संगम--भाग (६) Saroj Verma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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संगम--भाग (६)

घूंघट ओढ़े,लाल जोड़े में सजी दुल्हन,लाल चूड़ियों और सोने के कंगन से भरी कलाइयां, मेहंदी रची हथेलियां, बिछिया और पायल के साथ ,महावर लगे सुंदर पैर___
दुल्हन ने द्वार पर प्रवेश किया,
द्वार छिकाई के लिए दूल्हे की बहन को तलाशा जा रहा है___
तभी सीताराम पाण्डेय अपनी नेत्रहीन पत्नी पार्वती से कहा___
अजी सुनती हो,गुन्जा कहां है,जल्दी से द्वार छिकाई की रस्म पूरी कर दे,बहु भी थक गई होंगी ताकि अंदर आकर आराम कर सके।
पार्वती बोली, अभी तो यही थी, पता नहीं कहां चली गई,ये लड़की भी ना, इतनी पागल है,जानती है कि भाभी आ गई है फिर भी पता नहीं कहां छुपकर बैठी है___
तभी एक बच्ची ने आकर बताया कि गुन्जा दीदी तो ऊपर वाले कमरे में है, मुझसे बोली किसी से मत बताना कि मैं यहां हूं,
इतना सुनकर पाण्डेय जी ऊपर गये और गुन्जा को ले आए___
तभी नेत्रहीन पार्वती ने पूछा, कहां रह गई थी, दुल्हन कबसे द्वार पर खड़ी है,द्वार छिकाई की रस्म करनी है और तेरा कुछ पता नहीं!!
तभी गुन्जा बोलीं, मुझे कल बुआ जी ने कहा था कि तू बाल विधवा है,नई दुल्हन के सामने मत जाना, ऐसा ना हो कि कुछ अपशगुन हो जाए इसलिए मैं नहीं आ रही थी।
तभी शशीकांत को गुस्सा आया और पास खड़ी बुआ जी से बोला, बुआ,गुन्जा से ऐसा कहते हुए आपको जरा भी संकोच नहीं हुआ,आप अपनी घर की है,कम से कम आपसे तो ऐसी उम्मीद नहीं थी,वो आपकी बेटी जैसी है,बाहर वाले चाहे जो कहते रहे लेकिन घर के लोग भी___
बुआ बोली, मैंने ऐसा क्या ग़लत कहा!!
सीताराम पाण्डेय बोले, बहुत हो गया जीजी,अब शांत रहिए,चलो पार्वती सारे नेगचार जल्दी से करवाओ,बहु कबसे दरवाजे पर खड़ी है।
हां.. हां... जी, अभी करवाती हूं, पार्वती बोली, पहले सब महिलाओं ने बहुत का निहारन किया, फिर गुन्जा ने द्वार छिकाई की रस्म की, शशीकांत ने अपनी बहन गुन्जा को एक सोने की अंगूठी दी, तभी बहु बनी प्रतिमा ने अपने गले से सोने की जंजीर उतार कर गुन्जा को पहना दी और गले से लगा लिया।
पार्वती बोली,चल गुन्जा अपनी भाभी को उनके कमरे तक पहुंचा दे!!
हां... हां...क्यो नही?आइए भाभी,गुन्जा बोलीं।
और गुन्जा प्रतिमा को अपने साथ कमरे में ले आई और बोली, यहां कोई नहीं है,अब आप अपना घूंघट ऊपर कर सकती है,
प्रतिमा ने अपना घूंघट जैसे ही ऊपर किया,गुन्जा बोलीं,आप सच में बहुत सुंदर है भाभी।
प्रतिमा बोली, अच्छा जी, तुम भी तो कम नहीं हो, तुम्हारे रूप में मुझे एक छोटी बहन मिल गई और प्रतिमा ने गुन्जा को गले से लगा लिया।
भाभी आप मुझसे कितने साल बड़ी है?गुन्जा ने पूछा।
वैसे तुम्हारी उमर क्या है?प्रतिमा ने पूछा।
गुन्जा बोली, यही कोई सोलह साल होगी।
सोलह साल सुनकर,प्रतिमा को कोई याद आ गया।
क्या हुआ भाभी, अचानक कहां खो गई,गुन्जा बोली।
कुछ नहीं कोई याद आ गया जो बिल्कुल तुम्हारे जैसा ही था,प्रतिमा बोली।
अच्छा ये बताइए भाभी, अभी क्या खाएगी,भूख तो लगी होगी, संकोच मत करिए,मैं आपके लिए वही बनाकर लाती हूं,गुन्जा बोली।
अरे, रहने दो, परेशान मत हो,प्रतिमा बोली।
अरे, बताइए ना,गुन्जा बोली।
तो ठीक है,मूंग की दाल और रोटी खाना चाहती हूं,साथ में कटे प्याज,हरी मिर्च और नींबू हो तो,मजा ही आ जाए,प्रतिमा बोली।
बस इतना ही,खोदा पहाड़ और निकली चुहिया,बस आप यही बैठिए,मैं बस थोड़ी देर में आती हूं।
रात हुई,गुन्जा ने प्रतिमा को तैयार करके सुहाग सेज पर बैठा दिया और शशीकांत के आते ही कमरे से चली गई।
शशीकांत ने प्रतिमा का घूंघट ऊपर किया और बोला, मैं पहले तुमसे कुछ पूछना चाहता हूं, पहले तुम्हारा दोस्त बनना चाहता हूं,बाद में पति।
प्रतिमा ने कहा, हां पूछिए।
तुम शादी में इतनी परेशान और उदास क्यो लग रही थी,माना कि मां-बाप का घर छूटने पर हर लड़की को दुःख होता है लेकिन तुम मुझे कुछ ज्यादा ही उदास दिखी, शशीकांत बोला।
हां, आपने ठीक कहा और प्रतिमा ने सारी बात शशीकांत को बता दी और बोली वो ब्याह में नहीं था इसलिए अच्छा नहीं लग रहा था।
बस, इतनी सी बात, मुझे लगा पता नहीं ऐसा क्या है, जिससे तुम परेशान हो, मुझे लगा कि ऐसा तो नहीं कि तुम्हारी शादी मुझसे जबरदस्ती हो रही है और तुम परेशान हो, वैसे मैं तुम्हें पसंद तो हूं ना, शशीकांत बोला।
और प्रतिमा ने मुस्कुराते हुए, हां में सर हिलाया और शशीकांत ने प्रतिमा का हाथ पकड़कर अपने सीने से लगा लिया।
श्रीधर अपने बाबा की अस्थियां विसर्जित करने हरिद्वार गया था, फिर वही रह गया वापस ही ना लौटा, हरिद्वार से ऋषिकेश पंहुचा, वहां किसी योगगुरु के आश्रम में रहने लगा,उसका रूप ही विचित्र हो गया था, बड़े बड़े बाल, लम्बी दाढ़ी और गेरूए वस्त्र,कभी तप करने ऊपर पहाड़ों पर चला जाता, बाबा-बैरागियो के साथ ,फिर कभी आश्रम आ जाता, उसके अशांत मन को शांति नहीं मिल पा रही थी,वो जिन चीजों से भाग रहा था, वहीं उसके स्वप्न में आकर उसे डराती थी, ऐसे ही उसने दो साल बिता दिए,अठारह की उमर में वह पच्चीस साल का युवक लगने लगा था,अब तो वो कभी-कभी अघोरियों के पास जाकर गांजा भी पीने लगा था।
तभी एक दिन उसकी मुलाकात,उसी के हमउमर लड़के निरंजन से हुई, उसकी स्थिति बहुत ही दयनीय थी, उसने अपनी ये हालत अफीम और गांजे के चक्कर में की थी, वो अपने घर से सालों पहले भाग आया था और यहां अघोरियों के बीच फंस गया था फिर कभी भी अपने घर वापस ना लौट पाया।
एक बार उसने कोशिश भी की थी, वहां से जाने की लेकिन वापस आ गया, उसे नशे की लत लग गई थी और नशे के बिना वो बेचैन हो उठता था, उसके बाद वो कभी नहीं लौट पाया।
निरंजन की ऐसी दशा देखकर,श्रीधर को थोड़ी अक्ल आई,वो अब निरंजन को अपने साथ ले जाना चाहता था ताकि वो सही सलामत अपने घर पहुंच सके, श्रीधर ने अपने आप को बहुत सम्भाला और गांजे से दूर रहने की कोशिश करने लगा।
उसने निरंजन को अपना बहुत अच्छा मित्र मान लिया और उसका ख्याल रखने लगा,वो उसे हर पल समझाता कि वो अपने घर लौट जाए,सालों से उसके घरवाले उसके लिए परेशान हो रहे होंगे, लेकिन निरंजन समझता ही नहीं था, हमेशा नशे में धुत्त रहता।

क्रमशः___
सरोज वर्मा____🥀