पश्चाताप भाग -8 Ruchi Dixit द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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पश्चाताप भाग -8

पश्चाताप -8

अब हर रविवार शशिकान्त का सारा समय पूर्णिमा के पिता के पास ही बीतता | एक बात बीतों ही बातों मे वह पूर्णिमा के पिता से पूँछ बैठता है ,अंकल एक बात पूँछू ! | हाँ हाँ! दो पूँछो ! उत्हासपूर्वक | आपने पूर्णिमा के बारे मे आगे क्या सोचा है ! | आगे क्या सोचना बेटा ! भाग्य मे जो लिखा है वह तो भुगतना ही पड़ेगा ! | भाग्य! आपको पता है , भाग्य क्या होता है ? सामने एक स्लेट पड़ी थी, जिसपर अभी थोड़ी देर पहले ही पूर्णिमा अपनी बेटी को पढ़ा रही थी | उसे उठाकर चॉक से एक लाइन खींचकर पूर्णिमा के पिता जी को दिखाते हुए बोला "अंकल यह है भाग्य! और हाथ से उन्ही के सामने उस रेखा को मिटाकर , वह स्लेट पूर्वत रख , बाहर की ओर निकल गया | पूर्णिमा यह सब किचन की खिड़की से देखे जा रही थी | शशिकान्त को जैसे किसी मौके की तलाश थी |वह पूर्णिमा से अकेले मे बात करने के मौके तलाशने लगा | एक दिन सौभाग्यवश उसे यह मौका भी मिल गया | उसके पिता जी बाहर किसी काम से गये थे | पूर्णिमा का भाई मुकुल रात नौ बजे के बाद ही आफिस से घर पहुँच पाता था | अचानक डोरबेल सुनकर पूर्णिमा जैसे ही गेट खोलती है , बाहर शशिकान्त को देखकर बोल पड़ती है , "पिता जी घर पर नही है !" | शशिकान्त हल्की मुस्कुराहट के साथ उनकी आत्मजा तो है ! , अन्दर आने के लिए नही कहोगी! | पूर्णिमा सकुचाते हुए बिना कुछ कहे बगल हो जाती है , जिसे उसका मौन आमंत्रण समझ शशिकान्त घर मे प्रवेश कर जाता है | सोफे पर बैठे हुए तुम सोच रही होगी मै यहाँ क्यों आया हूँ? हम्म! पहले मैने सोचा कि तुम्हारे पिता जी से ही बात करू फिर लगा नही! पहले तुमसे बात करना आवश्यक है | मुझे नही पता मेरे मन मे तुम्हारे प्रति जो भावनाये है वह क्या हैं लेकिन जो भी है इससे पहले कभी किसी के लिए न थी | माँ ने बहुत कोशिश की मै शादी कर लूँ, बहुत सारी लड़कियों की तस्वीरे दिखाई गई, मेरी प्राथमिकता हमेशा मेरी जाब और भविष्य को लेकर रही | शादी एक बन्धन एक ऊब सी प्रतीत होती थी | मन हमेशा इससे दूर भागता | जब से तुम्हें देखा है मुझे अपने जीवन मे कुछ कमी सी लगने लगी है | तुम्हारे अतिरिक्त इसे कोई दूर नही कर सकता | पूर्णिमा मै तुमसे विवाह करना चाहता हूँ ! | इस एक लाइन के वाक्य ने पूर्णिमा को जैसे झकझोर दिया हो | वह मौन हो सबकुछ सुनती रही | तुम्हारा मुझे नही पता पर मै स्वयं को जानता हूँ , यदि तुम मेरे जीवन मे न आई तो कोई और भी नहीं आयेगी, अजीवन विवाह नही करूँगा !| कुछ देर मौन रहने के पश्चात पूर्णिमा "आपको पता है मै शादीशुदा हूँ ! "| शशिकान्त मै आपके बारे मे सब जानता हूँ | फिर आप यह भी जानते हैं कि मै पत्नी से अधिक माँ हूँ !|" हाँ! तुम उन्हीं बच्चों के बारे मे सोच कर देखो | फैसला तुम्हारे हाथ मे है पूर्णिमा ! शादी के धोखे मे जीवन की तिलांजलि या, बच्चों के साथ एक बेहतर कल!|
मै तुम्हारे बच्चों का पिता बनना चाहता हूँ | तुम मेरे जीवन मे आ चुकी हो! मै तुम्हारे जीवन मे आना चाहता हूँ , यह कहते हुए शशिकान्त वहाँ से चला जाता है | अगले दिन पूर्णिमा को पास बुलाकर उसके पिता जी पूँछते है "पूर्णिमा! बहुत पहले मुझसे एक भूल हुई थी तेरे विवाह की आज ईश्वर ने उस भूल को सुधारने का मौका दिया है , शशिकान्त के रूप मे लड़का अच्छा है तुझे खुश रहेगा | पर हम तेरे मन के विरूद्ध कुछ नही करेंगे | अच्छे से विचार कर लेना !फैसला तेरा हाथ मे है |
मुकुल भी हाँ दी ! शशिकान्तजी अच्छे व्यक्ति हैं | आप जो कहोगी हम वही करेंगे | घर वालो के समझाने और बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए वह शादी के लिए तैयार हो जाती है |
शादी बेहद सादगी से सम्पन्न हो जाती है | विवाह के बाद दोनो बच्चे पूर्णिमा के साथ ही आये | शशिकान्त पूर्णिमा के बच्चों की परवाह इस प्रकार करता जैसे वे उसी के बच्चे हों | पूर्णिमा को शशिकान्त से प्रेम, परवाह व सम्मान सबकुछ मिल रहा था जिसकी कभी उसने कल्पना भी न की थी | समय के साथ सबकुछ ठीक चलता रहा कि एक दिन शशिकान्त के गाँव से फोन आया | क्रमशः