उधर शाश्वत की पोस्टिंग उधमपुर केआर्मी बेस के किश्तवाड़ में थी"। घर से आने के बाद उसे कुछ समय लगा यहां के परिवेश में ढलने में , पहाड़ों के बीच का अनुभव अब काम आ रहा था । बाॅर्डर पास होने के कारण सेना की एक टुकड़ी हमेशा अलर्ट मोड में रहती थी। लगातार गश्त पर जाना होता था । यहां मोबाइल नेटवर्क भी नहीं आता था। कभी कभी ही ऐसा होता जब नेटवर्क आता और तभी घर पे बात हो पाती थी ।
इधर नव्या भी हमेशा मोबाइल अपने हाथ में लिए रहती थी, क्या पता कब शाश्वत की काॅल आ जाए ? और कही ऐसा ना हो, कि वो जब तक फोन रिसीव करे फोन कट जाए । शाश्वत तो चला गया था, पर उसकी यादें नव्या को व्याकुल कर देती थी । उधर, "शाश्वत का भी यही हाल था"। जब भी फ्री होता बस बात करने के लिए नेटवर्क की तलाश में रहता । समय बीत रहा था ।
" धीरे-धीरे एक वर्ष पूरा होने को आया "। उसको छुट्टी मिलने वाली थी । उसके आने की खबर से नव्या बेहद खुश थी। रोज कैलेण्डर में एक दिन कम होने का गोला करती रहती ।
इधर ,शाश्वत भी आने की तैयारी कर रहा था । उसने सब के लिए कोई -ना -कोई उपहार खरीद लिया था । नव्या और साक्षी के लिए उसने खासकर कश्मीरी कढ़ाई वाला सूट खरीद कर रख लिया था। नव्या की मम्मी और अपनी मां के लिए पश्मिने की शाॅल खरीदी थी । घर आने में कुल पांच दिन बचे थे । शाश्वत की गश्त में रात की शिफ्ट थी ।
" वो अपनी टुकड़ी के साथ दूर तक निकल गया था" । जब वापस लौटने लगा ,
"तभी उसे दूर अंधेरे में कुछ आहट सुनाई दी" ऐसा लगा जैसे कोई छुप कर उनका पीछा कर रहा है । शाश्वत ने अपने सहयोगियों को इशारा किया, कि वे चुपचाप धीरे-धीरे चलते रहे और पीछे होने वाले हर हरकत पर नजर रखे । कुछ देर बाद उन्हें एहसास हुआ कि पीछे पीछे जो चल रहे थे उनकी संख्या कुछ और बढ गई है । अभी, चौकी थोड़ी ही दूर और थी ।
"शाश्वत सोच रहा था कि ऐसे ही थोड़ी दूर और उन्हें भ्रमित कर के चौकी तक पहुंच जाए "तो उसे और सैन्य सहायता मिल जाएगी ।
"फिर उनपर काबू पाने में कोई परेशानी नहीं होगी" । पीछा करने वाले आतंकवादी लग रहे थे और वो संख्या में भी इन लोगों से दो गुने लग रहे थे । एक बार तो शाश्वत ने सोचा कि पलट कर फायर झोंक दे ; पर उनके पास भी हथियार काफी मात्रा में है, ऐसा उसे आभास हो रहा था।
'उसे अपनी कोई परवाह नहीं थी , पर साथ में रहे सिपाहियों की उसे चिंता थी शायद वो शाश्वत की मंशा समझ गए थे । अभी वो चौकी से थोड़ी ही दूर थे और गुप्त रूप से मैसेज भेज चुके थे कि उनका पीछा किया जा रहा है और पीछा करने वाले संख्या बल में ज्यादा है ।
वह उन्हें चकमा देने में कामयाब हो रहे थे सहयोगी दल आ ही रहा था कि तभी अचानक से वो लोग पीछे चल रहे एक सैनिक को पकड़ लिया । और उन्हें चेतावनी देकर रुकने को कहा ।
अब कोई चारा नहीं था शाश्वत ने अपने साथियों को मोर्चा लेने के लिए इशारा किया और खुद आतंकवादियों को ललकारता हुआ आगे बढ़ गया और खुद को सुरक्षित पोजीशन में आड़ लेकर फायर करने लगा । उसके इस हमले के लिए वो तैयार नहीं थे । शाश्वत के साथी भी पोजीशन ले चुके थे।
एक -एक कर करके जो भी आतंकवादी भागने की कोशिश करता उन्हें गोलियों से भून दिया जाता । फायरिंग की आवाज से आने वाली मदद और भी जल्दी आ गई । आतंकियों को चारों ओर से घेर लिया गया था । करीब एक घंटे तक आपरेशन चला सारे आतंकियों को मार दिया गया।
सब वापस जाने लगे । तभी शाश्वत मुड़ा ,और एक आतंकवादी जो पेट के बल पड़ा था उसके पास गया । शाश्वत को कुछ शक हुआ कि शायद वो अभी वो जीवित है। वो उसके पास पहुंच कर जैसे ही सीधा करने की कोशिश करने लगा। वो आतंकवादी मरा नहीं था सिर्फ वो शाश्वत की
सैन्य टुकड़ी को भ्रमित करने की कोशिश कर रहा था ।
"अचानक ही वो आतंकवादी पलटा और शाश्वत के ऊपर गोलियों की बौछार कर दी" । ये इतना अचानक ,हुआ कि शाश्वत खुद को न बचा सका, परन्तु शाश्वत ने गिरने से पहले उसकी गन छीन ली और उसके गन की बची गोलियां उसी के अंदर उतार दी । साथ रहे सैनिकों ने तुरंत ही मोर्चा लिया।
कुछ लोग शाश्वत को लेकर हाॅस्पिटल भागे ,वहां डॉक्टर ने तुरंत ही इलाज शुरू किया ।उसे ऑथियेटर -थियेटर ले जाकर डाॅक्टरों की टीम ने गोलियां निकालना शुरू किया।
ऑपरेशन सफल रहा । अभी उसे आई सी यू में शिफ्ट किया गया । कुछ ही देर बाद उसके शरीर में हरकत हुई ।जब नर्स ने पास जाकर देखा तो उसके होंठ हिल रहे थे ।
जब ने नर्स ने गौर से सुना , शाश्वत नव्या !नव्या ! बुदबुदा रहा था ।
आगे क्या हुआ? जानिए अगले भाग में ।
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