इसी तरह समय बीतता जा रहा था____
एक दिन घर की सफाई करते हुए,प्रतिमा को एक पुरानी तस्वीर मिली, उसने तुंरत गुन्जा से पूछा,इस तस्वीर में मां-बाबूजी है,तुम हो और तुम्हारे बड़े भइया लेकिन साथ में और कौन है?
गुंजा बोली,ये छोटे भइया निरंजन है,सालों पहले किसी बात पर बाबूजी ने डांट दिया तो घर छोड़कर चले गए, तबसे वापस नहीं आए।
तभी प्रतिमा बोली, हां याद आया,जब रिश्ते की बात आई थी तब पिता जी ने बताया था कि छोटा भाई घर छोड़ कर कहीं चला गया है, अच्छा तो ये बात है,तब से निरंजन का कुछ भी पता नहीं चला और ना कहीं कोई इस्तहार दिया।
गुन्जा बोली, बहुत ढूंढा बहुत इस्तहार दिए लेकिन कहीं कुछ पता नहीं चला।
इस तरह दो साल और ब्यतीत हो गये__
एक दिन निरंजन ने श्रीधर से कहा कि ___
"मित्र" मैंने तो तुम्हें अपने बारे में सब बता दिया कि कैसे मैं अपने घर से छोटी सी बात पर भाग आया, मेरे घर में कौन-कौन हैं, तुमने अपने बारे में कुछ भी नहीं बताया___
मेरे जीवन में ऐसा कुछ नहीं है, जो छुपाने लायक हो,मेरा जीवन एक खुली किताब है, परिवार के नाम पर कोई नहीं है,एक बाबा थे,वो भी मुझ अभागे को छोड़कर चले गये,एक बहुत ही अच्छा परिवार मिला था,एक अच्छी मित्र मिल गई थी,कुछ हालातो ने मुझे सबसे दूर कर दिया,श्रीधर बोला।
" मित्र" पहेलियां मत बुझाओ,जरा खुलकर बताओ,क्या हुआ था तुम्हारे साथ जो तुमने सबकुछ छोड़कर साधु का वेष धर लिया, निरंजन ने पूछा।
श्रीधर ने बताना शुरू किया कि वो कैसे मास्टर किशनलाल लाल जी के घर आया? उसे मास्टर जी ने अपने बेटे की तरह रखा, उनकी बेटी प्रतिमा से कैसे उसकी नोंक-झोंक होती थीं,जब लड़के वाले उसे देखने आए तो वो उस दिन घर ही नहीं लौटा, विद्यालय में ही रहा ताकि उन लोगों का सामना ना करना पड़े,ना मुझे लड़के के बारे में जानने में दिलचस्पी थी और ना उसके घरवालों में और ना मैंने बाद में ही कुछ जानने की कोशिश की, और तो और मैंने प्रतिमा से बात करना भी बंद कर दिया, फिर वो चोरी वाली दुर्घटना हो गई और मुझे पुलिस पकड़कर ले गई, उसके बाद मास्टर जी ने मुझे छुड़ाया और बाबा भी नहीं रहें थे,प्रतिमा का भी ब्याह हो रहा था तो फिर मैं उधर रह कर क्या करता? बाबा की अस्थियां विसर्जित करने के बहाने मैं इधर आ गया फिर कभी वापस नहीं गया।
अच्छा मित्र,ये बताओ कहीं तुम प्रतिमा से प्रेम तो नहीं करने लगे थे तो इस कारण तुम्हारे मन में इर्ष्या उत्पन्न हो गई हो, निरंजन बोला।
पता नहीं मित्र,इस नज़रिए तो मैंने कभी सोचा ही नहीं, पता नहीं शायद, परंतु वो अजब ही एहसास होता था जब प्रतिमा मेरे साथ होती थीं तो मुझे अच्छा लगता था, उसकी सारी बातें मुझे अच्छी लगती थी, उसके साथ लड़ना-झगडना सब भाता था मुझे,जब वो मुझे पढ़ाती थी तो उसे मैं चुपके-चुपके उसकी नज़र बचा कर देखा करता था, तुम्हारे कहने के बाद लगता है कि शायद वो प्रेम ही था,जब वो मेरे साथ थी तब समझ नहीं आया लेकिन जब वो मुझसे दूर जाने लगी तो उससे दूर जाने के डर ने शायद मुझे डरा दिया और मैंने उससे बात करना बंद कर दिया, हां शायद ये प्रेम हो सकता है, मित्र!!श्रीधर ने कहा।
मित्र वो प्रेम ही था, तुम मानो या ना मानो, निरंजन बोला।
सियादुलारी आज बहुत खुश हैं, अभी-अभी प्रतिमा के ससुराल से कोई संदेशा लेकर आया है कि वो नानी बन गई, उसने खुश होकर आवाज लगाई मास्टर जी खबर आई है हम नानी-नाना बन गये,प्रतिमा को बेटा हुआ है.....
मास्टर जी ख़ुश होकर आए और बोले तो खड़ी क्या हो, मुंह तो मीठा कराओ।
हां, जी अभी लाई, सियादुलारी बोली।
ये लो जी,जी भर के खाओ मिठाई और हां बरहों पूजने का भी न्योता आया है संदेशे के साथ, जल्दी से प्रतिमा ,बच्चे और परिवार वालों के लिए कुछ ना कुछ गहने कपड़े खरीदने होंगे।
अब तो मुझे कोई कष्ट नहीं,हमारा आलोक भी उस घटना के बाद सुधर गया है,बस अब कोई अच्छी सी लड़की मिल जाए तो उसकी शादी करा दूं फिर मैं गंगा नहाऊं, सियादुलारी बोली।
बहुत धूमधाम से प्रतिमा के बेटे का बरहौं हुआ,बेटे का नाम आकाश रखा गया, लेकिन शशीकांत नहीं आ पाया, उसे फौज से छुट्टी नहीं मिली,प्रतिमा बेटे के लिए खुश थी और पति के लिए उदास, उसकी ये उदासी गुन्जा अच्छी तरह समझती थी, उसने अपनी भाभी की मनोदशा को भली-भांति समझा और प्रतिमा को सान्त्वना दी।
सब अच्छे से निपट गया।
मास्टर जी आते समय प्रतिमा से मिले,बोले बेटा,जब दामाद जी की छुट्टी हो तो मुझे ख़बर कर देना, आलोक का ब्याह करना है,अब वो सुधर गया है तो उसे एक कपड़े की दुकान करवा दी है,अब ठीक से काम भी कर रहा है,दो -तीन अच्छी लड़कियां तो है नजर में, कोई पसंद आती है तो संदेशा भिजवा देंगें।
प्रतिमा बोली, ठीक है पिता, इससे अच्छा और क्या हो सकता है कि आलोक सुधर गया है,जब इनके आने की खबर आएगी तो आपको संदेशा भिजवाती हूं।
फिर मास्टर जी बोले___
अच्छा बेटी,अब मैं चलता, अच्छा आकाश बेटा,अब नाना जी जा रहे हैं,प्रतिमा के बगल में लेटे नन्हे आकाश से मास्टर जी बोले,नन्हे आकाश को छोड़ने का मास्टर जी का मन नहीं था,वो कहते है कि "असल से ज्यादा ब्याज प्यारा होता है"।
जब शशीकांत को छुट्टी मिली तो प्रतिमा ने शशीकांत के आने की खबर मायके पहुंचवा दी, तभी मास्टर जी ने आलोक का ब्याह भी तय करवा लिया, सपरिवार,प्रतिमा अपने मायके,आलोक के ब्याह में पहुंची, लेकिन जब भी गौशाला की ओर देखती उदास हो जाती, शशीकांत भी उसके मन की बात समझ रहा था।
सियादुलारी बहुत खुश हुई, बिटिया-दमाद को देखकर और आकाश की तो बलाइयां ले लेकर ना अघाती थी, उसने तुंरत नाती को पहली बार मिलने पर उसकी छोटी छोटी कलाइयों में सोने के घूघरू वाले चूड़े पहनाये,अब वो ही उसकी मालिश और नहलाना-धुलाना करती, दिनभर उसको अपने साथ रखतीं।
आलोक का विवाह भी हो गया,नई दुल्हन घर आ गई,सब नेगचार होने के बाद प्रतिमा दो-चार दिन रुक कर सपरिवार वापस आ गई।
बहुत दिन हो गये थे, सियादुलारी बोली____
ऐ जी जाओ,जरा बिटिया और नाती से मिल आओ, कैसे हैं जरा पता तो करो,
मास्टर जी बोले ठीक है,कल ही चला जाता हूं.....
दूसरे दिन मास्टर जी,प्रतिमा के घर पहुंचे,द्वार पर गुन्जा,आकाश के साथ खेल रही थी, मास्टर जी को देखते ही गुन्जा बोली___
अरे,चाचा जी आप, अंदर चलिए,मैं आपके लिए पानी लेकर आती हूं,
तभी आकाश बोल पड़ा,ठहरो! बुआ, मैं लाता हूं,नाना जी के लिए पानी,अब मैं बड़ा हो गया हूं, मां कहती हैं अब मैं पांच साल का हो गया हूं और समझदार भी हो गया हूं।
आकाश की ऐसी बातें सुनकर मास्टर जी ने उसे गोद में उठा लिया और अंदर आ गये।
अंदर आकर आकाश बोला,देखो! दादा जी, कौन आया है,नाना जी आए हैं, मैं अभी मां को बताकर आता हूं इतना कहकर आकाश अपनी मां के पास चला गया।
तभी सीताराम जी अपनी छड़ी के सहारे आगे आकर बोले,आइए मास्टर जी....
आपने अपना ये क्या हाल बना लिया है,समधी जी, आपने तो रो रोकर अपनी आंखें ही खराब कर लीं,मास्टर जी बोले___
अब क्या बताऊं, मास्टर जी, आपसे तो घर के हालात कुछ छुपे नहीं है,सालों पहले छोटा बेटा घर से भाग गया था तो उसकी मां की रोते-रोते आंखों की रोशनी चली गई और जिसका बड़ा और होनहार बेटा लड़ाई के मैदान में शहीद हो जाए, ऐसे बाप के दिल पर क्या गुजरेगी, वहीं हमारे पूरे परिवार का सहारा था, बाल विधवा बेटी और एक विधवा बहू को देखकर एक बाप क्या करेगा रोएगा ही ना,ये सब छोड़िए,अब जैसी भगवान की इच्छा, उसकी मर्जी के आगे किसकी चलती है भला!!
आप जाइए और बहु से मिल लीजिए,तब तक गुन्जा मास्टर जी के लिए जलपान ले आई।
आप भाभी के कमरे में चलिए, मैं वहीं जलपान ले चलती हूं,गुन्जा बोली।
विधवा के रूप में,प्रतिमा को देखकर मास्टर जी का मन भर आता है, बहुत कष्ट होता है उसे ऐसे रूप में देखकर, कैसी दिखती थी मेरी प्रतिमा,अब देखो इसके चेहरे की तो जैसे रौनक ही चली गई है,दो साल हो गए, शशीकांत को गये ,घर की हालत तो देखो,सब जैसे बिखर सा गया है।
बस ऐसे ही मन में विचार करते हुए, मास्टर जी एक रात रुककर बेटी से मिलकर चले गये।
निरंजन और श्रीधर की मित्रता को पांच साल हो गए हैं, निरंजन ,श्रीधर से केवल एक या दो साल ही बड़ा होगा निरंजन, बड़े भाई समझकर उसका ख्याल रखता है लेकिन निरंजन अपनी नशे की लत से बाहर नहीं निकल पाया,इस कारण उसे तपैदिक हो गया है, निरंजन को सम्भालने के लिए श्रीधर ने नशा करना बिल्कुल से छोड़ दिया है फिर एक दिन निरंजन को खून की बहुत उल्टियां हुई,एक सप्ताह तक उसकी हालत बहुत ही गंभीर रही__
फिर उसने अपने मित्र श्रीधर से कहा___
" मित्र" श्रीधर, निरंजन ने पुकारा___
हां,बोलो मित्र, लगता है मेरा अंतिम समय आ गया है, निरंजन बोला।
ऐसा मत कहो, मित्र! श्रीधर बोला।
मुझे एक वचन दो! मित्र, निरंजन ने कहा।
हां,कहो,श्रीधर बोला
अगर मुझे मृत्यु आ जाए तो ये सूचना तुम मेरे घरवालों तक पहुंचा देना और निरंजन ने अपने घर का पूरा पता-ठिकाना श्रीधर को बता दिया,उसे खून की उलटी हुई,एक हिचकी आई और उसके प्राण निकल गये।
श्रीधर बहुत दुःखी हुआ, निरंजन का अंतिम संस्कार करके चल पड़ा उसके घर, उसकी मृत्यु की सूचना देने।
क्रमशः__
सरोज वर्मा___🥀