु उसकी मुस्कान उसकी आँखों तक नहीं पहुँच रही थी। नमिता के बार बार पूछने पर रवि ने बताया की उसे एक अज्ञात मिशन पर भेजा जा रहा है क्योंकि दुश्मन देश का हमला होने की सम्भावना है उसने ये भी बताया की वो रात नहीं रुक पायेगा क्यूंकि उसे तड़के ही निकलना है।

नमिता ने उसे उसकी यूनिफार्म में देखकर गर्व महसूस किया और उसे खुद की किस्मत पे नाज़ हो उठा की इतना सजीला और सुन्दर युवक उसका जीवनसाथी है। रवि के पूछने पर की 'क्या मन ही मन मुस्कुरा रही हो -वह बोली 'जब तुम अपने मिशन से लौटोगे ,हम अपने माता पिता से विवाह की बात कर लेंगे ,रवि इतना सुनते ही ख़ुशी से प्रफुल्लित हो उठा और उसने नमिता को गोद में उठा लिया और उसे पूरे कमरे में घुमाने लगा। नमिता ने उससे कहा-' रवि -रवि मुझे नीचे उतारो यह मेरे और हमारे बच्चे के स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है।' यह सुनते ही रवि हतप्रभ हो गया और उसकी आँखों में पानी भर आया। उसने धीमे से उसे पलंग पर बिठाकर उसका हाथ अपने हाथों में लेकर बोला-'मैं अगले हफ्ते वापस आते ही मम्मी पापा को लेकर तुम्हारे घर आऊंगा और फिर शीघ्र ही तुम श्रीमती रवि प्रताप सिंह बनकर मेरे घर में आ जाओगी। उफ़ नमिता -तुम सोच नहीं सकती मैं आज कितना खुश हूँ ।

नमिता भी उसे ख़ुशी ख़ुशी विदा करके सुन्दर स्वप्न सजानेलगी। अब रवि को गए हुए पूरे चार दिन बीत चुके थे और उसका कोई फोन नहीं आया ,ऐसा तो कभी नहीं होता था -रवि फोन न करे -वो भी इतने दिनों तक।। नमिता तो कुछ अटपटा सा लगा तो उसने उसके मित्र राजेश को फोन किया तो उसने बताया की रवि का विमान पिछले तीन दिनों से लापता है 'मुझे जैसे ही कुछ पता चलेगा मैं तुरंत तुम्हे खबर करूँगा'। कई दिन बीत गए और फिर महीने न राजेश का कोई फोन आया न ही रवि का कोई समाचा।

नमिता के गर्भ का चौथा महीना पूरा होने आया था अब उसे छिपाना असंभव था। आख़िरकार उसने अपने माता पिता से यह बात साझा की तो उसकी माँ मालती तो सर पकड़कर ही बैठ गयी-'हे -भगवान् अब समाज को क्या मुँह दिखाएंगे? तू तो जानती ही है की बिनब्याही माँ का क्या स्थान है हमारे समाज में। नमिता अपनी माँ की दकियानूसी बातें सुनकर क्षुब्ध हो उठी और बोली -माँ ये मेरे और रवि की संतान है मुझे इससे कोई लज्जा नहीं' किन्तु उसकी माँ तो कुछ सुनने को तैयार ही नहीं थी उसे लगातार उलाहने दिए जा रही थी कि अचानक उसके पिता ने कहा-'बस कीजिये मालती जी -हमारी बच्ची पढ़ी लिखी है समझदार है और कामयाब है और आज के इस मॉडर्न ज़माने में उसे उसकी ज़िन्दगी उसके हिसाब से जीने का पूर्ण अधिकार है ' उन्होंने नमिता को गले लगाकर कहा-'बेटी अब रोना बंद करो और मिठाई खिलाओ भाई -मैं नाना बनने वाला हूँ, रवि आकर मुझे क्या कहेगा की अपने मेरे बच्चे एवं उसकी माँ का ध्यान तक नहीं रखा?'

नौ महीने बीत गए और नमिता ने एक फूल सी सुन्दर बिटिया को जन्म दिया और उसका नाम 'रविता ' रखा। रवि एवं नमिता के प्रेम का सूचक -उनकी रविता

नमिता जब भी रविता को मुस्कुराते देखती उसे रवि की याद आ जाती। आज पांच वर्ष बीतने पर भी उसने रवि के इंतज़ार के दीपक को जलाये रखा है ,क्या पता कब पीछे से आकर उसे पकड़ ले और बोले -'क्यों चौंक गयी न?' अचानक उसकी सोच की तन्द्रा भांग हुयी जब नन्ही रविता ने उसके पेट को पीछे से अपने नन्हे नन्हे हाथो से पकड़ लिया और तुतलाते हुय्रे बोली -'क्यों चौंक गयी ना ?' और उसने लपककर बिटिया को गोद में उठा लिया और उसकी गुड़िया से खेलने लगी ।

फिर रात हुयी और निंद्रा से उसका वर्षो पुराना वैमनस्य पुनः जागृत हो गया। वो पुनः खुली आँखों से रवि और नींद का इंतज़ार करती रह गयी ।

श्रद्धा रामानी

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