अनकहा अहसास - अध्याय - 19 Bhupendra Kuldeep द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अनकहा अहसास - अध्याय - 19

अध्याय - 19

घर पहुँचा तो दरवाजा मधु ने खोला।
हेलो भैया। आज इतनी जल्दी ?
अनुज ने कोई जवाब नहीं दिया।
क्या हुआ ? आपने कोई जवाब नहीं दिया। कुछ प्राबलम है क्या ?
अनुज अब भी कोई जवाब नहीं दिया।
कुछ बताओगे भी क्या हुआ ?
कुछ नहीं बस मेरा मूड ठीक नहीं है।
क्यों ? कोई विशेष कारण। रमा के साथ झगड़ा हुआ क्या ?
रमा का नाम सुनते ही अनुज एकदम उत्तेजित हो गया।
नाम मत लो उस धोखेबाज का। यह कहते ही उसने बगल में रखे लाईट लैंप को उठाकर पटक दिया।
मधु एकदम घबरा गई।
क्या हुआ भैया ? वो घबराते हुए पूछी।
मेरे नजदीक मत आओ मधु। मेरा अभी मूड ठीक नहीं है उसने फिर सामान उठाकर पटक दिया। तुम थोड़ी देर के लिए अंदर जाओ मधु। मुझे अकेला छोड़ दो। वो अब थोड़ा और हाइपर हो गया था। वो जोर-जोर से गुस्से में धोखेबाज, धोखेबाज चिल्लाकर ........... को पटक रहा था।
मधु ने उसे अकेला छाड़ना ही उचित समझा। वो अंदर जाने लगी। तभी उसकी माँ अनीता देवी को फोन उसके मोबाइल पर आया।
बेसुधी में अचानक उसने फोन उठा लिया और ये धोखेबाज की आवाज मिसेस अनीता ने सुन ली।
ये क्या आवाज है मधु ? ये अनुज की आवाज है क्या ? किसको धोखेबाज कहकर चिल्ला रहा है।
रमा को .......... बोलते बोलते वो अचानक रूक गई।
उसे अंदाज हो गया कि अंजाने में उसने भयंकर भूल कर दी।
किसको रमा को। ओह!!! ये लड़की हमारे कुल का नाश करके ही छाड़ेगी। कितना उसको समझाया कि अनुज की जीवन से चली जा, चली जा। फिर भी वो नहीं मानी। फिर से अनुज के जीवन को डिस्टर्ब करने चली आई। अनीता देवी बोली।
वो तो चली ही गई थी माँ उसका कोई दोष नहीं भाई ही उसके पीछे पड़ा है तो क्या करें।
तू उसका साइड मत ले मधु। तू रमा का क्यों साइड ले रही है। उसी की वजह से तो अनुज का ये हाल है
अनुज की आवाज अब भी जोर-जोर से सुनाई पड़ रही थी।
सुन, सुन तू अपने भाई का हाल। उसी की वजह से उसकी ये हालत हुई है।
मैं फोन रखती हूँ माँ। मैं वैसे भी परेशान हूँ और ऊपर से आप और परेशान कर रही हो। रखिये फोन, और आपको इस सब में दखल देने की कोई आवश्यकता नहीं है। मधु बोली।
क्यों नहीं दूँगी दखल। क्या अनुज मेरा बेटा नहीं है।
अगर आप समझती हैं कि आपका बेटा है तो उसको शांति से जीने दीजिए। उसे अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीने दीजिए। आप बस फोन रखिए अभी। कहकर मधु ने फोन काट दिया।
अनुज का गुस्सा थोड़ा शांत हुआ तो वहीं सोफे पर चुपचाप लेट गया। मधु ने आकर देखा कि सारा सामान बिखरा पड़ा है और अनुज सोफे पर आंख बंद किए लेटा है तो उसने डिस्टर्ब करना ऊचित नहीं समझा। वो रूम में गई और रमा को फोन लगाई।
हेलो, रमा ?
ओह!! हेलो मधु। कैसी हो तुम ?
मैं तो ठीक हूँ तुम ये बताओ कि आज अनुज के साथ तुम्हारी कोई अनबन हुई क्या ?
नहीं तो। आज तो बल्कि मुलाकात ही नहीं हुई। कोई दिक्कत है क्या ?
नहीं आज भैया तुम्हारा नाम सुनते ही थोड़ा ज्यादा हाइपर हो गये थे। उन्होंने तुम्हारा नाम सुनते ही धोखेबाज, धोखेबाज करके चिल्लाने लगे और हाल का सारा सामान पटक पटक कर तोड़ डाले। आज से पहले कभी ऐसा नहीं किये थे।
ओह !!! ये तो अच्छी बात नहीं हैं। वो तो ऐसे ही मुझे धोखेबाज मानता है। ये तो कोई नयी बात नहीं है मधु। पर आज क्यूँ इतना गुस्सा कर रहा है उसका मुझे कोई आईडिया नहीं।
मुझे भी समझ नहीं आ रहा है रमा। क्या करूँ।
तुम बात करोगी क्या उससे। मधु ने पूछा।
अरे नहीं बाबा। उसके इस उखड़े मूड में तो बिलकुल नहीं। हाँ उसका मूड शांत हो जाए तो कल बात कर सकती हूँ।
ठीक है फिर मैं भी उनको आज नहीं छेड़ती। कल ही मैं भी बात करूँगी। अच्छा रखती हूँ। कहकर मधु ने फोन काट दिया।
रमा अचानक आये इस फोन से थोड़ी चिंतित हो गई थी। मैंने कुछ गलत तो नहीं किया। किसका गुस्सा अनुज उतार रहा है। मुझे तो बिलकुल भी समझ में नहीं आ रहा है। अजीब बात है इतना गुस्सा तो अनुज कभी नहीं करता। फिर अचानक उसे आज क्या हो गया है। क्या करूँ मैं ईश्वर। मैं भी तो उसे बहुत चाहती हूँ, पर इतनी मजबूर हूँ कि उसे बोल भी नहीं सकती। मेरा प्यार ना मिलने की वजह से उसकी पूरी लाईफ डिस्टर्ब हो गई। क्या करूँ। वो मुझे छोड़ता भी तो नहीं। मुझे कहीं भागने भी नहीं देता। ऊपर से रोज मुझे देखने की इच्छा करता है। ऐसा तो नहीं कि आज मुझे देख नहीं पाया करके अपना गुस्सा जाहिर कर रहा है। नहीं ऐसा तो नहीं होना चाहिए। वो थोड़ा अब समझ गया है कि मै उसे नहीं मिलने वाली। फिर क्या बात हो गई। इस तरह सोचते सोचते कब शाम हो गई उसे पता ही नहीं चला। वो उठी और बाहर गैलेरी का लाईट जलाने के लिए जैसे ही दरवाजा खोली तो चौक गई।

क्रमशः

मेरी अन्य तीन किताबे उड़ान, नमकीन चाय और मीता भी मातृभारती पर उपलब्ध है। कृपया पढ़कर समीक्षा अवश्य दे - भूपेंद्र कुलदीप।