पश्चाताप भाग -9 Ruchi Dixit द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

पश्चाताप भाग -9

पश्चाताप भाग -9

शशिकान्त फोन उठाकर हाँ माँ! कैसी हो? मै ठीक हूँ! तू कैसा है रे! चुपचाप शादी कर ली ! मुझे बताया ही क्यों था? जब मेरी आवश्यकता ही नही थी तुझे! | शशिकान्त "नही अम्मा ऐसा नही है |" हाँ तेरे बाबा होते तब तू ऐसे ही करता? माँ गलती हो गई ! सबकुछ इतनी जल्दीबाजी मे हुआ समझ नही पा रहा था कैसे ?और क्या करूँ ? शशिकान्त की माँ जल्दबाजी! काहे कि जल्दबाजी रे! अपनी माँ को ही
भूल गया ! माफ कर दो न अम्मा! | माफी के अलावा और कर भी क्या सकती हूँ मै! फाँसी पर थोड़े ही लटकाउंगी तुझे | सुना है बहु को पैर भारी है? हाँ अम्मा! सही सुना आपने नौवा महीना समाप्ति पर है ! न पूँछती तो, न बताता? नही अम्मा ऐसा नही है | बहु को गोद भराई की रसम हुई क्या? गोद भराई क्या होती है अम्मा? तुझे कुछ भी पता नहीं है फिर भी माँ की जरूरत नही समझता तू! | अम्मा मै घर आ रहा हूँ ! पूर्णिमा को लेकर ! | और आप सब कैसे हो? जिन्दा हूँ!
कैसी बाते करते हो अम्मा! ठीक कह रही हूँ! चल अब रख दे कह कर फोन कट जाता है |
फोन पर बात करने के पश्चात, शशिकान्त पूर्णिमा से "पूर्णी! आलमारी मे कुछ ढूंढते हुए पूर्णिमा हुक्म! मे जवाब देती है |हमे कुछ दिन के लिए गाँव चलना पड़ेगा तुम्हारी डिलिवरी का समय भी नजदीक है ,तुम्हारी यहाँ देखभाल भला कौन करेगा ? पूर्णिमा चौकते हुए, ये तो अच्छा है न! माँ से मै पहली बार मिलूँगी ! पर आप इतना चिन्तित होकर क्यो बोल रहे हैं ! ये तो खुशी का बात है न! | हाँ पर, केवल हम दोनों ही जायेंगे | क्या?? पूर्णिमा आश्चर्य से शशि की तरफ देखती हुई | हाँ पूर्णिमा मैने माँ को बताया था , कि तुम्हारी एक शादी पहले हो चुकी है, यह सुनते ही उन्होने शादी के लिए मना कर दिया था | बड़ी मुश्किल से उन्हें मना पाया था | बच्चों के बारे मे बताने की हिम्मत ही न पड़ी | शशिकान्त से शादी के बाद पहली बार पूर्णिमा के माथे पर एक साथ कई सिलवटे जैसे आँखो को निचोड़कर सारा दुःख बहा देना चाह रही हों | वह कुछ बोल पाने की अवस्था मे नही थी | शादी के बाद शशिकान्त ने पूर्णिमा तथा उसके बच्चे का इतना ध्यान रख्खा कि कभी उसे लगा ही नही कि वे उसके बच्चे नही है | किन्तु आज उसकी यह बात मानो पूर्णिमा के हृदय को चीर रही हो, पहली बार खुद से बच्चों को अलग करने की बात सुनकर पूर्णिमा का मन बहुत व्यथित था | अपने बच्चों से अलग रहने के बारे मे वह सोच भी कैसे सकती थी , पूर्णिमा प्रश्नात्मक भाव लिए "शशि ! हमारी शादी का आधार हमारे बच्चे ही तो थे, आज तुम उन्हीं को मुझसे अलग करने को कह रहे हो |" हाँ पूर्णिमा! मै जानता हूँ ! मै तुम्हें कहाँ उनसे अलग कर रहा हूँ ! |बस कुछ दिन की बात है पूर्णिमा हम यहाँ आते ही बच्चो को अपने पास बुरा लेंगे | शशिकान्त के बार बार आग्रह करने पर वह दिल पर पत्थर रख कर मान जाती है | पूर्णिमा बच्चो को अपने पिता के घर छोड़ आई | गाँव पहुँचते ही नई बहु का बहुत धूम धाम से स्वागत हुआ | पर पूर्णिमा का मन उदास, बच्चो मे ही लगा था | वह हमेशा खोई -खोई सी रहने लगी | अब शशिकान्त के हंसाने पर भी हँसी न आती इस बात को वह भी समझ रहा था , अपने प्रयास को असमर्थ पा उसकी कोशिशो मे भी कमी आने लगी | नौ माह पूरे होते ही पूर्णिमा ने एक सुन्दर बेटे को जन्म दिया | घर मे खुशी का माहौल व्याप्त हो गया किन्तु पूर्णिमा के चेहरे पर कोई भाव न नजर आते | जब भी कोई उसके बेटे को दुलार करता उसकी आँखें अपने दोनों बच्चों के लिए भर आती | शशिकान्त बेटे को गोद मे उठाकर पुचकारते हुए देखो न पूर्णिमा कितना सुन्दर है तुम्हारी तरह ! | पूर्णिमा की आँखो मे आँसू भर आ गये | वह शशिकान्त को प्रश्न भरी नजर से देखने लगी ,उसके प्रश्नों से खुद को असहज पाकर वह वहाँ से उठ कर चला जाता है | अगले दिन सूटकेस तैयार करते हुए पूर्णिमा मेरी छुट्टी खत्म हो गई है, मुझे जाना होगा !| तुम्हें अभी आराम की आवश्यकता है ! और बाबू अभी छोटा है, इसलिए तुम्हें कुछ दिन यहीं रूकना होगा ! | शशिकान्त की बात सुनकर वह और भी ज्यादा बेचैन हो उठी ,"शशि! मै ठीक हूँ! मुझे आराम की आवश्यकता नहीं है | " शशिकान्त बात को समझो पूर्णिमा! माँ मुझसे वैसे ही नाराज है मै अपनी चलाकर उन्हें और नाराज नही कर सकता मैं ! |" यह कहते वह सूटकेस उठा, पूर्णिमा का माथा चूमते कमरे से बाहर निकल जाता है | क्रमशः