Repentance Part-3 books and stories free download online pdf in Hindi

पश्चाताप भाग -3

पश्चाताप के दूसरे भाग मे अब तक आपने पढ़ा पूर्णिमा का पति उससे अपने सुधरने की बात कह कर शाम को घर जल्दी आने की बात करता है किन्तु कई दिन बीतने पर भी वह घर नही आता है | पूर्णिमा दुःखी होकर ईश्वर के सम्मुख रोने लगती है कि तभी , पड़ोस से एक महिला आती है | जिसके पति की कुछ दिन पहले ही उस शहर मे पोस्टिंग हुई है | वे दोनो अच्छी सहेली बन जाती हैं | एक दिन पूर्णिमा ने अपनी सारी कहानी, उसी सहेली प्रतिमा से बता दी | उसकी आर्थिक स्थिति को भाँप कर प्रतिमा उसे काम दिलाने मदद करती है |आगे......

पूर्णिमा ने बड़ी ही चतुराई और सधे हुए हाथों से प्रतिमा के लाये हुए कपड़ों पर बहुत सुन्दर और बरीक कढ़ाई कर, जल्दी ही तैयार कर दिये | प्रतिमा के आने पर उसके हाथ मे थमाते हुए बोली, लीजिए मैडमजी ! तैयार हो गये ! | प्रतिमा ने हाथ मे लेते हुए "अरे वाह! ये कितने सुन्दर लग रहे हैं ! | मन तो करता है इसे मै ही रख लूँ!!! पर! हम्म!! खैर! चलती हूँ ! अरे कहाँ! पूर्णिमा पीछे से प्रतिमा के नीले कॉटन का दुपट्टा खींचते हुए बोली | अरे भई! ये जो मेरे हाथ मे तुमने जिम्मेदारी रख्खी है इसे दे कर न आऊँ?? भौंहे मटकाती हुई प्रतिमा ने कहाँ, फिर दोनो जोर से हँस पड़ती हैं | घण्टे भर बाद प्रतिमा हाथ मे एक बड़ा सा बण्डल लिए कमरे मे पडकती हुई, पसीने से तरबतर, अपने डुपट्टे से पसीना पोंछ उसी से हवा करती हुई "लो भई! पूर्णिमा आश्चर्य से देखती हुई , यह क्या है? प्रतिमा से पूँछती है | हम्म! हमारी दोस्ती मे मजे का दुश्मन!! तुम्हारे लिए काम लेकर आई हूँ | जब से आप काम करने लगे हो आपका आधा ध्यान वहीं जो रहता है | हम्म!! खैर, आपका काम करना भी जरूरी है ,कंधे उचकाते हुए | और यह लो! आपके मेहनत की कमाई! पूर्णिमा जैसे ही पैसे लेने के हाथ बढ़ाती है, प्रतिमा अपना हाथ झट से हटाकर, अरे! अरे! मेरा हिस्सा ! भौंहें मटकाती हुई | पूर्णिमा मुग्ध हो मुस्काती हुई बोली ,अच्छा तुम्ही रख लो! | प्रतिमा अपने सिर पर हाथ पटकते हुये धत्त! सब बेकार! थोड़ा तो विरोध किया करो ! आपने तो सारा मजा किरकिरा कर दिया | पूर्णिमा कान पकड़ती हुई, हम्म माफ कर दो !| अरे आप कितनी भोली हो हम दोस्त है जो मजा छीन कर लेने मे है , वो देने या लेने मे कहाँ! | तभी पूर्णिमा झट से प्रतिमा के हाथ से पैसे छीनती हुई, लो आया मजा!! प्रतिमा पूर्णिमा को पकड़ने के लिए दौड़ पड़ती है तभी हँसते हुए सटक कर दोनो नीचे गिर जाती है, दोनो सहेलियों का चेहरा धीमी आँच पर हाँडी मे रख्खे दूध की भाँति सुर्ख लाल हो लाल हो जाता है | तभी अचानक पूर्णिमा के चेहरे के भाव बदल जाते हैं जो, आँखो मे आँसू देख प्रतिमा अरे !अब क्या हुआ ? रो मत दादी मै न लेने वाली तुम्हारे पैसे! लो अब कान पकड़ लई! अब तो मुस्कुरा दौ! भाषा परिवर्तन कर पूर्णिमा को हँसाने का प्रयास करती हुई |पूर्णिमा आँसू पोछते हुए हल्की मुस्कुराहट के साथ, लो बनाया न तुम्हें उल्लू! प्रतिमा बड़े गौर से पूर्णिमा की तरफ उपहास भरी नजर से देखने लगती है , मानो उसके झूठ का उपहास उड़ा रही हो ,प्रतिमा के इस तरह देखने पर पूर्णिमा की आँखे फिर से भर आती है |और दोनो ही गले लगकर रोने लगती हैं |क्रमशः

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