यादों के झरोखे से Part 3
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मेरे जीवनसाथी की डायरी के कुछ पन्ने - इंजीनियरिंग के बाद नौकरी की तलाश और निराशा
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11 जनवरी 1966
मेरा प्री फाइनल ईयर था . मैकेनिकल और इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के 60 स्टूडेंट्स इंडस्ट्रियल टूर पर थे . बॉम्बे , बंगलोर , पूना आदि होते हुए हम दिल्ली में थे . हम रेलवे का एक पूरा कोच रिज़र्व कर टूर में निकलते हैं .अभी अभी तड़के सुबह तत्कालीन प्रधान मंत्री शास्त्री जी के दुखद अंत का समाचार ट्रांजिस्टर पर सुनने को मिला है . आज उनकी शव यात्रा है .हमलोगों ने प्रधान मंत्री निवास 10 , जनपथ जाने की सोची है .
पूरी दिल्ली बंद थी . न कोई होटल खुला था न ही कोई सवारी मिल रही थी .फिर भी हम पैदल 10 , जनपथ पहुंचे . बॉउंड्री फेंसिंग पर खड़े हो कर शास्त्री जी की गाड़ी निकलने का इंतजार करने लगे .कुछ देर में उनका पार्थिव शरीर एक गाड़ी में गेट से बाहर निकला .मैं गेट के बहुत करीब था , उनका मुंह खुला था पर स्याह रंग का हो चुका था . खैर उनके दर्शन करने से मन को संतोष हुआ .
12 जनवरी 1966
आज हम लोग दिल्ली से पटना लौट रहे हैं .
15 मई 1967
मेरा फ़िफ़्थ और फाइनल ईयर है . अब तक हमारा फाइनल एग्जाम खत्म हो जाता है .हमारी यूनिवर्सिटी परीक्षा मई महीने में होती थी और 14 जून को रिजल्ट भी निकलता था .पर इस साल बिहार के सभी इंजिनीरिंग कॉलेज में हड़ताल चल रही है . इसी दौरान सभी बड़ी कंपनियाँ नए इंजिनीयर्स को ग्रेजुएट ट्रेनिंग के लिए आवेदन मांगती हैं और जुलाई में ज्वाइन करना पड़ता है . एक साल की ट्रेनिंग के बाद उन्हें स्थायी नौकरी मिलती है .इस साल अपने भविष्य को ले कर बहुत चिन्तित हूँ . न जाने कब तक रिजल्ट आएगा .
26 सितंबर 1967
आखिर लम्बे इन्तजार के बाद वह दिन आया , आज फाइनल रिजल्ट निकलने वाला है . व्हीलर सीनेट हॉल यूनिवर्सिटी ऑफिस जाना है पर दो दिन से लगातार मूसलाधार बारिश हो रही है .सारा शहर करीब जलमग्न है खास कर मैं जिस एरिया में रहता हूँ . सड़क पर करीब दो फ़ीट पानी जमा है .कॉलेज भी करीब नौ किलोमीटर दूर है . मैं डे स्कॉलर हूँ , कॉलेज साइकिल से आना जाना होता था . हॉस्टल वाले लड़के तो आराम से बगल के यूनिवर्सिटी ऑफिस में जा कर अपना रिजल्ट देख सकते हैं . फोन की भी सुविधा नहीं है .जी मचल रहा है जाने के लिए पर बाबा मना कर रहे हैं जाने को . इतने ख़राब मौसम में नहीं जाने दे रहे थे .
आखिर मुझसे नहीं रहा गया और मैंने कहा “ जब 5 साल मैं सभी मौसम में कॉलेज गया , एक दिन भी नहीं छोड़ा तब आज आखिरी बार जाने में क्या हर्ज़ है .”
“ ठीक है , जाओ .देख कर जाना रास्ते में जगह जगह खड्ड और नाले हैं .”
मैं बाबा को प्रणाम कर निकल पड़ा .किसी तरह साइकिल से भीगते भागते यूनिवर्सिटी पहुंचा .वहां और भी दोस्त थे . पहला न्यूज़ उन्हीं से मिला “ मुबारक हो यार , तुम्हें फर्स्ट क्लास आया है .”
हमने आपस में एक दूसरे को बधाई दी . फिर कुछ देर बाद अपने घर लौट चला . घर में भी सभी बेसब्री से मेरा ही इंतजार कर रहे थे . मेरे रिजल्ट के बारे में सुन कर सबको बहुत ख़ुशी हुई .
बाबा बहुत खुश हो कर बोले “ आज मेरा दूसरा बेटा भी इंजीनियर बन गया .”
“ पहले नौकरी तो मिले .सभी कारखानों ने ट्रेनी भर्ती कर ली जुलाई में ही . अब दो दिन बाद फिर यूनिवर्सिटी से मार्कशीट लाना है और कॉलेज से कॉलेज लीविंग सर्टिफिकेट .डिग्री तो कन्वोकेशन के समय मिलेगी उसमें बहुत देर है . .”
28 सितंबर 1967
आज बरसात थम चुकी है . मैं मार्कशीट और कॉलेज लीविंग सर्टिफिकेट ले कर आया . देर रात तक बैठ कर हाथों से ही उनकी कॉपी बना कर बाबा को दिया . वे कल ऑफिस से अपने बॉस से अटेस्ट करा कर लाएंगे और मैं उन्हें नौकरी के आवेदन पत्र के साथ अटैच कर भेजना शुरू करूँगा . कुछ जगहों में पहले से ही आवेदन भेजा है , उन्हें मार्क्स और सर्टिफिकेट भेजने हैं .
1 नवम्बर 1967
लम्बे इंतजार के बाद पहला इंटरव्यू लेटर आया है . सोमवार 20 नवम्बर को दिल्ली में एक सरकारी संस्थान में इंटरव्यू है . आने जाने का रेल भाड़ा भी मिल रहा है . मैं बहुत खुश हूँ साथ में भय भी कि नतीजा क्या होगा क्योंकि सुना है बिना पैरवी नौकरी मिलना बहुत कठिन है .
20 नवम्बर 1967
जिसका डर था वही हुआ .इंटरव्यू से निराशा ही मिली , मैं तो पहले प्रश्न से ही इंटरव्यू का नतीजा भाप गया था . पूछा गया “ तो आप बिहार से आये हैं यानि 50 मार्क्स फ्लैट ग्रेस ले कर पास हुए हैं . “
मैंने कहा “ नो सर , मैं पटना यूनिवर्सिटी से हूँ . 50 मार्क्स फ्लैट ग्रेस रांची यूनिवर्सिटी के लड़कों को मिला है पटना यूनिवर्सिटी में नहीं . “
मेरी सफाई का कोई असर नहीं दिखा . बाकी सवाल मात्र खानापूर्ति थे . औपचारिक नतीजा नहीं बताया गया था मगर मुझे कोई उम्मीद नहीं दिख रही थी . खैर मैं रेल भाड़े का चेक ले कर पटना लौट आया .
21 नवम्बर 1967
मैं पटना आया तो मुझे एक और इंटरव्यू लेटर मिला . 6 दिसम्बर को कलकत्ता में एक कम्पनी में इंटरव्यू है . फिर कुछ उम्मीद जगी . यह कम्पनी आने जाने का खर्च नहीं दे रही थी . घर में पैसे की कमी थी . बाबा ने एक उपाय निकाल लिया . RMS ( रेलवे मेल सर्विस ) के डिब्बे में आने जाने का इंतजाम कर दिया .
5 दिसम्बर 1967
शाम को मैं कलकत्ता मेल के RMS डब्बे में गया . इसमें बैठने या सोने की कोई जगह नहीं होती है . लेटर्स के बड़े बड़े बैग थे . एक बैग बैठने के लिए मुझे भी दिया गया . हावड़ा पहुँच कर एक स्टाफ ने मुझे प्लेटफार्म टिकट ला कर दिया . उसी के साथ RMS गेस्ट हाउस में गया . वहीँ से तैयार हो कर अपना बैग ले कर इंटरव्यू देने कंपनी के दफ्तर गया . कहने को इंटरव्यू अच्छा गया पर उम्मीद नहीं दिखी . इंटरव्यू बोर्ड के मेंबर और ज्यादातर उम्मीदवार भी लोकल थे .
7 दिसम्बर 1967
आज मैं कलकत्ता से पटना लौटा हूँ . अपनी नौकरी को ले कर परेशान हूँ . मैंने बाबा से कहा “ मुझे बड़े बाबा के यहाँ जाने दीजिये . आजकल वे बॉम्बे में हैं . वहां काफी कल कारखाने हैं . इनकम टैक्स के बड़े अफसर हैं . कुछ न कुछ वे कर ही देंगे . “
बाबा बोले “तुम उन्हें नहीं जानते हो . वे बहुत स्ट्रिक्ट और ईमानदार व्यक्ति हैं . अपने बेटे के लिए तो कुछ किये ही नहीं तुम्हारे लिए क्या करेंगे . बेकार है वहां जाना . “
΅ फिर भी एक बार मुझे ट्राई करने दीजिये . और कुछ नहीं तो कुछ दिनों के लिए चेंज हो जायेगा . “
17 दिसम्बर 1967
आज मैं बड़े बाबा के घर आया . उनसे अपनी बात कही पर उनका कहना था तुम अप्लाई करो और इंटरव्यू दो . अगर तुम में टैलेंट है तो नौकरी मिलेगी . मैंने आज तक कभी पैरवी नहीं की है . मेरी उम्मीद पर पानी फिर गया .
बड़ी अम्मा ने कहा “ कम से कम इसे बम्बई तो घूमा दें . “
इसके लिए वे तैयार हो गए तब मैंने कहा “ और कुछ नहीं कर सकते तो आप मुझे किसी स्टूडियो में शूटिंग दिखा दीजिये . “
“ इसके लिए भी मैं किसी का अहसान नहीं लूँगा . “
बड़ी अम्मा ने हमारी मदद की , उन्होंने कहा “ आज संडे को आप कमल कपूर की बेटी को सितार की ट्यूशन में जायेंगे तब उन से बोल सकते हैं . “
बड़े बाबा अच्छे सितार वादक हैं ये तो मुझे पता था पर किसी एक्टर की बेटी को सितार सिखाते हैं पता नहीं था . कमल कपूर एक नामी चरित्र अभिनेता और खलनायक हैं , मैं जानता था और उनकी कुछ फ़िल्में भी देख चुका हूँ .
जब मैंने बड़े बाबा से पूछा मगर आपको ट्यूशन क्यों करनी पड़ती है तो जबाब बड़ी अम्मा ने दिया “ ट्यूशन न करें तो बम्बई जैसे शहर में खर्च चलाना मुश्किल है . सत्य हरीश चंद्र के बाद तुम्हारे बाबा ही है न ? “
बड़े बाबा सीरियस थे और बाकी सब लोग हँस पड़े . वे बोले “ठीक है शाम को चलना मेरे साथ . “
मैं बाबा के साथ शाम को कमल कपूर के यहाँ गया . कमल कपूर ने बड़े आदर से हमारा स्वागत किया और चाय नाश्ता हुआ . फिर बाबा ने उन से मेरे मन की बात कही तो उन्होंने कहा “ ये कौन बड़ी बात है . मुझे स्टूडियो की शूटिंग शेड्यूल तो पता नहीं पर मैं श्री साउंड और रूप तारा स्टूडियो में फोन कर देता हूँ . जो भी शूटिंग हो रही होगी आप देख लेना . “
मुझे इतनी जल्दी सफलता की उम्मीद नहीं थी . फ़िल्में शुरू से मेरी कमजोरी रही हैं . कुछ पल के लिए मैं नौकरी की बात भूल गया और स्टूडियो की सोचने लगा .
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