नियति क्या कर रही थी ये।।अरे सम्हाल खुद को।ये सब तो लाइफ में चलता ही रहता है।फिर तुम तो इतनी स्ट्रॉन्ग हो।
रश्मि।।माना कि मै स्ट्रॉन्ग हूं।लेकिन ये कोई तरीका तो नहीं है।जब मन हुआ लाइफ में आ गए और जब मन हुआ चले गए।रश्मि हर काम का एक सलीका होता है। अगर रिश्ता ख़तम करना था या कोई दिक्कत थी परेशानी थी तो बोला जाता है उस पर डिस्कस किया जाता है।ब्रेक अप करना भी हो तो ब्रेक अप का रीजन बताया जाता है।ऐसे ही बिन बताए नहीं गायब हुआ जाता है।
ये सब तो सुनी सुनाई बाते है।मै इन सुनी हुई बातों पर यकीन कैसे कर लूं जब उसने मुझसे खुद कुछ नहीं कहा।अगर मैंने भी ऐसे ही यकीन कर लिया तो उसमे और मुझमें भला क्या फर्क रहेगा।फिर तो मै भी वही करूंगी न हो अमर ने किया।।
ओह हो माना कि तुम्हारी बात में लॉजिक है।लेकिन हकीकत भी कोई चीज है निया तुम उससे मुंह नहीं मोड़ सकती।और अब चलो यहां से रूम पर।
रश्मि मुझे बांह पकड़ खींचते हुए जैसे तैसे रूम पर ले आती है।रूम पर आने के बाद मै रश्मि के गले लग जाती हूं।दिल में भरा हुए गुबार,दर्द,गुस्सा सब आंसुओ के जरिए बहने लगता है।वहीं अक्षत और दीप भी मुझसे संपर्क में लगातार रहते है एक पल के लिए भी मुझे अकेला नहीं छोड़ते।
अपने इन नए रिश्तों की अपने लिए इतना प्यार देख मुझे समझ आता है साथ निभाने वाले हर हालातो में साथ निभाते हैं।जैसे तैसे वो रात बीत जाती है।उस रात के व्यतीत होने के साथ ही चली जाती है मेरी जीवन जीने की इच्छा।।अमृता जी उस समय मै तनाव में आ जाती हूं।और ये तनाव इतना गहरा होता है कि मै आत्महत्या तक करने की कोशिश करती हूं।कॉलेज जाना तो लगभग मैंने बंद ही कर दिया।उस ब्रेक अप का बहुत गहरा असर पड़ा था मुझ पर।
उस दिन के बाद से जैसे अमर गायब ही हो गया।कहीं नहीं दिखा मुझे वो!! मै घंटो सोशल साइट्स पर उसका इंतजार करती लेकिन वो नहीं आता। कॉल नहीं करती थी क्यूंकि ये सोच लेती शायद मेरे कॉल करने से उसकी लाइफ कोई प्रॉब्लम न खड़ी हो जाए।
समय गुजरता जा रहा और इस बात को लगभग एक महीना हो गया।लेकिन मै इस डिप्रेशन से बाहर नहीं निकल पाई।बल्कि इसके दलदल में धंसती चली गई।शायद मै कभी बाहर न निकल पाती अगर राघव मेरी लाइफ में नहीं आता।
कहते हुए नियति चश्मा उतार अपनी आंखो के कोरो को साफ करती है।उसकी आंखे आंसुओ से डूबी हुई होती है।जिन्हें देख साफ लग रहा है कि सालो पहले हुई इस घटना को आज भी महसूस कर रही है जैसे ये सब उसकी आंखो के सामने ही चल रहा था।
अमृता ये देख नियति के पास आती है और उसकी पीठ पर हाथ रख उसे सांत्वना देती है।रिलेक्स नियति।।तुम ठीक हो अब।।नियति आंसू पोंछे हुए हां कहती है।निया।।मुझे ऐसा लग रहा है जैसे अब तुम आगे कुछ भी बता सकनें की स्थिति में नहीं हो।इसीलिए मै अभी चलती हूं।कल आकर फिर से नए सिरे से शुरुआत करते है।
जी मै समझ सकती हूं।एक लेखिका हूं और भावनाओं को महसूस कर सकती हूं तभी तो किरदारों को रचती हूं।
नियति सोफे से खड़े होकर एकांत में बने कमरे की ओर चलती है जहां उसकी फैमिली कि फोटोज लगी हुई होती है।नियति भरे हुए नैनो से वहां जाती है और टुकुर टुकुर तस्वीरों को निहारने लगती है।उसे वहां खड़े हुए काफी समय हो जाता है।तभी राघव घर में आता है और आकर सोफे पर धम्म से बैठ जाता है।
तथा आंखे बंद कर सर पीछे टिका कुछ देर आराम की मुद्रा में आ जाता है।मन में कई सारे ख्याल चल रहे हैं।मन की उथल पुथल चेहरे के भावों पर स्पष्ट दिखाई दे रही है।
कुछ देर बाद नियति हॉल में आती है।और रति को दो कप चाय तैयार कर हॉल में लाने को कहती है।
राघव, क्या हुआ कहां खोए हुए हो।सब ठीक तो है?नियति पास ही पड़ी सोफे वाली कुर्सी पर बैठते हुए कहती है।
आवाज़ सुन राघव अपनी आंखे खोलता है और नियति को सामने देख मुस्कुराते हुए कहता है हां सब ठीक है नियति।।" ओह रियली लग तो नहीं रहा है।"
वैसे तुम आज कॉलेज गए थे सब ठीक है वहां!!
आँ... हां !! सब ठीक है नियति।तुम ज्यादा न सोचो।राघव कुछ सोचते सोचते जवाब देता है।जिसे देख नियति सोफे से तकिया उठाकर अपनी गोद में रखती है और राघव से कहती है आ.. आ..अटकी !! तुम अटकते हुए बोल रहे हो इसका मतलब ये कि कुछ गडबड है।और अगर तुम नहीं बता रहे हो तो मै खुद ही बता देती हूं तुम्हे। लेकिन पांच मिनट बाद!!
कॉल उठ जाता है।नियति कुछ मिनट बातचीत करती है और फोन रख राघव की तरफ घूर घूर कर देखने लगती है।
जी!! और अब तुम ये बता दो जो बात बैठ कर सुलझाई जा सकती थी उसे यूं इतना बढ़ाने की क्या जरूरत थी।अच्छा," तो तुम्हारे कहने का मतलब है कि छात्र है तो उनको बैठ कर समझाना चाहिए पहले और नहीं मानते तब हमें दूसरा रास्ता अपनाना चाहिए।।राघव से उठाते हुए कहता है।
नियति कॉलेज लाइफ से तुम भी गुजरी ही और मै भी।कैसे कैसे छात्र होते है पता है न।अब कोई हमारे रिश्ते के बारे में मेरी बहन से उल्टा सीधा कहे ये बात मेरे बर्दाश्त के बाहर है।आज ढंग से ये बात समझा कर आया हूं।।अब आरुषि को भी कोई परेशान नहीं करेगा।।
तुम्हे पता है हमारे यहां रहने की वजह से कॉलेज के छात्र आरुषि को परेशान करते थे।और इंडायेक्टली आते जाते हुए आरुषि पर भद्दे कमेंट करते हैं।आरुषि ने हमसे कुछ नहीं कहा सब घुट घुट कर सुनती रही जितना हुआ उसने जवाब दिया और बाकी जब आवाज़ ज्यादा हो गई तो खामोशी का रास्ता अपना लिया उसने।।लेकिन तुमसे या मुझसे कुछ नहीं कहा।काफी समझदार हो गई है वो।
राघव समझदारी अपनी जगह होती है और बेवकूफी अपनी जगह।खैर आगे का तुमने हैंडल कर लिया होगा।लेकिन राघव जितना हो सके इन सब से दूर ही रहो कुछ नहीं रखा है इस लड़ाई झगड़े में।हम दोनों ने तो इसके साइड एफेक्ट्स को अपनी आंखो से देखा है।
हां।।चलो कोई नहीं फिलहाल तो सब ठीक है आगे का देखा जाएगा।तुम बताओ ये तुम्हारी आंखे क्यों लाल हो रखी है।आज फिर तुम अतीत के किसी हिस्से को याद कर भावुक हुई होगी है न।कितना समझाया तुम्हे लेकिन तुम तो किसी की सुनती नहीं न।। राघव थोड़ा सा गुस्से ने झुंझला कर कहता है।
" अरे नहीं राघव, ये तो बस ऐसे ही है।।"
अच्छा चलो आज कहीं बाहर चलते हैं।बहुत दिन हो गए घूमने गए भी नहीं।अपने आगरा की सैर ही कर ली जाए।। आइडिया अच्छा है न।राघव बात बदलते हुए कहता है।
नियति सभी को खुश देख कर मुस्कुराती है और सभी के साथ उनकी मस्ती में शामिल होकर मस्ती करने लगती है। कुछ ही देर बाद बस रुकती है और सभी आगरा की साफ सुथरी सड़कों पर चलते हुए ठंडी ठंडी हवाओं का आनंद ले रहे होते है।पैदल चलते चलते सभी एक पार्क में पहुंचते है।पार्क की हरी भरी जमीन पर चटाई बिछा सभी बैठ जाते है और गेम खेलते हुए इन चुराए गए पलो को सहेज लेते हैं।नियति का कॉल रिंग होता है तो वो कॉल उठाते हुए वहां से थोड़ा आगे चली जाती है।नियति कॉल पर अपना प्रोजेक्ट डिस्कस कर रही होती है।इधर से उधर चल रही होती है।तभी उसकी नज़र पार्क में एक पेड़ के नीचे बैठे हुए कपल पर पड़ती है।जिसे देख नियति की आंखो में आंसू और होठों पर मुस्कुराहट आ जाती है।वो कॉल रख वहां से राघव के पास जाती है और कुछ ही देर में आने का बोल उस कपल के पास चली जाती है।
हे रश्मि ! कैसी हो यार! आफ्टर ए लॉन्ग टाइम!! तुम्हे देख रही हूं!!नियति रश्मि को पीछे से हाथ लगाते हुए कहती है।रश्मि आवाज़ सुन पीछे मुड देखती है।
ओह माय गॉड! निया। मेरी जान।।तुम यहां ... ।रश्मि नियति के गले लगते हुए कहती है। कैसी हो यार!! कॉलेज के बाद तो तुम दिखी ही नही।और जब दिखी तो न्यूज पेपर की हेडलाइन पर।पहले से निखर गई हो निया।रश्मि नियति को देखते हुए खुश होकर कहती है।
हां यार!! समय तो बहुत हो गया।एक दूसरे को देखे हुए।ग्यारह वर्ष! पूरा एक दशक और एक वर्ष।लेकिन इन वर्षों में तुम्हे भूली नहीं मै।हर रोज याद किया तुम्हे।जब भी मुझे एक दोस्त के सहारे की जरूरत पड़ी तुम बहुत याद आई।कहते कहते नियति की आंखे भर आती है।जिन्हें देख रश्मि कहती है, पागल हो! बिल्कुल नहीं बदली! अभी भी वैसी ही हो! परेशान आत्मा!! हां बस झल्ली नहीं रही!!
चल बैठ कुछ देर मेरे साथ भी!! कहते हुए रश्मि नियति का हाथ पकड़ बैठा लेती है। अरे तुम इनसे भी तो बातचीत करो।।या अभी भी नाराजगी है इनसे!!रश्मि अपने पास बैठे हुए एक बंदे कि तरफ इशारा करते हुए कहती है।
नियति उसे देखते हुए फीकी हंसी हंस देती है और हेल्लो कह चुप हो जाती है।जिसे देख रश्मि कहती है नियति क्या हुआ इतनी खामोश कैसे हो गई तुम।कॉलेज टाइम में कितना बोलती थी।।और अब ऐसा लग रहा है जैसे शब्द ही ख़तम हो गए हो तुम्हारे पास।
नियति मैंने अपना तुम्हे दिया हुआ वादा पूरा किया।।और अब तुम इनसे इस तरह कटी कटी रहोगी तो मुझे बुरा लगेगा यार।।जो कुछ भी हुआ था उसके बारे में तुम्हे सिर्फ आधा सच पता है लेकिन बाकी आधा सच मै जानती हूं और समझती हूं कि अमर क्यों अचानक से चला गया।।मज़बूरी थी...रश्मि रुको!! बस इससे आगे कुछ नहीं। मै नहीं चाहता अतीत की कोई भी याद हम सब के वर्तमान को प्रभावित करे।निया को जो समझना है वो समझे!! पूरा सत्य तुम्हे पता है और अक्षत को पता है बस यही मेरे लिए काफी है।बाकी अब निया मेरे बारे में क्या सोचती है ये उसकी अपनी थिंकिंग है मुझे इस से कुछ लेना देना नहीं है
और हां तुम दोनों आराम से बातचीत करें मै जरा बाहर घूम कर आता हूं।जब बातें ख़तम हो जाए मुझे कॉल कर देना मै वहीं पार्क के गेट पर मिल जाऊंगा।कहते हुए अमर वहां से चला जाता है।
ये अमर क्या कह कर गया रश्मि। किस सच की बात कर रहा था वो।।और उसे ऐसा क्यों लगता है जैसे मुझे अब भी उसके होने से प्रॉब्लम होती है।...
ओह हो एक साथ इतने सवाल!! एक एक कर पूछ।।और अमर क्या कह गया वो मै तुम्हे नहीं बता सकती तुम खुद से पता करो।।बाकी उसे क्यूं ऐसा लगता है ये तो तुम्हारे बिहेव से कोई भी समझ जाए।क्यूंकि कॉलेज टाइम में ऐसी नहीं थी तुम!!
खैर इन सब बातो में कुछ नहीं रखा है।इतने दिनों बाद मिली हो कुछ और बातचीत करते है।रश्मि नियति के कांधे पर हाथ रखते हुए कहती है।
सॉरी यार।। आज नहीं। एक कार्य करो रश्मि तुम अपना कॉन्टेक्ट नंबर दे दो।हम दोबारा बात कर मिलने का प्रोग्राम बनाते हैं।अभी के लिए मुझे जाना होगा।मेरे साथ मेरे घर के सभी मेंबर आए हुए है।इसीलिए हम फोन पर सूटेबल टाइम फिक्स कर दोबारा मिलते है।
ओके!! डियर।। लिखो कहते हुए रश्मि अपना कॉन्टेक्ट नम्बर नियति को देती है जिसे नियति अपने फोन में सेव कर लेती है।तथा रश्मि को बाय कह नियति वहां से चली जाती है।
नियति रश्मि और अमर की बातों को समझने कि कोशिश करती है।जिससे इतना समझ आता है कि अमर के बारे में जितना मुझे पता है वो अपर्याप्त है। अमर की कुछ मज़बूरी रही होगी यूं अचानक गायब होने की!! लेकिन क्या? ये कैसे पता करूं?सोचते हुए नियति सभी के पास आ जाती है।राघव नियति को सोच में डूबा हुआ देखता है तो इशारे ही इशारे में कर्ण पूछता है।नियति न में गर्दन हिला मना कर देती है।तब राघव उसे मुस्कुराने के लिए इशारा करता है जिसे देख नियति मुस्कुरा देती है।
नियति कुछ देर पहले की हुए सारी बातें भूल राघव के साथ मिल कर खूब सारी मस्ती करती है। सभी महिलाओं एक साथ बैठ कर बैठने वाले विभिन्न गेम खेल ती हैं।शाम हो जाती है तो सभी महिलाओं को एक रेस्टोरेंट में ले जाकर खाना खाने के लिए कहती है।ये देख सभी महिलाओं की आंखो में आंसू आ जाते हैं।जिन्हें राघव और नियति इशारे से पोंछने के लिए कहते हैं। मुस्कुराते हुए सभी खाना खाते है।और अंधेरा घिरने पर सभी घर के लिए निकल आते हैं।
नियति - राघव सभी को अन्दर तक छोड़ दोगे प्लीज़!
राघव - नो प्लीज़ यार, ये भी भला कोई कहने की बात है।मै खुद ही जा रहा था वैसे भी।।तुम जरा आरुषि को देख लेना वो सो गई या नहीं।जाग रही हो तो पूछ लेना उसे कुछ चाहिए तो नहीं!!
हां! बिल्कुल।। ये भी कोई कहने कि बात है राघव!! नियति अन्दर आरुषि के कमरे में जाकर देखती है तो पाती है आरुषि अध्ययन में लगी हुई है।नियति आरुषि के पास जाकर उसके सिर पर प्रेम से हाथ रख पूछती है "उसे कुछ चाहिए तो नहीं।"
नहीं दी।।कुछ नहीं चाहिए खाना हम खा चुके है और बाकी अब आप भी रेस्ट कर लीजिए जाकर!!
ओके आरुषि!! कहते हुए नियति वहां से वापस अपने कमरे में आ जाती है।
अपने कमरे में आकर नियति रश्मि ने जो कहा उसके बारे में सोचने लगती है।
रश्मि ने कहा कि वो और अक्षत पूरी बात जानते है।जानते है वो कि अमर उस समय मजबूर था! इसीलिए वो लौट कर नहीं आया।रश्मि ने तो मुझे कुछ नहीं बताया! चलो अक्षत भाई से ही कॉल कर कल आने को बोलती हूं।सामने बैठ कर इस मैटर पर बातचीत करेंगे तो बेहतर होगा।फोन पर तो बातें क्लियर नहीं हो पाएगी।
हमम ये सही है फोन ही कर लेती हूं।नियति अपना फोन उठा कर अक्षत को कॉल लगाती है और अगले दिन फ़्री हो घर घूम जाने के लिए बोलती है।
अक्षत ठीक है निया कह उसकी बात मान फोन रख देता है।
रात्रि व्यतीत हो जाती है और निर्धारित समय पर अमृता आ जाती है।
अमृता - आपकी मुस्कुराहट बता रही है आप अब बिल्कुल ठीक है।
जी अमृता जी!!
तो फिर श्रीगणेश करते है आगे की कहानी का!! मेरा मतलब आपकी आगे की दास्तां का...🙂।
जी बिल्कुल।।कहते हुए नियति आगे शुरू करती है।
एक महीना हो चुका था मुझे डिप्रेशन में गए हुए।हर समय चिड़चिड़ाहट, गुस्सा रहने लगा मेरे फेस पर। जरा जरा सी बातो पर मेरा पारा हाइ हो जाता! न किसी से मिलती जुलती। न ही बातचीत करती। बस चुपचाप अपने रूम में पड़ी रहती और फोन का इस्तेमाल करती।सोशल साइट्स का इतना इस्तेमाल किया उस टाइम, मेरे लिए क्या दिन क्या रात किसी में कोई अंतर नहीं रह गया था।।बहुत इंतजार किया मैंने अमर के रिप्लाइ का।लेकिन अमर का कोई जवाब नहीं आया।
उसके इस तरह चले जाने से मुझे वो पल याद आते जब मेरा और अमर का कभी कभार छोटा मोटा झगड़ा होता!! तो गुस्से ही गुस्से में मै उससे कह देती अमर, अभी तो मै पास हूं, तुम्हारे साथ हूं इसीलिए कोई वैल्यू नहीं है मेरी है न!!एक दिन मै ऐसे गायब हो जाऊंगी जैसे कभी थी है नहीं तुम्हारी लाइफ में!! मेरी इस बात पर अमर हंसते हुए कहता अरे तुम कहां जाओगी दूर।।जहां भी जाओगी मेरी चाहत तुम्हे यहीं मेरे पास ही खींच ले आयेगी।।फिर भी अगर तुम नहीं आईं तो कॉल कर के तुम्हे आने को कह दूंगा।।और तुम मेरी कही बात कभी टलोगी नहीं इतना जो जानता हूं मै तुम्हे!!
अमर की बात सुन मै थोड़ा मान दिखाते हुए कहती।कॉल तो तब करोगे न जब मेरे पास कोई नम्बर होगा।मै तो गायब ही होऊंगी। न अपने पास फोन रखूंगी और न ही कोई सोशल अकाउंट।।फिर तुम्हे समझ आयेगी मेरी इंपोर्टेंस।उस वक़्त मुझे नहीं पता था कि ये सारी बातें भविष्य में कभी न कभी सच हो जाएगी।
ऐसे ही एक दिन इंतजार करते करते राघव का मेसेज मेरे पास आया।अमर की धमकी की वजह से राघव ने मुझसे बात करना कम कर दिया था। बस कभी कभी फॉर्मल बातचीत हो जाया करती थी।
राघव - हेल्लो मिस नियति! कैसी हो!
मै - हेल्लो राघव।मै ठीक हूं इतने समय बाद तुम दिखे!! सब खैरियत तो है।
यस नियति सब ठीक है तुम अपना बताओ।क्या चल रहा है आजकल!!
मै - कुछ खास नहीं राघव।। बस कॉलेज ही चल रहा है फिलहाल! बस इसी तरह फॉर्मल बातचीत होती है।राघव को पता सब कुछ होता है लेकिन कभी जताया ही नहीं उसने।वो अप्रत्यक्ष रूप से मेरे अंदर आत्मविश्वास जाग्रत करने की कोशिशों में लग जाता है।हम जब भी बातें करते तो हंसी खुशी की जोक्स चुटकुले वाली बातें करते।उसने कभी मुझसे मेरे रिलेशनशिप के बारे में नहीं पूछा।बस अपनी सुनाता गया।राघव से बातचीत मेरी डेली होने लगी।तब मुझे समझ आया कि दुनिया में केवल मै ही अकेली नहीं हूं जिसका दिल दुखा हो।बहुत से लोग ऐसे है इस जहां में जो चेहरे पर तो मुस्कुराहट रखते है लेकिन हृदय में दुखों का दर्द का तूफ़ान लिए फिरते है।राघव भी उन्हीं में से एक था।इस बात का पता मुझे उससे बात करते हुए पता चला।हमारे बीच एक रिश्ता बन चुका था दर्द का रिश्ता।।
क्यूंकि राघव और मैंने दोनों ने ही दर्द को किसी न किसी रूप में महसूस किया था।बस फर्क इतना था अमर मुझे नहीं बताकर छोड़कर गया तो वहीं सोनी राघव को बता कर किसी और से शादी कर उसकी लाइफ से चली गई थीं।
राघव और मेरी बॉन्डिंग बहुत गहरी हो गई हमने एक दूसरे से कई राज साझा किए।कुछ कॉम्पटीशन साथ जीते।तो कुछ के फाइनल में पहुंचे। यहां तक कि जब घर वालो का साथ छूट गया तब राघव और अक्षत दोनों ने मेरा साथ दिया और मुझे सम्हाला।
एक दिन रश्मि ने मुझे बताया कि कॉलेज में सुचिता सबको लड्डू बांट रही थी।
मै - लड्डू, और सुचिता!! लेकिन क्यों?
रश्मि - शायद उसका और अमर का रिश्ता तय हो गया है इसीलिए!!
उसकी बात सुनकर मुझे बहुत बुरा लगता है मै धम्म से नीचे बेड पर बैठ जाती हूं और मेरी आंखो से आंसू बहने लगते हैं।जिसे देख रश्मि कहती है अरे पूरी बात तो सुन..! अगर इतनी ही बात होती तो मै तुझे भला क्यूं बताती।।
मै अपनी नज़रे ऊपर कर रश्मि के चेहरे की ओर टकटकी लगाए देखने लगती हूं।
तुझे पता है नियति आज मैंने सुचिता को उसी लड़के के गले से लगे हुए देखा था..वहीं जिसने सुचिता का साथ दिया था गडबड करने में..!
रश्मि की बात सुन पहले तो मै कुछ देर सोचती हूं फिर उससे पूछती हूं क्या वो कर्ण था ?
हां।वहीं था कर्ण।।नियति।लेकिन आज उन दोनों को मैंने देखा वहीं उसी जगह पर!! लेकिन सुचिता और कर्ण को देखने पर ऐसा लग रहा था जैसे उनमें किसी बात को लेकर झगड़ा हो रहा हो फिर न जाने क्या कहा कर्ण ने कि सुचिता ने उसे गले से लगा लिया।मुझे कुछ समझ में नहीं आया क्यूंकि मै वहां से थोड़ा दूर थी न! साफ सुनाई ही नहीं दे रहा था बस दिखाई दे रहा था जो देखा वो तुझे बता दिया।
मै रश्मि की बात सुन सोच में पड़ जाती हूं क्या कारण हो सकता है इन दोनों के झगड़े का और फिर सुचिता का गले लगाने का।जब कोई रीजन समझ नहीं आता तो मै रश्मि से कहती हूं जो भी होगा देखा जायेगा फिलहाल तो हमें स्टडी पर फोकस करना चाहिए क्यूंकि एग्जाम जो आने वाले है।अगले पंद्रह दिनों में पेपर शुरू हो जाएंगे।
हां निया तुम सही कह रही हो मै भी कहां इन सब बेकार की बातों में पड़ गई।अच्छा नियति अब ये बता कॉलेज कब से जाना शुरू कर रही है।रश्मि चेयर पर बैठते हुए मुझसे पूछती है।
मै रश्मि की तरफ देखते हुए कहती हूं कॉलेज तो छूट ही गया मेरा रश्मि।।अब तो बस एग्जाम दे दूं फिर वापस घर निकलूंगी।पापा ने रिश्ता देख लिया है और एग्जाम के बाद देखना दिखाना कर शादी कर देंगे!!
क्या... मेरी बात सुन रश्मि का मुंह खुला का खुला रह जाता है।उस समय उसके चेहरे पर हैरानी के भाव साफ देखे जा सकते थे।
मै ऐसे क्या देख रही है यार।शादी तो सबकी होती है
मेरी भी होगी।अब इस बात से क्या फर्क पड़ता है कि अभी हो या कुछ सालों बाद।वैसे भी अमर के आने की कोई उम्मीद भी नहीं है अब! उसकी भी तो शादी होने वाली है न सुचिता के साथ तूने अभी कुछ देर पहले ही तो मुझे बताया।
लेकिन नियति सुचिता सही लडकी नहीं है यार।।तुम खुद ही सो चो।।क्या तुम्हे सुचिता से प्रॉब्लम नहीं होती।उसके व्यवहार से उसकी सोच से।।
रश्मि मुझे परेशानी हो या न हो इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता अब।अमर ने हां की है तो कुछ सोच कर ही की होगी।।
नियति क्या हो गया है तुझे!! तू ऐसी तो नहीं थी जो सिर्फ अपने ही बारे में सोचती हो।यार ये जान कर कि अमर के जीवन में जो लड़की उसकी पत्नी का स्थान ले रही है वो सही नहीं है,उसके लायक नहीं है फिर भी तुम ये शादी होने देना चाहती हो।
रश्मि की बात सुन मै कुछ क्षण के लिए मौन हो जाती हूं फिर कुछ सोच कर रश्मि से कहती हूं अच्छा,अगर इतनी ही फिक्र हो रही है अमर की तो तुम सुचिता की जगह उसकी लाइफ में चली जाओ!! तब तो और भी अच्छा होगा न।
मेरे मुंह से ये शब्द सुन रश्मि पहले थोड़ा हकबका जाती है।लेकिन उसकी आंखो में चमक और गालों पर हलकी लाली आ जाती है जिन्हें मै देख लेती हूं।
ये तुम क्या कह रही हो निया!! मै कैसे उसकी लाइफ में जा सकती हूं।जबकि वो प्यार तो सिर्फ तुमसे करता है।और तुम अमर की खुशी के लिए कुछ भी कर सकती हो।फिर मै या फिर ये सुचिता होते कौन है बीच में आने वाले।
ओह हो रश्मि क्या ये आवश्यक है कि हर प्यार करने वालो को विवाह कर साथ रहने का अधिकार मिल पाए।नहीं न!! इस जहां में बहुत सी प्रेम कहानियां शुरू होती है और विवाह किसी और से हो जाने पर समाप्त भी हो जाती है।।लेकिन कुछ आत्माएं ऐसी होते है जो इन सब बंधनों से परे होती हैं।जिनके लिए प्रेम सिर्फ प्रेम होता है, किसी को पाने और खोने से भी ज्यादा महत्वपूर्ण केवल उस व्यक्ति की खुशी होती है जिनसे वो अगाध प्रेम करती हैं। बस मै भी इन्हीं चंद लोगो से हूं।अगर अमर सुचिता के साथ खुश है तो क्यों बीच में पड़ूं मै।हालांकि जानती हूं सुचिता सही लड़की नहीं है अमर के लिए लेकिन तुम खुद इस बात को सोचो," जब अमर को मेरे ऊपर ही विश्वास नहीं है तो मेरी पसंद पर कैसे विश्वास करेगा" रश्मि! एक राज की बात बताऊं तुम्हे?
हां बता अब इसके लिए भी तुझे पूछने की जरूरत है क्या?
सच सच बताना क्या तुम्हे अमर से प्रेम नहीं!!
मेरी बात सुन कर रश्मि का चेहरा सफेद पड़ जाता है मानो किसी ने उसे चोरी करते हुए रंगे हाथो पकड़ लिया हो!!उसकी जीभ लड़खड़ाते हुए बमुश्किल कुछ शब्द कह पाती है क्या.. कह रही हो तुम!!मै अमर से प्रेम??
रश्मि किससे झूठ बोल रही हो मुझसे!! तुम्हारी आंखो मै मैंने प्रेम देखा है अमर के लिए लेकिन कभी तुम्हे जताया नहीं।क्यूंकि तुमने अमर को पाने के लिए उससे प्रेम नहीं किया।बल्कि उसकी खुशी को अपना कर अपने प्रेम का बलिदान किया!! और तुम्हारे इस त्याग को मै बखूबी समझती हूं।तभी तुमसे कह रही हूं क्यूंकि मुझ पर उसे विश्वास नहीं तो तुम ही अमर को इस गलत रिश्ते में जाने से रोक सकती हो।क्यूंकि प्रेम तुम भी करती हो उससे और मै भी।
मेरी बात सुन रश्मि कहती है नियति सच बताओ क्या तुम्हे ये जान कर बिल्कुल बुरा नहीं लगा?
नहीं रश्मि!! क्यूंकि अब समझ आ गया है प्रेम स्वंतत्र होता है, प्रेम को अगर बंधन में बांधने की कोशिश करोगे तो वो घटती हुई चन्द्र कला की तरह अपना अस्तित्व खोता जाएगा और एक दिन विलुप्त ही हो जाएगा।बिल्कुल अमावस के चांद की तरह।। जो कभी दिखता ही नहीं।
इसीलिए अब बुरा लगने का तो कोई प्रश्न ही नहीं है।
तुम सच में बिल्कुल अलग हो।जीवन के हर मोड़ पर तुम्हे संघर्ष ही मिला है फिर भी तुम मुस्कुराते हुए प्रेम ज्ञान दे रही हो!!
ठीक है मै वादा करती हूं कोशिश करूंगी अमर को इस शादी से बचाने की।बाकी शादी का मै नहीं कह सकती।।क्यूंकि अमर पर कोई दवाब नहीं होगा मेरा।।लेकिन सुचिता की शादी उससे नहीं होने दूंगी।ये पक्का है।जिस तरह सुचिता ने टेढ़ा रास्ता अपनाया है न मै भी वैसा ही रास्ता देखूंगी और उसे अमर के जीवन से आउट कर ही दूंगी।
रश्मि की बात सुन कर मै उसके गले से लग जाती हूं जिसे देख रश्मि कहती है झल्ली कहीं की!!कॉलेज एग्जाम का दिन भी आ जाता है और मै पूरे एक महीने बीस दिन बाद कॉलेज में कदम रखती हूं।जहां अक्षत आशीष सुचिता तीनों मुझे दिखते है लेकिन अमर नहीं दिखता!!मेरी नज़रे उसे चारो ओर खोजती है लेकिन वो कहीं नहीं होता या शायद जानबूझ कर मेरे सामने नहीं आता!! मै सभी से हाय हेल्लो करती हूं और अपने एग्जाम रूम की तरफ बढ़ जाती है।
अक्षत रश्मि से कहता है ये क्या हो गया इसे।।अच्छे खासे रूप की बैंड बजा ली है इसने।।जब आई थी तब कितनी सुंदर लगती थी और अब देखो लगभग दो महीनों में हो क्या गया इसे!!आंखो के नीचे डार्क सर्कल,चेहरे का नूर ढल गया।होठ बिल्कुल सूख गए हैं।और स्किन ऐसी बेजान हो चुकी है कुछ पूछो ही मत।ये सब क्या है रश्मि!!
अक्षत नियति अब पहले से फिर भी ठीक हो गई है कुछ दिन पहले देखते तो पहचान भी न पाते कि यही हम सबकी निया है।।
अब तो जिंदगी जीने लगी है ये।।खैर हम सब यूं ही बाते करते रहेंगे या फिर एग्जाम रूम की तरफ चलेंगे।समय हो गया है पेपर का।।किसी भी क्षण बेल बज जाएगी।।
हां सो तो है चलो चलते हे कहते हुए सभी एग्जाम रूम की तरफ चले जाते हैं।
सभी एग्जाम रूम में पहुंच कर एग्जाम देने लगते हैं।कुछ ही देर में पेपर समाप्त हो जाता है।और हम सभी बाहर गार्डन में आकर मिलते हैं।अक्षत रश्मि सुचिता आशीष और मै पांचों गार्डन में बैठे होते हैं। और सभी आज के एग्जाम के बारे में चर्चा करने लगते हैं।मै बस खामोशी से उन सब की बातें सुनती जाती हूं।
अक्षत - क्या बात है दी।तुम एकदम खामोश क्यूं हो।कुछ तुम भी बोलो।अपना अनुभव बताओ पेपर को लेकर।
अक्षत की बात सुनकर मै मुस्कुराने की कोशिश करते हुए कहती हूं। भाई मेरा एग्जाम तो अच्छा हुआ।सारे प्रश्न हल कर आई।
अक्षत - ये तो बहुत अच्छी बात है दी।
सुचिता मुझे सुनाते हुए कहती है डियर दोस्तों।।बहुत जल्द मेरी और अमर की इंगेजमेंट होगी तुम सबको आना है।मेरी तरफ मुखातिब होकर कहती है नियति तुमको तो विशेष रूप से आना ही आना है।तुम्हारा कोई बहाना नहीं चलेगा।
सुचिता की बात सुन बुरा तो सभी को लगता है लेकिन जताता कोई नहीं है।
अक्षत (ताने देने के अंदाज़ से) - वैसे सुचिता ये अमर भाईसाहब है कहां।जरा दिख जाते तो बधाई भी दे देते।।
अमर तो अभी एग्जाम देकर घर निकल गया घर अब उसके दर्शन तो होने से रहे तुम सबको।अब बस हमारी शादी के फंक्शन में ही दिखेगा वो तुम सब को।कहते हुए सुचिता मुस्कुराने लगती है।और मेरी तरफ देखती है।रश्मि उसकी मुस्कुराहट में छुपे व्यंग्य को देख लेती है।और मेरा हाथ अपने हाथ से कस कर पकड़ लेती है।
अच्छा गाइज हम दोनों निकलती हैं अगले एग्जाम की भी तैयारी करनी है।रश्मि सबसे कह वहां से मेरे साथ निकल आती है। हम दोनों रूम पर पहुंच स्टडी करने लगती हैं।धीरे धीरे सारे एग्जाम समाप्त हो जाते है।लेकिन एक भी दिन मुझे कहीं भी अमर नहीं दिखाई देता। न जाने कब आता और कब चला जाता।इस सब को देख कर मेरे मन में एक ही बात आती क्या सच में अमर तुम्हे मुझसे परेशानी होने लगी है।क्या इतनी नफरत है आपको मुझसे जो मेरे सामने तक नहीं आना चाहते।।
अगले दिन मुझे अपने घर जाना था और रश्मि को अपने घर।हम दोनों ही रेडी हो कर अपना अपना सामान ले हॉस्टल के बाहर आ गए जहां वार्डन और दीप मेरे इंतजार में खड़े हुए थे।वार्डन हमारे लिए अपने हाथ से लड्डू बनाकर लाई हुई थी जो हम दोनों के ही फेवरेट थे।वो मुझसे मिलते हुए भावुक हो गई थी।वहीं दीप मेरे और रश्मि के लिए एक किताब लेकर आया जो पॉजिटिविटी से संबंधित थी।उन दोनों का अपने प्रति लगाव परवाह देख मेरी भी आंखे नम हो गई थी।मैंने उन्हें नहीं बताया था कि अब मै वापस नहीं आने वाली वहां।ये बात केवल रश्मि जानती थी।दोनों से मिल कर मै रश्मि के गले लगती हूं।हम दोनों ही इस लम्हे में भावुक होते हैं।दोनों की ही आंखो से आंसू निकल रहे है।क्यूंकि हम दोनों ही जानते थे कि ये हमारी अंतिम मुलाकात है।इसके बाद पता नहीं मुलाकात कभी हो भी या नहीं।कुछ देर बाद रश्मि कहती है -
रश्मि - ओय झल्ली! देख वहां जाकर अपना ध्यान रखना।और इस बार डॉक्टर से चेक अप करवा लेना
एक वर्ष हो गया टालते टालते और तेरी ये प्रॉब्लम कम होने की बजाय बढ़ ही रही है। सो लापरवाही मत करना।प्लीज़!!
मै उसकी बात सुन रोए हुए भी हंस देती हूं और कहती हूं, हां पक्का।।इस बार जरूर जाऊंगी डॉक्टर के पास!!
देख ये पक्का कच्चा मुझे नहीं पता।।तुम बस कसम लो मेरी तब मुझे यकीन होगा।नहीं तो वादा करो!!रश्मि मेरा हाथ अपने हाथो में लेते हुए कहती है।
अब देख कसम में मै यकीन नहीं करती। और वादे कभी न कभी टूट ही जाते है।तुम बस भरोसा कर लो मुझ पर मै इस बार पक्का जाऊंगी डॉक्टर के पास।
ना बातों में तो न उलझाओ मुझे तुम अगले महीने तक की ही बात है वादा नहीं टूटेगा।।क्यूंकि मै जानती हूं तुम आसानी से किसी से वादा नहीं करती हो लेकिन जब करती हो तो निभाने में कोई कमी नहीं छोड़ती!
रश्मि क्यूं फोर्स कर रही हो यार कहा न पक्का जाऊंगी।इतना विश्वास तो रखो।तभी पापा की गाड़ी के ड्राइवर वहां आ जाते हैं
मै रश्मि को बाय कह ड्राईवर के साथ अपने गांव के लिए निकल गई और रश्मि अपने घर के लिए।
कुछ ही देर में मै अपने गांव पहुंच चुकी थी।घर जाकर मैंने अपना सामान अपने कमरे में रखा और कुछ देर सुस्ताने लगी।
ओ महारानी!! थोड़ी दूर से आई हो कहीं विदेश से नहीं आई जो कमरे में बैठ कर आराम फरमाने लगी।हाथ मुंह धुल कर आ जाओ इधर रसोई में।और अपना काम सम्हालो कुछ दिन शहर में क्या रहने लग गई अपनी जिम्मेदारी ही भूल गई।लगता है शहर में जाकर तो आलसी हो गई है तभी तो सीधा कमरे में ही टिक गई नीचे उतर कर भी नहीं आई। मां की ये कड़कड़ाती आवाज़ जब मेरे कानो में पड़ती है तो मै हड़बड़ा कर कमरे से निकल नीचे पहुंच जाती हूं।
मां मुझे देखकर कहती है आ गई तुम चलो रसोई में जरा मेरी मदद कर दो। मां की बात सुनकर मै वहीं खड़ी रहती हूं। मां ये देख कहती है क्या हुआ खड़ी क्यू हो।
मै - मां वो मै रसोई में नहीं जा सकती .. कहते हुए चुप हो जाती हूं।...हे भगवान चल कोई नहीं!! चल अपने पुराने कार्य पर ही लग जा।साफ सफाई पर।वो तो कर लेगी न।तो उसी को कर ले।
जी मां!! मै अपने कार्य में लग जाती हूं। पूरे फर्श की साफ सफाई कर मै कुछ देर कमर सीधी करने के लिए खड़ी हो जाती है।ये देखो।सच में आलसी हो गई है।देखो कुछ कार्य नहीं दिखता इसे।एक कार्य कर लिया और रुक कर खड़ी हो गई।
जे छोरी तो नाक कटायेगी ब्याह के बाद।नेकहुं मन ना लगता है जाको काम में। जबते आगरा ते आयि है ऐसे ही बची बची फिर रही है काम ते।देख छोरी ये तेरो जीवन ऐसे ही न कटेगो।काम प्यारो होत है जे चाम प्यारो न होत है।मन सूं काम करेगी तो सुखी रहेगी।समझी।जा अब छत पर मिर्च मसाला पड़ो है जाके एक बार हाथ फिरा आ।दादी बरामदे में पड़ी खटिया पर बैठते हुए कहती हैं।
मै दादी कि बात मान छत पर चली जाती हूं।ये सब मेरे लिए नया नहीं था।वर्षों से ये सब सुनती आ रही थी तो आश्चर्य नहीं हुआ।चुपचाप सारे कार्य करने लगती हूं।उन दिनों में बहुत पीड़ा होती थी।दर्द सहा नहीं जाता लेकिन फिर भी घर का काम नियमित रूप से करना होता।उसके लिए कोई रियायत नहीं मिलती।जैसे तैसे हिम्मत कर कुछ पल आंसू बहाकर तो कुछ पल कराह कर सारे कार्य करती।
कभी कभी मन में ख्याल आता क्या सच में मां को हम बच्चियों कि परेशानी दिखती नहीं है।इतनी तकलीफ़ में अपने बच्चो से कोई मां कार्य कैसे करा सकती है। मां तो धूप में उस छांव की तरह होती है जो हर पल परछाई बन अपने बच्चो के साथ रहती है। उसे हर मुश्किल में सम्हालती है।न कि मुश्किलों के समय भी अपनी संतान को अकेला छोड़ दे।
धीरे धीरे दिन निकलता है और शाम को पापा भी घर आ जाते है। मै सबसे कुछ दूर खड़ी हुई होती हूं।क्यूंकि घर का ये नियम होता है।पापा मां से कहते है कि निया अब घर आ गई है दो दिन बाद लड़के वाले आ रहे है निया को देखने सारी तैयारी कर के रखना।कोई कमी नहीं होनी चाहिए।
पापा की बात सुन मेरी आंखो से आंसू छलक जाते है लेकिन यही मेरी नियति हो ये सोच कर इन्हे और छलकने से रोक लेती हूं और सुन कर चुपचाप खड़ी रहती हूं।पापा और भी बातचीत करते हैं।जब भोजन समय समाप्त हो जाता है तब सभी अपने अपने कक्ष में चले जाते हैं।मै भी अपने कमरे मै जाकर सोचने लगती हूं क्या सच में यही परिवार है।जहां माता पिता ने कुशल क्षेम तो नहीं पूछा बल्कि विवाह की तैयारियां कर रहे हैं।एक बार भी प्यार से सिर पर हाथ रख नहीं पूछा नियति काफी थैली लग रही हो तबियत तो ठीक रहती है तुम्हारी।इसे छोड़ो कभी पढ़ाई के बारे में भी नहीं पूछा कैसी चल रही है।बस जब भी फोन किया यही कहा सम्हल कर रहना।कोई उंच नीच नहीं होनी चाहिए।अगर कोई शिकायत आई तो सब बंद करवा घर बिठा लेंगे।कुछ ही देर बाद मेरे पास मेरी सबसे छोटी बहन कृति आती है जो अपने हाथ में मेरे लिए खाना लिए होती है।आकर थैली रख मुझे देख गले से लग जाती है।और कहती है दी वहां कोई था नहीं न देखभाल करने वाला इसीलिए ऐसी हो गई है आप।मै कृति की बात पर बस मुस्कुरा देती हूं जिसे देख कृति कहती है --
दी सच बताना आपका स्वास्थ्य ठीक है न।न जाने क्यों आपकी आंखे देख ऐसा लग रहा है कि बहुत बीमार है आप।
कृति की बात सुन मै भावुक हो जाती हूं और उससे कहती हूं छोटी मै ठीक हूं।ये तो बस एग्जाम में पढ़ाई की वजह से लग रहा है ऐसा।कुछ ही दिनों में ठीक हो जाएगा। कह मै एक छोटा सा झूठ बोल देती हूं।
कृति मेरी बात मान जाती है।और मेरे लिए लाया हुआ खाना रख चली जाती है।
मै खाना खाकर सोने चली जाती हूं।रश्मि की याद आती है उससे बात करना चाहती हूं लेकिन कोई साधन न होने की वजह से नहीं कर पाती।क्यूंकि घर वापस आते ही मेरा फोन मुझसे ले लिया जाता है।और रश्मि का फोन मै उसे वहीं लौटा देती हूं।
दो दिन निकल जाते हैं।तथा पापाजी के कहे अनुसार लड़के वाले मुझे देखने आने वाले होते है।उस दिन मुझे एक सुंदर दिखने वाली गुड़िया की तरह सजा चमका कर लड़के वालो के सामने प्रेजेंट कर दिया जाता है।
अमृता जी - अर्थात ?
नियति - मतलब ये कि जिस लड़की को देखने के लिए लड़के वाले आ रहे है उससे उसकी मर्ज़ी तक नहीं पूछी गई।बस अच्छे कपड़े पहना दिए चेहरे पर अच्छा सा मेकअप थोप दिया जिससे सारे दाग धब्बे छिप जाए।और चेहरा एकदम चमकता हुआ लगे।
अमृता जी - सच में नियति जी आपकी लाइफ कितनी मुश्किलों भरी रही होगी।ऐसा जीवन जहां सांस भी दूसरे की मर्ज़ी से लेनी पड़े!फिर आगे क्या हुआ !! क्या निर्णय हुआ..
मै मन ही मन सोचती हूं कि माना की मेरे घर इतनी बंदिशे है।शायद आगे आने वाले जीवन में ऐसा कुछ न हो।ये लोग जो यहां आए है ये लग तो भले ही रहे है।तभी तो अब तक मुझसे न कुछ पूछा और न ही कुछ कहा।बातें भी शालीनता से कर रहे हैं।
तभी मेरे कानों को आवाज़ आती है भई अब लड़की देख दिखा ली।लेकिन हमें साफ़ साफ बात करने की आदत है हमें अपने घर के लिए बहू चाहिए सुंदर , सुशील और समझदार।सुशील तो स्वभाव से ही लग रही है अब बची सुंदर और समझदार।अब ये जो सुंदरता अभी दिख रही है वो वास्तविक है या प्राकृतिक ये भला हमें कैसे पता चलेगा। इस सुंदरता का हम कुछ नहीं कह सकते ये तो आजकल चुटकियों का काम है।जरा सी लीपापोती करवा ली चेहरे पर लगने लगे सुंदर।तो आप बुरा मत मानिए लेकिन एक बार हमारे सामने इसका चेहरा धुलवा दीजिए जिससे हमें भी तसल्ली ही जाएगी।
उनकी बात सुन मुझे ये आभास होता है कि मै एक कैद से निकल दूसरी जेल में पहुंचने वाली हूं।वो भी इतनी टाइट सिक्योरिटी वाली कि जहां जरा सी हलचल करने पर सीधा एनकाउंटर कर दिया जाएगा।
क्या मानसिकता है इनकी मतलब रूप रंग जो एक उम्र के बाद ढल जाता है उसके आधार पर बहू ढूंढ़ रहे है।
उनकी बात सुन कर मेरे पापाजी एक बार मां की तरफ तीखी नजरो से देखते है जिससे मेरी मां थोड़ा सहम जाती है।लेकिन जब लड़के वालों ने कहा है तो करना पड़ेगा यहीं सोच अपनाते हुए वहीं सबके सामने मुझसे चेहरा धोने को बोल दिया जाता है।और मै पिंजरे में कैद पंछी की तरह इस अपमान को सहने के लिए मजबूर हो जाती हूं।कृति पानी ले आती है और मै पानी के छींटे उछाल उछाल कर चेहरा साफ कर लेती हूं। जब वो लोग मेरा चेहरा देखते है तो बिगड़ते हुए तुरंत रिश्ते के लिए न कह देते है।आंखो के नीचे कुछ डार्क सर्कल मौजूद रहते है जो गोरे रंग की वज़ह से कुछ ज्यादा ही काले लगते है।तिलो की मौजूदगी से चेहरा कुछ ज्यादा ही धब्बे वाला लगने लगता है।क्यूंकि मेरे चेहरे पर जो तिल है वो काले न होकर हलके रंग के होते है जिस वजह से चेहरा भद्दा लग रहा होता है। इस कारण वो मां पापाजी से कहते है यही है आपकी सुंदर बेटी। हमें तो किसी एंगल से सुंदर नहीं लग रही है।अरे विजित कपूर साहब जी झूठ बोला ही था तो ढंग का बोलते जो छिप जाता।
हमें ये रिश्ता मंजूर नहीं है।चलते है हम जय राम जी की।कहते हुए वो वहां से चले जाते हैं।
और घर के सदस्य मुझ पर बरसना शुरू हो जाते हैं।
न जाने क्या किया इसने अपने चेहरे के साथ जो ये हाल बना लिया।जरूर वहां बाहर रहकर वो बूटी पालर में लिपाई पुराई करवाई होगी चेहरे की।काहे कि मैंने सुना है कि ज्यादा लीपा पोती की वजह से चेहरा खराब हो जाता हैं।देख रे छोरे कही थी मैंने तोहे मत भेज जाहे आगरा।देख लियो का भयो।अब पूरी बिरादरी में थू थू होवेगी। काहे कि अपने घर पर छोरियो के रिश्ते एक ही बार में हो जावें है और कोई छोरा फेल तो कबहुं कर के ही न गयो। और तेरी जा छोरी को तो रूप कि वजह से फेल कर गयो। जाके रूप के चर्चे तो कछु साल पहले मुहल्ले भर में होते और आज देख।।दादी के ये शब्द सीधा मेरे हृदय को बेधते है।वहीं मां भी शुरू हो जाती हैं अब न जाने किस किस को क्या जवाब देते फिरेंगे काहे मना कर गए छोरी को।
मै चुपचाप वहीं खड़ी रहती हूं।सबकी बातचीत सुनकर बस चुपके से रो देती हूं क्यूंकि अगर किसी ने ये आंसू देख लिए तो फिर से एक नया बवाल हो जाना है।
धीरे धीरे सभी का गुस्सा निकल जाता है और बैठकर चर्चा करने लगते है।और फाइनल निष्कर्ष ये होता है कि जब तक मेरा फेस पहले जैसा नहीं हो जाता विवाह के बारे में चर्चा नहीं की जाएगी...
सभी अपने अपने कार्य पर लग जाते हैं।अब मै घर पर क्या बताऊं कि इसका क्या कारण है।पहले तो रीजन अमर था।उसके बाद स्टडी और अब मेरी ये नई शुरू हुई परेशानी ...! जिसके कारण मै दर्द की वजह से न चैन से सो सकती हूं और न ही चैन से बैठ सकती हूं।घर पर तो इस बारे में बात करना ही गुनाह है।इसीलिए बस झेलना ही एकमात्र विकल्प रह जाता है मेरे लिए। दिन पर दिन और महीने पर महीने निकलते जाते हैं लेकिन मेरे चेहरे की रंगत वापस नहीं आती है।इधर हर गुजरते दिन के साथ मेरी परेशानी भी बढ़ती जाती है।पहले सिर्फ तीन दिन की परेशानी होती और अब दिन भी बढ़ने लगे थे।साथ ही पेन भी।चार दिन पांच दिन छ दिन और कभी कभी तो बंद होने के बाद बीच में कभी भी प्रॉब्लम शुरू हो जाती।बहुत परेशानी मै थी मै किससे अपनी परेशानी कहती कोई नहीं था मेरे पास उस समय।कृति मेरी छोटी बहन थी उससे कहती भी तो क्या हो जाता वो कुछ नहीं कर पाती क्यूंकि इस शब्द का नाम लेने तक की मनाही थी मेरे घर में तो मेरी बीमारी के बारे में भला कैसे सुना जाता।
मेरा कमरा भी अलग था तो मेरी दर्द में ली हुई कराह भी किसी को नहीं सुनाई देती।मै रातो को दर्द में सिसकते हुए बिता देती और दिन ठीक होने का दिखावा कर घर की साफ सफाई करते हुए।क्यूंकि बचपन से ही देखती आ रही थी यहां किसी लड़की के दर्द की,तकलीफ़ की किसी को कोई परवाह नहीं।
धीरे धीरे मै थकती चली गई।और एक दिन कमजोरी तथा अत्यधिक पेन के कारण फर्श की सफाई करते करते नीचे हॉल में ही गिर पड़ी....
क्रमशः.....