अध्याय - 21
उधर अनीता देवी का आपरेशन चालू हो गया था और एक यूनिट खून लग चुका था तभी नर्स बाहर आई।
मैडम एक यूनिट खून की और आवश्यकता है।
देखिए अगर मेरी सारी रिपोर्ट नार्मल हो तो मैं दे दूँगी खून।
वो नर्स रिपोर्ट देखने के बाद रमा को बुलाने आई।
ठीक है मैडम। डॉक्टर साहब आपको अंदर बुला रहें हैं।
रमा अंदर गई। उसने देखा अनीता देवी के सिर पर पट्टी बंधी थी उन्हें तिरछा लिटाया गया था और उनके कंधे का आपरेशन चल रहा था।
क्या नाम है आपका ? डॉक्टर साहब ने पूछा
जी रमा।
आप इनकी बेटी हैं ?
जी नहीं।
तो रिश्तेदार हैं ?
जी नहीं।
तो फिर कौन हैं ?
जी कोई नहीं। बस एक पहचान है इनसे। रमा बोली
तब तो ये बहुत बड़ी बात है रमा जी कि आप इनकी जान बचा रही है।
नहीं सर इंसानी फर्ज भी तो महत्वपूर्ण है।
हाँ आपने ठीक कहा। वहाँ उस बेड पर लेट जाईए। नर्स इनका ब्लड ट्रांसफर करो अनीता देवी को।
खाना वाना कुछ खायी है कि नहीं रमा जी आप ?
नहीं सर दोपहर के बाद से कुछ नहीं खायी हूँ।
अच्छा ठीक है मैं कुछ मंगा देता हूँ।
आॅपरेशन अब लगभग खत्म होने वाल था।
रमा खून देने के बाद वहीं काफी देर तक लेटी रही। फिर थोड़ा बहुत कुछ खा-पीकर वो बेंच पर ही लेट गई। वो सोचने लगी।
ये कैसी परिस्थिति है ईश्वर, जो मुझे अपने जीवन से निकालने का प्रयत्न कर रही है मैं उनका जीवन वापस लाने की कोशिश कर रही हूँ। ठीक है कोई बात नहीं। मुझे तो अपना धर्म निभाना है और फिर वो अनुज और मधु की माँ भी तो है।
क्या वो किसी को बताकर नहीं आयी है ?
क्योंकि अगर बताकर आती तो मधु या अनुज को खबर होती ही। यह सोचते सोचते ही उसकी आंख लग गई।
सुनिए रमा जी। सुबह-सुबह डॉक्टर ने आकर उसको जगा दिया।
जी डॉक्टर साहब। क्या उनको होश आ गया। रमा ने पूछा
सुबह के पांच ही बजे थे अभी।
हाँ उनको होश आ गया है और मैनें आपके बारे में अनको बता दिया है। वो आपसे बात करना चाहती हैं।
अच्छा ठीक है डॉक्टर साहब। मैं उनसे मिल लेती हूँ।
रमा अंदर गई तो अनीता देवी ऊपर की ओर एकटक देख रही थीं।
अभी आपकी तबियत कैसी है ? रमा ने पूछा
अनीता देवी ने उसकी ओर देखा। उसकी आंखों में आसू थे। उन्होने ऊंगली से अपनी ओर आने का ईशारा किया।
रमा पास आई तो अनीता देवी ने हाथ उठाकर उसके गालपर प्यार से फेरा।
रमा को कुछ समझ में नहीं आया।
आपकी तबियत ठीक है कि नहीं ?
बिलकुल ठीक हूँ बेटी और ये सब तुम्हारी वजह से है। अगर तुम मुझे ठीक वक्त पर अस्पताल नहीं लाती और उससे भी बड़ी बात वक्त पर अपना खून नहीं देती तो आज मैं जीवित नहीं बचती। डॉक्टर साहब ने बताया मुझे कि तुमने अपनी जान को खतरे में डालकर एक यूनिट से भी ज्यादा खून दिया मुझे।
मैं तो इस लायक भी नहीं हूँ कि माफी माँग सकूं तुमसे। किन शब्दों में तुम्हारा शुक्रिया अदा करूँ बेटी। आज तुमने मेरी जान बचाई है।
आज मुझे समझ में आ गया कि धन दौलत रूतबे की कोई कीमत नहीं इंसानियत के आगे। ये जानते हुए भी मैं तुम्हे पसंद नहीं करती तुमने सिर्फ इंसानियत के नाते और शायद इस वजह से कि मधु और अनुज की माँ हूँ तुमने मेरी जान बचायी। मैं तुम्हारी ऋणी हो गई हो गई बेटी क्योंकि तुम्हारा खून मेरे शरीर में दौड़ रहा है और इसलिए मैं तुम्हे आज सब बंधनों से मुक्त करती हूँ। जाओ और अनुज का प्यार स्वीकार कर लो। तुम मेरे घर की बहु बनोगी तो मुझे खुशी होगी।
रमा की आंख में आज खुशी के आंसू थे। वो आगे बढ़कर अनीता देवी से लिपट गई। तभी फोन की घंटी बजी।
रमा ने देखा मधु का फोन था।
हेलो रमा। मैनें अभी देखा तुम्हारे ढ़ेर सारे मिस्ड काल्स थे। कोई विशेष बात थी क्या। सॉरी मैं फोन नहीं उठा पाई। सो गयी थी।
अब सब ठीक है मधु। रात को थी परेशानी।
क्या हुआ ? मधु ने पूछा।
रात को तुम्हारी माँ मेरे घर आई थी। परंतु जाते वक्त एक बड़ा हादसा हो गया और वो सीढ़ी से गिर कर बेहोश हो गई। उनका सिर और कंधा फट गया था। रात को ही आपरेशन करना पड़ा। अब वो ठीक हैं।
ओ गॉड। मधु रोने लगी।
शांत हो जाओ मधु। मैं बोल रहीं हूँ ना अब वो ठीक हैं।
थैंक्यू रमा। मैं तुम्हारा एहसान कभी नहीं भूलँगी।
तुम लोग आ जाओ जल्दी। मुझे भी चेंज करने घर जाना होगा। अनुज ने तो फोन ही नहीं उठाया उसको भी बता दो और आ जाओ। रमा बोली
हाँ वो शायद मुझसे नाराज है इसलिए फोन नहीं किया होगा।
पर कोई इमरजेंसी भी हो सकती है कम से कम ये सोचकर तो फोन उठाना चाहिए।
चलो ना मैं उसको लेकर आती हूँ। तुम तो उनको अच्छे से जानती हो।
चलो ठीक है जल्दी आ जाओ। कहकर रमा ने फोन काट दिया और बाहर जाकर बेंच पर बैठ गई।
थोड़ी देर में हॉस्पिटल के मेन गेट से मधु और अनुज तेजी से आते दिखे। उनको देखकर रमा खड़ी हो गई।
मधु पास आकर एकदम से रमा से लिपट गई और रोने लगी।
अरे मधु ऐसा मत करो, तुम तो बहादुर लड़की हो। जाओ पहले अपनी माँ से मिल लो। जाओ। जाओ। रमा बोली।
लेकिन अनुज रमा को इग्नोर करते हुए सीधे रूम के अंदर चला गया। हालांकि उसने जब रमा को एक झलक देखा था तो उनकी आंखे चार हुई थी।
मधु के अंदर जाने के बाद रमा फिर से वही बेंच पर बैठ गई। आज तो वो अपने सारे वचनो से मुक्त हो गई थी और अनुज से बात करने की उसकी तीव्र इच्छा हो रही थी वो उससे लिपट जाना चाहती थी और इसीलिए बार-बार वो रूम की तरफ देख रही थी कि कब वो बाहर निकले।
मधु तो अंदर पहुँचते ही अपनी माँ से लिपट गई। वो रो रही थी।
चुप हो जाओ मधु अब तो मैं ठीक हूँ। आप यहाँ आई कैसे, वो भी बिना किसी को बताए।
अनुज नाराज होते हुए पूछा।
मेरी मधु से बात हुई थी अनुज कल दोपहर में जब तुम गुस्से में सामान पटक रहे थे। तुम्हारी ये हालत मुझसे देखी नहीं जा रही थी और जब मैने मधु से कारण पूछा तो उसके मुँह से रमा का नाम निकला। मुझे नहीं मालूम तुम्हारा और उसका क्या संबंध है पर यदि मेरा बच्चा किसी लड़की की वजह से परेशान है तो मेरा तो दायित्व है इस मामले को ठीक करना। इसीलिए बिना बताए आ गयी थी।
अनीता देवी अब भी सत्य को बताने से डर रही थी कि वो रमा को पहले से जानती हैं और उसी ने उसे अनुज के जीवन से निकाला था।
अनुज तुम अपने और रमा के बीच के प्राबलम्स को सुलझा क्यों नहीं लेते। वो बाहर ही बैठी है जाओ और उसको सबसे पहले धन्यवाद दो क्योंकि उसने तुम्हारी माँ की जान बचायी है। और फिर जो प्राबलम है उसकी चर्चा करके साल्व कर लो।
आप शायद ठीक कहती हैं। धन्यवाद तो करना ही है परंतु मुझे जो प्राबलम है आज साल्व
कर ही लूँगा।
अनुज के दिमाग में अब भी गुस्सा हावी था। वो शेखर और रमा की बातचीत भूल नहीं पा रहा था। पर बातचीत को आज क्लीयर करना है करके वो बाहर आया।
क्रमशः
मेरी अन्य तीन किताबे उड़ान, नमकीन चाय और मीता भी मातृभारती पर उपलब्ध है। कृपया पढ़कर समीक्षा अवश्य दे - भूपेंद्र कुलदीप।