naina ashk na ho - 10 books and stories free download online pdf in Hindi

नैना अश्क ना हो..भाग - 10

उस कार्यक्रम के बाद सभी घर आ गए। दिन भर की भाग - दौड़ की वजह से सभी थक गए । इस कारण सभी अपने - अपने कमरे में आकर जल्दी ही सो गए।

दूसरे दिन दोपहर में उनकी ट्रेन थी । रात में जल्दी सोने के कारण सभी जल्दी ही उठ गए। अभी उन्हें जगे कुछ ही देर हुआ था कि प्रशांत भी मार्निंग वॉक से आ गया। रघु चाय लेकर आया तो सभी लॉबी में आ चुके थे । प्रशांत ने शांतनु जी से पूछा,"अंकल ट्रेन कितने बजे है ,मै आज छुट्टी ले लेता हूं आप सभी को ट्रेन में बिठा आऊंगा ।"

शांतनु जी बोले,"क्यों परेशान होते हो बेटा....ड्राईवर है ना, छोड़ आएगा ।"
"अरे! अंकल कैसी बात करते है, इसमें परेशानी कि क्या बात है। मै चलूंगा ना आप सब को बिठाने।" प्रशांत बोला।

शांतनु जी बोले , "दो बजे टाइम है , ट्रेन यही से जाती है तो लेट भी नहीं होगी।"

"तो ठीक है अंकल आप सभी नहा धो लीजिए जल्दी तो यही कैंपस में बहुत सुंदर माता जी का मंदिर है , बड़ी मान्यता है इस मंदिर की , मै आप सब को दर्शन करा लाता हूं ।" प्रशांत ने कहा ।

सभी जल्दी जल्दी तैयार हो गए,प्रशांत भी मां को तथा शांतनु जी की फैमिली को लेकर मन्दिर के लिए चल दिया ।

मन्दिर बहुत ही जीवंत आभा से आलोकित था । उसके प्रांगण में पहुंचते ही असीम आंनद की अनुभूति होने लगी।
सारी थकान और संताप वहां पहुंचते ही दूर हो गया।
नव्या को ऐसा प्रतीत हो रहा था कि शाश्वत उसके साथ साथ चल रहा है। उसके पास होने की अनुभूति ने एक पल
को ये भुला दिया कि अब शाश्वत नहीं है।

वहां से वापस आकर सभी ने जल्दी - जल्दी खाना खाया ।
ट्रेन का समय हो रहा था इसलिए सभी तैयार होने लगे।
निर्मला जी ने रघु से कह कर रास्ते के लिए खाना पैक करवा दिया।

भरे मन से निर्मला जी ने सभी को विदा किया। दो दिन के लिए ही सही सभी के आने से घर में जैसे रौनक आ गई थी।
अब फिर वही अकेला पन उन्हे सताएगा। नव्या से उन्हें इन दो दिनों में जी बड़ा लगाव सा हो गया था। उन्हे नव्या में अपना अक्स दिखता था। प्रशांत के पापा के जाने के बाद जो अकेलापन उन्होंने भोगा था उसका भली भांति उन्हे एहसास था। पर उनके पास एक सहारा प्रशांत का था ,उसी
के सहारे उन्होंने उन्होने अपनी ज़िंदगी बिता दी। प्रशांत को
पालने - पोसने में उनका दुख कम हो गया। पर नव्या अपनी
जिन्दगी कैसे बिताएगी ? निर्मला जी दिल से नव्या का गम महसूस कर रही थी। इतनी खूबसूरती लेकर एक लड़की
अकेले कैसे जिएगी हर कदम पर उसे जमाने कि तपती निगाहों का सामना करना होगा। भगवान पर अटूट श्रद्धा रखने वाली निर्मला देवी को भी उनके इस अन्याय पर
गहरा रोष था। आखिर कर सब उन्हीं के हाथ में था तो शाश्वत को जीवित भी रख सकते थे।

निर्मला जी ने नव्या और साक्षी के लिए सूट मंगवाया था।
उपहार स्वरूप जिसे दोनों को दिया। वो बोली, "दो दिन के लिए ही सही मेरे घर आप लोगों के आने से रौनक आ गई
प्रशांत ने बहुत अच्छा किया जो आप सभी को यहां ले आया । नव्या और साक्षी ने तो मेरे दिल में जगह बना ली
दो दिनों में ही। मै इन्हे नहीं भूल पाऊंगी ।" फिर बोलीं,
"बेटा जब भी दिल्ली आना हो तुम लोग कही मत रुकना
मेरे साथ ही रुकना मुझे बहुत अच्छा लगेगा।"

खुद ही गाड़ी ड्राइव कर प्रशांत सब को स्टेशन छोड़ने गया।
स्टेशन पहुंचकर देखा तो ट्रेन प्लेस हो चुकी थी। प्रशांत ने
सारा सामान ट्रेन में व्यवस्थित किया और शांतनु जी से बोला, अंकल आप सब बैठिए मै अभी आता हूं।" कह कर
ट्रेन से उतर गया।

शीघ्र ही प्रशांत लौटा और साथ में कुछ स्नैक्स के पैकेट थे,
और कुछ मैगज़ीन थी । उन्हे नव्या को देते हुए प्रशांत हंस
- कर बोला "नव्या भाभी इनके सहारे रास्ता आसानी से कट
जाएगा आप बोर नहीं होगी।"

नव्या ने समान लेकर बर्थ पर रख दिया और धीरे से बोली "इसकी क्या जरूरत थी । आप बेकार में ही परेशान हुए।"

प्रशांत ने कहा, "इसमें परेशानी कि क्या बात है,मैने इन्हे बनाया थोड़े ना है जो परेशानी होगी खरीद कर ही तो
लाया हूं।" कह कर प्रशांत हंस पड़ा साथ में सभी मुस्कुरा
उठे।
प्रशांत ने नव्या की ओर मुखातिब हो कर कहा, "फिर
आपने क्या सोचा आर्मी ज्वाइन करने के बारे में ? आप
कहे तो मै सारी जानकारी आपको देता रहूंगा । "

नव्या के कुछ कहने से पहले हीं शांतनु जी बोल उठे, "क्या
सोचना है...? नव्या की जॉब लग चुकी है, वो ग्राम विकास
अधिकारी के पद पर चयनित हो चुकी है। वही ज्वाइन करेगी ।" कहते कहते उनका स्वर रूखा हो गया।

प्रशांत ने बात को वहीं खत्म करना उचित समझा। साक्षी
के आगे की पढ़ाई के विषय में बात करने लगा और बोला,
"साक्षी मै सदैव तुम्हारी मदद के लिए तैयार हूं, जब भी जरूरत हो तुम्हारे लिए तुम्हारे प्रशांत भैया मदद के लिए जरूर पहुंचेंगे। बस एक फोन कर देना।"

कुछ ही देर में ट्रेन के छूटने का समय हो गया, और ट्रेन
हॉर्न देने लगी।

"प्रशांत बेटा,तुम नीचे उतर जाओ।" शांतनु जी बोले।

"जी अंकल" कह प्रशांत ने शांतनु जी और उनकी
पत्नी के पांव छुए और नव्या, साक्षी से बाय कहा और
हाथ हिलता हुआ नीचे उतर गया। प्रशांत के नीचे उतरने
के थोड़ी देर पश्चात ही ट्रेन धीरे - धीरे रेंगने लगी।

"अच्छा अंकल आप सब अपना ध्यान रखिएगा, और पहुंच कर फोन जरूर करिएगा।" कहता हुआ प्रशांत भी ट्रेन के साथ चलने लगा । कुछ ही देर में ट्रेन ने गति पकड़ ली और
हाथ हिलाता हुआ प्रशांत पीछे छूट गया।

अब प्लेटफॉर्म बीत चुका था और ट्रेन अपने पूरे रफ्तार से
दौड़ी जा रही थी। प्रशांत पहले ही अटेंडेंट से कह कर बेड
- रोल दिला चुका था,बल्कि शाश्वत के मम्मी पापा का बिस्तर खुद अपने ही हाथों से लगा भी दिया था।
शाश्वत की मां ने शांतनु जी से कहा, "आपने देखा कितना
संस्कारी लड़का है प्रशांत,आज के जमाने में जहां अपने
लोग ही अपने को नहीं पहचानते है ,प्रशांत ने हमारा कितना खयाल रक्खा ? हमे कोई कमी नहीं महसूस होने दी । यहां तक कि हमें लेने स्टेशन आया और छोड़ने भी और तो और अपने हाथों से हमारा बिस्तर भी लगा गया। ईश्वर उसे सदा
खुश रखे।"

फिर अपनी आंखो में आए आंसू को पोंछती हुई शांतनु जी से बोली, "सुनो जी ...! मुझे पता नहीं क्यों उसमे अपने शाश्वत की झलक दिखती है।"

जवाब में शांतनु जी ने सिर्फ हूं कह कर शाश्वत की मां
के हाथों को सहला दिया। नव्या की ओर देखा कहीं वो बातें सुन तो नहीं रही , पर वो और साक्षी मैगज़ीन देखने में बिजी थीं ,साक्षी कोई नई डिजाइन का सूट दिखा कर नव्या से उसी की तरह सूट बनवाने को पूछ रही थी । उन्हे तस्सली हुई की नव्या का ध्यान उनकी तरफ नहीं था।

कुछ घंटे बाद शाम ढल गई और रात गहराने लगी। नव्या ने
सब को खाना निकाल के दिया और खुद भी खाया। उसके
बाद नव्या और साक्षी अपने - अपने बर्थ पर ऊपर सोने चली गई।

मैगज़ीन पढ़ते - पढ़ते कब नव्या की आंख लग गई उसे पता ही नहीं चला। सुबह जब आंख खुली तो शांतनु जी जग चुके थे। उसे देखते ही की आंखे खुली है, वो बोले, "गुड -
मॉर्निंग नव्या बेटा,जल्दी से उठ जाओ अपना स्टेशन आने
ही वाला है। फ्रेश हो जाओ और साक्षी को भी जगा दो।"
"जी पापा "कहते हुए नव्या ऊपर की बर्थ से नीचे आ गई
और साक्षी को भी जगा दिया।

जब तक साक्षी और नव्या ने हाथ मुंह धोया तब तक स्टेशन आ गया
गेट पर शांतनु जी खड़े थे। तभी दूर से ही हाथ हिलाते हुए
नवल जी पत्नी सहित खड़े दिखाई दिए।

ट्रेन रुकते ही नवल जी ने ड्राईवर से समान उतारकर गाड़ी
मै रखने को कहा और खुद शांतनु जी से गले मिल कर
कुशल छेम् पूछने लगे, "कि रास्ते में कोई परेशानी तो नहीं
हुई।" गायत्री जी नव्या साक्षी और उनकी मां से सफ़र के बारे में बात करने लगीं।

जवाब में शांतनु जी ने कहा, "नहीं नवल जी कोई परेशानी
नहीं हुई।"
इसके साथ ही सभी बाहर आ गए। और घर की ओर चल
दिए।
सभी फ्रेश होने के बाद नवल जी के साथ लाया नाश्ता गायत्री जी ने टेबल पर लगा दिया । सभी ने साथ मिल कर
नाश्ता किया और वहां की बाते होने लगी। शांतनु जी ने प्रशांत के विषय में भी नवल जी को बताया "बहुत अच्छा लड़का है वो शाश्वत का दोस्त है उसने हम सब की बहुत
सेवा की। देखिए वो दोस्त के ना रहने पर भी दोस्ती निभा
रहा है।"

नाश्ते के बाद नवल जी और गायत्री जी जाने को तैयार हो
गए । पहले तो शांतनु जी ने इजाजत नहीं दिया ,फिर जब उन्होंने कल आने का वादा किया तब उन्हे जाने की परमिशन दे दी।

नवल जी के जाने के बाद सभी अपने - अपने कमरे में
सफ़र की थकान उतरने चले गए।



पढ़िए अगले भाग में क्या नव्या शांतनु जी के फैसले को
स्वीकार कर आर्मी में जाने का फैसला बदल देगी ???

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