नैना अश्क ना हो... - भाग 15 Neerja Pandey द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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नैना अश्क ना हो... - भाग 15

नव्या ने शांतनु जी से पूछा, "पापा - मां आपको कोई
एतराज़ तो नहीं साक्षी को मम्मी पापा के पास रखने में?"
"नहीं बेटा ! साक्षी नवल जी और गायत्री जी पास रहे या मेरे
पास बात एक ही है अब हम एक ही परिवार है एतराज़ की
तो कोई बात ही नहीं।"
" तो फिर बात पक्की पापा और मां मेरे साथ चलेंगे। साक्षी
मम्मी - पापा के साथ रहेगी। पापा आप अपनी छुट्टी की
व्यवस्था कर लीजिए।" नव्या ने कहा।
सब कुछ तय होने के बाद शांतनु जी अपने परिवार के साथ
घर लौट आए। नवल जी और गायत्री बहुत खुश थे कि उनके
वीरान सूने घर में साक्षी के रहने से रौनक रहेगी। जो खालीपन
सा आ गया था जिंदगी में नव्या की शादी के बाद वो अब दूर
हो जाएगा। दोनों पति पत्नी बेसब्री से इंतजार करने लगे की
साक्षी जल्दी से उनके साथ रहने आ जाए। जो नवल जी
पहले नाराज़ थे नव्या के दूसरे जाति के लड़के से विवाह
करने से वही अब उन्हें बेटी के पसंद पर गर्व था। I इतना
समझदार और उलझा हुआ परिवार मिलना नव्या का नसीब
ही था। शायद ही किसी दूसरे परिवार में नव्या को इतना
इज्जत और प्यार मिल पाता।
अगले सन्डे नव्या के पास दिल्ली से फोन आ गया कि
आपको आने वाले सन्डे को दिल्ली पहुंच जाना है, और मंडे
को आपको रिपोर्ट करना है। नव्या ने अपनी सहमति दे दी
और बोली, "ठीक है मै पहुंच जाऊंगी।" उसने शांतनु जी को
बता दिया।
इन पन्द्रह दिनों में शांतनु जी ने एड़ी चोटी का जोर लगा कर
अपना तबादला दिल्ली करवा लिया। सेंट्रल गवर्मेंट का
एम्प्लॉय होने की वजह से ज्यादा परेशानी नहीं हुई। ट्रांसफर
के लिए आवेदन दे दिया। जब तक ट्रांसफर नहीं हो जाता
तब तक के लिए छुट्टी ले लिया।
साक्षी के स्कूल में भी बात कर ली की स्कूल बस अब नए
पते पर जाएगी और नवल जी का पता लिखवा दिया।
धीरे - धीरे जाने का दिन पास आ गया । निर्णय ये लिया
गया कि ट्रेन को बजाय अपनी कार से ही दिल्ली जाया
जाए । अब जब वहां रहना ही है तो गाड़ी की जरूरत
भी तो पड़ेगी। ऐसे गाड़ी भी चली जाएगी और वो भी चले
जाएंगे।
जिस दिन जाना था उस दिन गायत्री जी ने सबके लिए यहां खाने के
लिए और सफ़र के लिए भी खाने के लिए खाना बना कर साथ लेकर आई।
वो बोली "आप सब जाने की तैयारी करो । बहुत काम है
तुम लोगों को, खाना मै बना कर ले आऊंगी।" जिससे
नव्या रसोई की जिम्मेदारी से मुक्त हो गई।
साक्षी ने भाभी की मदद से अपनी सारी बुक - कॉफी कपड़े
स्कूल ड्रेस सब रख लिया था।
पुराने नौकर के भरोसे घर के देख - भाल की जिम्मेदारी सौंप
शांतनु जी ने चलने की तैयारी कर ली। नवल जी साक्षी को
लेकर अपने घर को रवाना हुए और नव्या , नव्या की मां
और ड्राइवर के साथ शांतनु जी दिल्ली को रवाना हुए।
साक्षी को छोड़ना जहां उसकी मां पापा के लिए कठिन था।
वहीं अब नव्या से जल्दी मिलना नहीं हो पाएगा ये दर्द नवल और गायत्री को परेशान कर रहा था। परंतु वक्त का तकाजा था कि
सभी अपनी जिम्मेदारी को पूरी शिद्दत से निभाए।
यहां से रवाना होते ही शांतनु जी ने पहला काम किया प्रशांत
को सूचित कर दिया कि हम सब आ रहे और शीघ्र ही हमारे
लिए एक छोटे से अच्छे घर का प्रबंध कर दे।
प्रशांत बोला, "अंकल आपको आर्मी का बंगला मिलेगा आप
परेशान मत होइए। मै अपने घर के पास ही आपके लिए एक
अच्छे से घर का प्रबन्ध करता हुए। आप पहले सीधा मेरे घर
ही आइए । मै यहां नव्या भाभी के ज्वॉइन करने का सारा
प्रोसेस हैंडल कर लूंगा आप बस आ जाइए।"
प्रशांत का आश्वासन शांतनु जी तसल्ली तो दिया। पर साथ -
साथ ग्लानि बोध भी करा रहा था । उन्हे याद आ रहा था जब
प्रशांत ने नव्या से आर्मी ज्वॉइन करने के विषय में पूछा था
तो उन्होंने कितनी रुखाई से जवाब दिया था । पर प्रशांत ने
इस बात को जरा सा भी बुरा नहीं माना था । बल्कि हर तरह
से आज भी सहयोग करने को तैयार था।
दूसरे दिन सुबह ही शांतनु जी प्रशांत के घर पहुंच गए । प्रशांत
ने अपनी मां को शांतनु जी का फोन आते ही बता दिया था
कि, "मां अंकल - आंटी और नव्या आ रहे है आप उनके लिए
रूम तैयार करवा देना। जब तक उनके लिए बंगला अलॉट
नहीं हो जाता , वो हमारे साथ ही रहेंगे। "
निर्मला जी ये जान कर बेहद प्रसन्न हुई की नव्या परिवार
सहित उनके घर आ रही है। वो प्रसन्नता से बोली, "हां बेटा
मै आज ही रघु से कह कर कमरे साफ करवा देती हूं।" वो
रघु को कह कर बिस्तर के चादर, तकिए का कवर सब
बदलवा देती है। रघु को बाज़ार भेज कर ढेर सारे फल और
सब्जियां मंगा लेती हैं।
दूसरे दिन सुबह शांतनु जी नव्या और उसकी मां के साथ प्रशांत
के घर पहुंच गए। प्रशांत और निर्मला जी ने बेहद प्रसन्नता के
साथ सभी का स्वागत किया।
प्रशांत ने शांतनु जी से कहा, "अंकल आप और नव्या भाभी नहा
कर तैयार हो जाइए । फिर नाश्ते के बाद मै आपको लेकर
हैड ऑफिस चलूंगा कुछ फॉर्मेलिटी है उन्हे पूरा करना होगा
उसके बाद ज्वाइनिंग लेटर मिल जाएगा।"
लगभग एक दो घंटे बाद नव्या और शांतनु जी नाश्ता निपटा
कर तैयार हो गए।
प्रशांत उन्हें लेकर हेड - ऑफिस जाने लगा। शांतनु जी ने मना
किया, "बेटा तुम अपनी ड्यूटी करो , हम टैक्सी कर चले जाएंगे ।"
पर प्रशांत ने तुरन्त ही मना कर दिया। बोला,
"अंकल आज मैंने छुट्टी ली हुई है। आप मेरी ड्यूटी की चिंता मत
करिए।"
प्रशांत उन्हे लेकर हेड - ऑफिस पहुंचा । वहां पर ये जानने के
बाद की ये शाश्वत के पापा और पत्नी है, उन्हे वहां मौजूद हर
शख्स ने जो सम्मान दिया वो अविस्मरणीय था। आज उन्हे बेहद
गर्व महसूस हो रहा था कि कहां तो किसी के इस दुनिया से जाने
के बाद तुरंत ही उसे भुला दिया जाता है; पर शाश्वत आज भी
यहां सभी के दिलो में जिंदा है। उसकी देश की सुरक्षा के लिए दी
गई शहादत व्यर्थ नहीं गई। वो इस दुनिया मे ना होकर भी सभी
के दिलो मे जिंदा है।

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