कृति जो नीचे रसोई में होती है मुझे फर्श पर गिरते हुए देख जोर से कहती है नियति दी बेहोश होकर गिर गई है। मां पापा।दादी देखिए न जीजी को क्या हो गया। कह दौड़ते हुए मेरे पास आती है और मुझे उठाने की कोशिश करती है।
मां पापा दादी दादाजी सभी आ जाते है।पापा मुझे गोद में उठा कर हॉल में पड़े सोफे पर लिटा देते हैं।वहीं दादी मेरे चेहरे की तरफ देख चौंकते हुए कहती है जा छोरी को चेहरा तो देखो कितनो पिलो पड़ रह्यो है।एसो तो पहले कबहुँ देखो नही।और आज कछु ज्यादा ही पीलो लग रहो है।
पापा जी अपना फोन उठा कर ड्राइवर को कॉल करते हैं।कुछ ही देर में ड्राइवर गाड़ी लेकर दरवाजे के सामने आ जाता है।जहां पापाजी मुझे गाड़ी में लेकर अस्पताल के लिए निकल जाते हैं।मां घर पर ही रह जाती है क्योंकि मेरी याद में पापाजी मां को लेकर घर से बाहर साथ लेकर शायद ही कभी गये हैं।इसीलिये उस दिन भी नही लेकर गए।
अस्पताल पापाजी के किसी जान पहचान वाले मित्र का होता है।मुझे अस्पताल मे चेक अप के लिए महिला डॉक्टर के पास भेज दिया जाता है और पापाजी अपने डॉक्टर मित्र से बात करने लगते हैं।
मेरे सारे चेक अप कर लिए जाते है।साथ ही डॉक्टर मुझे कुछ इंजेक्शन देती है जिससे फिलहाल के लिए इस प्रॉब्लम पर ब्रेक लग सके।डॉक्टर मुझसे कुछ प्रश्न करती है!
जैसे कि ये समस्या तुम्हे कब से है? क्या पहले से कहीं ट्रीटमेंट चल रहा है या नही।अगर नही तो अब तक किसी डॉक्टर से संपर्क क्यों नही किया।किस बात का इंतज़ार था मुझे?
कुछ प्रश्नों के जवाब मैं दे देती हूँ और कुछ प्रश्नों पर मौन रह जाती हूँ।जिसे देख डॉक्टर थोड़ा सा बिगड़ती है बाद में शांत हो वहां से चली जाती है।कुछ ही देर में मेरी सारी रिपोर्ट आ जाती है जिन्हें वो महिला डॉक्टर पापाजी के पास बैठे डॉक्टर को भिजवा देती है।डॉक्टर सभी रिपोर्ट्स को पढ़ते है और पापाजी से कहते हैं कि छोरी की रिपोर्ट में फाइब्रॉइड के लक्षण दिख रहे है।वो भी काफी समय से।जिस कारण काफी ब्लड लॉस हो गया है।तुमने कभी पहले इसका ट्रीटमेंट नही कराया क्या।
पापाजी - नही।क्योंकि इसकी परेशानी अचानक से सामने आई है।इसे पहले से कोई दिक्कत नही थी।आज ही बेहोश होकर गिरी है तब मैं इसे यहां लेकर आया।
ठीक है।लेकिन रिपोर्ट जो कह रही है वो मैंने तुझे बताया।अब तुम इसका अच्छे से इलाज कराओ।नियमित रुप से दवाइयां लेगी ये, तो हो सकता है दवाइयां काम कर जाये।नहीं तो फिर एक ही रास्ता बचेगा...मुझे वहां देख बात को अधूरी छोड़ देते है और पापाजी से कहते है तुम समझ रहे हो मैं क्या कहने की कोशिश कर रहा हूँ।
पापाजी - हां।... गुड।तो अब ये दवाइयां मंगवा लेना कहते हुए सफेद रंग का प्रिस्क्रिप्शन पापाजी को पकड़ा देते हैं।
पापाजी मुझे गाड़ी मे बैठने को कहते हैं।एवम स्वयं वहां के स्टाफ को प्रिस्क्रिप्शन देकर दवाई लाने को भेज देते हैं।मैं धीरे धीरे गाड़ी तक पहुंच जाती हूँ और दरवाजा खोल उसमे बैठ जाती हूँ।कुछ देर में पापाजी भी आ जाते है।उस दिन पहली बार मैंने अपने पापाजी के माथे पर चिंता की लकीरे देखी।अब वो किस कारण थी ये मुझे नही पता था।
मैं और पापाजी दोनो घर आ गए थे।घर आकर मैं वही हॉल में बैठ जाती हूँ।पापाजी पास में ही पड़ी सोफे की कुर्सी पर बैठ जाते हैं।मां की तरफ देखते हुए कहते हैं।तुमने कभी बच्चो पर ध्यान नही दिया।अगर थोड़ा ध्यान दे लेती तो आज नियति इतनी बीमार नही होती।तुम्हारी लापरवाही की वजह से अब इसे कुछ महीने या साल भर घर बिठाना पड़ेगा।
डॉक्टर ने रिपोर्ट दे दी है।अब कुछ महीने इसका इलाज चलेगा।अगर दवाइयों से आराम नही मिलता है तो फिर ऑपरेशन ही एकमात्र विकल्प है।
कहाँ तो मैं ये सोच रहा था।इस साल बड़ी को ब्याह कर विदा कर दूंगा और साल दो साल में इससे छोटी को।लेकिन अब तो न जाने कब तक रुकना पड़े।
मां जो पापाजी की बात बड़ी ध्यान से सुन रही थी इतना तो समझ लेती है किसी बीमारी के बारे में बात हो रही है।मुझे कोई बीमारी है लेकिन क्या है ये वो नही समझ पाती है।वो सिर पर पल्लू रखे पापाजी की तरफ देखती रहती है जिसे देख पापाजी कहते है अब ये औरतो वाली बात है ये भी मैं ही बताऊं तुमको।नियति से पूछ लेना।मैं निकलता हूँ।और ये रही इसकी दवा जो खाने के बाद सुबह शाम लेनी है।
मैं निकलता हूँ अब देरी हो रही है।कहते हुए पापाजी वहां से चले जाते हैं।घर पर कृति दादी जी,दादाजी ही रह जाते हैं।क्योंकि मुझसे। छोटी तो कॉलेज गयी होती है और दोनों भाई स्कूल।
दादाजी मेरे सिर पर अपना हाथ रख वहां से अपने कार्य से चले जाते हैं। कृति को मां रसोई में बाकी का काम निपटाने के लिए भेज देती है।
दादी - छोरी।तेरे पापाजी का कह रहे थे कि तोहे औरतो वाली बीमारी है गयी है।का भयो है तोहे।का बताई डॉक्टर ने।
अब ई फाइब्रॉइड का होवत है।जे का बलाय है।जे अंग्रेजी में नाही बोलो।हिंदी में बताओ मोये।तब तो समझ मे आये क्या समस्या है तोहे।
दादी की बात सुन मैं सोचने लगती हूँ अब इसका हिंदी में क्या व्याख्यान करूँ।।कुछ कहूंगी तो मां ओर दादी सारा दोष मुझपर ही डाल देंगी।
मैं मां की तरफ देखते हुए कहती हूँ कि ये प्रॉब्लम उन दिनों से ...
ए छोरी।कितनी निर्लज्ज हो गयी है।अपनी मां दादी के सामने क्या कह रही है।चुप कर।तोसे बीमारी के बारे में पूछ रही हूं न कि उन दिनों के बारे मे।
मैं चुप रह जाती हूँ।जब जानना ही नही था तो पूछ क्यों रहे हैं।मैं पहले से ही जानती थी कि ये शब्द सुनना तक गवांरा नही है।तो क्या बताऊं फिर मैं इन सबको।
जे छोरी तो बिगड़ गयी है शहर जाय के।कछु पूछो तो जवाब ही न देत है अब।बस गूंगी बनी खड़ी है जबते।अब तू ही पूछ ले तोसे ही कछु कह दे। ए छोरी कृती ! ! मेय कमरा में तो आ दवा निकाल के दे दे मोय।टेम है रह्यो है मेरी दवाई को।मैं कमरे में जाय रही हूँ।दादी वहां से कमरे में चली जाती है।
मैं मां को धीरे धीरे अटकते अटकते पूरी बात बता देती हूं।जिसे सुन कर मां कहती है मैंने कभी सोचा ही नही था कि इस तरह की भी कोई दिक्कत बीमारी भी हो सकती है।क्योंकि कभी सुना ही नही इसके बारे में।और यहां मां जी ने ऐसा नियम कायदा बना रखा है जिसे तुम अच्छी तरह से जानती हो।
चलो जो हुआ सो हुआ अब सब बस दवाइयों पर ध्यान दो जिससे जल्द से जल्द सब ठीक हो जाये।और तुम्हारे पापाजी का दिमाग भी शांत हो जाये।जिससे सही समय पर सारे कार्य किये जा सके।
उस दिन मेरी लाइफ में कुछ बदलाव तो होते है।अब मुझसे ज्यादा वजन वाले कार्य नही कराये जाते।बस हल्के फुल्के कार्य दिया जाता जिनमे।सब्जी काटना,धुलना,बैठे बैठे आसपास की चीज़ें पोंछ देना।झाड़ू पोंछा साफ सफाई का कार्य सुमति को दे दिया गया। अब दिन में दो बार मां मुझसे दवा के विषय मे पूछ ही लेती।कभी कभी पापाजी भी बैठ कर हालचाल ले लिया करते।
हां दादी अक्सर मुझे सुना देती।धीरे धीरे चार महीने निकल गए।कभी आराम दिखता कभी परेशानी वैसी ही रहती।
डॉक्टर के पास मैं चेकअप कराने जाती हूँ तो डॉक्टर बताते है थोड़ा सा आराम हुआ है इसे।कुछ महीने और दवा चलने देते हैं। मेडिसिन लेकर मैं पापाजी के साथ घर आ जाती हूँ और फिर से वही रूटीन कंटीन्यू करने लगती हूँ।एक दिन घर मे सुमति अपना कार्य कर रही थी मुझे किसी कार्य से नीचे रसोई में जाना था मैं अपने कमरे से निकल हॉल में पहुंचती हूँ।नीचे फर्श पर साबुन वाला पानी फैला हुआ था।मैं बच कर निकलने की कोशिश करते हुए भी फिसल जाती हूँ।मुंह के बल गिरती हूँ और जिसका असर मेरे स्वास्थ्य पर पड़ता है। सुमति मेरे पास दौड़ते हुए आती है और मुझे सहारा देकर कमरे में ले जाती है।मेरी परेशानी फिर से शुरू हो जाती है।मैं पापाजी के साथ हॉस्पिटल जाती हूँ जहां सारे चेक अप किये जाते है।डॉक्टर रिपोर्ट देख पापा से कहते है।पिछली बार लगा कि इसे मेडिसिन से फायदा हो रहा है लेकिन इस बार ये दिक्कत बढ़ चुकी है।यानी इस बार दवाइयों ने कार्य नही किया है।और गिरने की वजह से वज़न पड़ा है इनके टमी पर जिसके लिए मैंने साफ साफ मना किया हुआ था।कहा था कि वज़न नही आना चाहिए किसी तरह का भी।अब सिर्फ एक ही विकल्प है आपके पास..! उसके लिए भी जितना देर किया जाएगा उतना ही इसकी जीवन रेखा पर संकट बढ़ता जाएगा।क्योंकि ब्लड लॉस लगातार होगा।हम दवाइयों इंजेक्शन से रोक भी देंगे लेकिन ये कोई परमानेंट सॉल्यूशन नही होगा।और एक और बात इसके फाइब्रॉइड ऐसे स्थान पर है जहां कोई दूसरी तरह की सर्जरी कार्य नही करेगी।विजित तुम समझ रहे हो मेरी बात।तुम्हारी थोड़ी सी लापरवाही के कारण इस बच्ची का भविष्य खतरे में पड़ गया है।
डॉक्टर - सीधे और साफ शब्दों में कहूँ तो इस ऑपरेशन के बाद ये बच्ची कभी मां नही बन सकेगी।क्योंकि फाइब्रॉइड के कारण ऑपरेशन के जरिये इसका गर्भाशय निकाल दिया जाएगा।
डॉक्टर की बात सुनकर पापाजी शॉक्ड हो जाते हैं।और मेरे पैरों के नीचे जमीन हिल जाती है।बाइस वर्ष की उम्र मे किस्मत मेरे साथ खेल पर खेल खेलने में लगी है।जिस उम्र में लड़कियां विवाह कर घर बसाने के सुनहरे सपने बुनती है उस उम्र में मैं सपनो के टूटने पर जो तकलीफ होती है उनसे रूबरू हो रही होती हूँ।उस समय मैं बिल्कुल अकेली होती हूँ।न ही कोई दोस्त ,न ही कोई हमदर्द होता है मेरे पास।
वही पापा कॉल कर मां को ये बात बताते है और उनकी राय लेते हैं।मां दादाजी दादी सभी को ये बात बताती है और अब क्या करना चाहिए इस बारे में पूछती है।
सभी ये फैसला पापाजी को लेने के लिए कहते है और पापाजी मजबूरी में इलाज के लिए हां कह देते है।ऑपरेशन सफल हो जाता है और मैं नारी जीवन में प्राप्त होने वाली सबसे अनमोल खुशी को खो देती हूं।
कहते कहते नियति की आंखे भर आती है और वो अपने चेहरे पर दोनों हाथ रख रोने लगती है..!
नियति की कहानी सुन अमृता की आंखे भी नम हो जाती है...
नियति सच में आपकी हिम्मत को मै सलाम करती हूं इतना सब कुछ सहने के बाद भी आपने अपनी एक अलग पहचान बना ली।नियति अब इन आंसुओ को बहा कर अपनी कमजोरी दिखाओ।वो सब तो वर्षों पहले गुजर चुका है तुम्हारे जीवन में।अब तो बस तुम्हारे खुश रहने के दिन है।और अब तुम्हारे पास कितने सारे लोग हैं जिनका तुम पालन कर रही हो।मेरी बात का अर्थ समझो और इन आंसुओ को यहीं रोक दो।
हां अमृता जी।।अब मेरे जीवन में इन आंसुओ कि कोई जगह नहीं।कहते हुए नियति आंसू पोंछ मुस्कुरा देती है।
अमृता रति को आवाज़ देती है।और दो कप चाय लाने को कहती है।साथ ही कुछ खाने के लिए बिस्किट्स भी मंगवाती है।
नियति ये देख मुस्कुरा देती है और कहती है, क्या बात है भूख लग आई आपको।
अमृता - हां।अब थोड़ी सी तो लगनी ही थी न।
नियति - ठीक है।जब तक रति आती है मै एक दो फोन कॉल्स कर लेती हूं।
हां बिल्कुल।क्यूं नहीं।नियति अक्षत को कॉल कर आने के समय के विषय में पूछती है।
अक्षत - बस श चार बजे तक आ जाऊंगा दी।कोमल और अक्षिता भी तब तक फ़्री हो जाएंगी।।
ठीक है भाई।।अब फोन रखती हूं!! मिलते है शाम को बाय।
नियति दूसरी कॉल रश्मि को करती है।उसके हाल चाल लेती है और उसे घर आने को इन्वाइट करती है
निया।। आऊंगी लेकिन आज नहीं दो दिन बाद।क्यूंकि अगले दिन हमे बैंगलोर निकलना है।तो सोच रही हूं तुमसे मिल कर ही जाएं।अच्छा ये बता अमर को अपने साथ ला सकती हूं या नहीं!!
रश्मि अब तुम दोनों कपल हो अकेले तो कहीं आने जाने से रहे।अगर अमर को मेरे घर आने में कोई परेशानी न हो तो बुला कर ला सकती हो।
रश्मि खुश होते हुए कहती है थैंक्यू यार।चल अब मै रखती हूं दो दिन बाद मिलते हैं बाय बाय।
बाय रश्मि।।नियति कॉल रखती है तब तक रति भी आ जाती है।नियति अमृता के लिए चाय सर्व कर देती है दोनों चाय पीते हैं और कुछ देर बाते करते हुए समय व्यतीत करती है।
नियति आगे शुरू करती है....
मैंने धीरे धीरे खुद को सम्हालना शुरू किया।जो होना था सो हो चुका उसका अफसोस क्या करती मै।धीरे धीरे जिंदगी धरातल पर लौट आती है।
कुछ दिनों के रेस्ट के बाद मै वापस अपने कार्य में लग जाती हूं। वही रोज का घर पर सबकी मदद करना, और कभी कभी गुस्से में सबके ताने सुनना।
धीरे धीरे छह महीने व्यतीत हो जाते है। मां पापा फिर से मेरे विवाह के लिए तैयारियां करने लगते है।जिसके बारे में सुन कर मुझे एक और झटका लगता है।लेकिन अब इन सब की आदत सी हो गई थी।ऐसा लगता है जैसे दर्द ने मुझे अपने साथी के रूप में चुन लिया है जैसे उसे अपने अलावा मेरी लाइफ में कुछ और पसंद ही नहीं।
कई जगह बात की गई मेरे रिश्ते की।और हर जगह मेरी सच्चाई जानकर रिश्ता टूट जाता।वहीं मुझ पर इन सबका असर पड़ता जा रहा था।लेकिन पापाजी के निर्णय लेने पर घर का कोई सदस्य कुछ नहीं कह सकता।धीरे धीरे तीन वर्ष निकल जाते है लेकिन इन तीन वर्षो में रिश्ता कहीं नहीं हो पाता।बार बार रिजेक्शन मिलने से मै बुरी तरह इरिटेट हो जाती हूं।अब कोई भी देखने आता तो मुझे उस वक़त ऐसा लगता जैसे अभी के अभी इन सबको बाहर का रास्ता दिखा दूं।लेकिन क्या करती घर वालों की वजह से मजबूर थी।मै अक्सर घर वालो के सामने अपनी बात रखने की कोशिश करती।मेरी ये कोशिश पहाड़ में रास्ता बनाने के समान होती।कुछ दिनों बाद पापाजी के एक मित्र रिश्ता लेकर आते हैं उनके दोस्त के बड़े बेटे के लिए।जो विधुर होता है और उसकी दो संतान होती है।
मेरे लिए रिश्ता आया है ये बात मुझे मेरी छोटी बहन कृति से पता चलती है।
मै जाकर मां से इस विषय में बात करने की कोशिश करती हूं।
मै - मां।।कृति बोल रही थी कि कोई रिश्ता सामने से आया है।वो भी किसी विधुर का।
मां - हां।आया है।और अब जिस हालात में तुम हो वहां ऐसे रिश्ते भी आ जाए तो भी सही है।कबसे रिश्ते देख रहे है तेरे लिए लेकिन कहीं बात ही नहीं बन रही।हार मान कर छोटी का विवाह पहले करना पड़ा हमे।अब जब सामने से रिश्ता चल कर आया है तो खराबी क्या है।
मै - लेकिन मां वो उम्र में कितना बड़ा है मुझसे।आपलोग ऐसे कैसे ...
बस नियति!! बहुत कर ली मनमानी तुमने।।क्या कमी है इस रिश्ते में।बस उम्र में तुमसे दस साल बड़ा है और दो बच्चो का पिता है।।सिर्फ इसीलिए तुम इस रिश्ते के लिए मना कर रही हो।अरे शुक्र मनाओ तुम्हारे जैसी शारीरिक कमी रखने वाली लड़की को कोई अपनाने के लिए तैयार है।नहीं तो बैठी रहियो यूं ही कंवारी।।हम सबकी छाती पर मूंग दलने को।
अपनी मां के ये शब्द सुन नियति की आंखो में आंसू आ जाते हैं।
नियति - लेकिन मां अब इन सब में मेरी क्या गलती है और वाकई में क्या मै इतनी ही बोझ बन गई हूं आप सब पर।मै जॉब करना शुरू कर दूंगी मां आत्मनिर्भर बन जाऊंगी।लेकिन अभी इस विवाह के लिए मै मानसिक रूप से तैयार नहीं हूं।
देखो नियति।।जॉब तो तुम विवाह के बाद अपने पति से पूछ कर करती रहना।अभी तो बस तुम हां कहो।हम में और हिम्मत नहीं है इस समाज के तानों को बर्दाश्त करने की।बस अब हम सबका पीछा तुम छोड़ो विवाह कर अपनी ससुराल जाओ और अपनी घर गृहस्थी सम्हालो।वैसे भी ऐसी लड़की से कौन समझदार विवाह करेगा जो कभी मां ही ना बन सकती हो।तुम क्यों नहीं समझती हो बेटा।हम तुम्हारे भले के लिए ही ये सब सोच रहे हैं।
मै - ठीक है मां।अब यही मेरी किस्मत है।विवाह कर चली जाऊंगी यहां से। बस आप सब खुश रहिए।कह मै अपने कमरे में चली जाती हूं।इतना दर्द सहते सहते आंखो के आंसू भी सुख चुके थे।मै जाकर अपने कमरे की खिड़की के पास खड़ी हो जाती हूं और हमेशा की तरह आसमान की ओर निहारने लगती हूं एक दिन दोपहर को कृति मेरे पास आती है और मुझसे कहती है दी आप तैयार हो जाइए पापाजी ने कहा है कि आपको बाहर घूमने जाना है।मै कृति की बात से थोड़ा हैरान होती हूं और कहती हूं घूमने जाना है मतलब कहां जाना है कृति।
कृति - दी! पापाजी कह रहे थे कि होने वाले जीजाजी विवाह से पहले आपसे एक दो मुलाकात करना चाहते हैं।
मै कृति की बात सुन इरिटेट हो जाती हूं।और खुद से बडबडाते हुए तैयार होने लगती हूं।और कुछ ही देर में तैयार भी हो जाती हूं।एक सिम्पल सी सलवार सूट पहन मै बुझे मन से अपने कमरे से बाहर आती हूं।चोटी को गूंथ आगे कर लेती हूं सादा सी स्लीपर कैरी की होती है मैंने।मै अपने कमरे के बाहर खड़ी होती हूं।तभी सामने से कृति "बहुत अच्छी दिख रही हो दी"
कहते हुए चली आ रही है।
चले दी। ड्राईवर अंकल बाहर इंतजार कर रहे है।
कृति तुम भी चल रही हो साथ में।
हां दी।।आखिर आपको अकेला कैसे छोड़ सकती हूं मै।पापा ने खुद ही मुझसे आपके साथ जाने को कहा।
कृति की बात सुन कर मै बस मुस्कुरा देती हूं और कृति के साथ चली जाती हूं। कार के पास पहुंच हम दोनों कार में बैठ जाती है और ड्राइवर से गाड़ी चलाने को कहते है।
गांव से थोड़ा आगे चलकर कुछ किलोमीटर की दूरी पर हाईवे होता है जिस पर कुछ किलोमीटर और चलने के बाद एक पार्क टाइप जगह होती है।कृति वहीं गाड़ी रोकने को कहती है।
गाड़ी रुकने पर कृति धीरे से कहती है दी कहती है वो जो सामने बेंच पर इंसान बैठा हुआ है न आपको वहीं जाना है।मै यहीं गाड़ी में बैठ आपका इंतजार करती हूं।
लेकिन कृति...मै..।। क्या दी अब वहां तो मै साथ नहीं चल सकती न अच्छा थोड़े ही लगेगा।मै यहीं हूं और आप को देखती रहूंगी।
मै ठीक है कह आगे पार्क की ओर चल देती हूं..
मै धीरे धीरे चलते हुए पार्क में पहुंच जाती हूं।और जाकर चुपचाप पीछे खड़ी हो जाती हूं।वो व्यक्ति पीछे मुड़ता है और मेरी तरफ देखता है और बैठने के लिए कहता है।
हेल्लो ! मेरा नाम है जगत प्रसाद और आपका?
मै चुप रहती हूं।और मन ही मन सोचती हूं क्या इन महाशय को अब तक मेरा नाम भी पता नहीं।जो ऐसे फॉर्मल बिहेव कर रहे हैं।नियति चुप रहने से काम तो चलेगा नहीं जवाब तो देना पड़ेगा न।
मेरा नाम नियति है।संक्षिप्त में कह चुप हो जाती हूं।
नियति ! विचित्र नाम है। कहां तो लड़कियों के नाम रखे जाते थे सीता,गीता,बबीता, कविता!! ये नियति !! नाम भला कौन रखता है। और क्या मतलब होता है इस नाम का!!
मै ( मन ही मन) - हे अंबे मां।।यहां भी किस्मत ने गच्चा से दिया मुझे!! इंसान की बातचीत करने के तरीके से उसकी सोच का पता चलता है और इन महाशय की बात सुनकर ही मुझे लग रहा है कि इनकी सोच कहां तक फैली हुई है।
जी जानती हूं इसका अर्थ!! नियति अर्थात होनी।या दूसरे शब्दो में कह सकते है नसीब।।
जगत प्रसाद - (हंसते हुए) सही कहा।कहते हुए मेरे पास आकर बैठ जाता है और अपने हाथो को मेरे हाथ पर रखते हुए कहता है।नियति कहां तक पढ़ी हो तुम।
मै - स्नातक।।और अपना हाथ झटके से उसके हाथ से छुड़ा लेती हूं।मेरी ये हरकत देख वो ही ही ही कर हंस देता है।जिससे मेरा पर बढ़ जाता है।और मै उसे घूरने लगती हूं।
जगत प्रसाद - अरे।।तुम तो अभी से घबरा गई।मैंने तो सुना था कि तुम आगरा कॉलेज में पढ़ी हो और वहां ये हाथ पकड़ना,कांधे पर सिर रखना आम बात है।ये सब तो चलता है वहां।और तुम तो व्यवहार ऐसे कर रही हो जैसे ऐसा कुछ तुमने कभी किया ही नहीं हो।और बस हाथ ही तो पकड़ रहा हूं वो भी अपनी होने वाली बीवी का इसमें गलत क्या है।
उसकी बात सुनकर मै दो शब्दो में कहती हूं बीवी पत्नी अभी तक बनी नहीं हूं।और जैसा आप सोच रहे हैं वैसा कुछ नहीं किया मैंने।
जगत प्रसाद - (हंसते हुए) अरे तुमने तो मज़ाक को सीरियस लिया।मै तो मज़ाक कर रहा था।देखना चाह रहा था कि तुम्हारे रिएक्शन क्या होते हैं।उसकी बात सुन कर मै फीकी सी मुस्कुरा देती हूं।और सोचती हूं तुम क्या कर रहे थे क्या नहीं मै बखूबी समझती हूं भला कोई पहली मुलाकात में ही ऐसा मज़ाक करता है। जान न पहचान हुई अभी ढंग से!! चल दिए मज़ाक करने!
जगत - वैसे तुम्हारे शौक क्या क्या है?
मै - कुछ भी नहीं।शौक कोई रखती नहीं।
ओके।।वो बड़ी ही अजीब नज़रों से मुझे देख रहा था।जिसे देख कुछ पल को तो मै असहज हो गई।लेकिन जल्द ही नॉर्मल हो बात को बदलते हुए बातचीत को आगे बढ़ाने लगी!
मै - आप करते क्या है!!
मेरे मुंह से प्रश्न सुन कर उसके चेहरे के भाव बदल गए।और बेरुखी से कहता है मै क्या करता हूं ये आपको बताना जरूरी तो नहीं।
मै उसकी तरफ हैरानी से देखती हूं तो वो हंसते हुए कहता है फिर से सीरियस ले लिया मेरे मज़ाक को।बताता हूं मै तो खूबसूरती से बनी चीजो का बिजनेस करता हूं।उसकी आंखो में देख उस समय मुझे बहुत अजीब सा लग रहा था।मुझे वो इंसान सही नहीं लग रहा था।मै बस जल्द से जल्द घर जाना चाहती थी।
मै - अब मुझे घर जाना चाहिए।काफी समय हो गया है मुझे यहां आए हुए।
जगत - ठीक है।चलो मै तुम्हे गाड़ी तक छोड़ देता हूं।
मै - नहीं मै चली जाऊंगी।आप ..।
अरे अब तो कुछ दिनों बाद जिंदगी भर मेरे ही साथ चलना होगा तुम्हे,मै ही छोड़ने और लेने आया करूंगा तो शुरुआत अभी से क्यों नहीं।चलो..
मुझे जगत का व्यवहार बहुत अजीब लगता है लेकिन कुछ कहती नहीं हूं और वहां से चली जाती हूं।पीछे पीछे जगत भी आता है।रास्ते में जगत ठोकर लगने का अभिनय कर अपना हाथ मेरे कंधे पर रख लेता है।जिससे मै असहज हो जाती हूं।
जगत - वो मुझे ठोकर लग गई थी तो बस सहारे के लिए हाथ बढ़ाया तो तुम्हारे ..कंधे पर रख गया!
मै बस फीकी सी मुस्कुराते हुए जगत को बाय कहती हूं और गाड़ी में बैठ ड्राइवर को गाड़ी घर ले जाने के लिए कहती हूं।
कृति - तो दी कैसी रही मुलाकात!!आप बताओ न कैसा लगा आपको मिलकर!मै अपनी ही सोच की दुनिया में होती हूं।सो कृति को को जवाब नहीं देती हूं।
क्या दी आप तो अभी से ख्यालों में खो गई हो।।बताओ न।
मै - ओह हो कृति! थोड़ा सांस तो ले ले।घर पहुंच सब बताती हूं।
कृति शांत होकर खिड़की के बाहर देखने लगती है।जिसे देख मुझे एहसास होता है बेकार में ही झिड़क दिया मैंने इसे।इसे क्या पता वहां जो भी बातचीत हुई उस बारे में।
कृति सब ठीक है।इंसान भी अच्छा ही है।पहली मुलाकात भी अच्छी रही।कहते हुए मै कृति से झूठ बोल देती हूं।हालांकि मेरी आंखे सब सच कह जाती है जिन्हें देख कृति हर बार की तरह समझ जाती है कुछ और ही बात है जो मै उसे बताना नहीं चाहती।
कृति - ये तो अच्छी बात है दी। फाइनली मेरी निया दी कि लाइफ भी सेट होने वाली है।आपको पता है मुझे आपकी कितनी चिंता थी।
मै - हां।जानती हूं छोटी।
कुछ ही देर में दोनों घर पहुंच जाते हैं।घर पहुंच कर मै अपने कमरे में पहुंच जाती हूं।और आज जो हुआ उसके विषय में सोचने लगती हूं।मुझे वो इंसान और उसकी नीयत बिल्कुल ठीक नहीं लगती है।लेकिन ।एरी मज़बूरी कि उसके विषय में मै किसी से कुछ कह भी नहीं सकती।
धीरे धीरे विवाह का समय निकट आता जाता जा रहा था और मेरी बैचेनी बढ़ती जा रही थी।मन में हमेशा यही भाव आता कि ये ग़लत हो रहा है।लेकिन क्यों ये मुझे खुद समझ ही नहीं आ रहा था।विवाह से कुछ दिन पहले जगत एक बार फिर मुझसे मिलने की इच्छा जाहिर करते हैं।जिसे सुन कर कृति बडबडाते हुए कहती है ये जगत जी भी न बस कुछ ही दिन तो रह गए है विवाह के लिए! उसमे भी सब्र नहीं है।मै कृति के पास ही होती हूं और ये बात सुन लेती हूं। कृति तुम भी तैयार हो जाओ।तुम्हे मेरे साथ चलना होगा न।
हां दी!! बस पांच मिनट में तैयार होकर आती हूं।कुछ ही मिनटों में कृति भी आ जाती है और मै न चाहते हुए भी चल देती हूं जगत से मिलने।
वहीं उसी पार्क में पहुंच कर मै एक बेंच पर बैठ उसका इंतजार करने लगती हूं।इस बार जगत प्रसाद अकेले नहीं आता है उसके साथ एक व्यक्ति और होता है जिसे देख मेरे होश उड़ जाते हैं।और मै घबराहट में कहती हूं ये यहां इसके साथ!
जगत हंसते हुए मेरे पास आता है और कहता है क्यूं उड़ गए न होश! दिख गए न दिन में तारे!!
मिस नियति ये है मेरा सबसे छोटा और प्यारा भाई कर्ण!!
क्या ..भाई??मै हैरान होते हुए जगत से पूछती हूं।
ओह हो नियति हैरान क्यूं ही रही हो इसे तो तुम पहले से जानती हो।और ये शादी भी मै इसी के लिए कर रहा हूं।क्यूंकि नियति तुम वहीं लड़की हो न जिसने मेरे भाई को न कहने कि जुर्रत की थी।
कर्ण - आखिर मेरा बदला पूरा हो ही जायेगा नियति।मुझे न कहा था तुमने।देखो तुम्हारी लाइफ को कहां पहुंचा दिया मैंने।तुम्हे तुम्हारे प्यार से दूर किया।और जो रिश्ते आए तुम्हारे लिए उनमें से कुछ एक तो मैंने ही तुड़वाए थे।फिर सोचा ऐसे तो तुम कहीं न कहीं सेट हो ही जाओगी क्यों न कुछ ऐसा करूं जिससे तुम न घर की रहो और न घाट की।सो फिर अपने भाई से इस बारे में बात की और तुम्हारे घर रिश्ता भिजवा दिया।और अब कुछ दिनों बाद ये शादी तुड़वा कर हमेशा के लिए तोड़ दूंगा तुम्हे।तुमने मुझसे ना कहा था तुमसे कोई हां नहीं कहेगा।इस तरह मेरा बदला पूरा हो जाएगा। अगर उस दिन इतना ड्रामा नहीं करती तो आज तुम्हारे साथ ये सब नहीं होता। कर्ण को सब कुछ मंजूर है लेकिन कोई मुझे न करे ये मंजूर नहीं।
कर्ण को बात सुन कर मेरे पैरो तले जमीन हिल जाती है।मै सोचती हूं क्या सच में कोई इतना गिरा हुआ भी हो सकता है।
मै जगत की ओर मुखातिब होकर कहती हूं, " जगत जी आप बड़े भाई है और छोटे भाई को सही रास्ता तो दिखा नहीं रहे हो, गलत रास्ते के लिए सपोर्ट कर रहे हो।क्या गलत किया मैंने आपके भाई के साथ! आपने पूछा उससे।उस दिन आपकी मासी के घर गलत मेरे साथ हुआ वो भी आपके भाई के कारण।मैंने तो बस अपनी बात रखी थी।उसकी इतनी बड़ी सजा!
नियति!! सजा अभी मिली नहीं है।बस आधार तैयार कर दिया है हम दोनों ने।कुछ दिनों बाद ये रिश्ता तोड़ तुम्हे सजा भी मिलेगी।उसके बाद न तुम घर की रहोगी और न घाट की।तुम्हारे घर वाले तो बड़े बेवकूफ है।उन्होंने तो ढंग से छानबीन भी नहीं की।केवल अपने दोस्त की बातों पर विश्वास कर बिन खोजबीन के रिश्ता भी कर दिया।जबकि तुम्हारे पिता के उस दोस्त को अपनी तरफ कर भेजा भी हमने ही था।और तो और उसने इतना ही बताया जितना जरूरी था।
और जितना मै तुम्हारे बारे में पता लगा पाया हूं उसके अनुसार तुम्हारे घर में तुम्हारी कोई वैल्यू नहीं है।सो अब अगर तुम घर पर कह भी दोगी हमारे बारे में तो कोई यकीन नहीं करेगा।सो इसकी भी टेंशन नहीं है हमे।
अब हम चलते हैं।वो क्या है न समय काफी हो गया है।देर हो जायेगी। कह हंसते हुए दोनों वहां से निकल जाते हैं।मै हैरान परेशान वहीं बैठ जाती हूं।उस पल मै खुद को हारा हुआ महसूस करती हूं।
क्यूंकि आगे कुआं पीछे खाई।बुरी तरह से फंस चुकी थी मै।क्या करूं क्या न करूं समझ ही नहीं आ रहा था।तभी मुझे अपने कंधे पर किसी का हाथ महसूस होता है मै नज़रे उठा कर देखती हूं तो कृति मेरे पीछे खड़ी होती है।उसकी आंखो में आंसू होते है जिन्हें देख मै समझ जाती हूं कि उसने सारी बातें सुन ली है
कृति मेरे गल लग जाती है।और उसकी आंखो से आंसू बहने लगते हैं।
कृति मेरे आंसू पोंछ कहती है दी ये तो गलत बात है आप इतनी तकलीफ़ में रही और मुझे बताया भी नहीं।क्यों दी।मै तो आपकी राजदार थी न फिर मुझे क्यों नहीं बताया।अब तो बुरी तरह फंस चुके हैं हम।क्यूंकि हमारे घर लड़कियों, महिलाओं की बातों को तवज्जो नहीं दी जाती।जिस कारण हम सभी ने कभी अपने मन की कोई इच्छा परी कर ही नहीं पाई।
काश हमारे घर में लड़कियों कि बातो को भी उतनी ही तवज्जो दी जाती।तो इतनी तकलीफ़ नहीं सहनी पड़ती आपको।
कृति ये समस्या केवल हमारे घर की नहीं है हमारे गांव में इस राज्य, इस देश में ऐसे कई घर होंगे जिनमें ये समस्या आम बात है।जहां महिलाओं का सम्मान नहीं होता।उनकी बातो,उनकी सलाह की उपेक्षा की जाती है।केवल इस कारण कि वो महिलाएं हैं।इसीलिए अब इस बात के लिए मुझे इतनी हैरानी नहीं होती।बस दुख होता है ये सोच कर कि मस्तिष्क तो पुरुष और महिला दोनों के पास ही होता है बल्कि महिलाओं के पास तो ज्यादा दिमाग होता है फिर वो सही निर्णय नहीं ले सकती क्यों?निर्णय लेना तो दूर रहा कृति उनसे उनकी राय तक नहीं ली जाती।काश झूठ ही सही लेकिन मन रखने के लिए ही पूछ लिया जाय तो भी महिलाएं उसी में खुश हो जाया करें।
दी आप सही कह रही हैं।लेकिन अभी बात आपकी हो रही है।अब बताओ क्या करे हम।आगे जो होना है वो तो पता चल गया है और हमारी घर में नहीं सुनी जायेगी। कुछ तो रास्ता निकालना होगा..
कृति अब इस समय क्या रास्ता निकालूं मै। अगर विवाह करते वो तो मै घर के लिए कर लेती वो लोग तो विवाह के दिन ही रिश्ता तोड़ेंगे।अब तो कुछ नहीं हो सकता...!
दी एक रास्ता है.. अगर आप मान जाओ तो।।मै कृति की तरफ देख पूछती हूं अगर सच में कोई रास्ता है तो बताओ कृति।...
दी उन लोगो ने कहा है कि कुछ दिनों बाद ये रिश्ता तोड़ देंगे।लेकिन अगर यहां आप ही यहां मौजूद न हो तो किसका विवाह होगा और कैसे होगा....?
कृति....मै चीखते हुए कृति से कहती हूं।ये तुम क्या बके जा रही हो।तुम होश मै तो हो.....
कृति बेटू,ये क्या कह रही हो तुम।मै ऐसा कैसे कर सकती हूं।तुम कुछ और सोचो!!
नहीं दी अब कोई और रास्ता नहीं है।क्यूंकि चाहे सीधे कान पकड़ो या हाथ घुमा कर पकड़े कान ही जाएंगे यानी आप यहां से जाओ या न जाओ दोनों ही हालातो में बदनामी तो होनी ही है।फर्क इतना रहेगा अगर पहले चली जाओगी तो घर वाले किसी न किसी तरह इस बात को सम्हाल लेंगे।लेकिन अगर आप यहां रुकी तो क्या कुछ घट जाए कोई नहीं कह सकता।वैसे भी यहां रहेंगी आप तो बस ताने और तकलीफे ही मिलेगी।इससे अच्छा आप यहां से दूर चली जाओ और अपनी पहचान बना कर दिखाओ हमारे अपनों को, कि छोरिया भी कम नहीं होती।मौका मिले तो चांद जमीन पर ला सकती है।
कृति की बात सुन मै सोच में पड़ जाती हूं।और उससे कहती हूं लेकिन कृति क्या ये ठीक रहेगा।मेरे जाने के बाद घर वालो को क्या क्या सहना होगा तुम नहीं समझ रही हो।
जो जाने के बाद सहना होगा वो उस तकलीफ़ से कम ही होगा जब वो दोनो पूरे समाज के सामने इस रिश्ते के लिए न कहेंगे।क्यूंकि उनका मकसद ही यही है आपकी पूरे समाज में थू थू करवाना।समझी।और अब ये न कहना कि जाओगी कहां।क्यूंकि आप तो कॉलेज पढ़ी हो कोई न कोई मित्र ऐसा होगा जो इस मुसीबत में आपकी मदद कर सके।कृति मुझे समझाते हुए कहती है।
हां कृति!! मित्र तो हैं।किस्मत से कॉलेज में मेरे मित्र बहुत अच्छे बने है।ऐसे जो हर समय मेरे साथ खड़े रह सकते है।
तो फिर ठीक है आप अपने इन्हीं मित्रो की मदद लो लेकिन यहां से निकलो।घर पर किससे क्या कहना है मै सम्हाल लूंगी।
लेकिन कृति मै अपने दोस्तो से संपर्क करूं कैसे।कोई कॉन्टेक्ट नम्बर नहीं है मेरे पास।
दी कॉन्टेक्ट नम्बर की जरूरत नहीं आजकल सोशल मीडिया पर सभी उपस्थित रहते हैं।एक बार आपने मुझे बताया था कि आपने सोशल अकाउंट बनाया है निया कपूर नाम से।
हां कृति बनाया तो है।लेकिन प्रॉब्लम यही है कि उसे ओपन किस पर करें।हमारे पास तो मोबाइल फोन तक नहीं है।
ओह हो दी उसके लिए मै हूं न।आप मुझे अपनी आईडी पासवर्ड बता दो मै फोन का जुगाड कर उससे आपकी आईडी ओपन कर आपके फ्रेंड्स को आपसे मिलने का मेसेज कर दूंगी।फिलहाल आप आगरा के लिए निकलिए।आप अपना पर्स तो लाई है न।
वो मेरे हाथो की तरफ देखती है जिसमें मै छोटा सा हैंड बैग पकड़े हुए होती हूं।
ओके दी लाओ मुझे दो कह कर कृति उसे चेक करती है जिसमें करीब 250 रुपए पड़े होते हैं कृति अपने पास रखे हुए सारे रुपए मेरे पर्स में डाल कहती है दी आप जाइए।और कुछ कर के दिखाना।जिससे घर जाकर जो मुझे डांट मिलने वाली है उसका हिसाब बराबर हो सके। आई लव यू मेरी प्यारी दी! अपना ध्यान रखिएगा। और जब आप सफल हो जाओ न तब एक बार मुझसे जरूर मिलिएगा जिससे मै सबको चिल्ला चिल्ला कर बता सकूं देखो ये छोरी मेरी नियति दी है।और मुझे विश्वास है ऐसा एक दिन जरूर आयेगा।
मै भावुक होकर कृति के गले लग जाती हूं।आंसू कृति की आंखो में भी होते है लेकिन वो अपने आंसुओ को अंदर ही अंदर रोक लेती है।
कृति रोड पर मेरे लिए वाहन रोक लेती है और मै उसके गले से अलग हो वाहन में बैठ जाती हूं और निकल जाती हूं अपने अनजाने नए रास्ते पर।न मंजिल का पता ना ही रास्ते का।क्या करना है कैसे करना है कोई आइडिया नहीं था मुझे।कृति किससे बोलेगी,अक्षत से राघव से दीप से या रश्मि से इसका भी कोई अता पता नहीं था। बस निकल पड़ी थी ये निर्णय कर कि कृति के विश्वास को सच करना है।
मै कृति की तरफ देखते हुए भीगी आंखो से हाथ हिलाते हुए उसे बाय कहती हूं।सच में उस दिन मुझे एहसास हुआ मेरी छोटी सी बहन बड़ी हो गई थी और मुझसे ज्यादा समझदार भी।
मेरे जाने के बाद घर पर क्या हुआ कृति ने कैसे सब कुछ मैनेज किया मुझे कुछ नहीं पता अमृता जी।मेरी छोटी सी गुड़िया ने सारे घर वालो का गुस्सा अकेले ही सहा होगा।क्यूंकि अपने घर वालो को मै बहुत अच्छे से जानती हूं।उन्होंने कोई कमी नहीं छोड़ी होगी कृति को टॉर्चर कर उससे मेरे बारे में पता करने के लिए।सब सहा होगा मेरे लिए मेरी बेटू ने।कहते कहते नियति भावुक हो जाती है जिसे देख अमृता कहती है। सच में नियति।ऐसे माहौल में रहकर भी तुम्हारी छोटी बहन बहुत तेज तर्रार निकल गई और समझदार भी।
एक काम करो तुम मुंह धुल कर कुछ दे टहल लो।या फिर अपनी बहन से बात कर लो।
अमृता जी।बात करने के लिए उसका कॉन्टेक्ट नम्बर नहीं है मेरे पास। बाकी मै बस अपनी माता रानी से दुआ ही करती हूं उसको जीवन में सारी खुशियां मिले। अमृता जी आप यहीं बैठिए मै जरा अंदर घूम कर आती हूं।
अमृता - ठीक है नियति।
नियति वहां से उठकर अंदर कमरे में चली जाती है जहां उसके घर के सदस्यों की फोटोज लगी होती है।जिनमें वो कृति की मुस्कुराती हुई तस्वीर के सामने जाकर खड़ी हो जाती है।और भावुकता वश तस्वीर को स्पर्श करती है।लव यू मेरी प्यारी बेटू।दी तुम्हे बहुत याद करती है।बहुत मिस करती है।उम्मीद करती हूं वो दिन जल्द ही आए जब मै तुमसे देख कर तुम्हे गले से लगा सकूं।नियति कुछ देर वहीं खड़ी रहती है जब उसके मन की व्यथा बाहर निकल जाती है तब अपने कमरे में जाकर हाथ मुंह धो कर वापस अमृता के पास चली आती है।
अमृता जी यहां से शुरू होता है मेरे जीवन का दूसरा अध्याय....! गुमनाम नियति से नियति कपूर बनने का सफ़र ।
नियति अमृता को आगे बताना शुरू करती है..
आगरा आने के बाद मेरे सामने बहुत सी समस्याएं थी।सबसे बड़ी तो रहने की समस्या।क्यूंकि एक लड़की के लिए अकेले यूं बिन किसी मकसद के सड़कों पर भटकना कितना घातक हो सकता है।
वहीं मै भगवान पर खड़ी होकर सोचती हूं क्या करूं कहां जाऊं।मेरे फ्रेंड्स को आने में न जाने कितना समय लगे।अपना फेस दुपट्टे से कवर किए होती हूं और गहरी सोच में डूबी हुई रहती हूं।
तभी मुझे मेरे सामने किसी की आवाज़ सुनाई देती है।
अरे दी।आप!! यहां।अकेली क्यूं खड़ी है।
आवाज़ सुन मै सामने देखती हूं तो दीप को खड़ा हुआ पाती हूं।जिसे देख मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है।
मै - अरे दीप भाई आप।यहां? कैसे हो।मै अपनी हंसी के जरिए दर्द को छुपाने की कोशिश करती हूं।
दीप - अब क्या यहीं रास्ते में खड़ी होकर बातें करोगी।चलो घर चलो मां तुम्हे बहुत याद करती है उनसे मिल लेना।
मै दीप के साथ उसके घर जाती हूं।जहां उसकी मां होती है।
दीप - मां! देखो कौन आया है।आपके लिए सरप्राइज है। कहां हो। देखो तो सही!
ओह हो ये लड़का भी न।घोड़े पर सवार रहता है।जल्दी जल्दी मचा रखता है न जाने किस बात के लिए जल्दी रहती है इसे राम जाने!खुद से बडबडाते हुए दीप की मां कमरे से बाहर आती है।उन्हें देख कर मै उन्हें हाथ जोड़ प्रणाम करती हूं।
मेरी आवाज़ सुन कर वो खुशी से कहती है अरे निया बिटिया तुम! बहुत दिनों बाद आई हो।क्यूं ! जाते ही रास्ता भूल गई थी क्या वापस आने का।
मै उनके पास जाकर उन्हें गले लगाते हुए कहती हूं नहीं तो! वो बस घर जाकर ऐसी व्यस्त हुई कि निकल ही नहीं पाई।आज इधर आना हुआ तब रास्ते में दीप मिल गया तो वो ही मुझे यहां ले आया।
ओह तो ये बात है।तभी तुम्हारा आना हुआ। नहीं तो तुम यहां नहीं आती है न।
अरे नहीं आंटी जी। ऐसी बात नहीं है। वो मै अवश्य ...कहते हुए चुप हो जाती हूं।
अच्छा चलो छोड़ो इसे।कैसे भी आई लेकिन आई तो सही।इसी बहाने तुमसे मुलाकात भी हो गई।
जी आंटी जी।कहते हुए मै मुस्कुरा देती हूं।दीप आवश्यक आव भगत करने के बाद मेरे पास बैठता है और मेरे हाल चाल पूछता है।मै दीप से झूठ ही कह देती हूं
मै - सब बढ़िया है और हाल तो खुद ही देख लो तुम्हारे सामने ही बैठी हूं।आप बताइए क्या कर रहे हैं आजकल ?
दीप - कुछ खास नहीं दी बस एक कम्पनी में जॉब करने लगे है आजकल।उसी के काम से मार्केट आया था आप दिख गई तो हाफ डे कर लिया।
ओह कोई नहीं इतने दिनों बाद मिले है तो इतनी सी छुट्टी तो बनती है।मै भी यहां जॉब के सिलसिले में आई हूं। अगर कहीं कोई जुगाड हो तो बताओ।मुझे जॉब की जरूरत भी है।
हां हां दी क्यूं नहीं! बिल्कुल आपके लिए तो जान भी हाज़िर है फिर जॉब ढूंढ़ना तो बाएं हाथ का खेल है।कल तक आपको जॉब मिल जाएगी।आप बा अपना कॉन्टेक्ट नम्बर दे दीजिए!
कॉन्टेक्ट नम्बर की बात सुनकर मै सर झुका लेती हूं जिसे देख दीप कहता है दी आपके पास मोबाइल नहीं है।
मै - नहीं दीप।नहीं है है मोबाइल!!
ओह दी फिर मै आपसे संपर्क कैसे करूंगा।जॉब बताने के लिए।नबर तो रखना चाहिए न आपको।
तभी वार्डन आंटी कहती है अरे नम्बर तू नया दे दे फोन मै इसे देती हूं।मेरे पास है एक फोन।वार्डन अंदर चली जाती है और कुछ ही देर बाद हाथो में फोन लेकर लौटती है।जिसे देख मै कहती हूं ये रश्मि लेकर नहीं गई क्या।आपके पास कैसे?
बिटिया ये तो मुझे तुम्हारे जाने के बाद कमरे की सफाई करते हुए मिला।शायद रश्मि बिटिया लेकर नहीं गई।तुम देख लो शायद तुम्हारे काम में आ जाए।
मै दीप को फोन देख कर बताने के लिए कहती हूं।दीप फोन देखता है और कहता है दी बस बात करने के लिए काफी है ये फोन।बाकी इंटरनेट वगैरह तो बहुत धीमे चलेगा।क्यूंकि ये फोन करीब पांच वर्ष पुराना है और पांच वर्ष में मोबाइल टेक्नोलॉजी ने काफी तरक्की कर ली है।
बात करने ले लिए है न काफी है।बाकी आप बस एक सिम कार्ड लेकर दे दीजिए।मै दीप से रिक्वेस्ट करने के भाव में कहती हूं।
ओह दी बस इतनी सी बात मेरे पास तो कई सारे सिम कार्ड्स पड़े हुए है।उनमें से कुछ एक तो बिल्कुल नए है।आप नम्बर देख कोई सा भी ले लीजिए।
दीप भाई आप कोई भी से दीजिए। हमे तो बस अपनो से कनेक्ट रहना है।
ठीक है दी कह दीप मुझे एक सिम उठा कर दे देते हैं।मै उसे अपने फोन में फिट कर देती हूं।कुछ देर वहीं रुकती है जब शाम होने लगती है तो मै दीप से कह वहां से निकल जाती हूं आगरा की सड़कों पर।दीप से मै संकोचवश कुछ नहीं कह पाती।क्या कहती दीप से कि मै घर छोड़ कर आई हूं।और अभी मेरा कोई पता ठिकाना नहीं है।तभी मुझे एनजीओ का ख्याल आता है जिससे मै जुड़ी हुई थी।उम्मीद की एक किरण मुझे दिखती है मै बिन समय गवाएं वहां के लिए निकल जाती हूं।अंधेरा होते होते मै वहां पहुंच जाती हूं।
और वहां की प्रबंधक से मिलती हूं।उन्हें अपनी परेशानी बताती हूं।प्रबंधक बहुत ही सौम्य और हेल्पफुल नेचर की होती है।वो उस समय मेरी पूरी मदद करती है।वो मुझे आसरा भी दे देती है।मै वहीं रह उनकी मदद करते हुए एनजीओ के कार्य में सहयोग करने लगती हूं।वहीं दूसरी तरफ मै जॉब भी देखने लगती हूं।दीप भाई का कॉल अता है और वो मुझे कुछ जॉब्स बताते है जो मुझे समझ नहीं आती।क्यूंकि उन जॉब्स में लोगो को बेवकूफ बनाकर पैसे ऐंठना होता है जो मेरे जमीर को स्वीकार नहीं होता।दो दिन बाद एनजीओ के कार्य से मुझे बाहर जाना होता है मै सूर सदन के पास होती हूं कि तभी मेरी नज़र अक्षत पर पड़ती है।मै अक्षत को आवाज़ देती हूं जिसे अक्षत सुन लेता है और आवाज़ की दिशा में देखता है।तथा मुझे देख मुस्कुराते हुए मेरी तरफ अपने कदम बढ़ा देता है।
अक्षत - दी।क्या सरप्राइज दिया है आपने।मैंने आपको कहां कहां नहीं देखा।आपकी छोटी बहन का मेसेज आने के बाद मै कितनी देर भगवान पर खड़ा आपका इंतजार करता रहा लेकिन आप नहीं आई।और आए तो आपके पिताजी वो भी कॉलेज में।वहां आपके दोस्तो के बारे में पता कर हम सबके बारे में पूछताछ करते रहे।शुक्र है आप वहां नहीं थी सो मिली नहीं।और मेरे पास आपका आपका अता पता कुछ नहीं था।सो उस समय हममें से किसी ने कुछ नहीं कहा। हमें बस इतना पता चला कि आपकी किडनैपिंग हो गई है।लेकिन सच तो मुझे पता था।उनके जाने के बाद मैंने कितनी कोशिश की आपका पता लगाने की आप कहीं मिली ही नहीं।चलिए अब घर चलते है।वहीं रहिएगा हम सबके साथ।
मै अक्षत की बात सुन हैरान हो जाती हूं और समझ जाती हूं अगर अक्षत के यहां रही तो मुश्किलें अक्षत पर भी आ सकती है।इसीलिए मै अक्षत को मना कर देती हूं।
दी आप इसीलिए नहीं जाना चाह रही कि कहीं मुझ पर कोई मुसीबत न आए।लेकिन दी आप कहां यूं भटकते रहोगी।और विश्वास कीजिए मुझ पर कोई मुसीबत नहीं आयेगी।
मै अक्षत की बात सुन कोई जवाब नहीं देती हूं।जिसे देख अक्षत कहता है दी आप एक काम करिए आप राघव को तो जानती है न मेरा फ्रेंड आप वहां उसके घर रुकिए।अब तो कोई प्रॉब्लम नहीं है न आपको।वो तो उस कॉलेज में नहीं था न तो कोई प्रॉब्लम भी नहीं आयेगी किसी के सामने!ठीक
अब उसके लिए कोई बहाना नहीं चलेगा।और जितना भरोसा आप मुझ पर करती है उतना राघव पर कर सकती है सो don't be penik okey.
अब चलो।नो एक्सक्यूज!
मै अक्षत को इनकार नहीं कर पाती हूं और अक्षत के साथ राघव के घर निकल जाती हूं।....
क्रमशः...