Ankaha Ahsaas - 18 books and stories free download online pdf in Hindi

अनकहा अहसास - अध्याय - 18

अध्याय - 18


दूसरे दिन वो टाईम पर कॉलेज पहुच गया था और इंतजार करने लगा कि कब 12 बजे।
जब उसने देखा कि 12 बज गए हैं तो वह उतावला होकर उठने लगा। सोचा अभी चल जाता हूँ क्या प्राॅबलम है। फिर उसने सोचा गगन ने पाँच मिनट बाद जाने को कहा था। 05 मिनट बाद की चलता हूँ। इतना अधीर होना ठीक नहीं है। वो घड़ी की ओर देखता रहा और जब 12 बजकर 5 मिनट बीत चुके तो उठा और कांफ्रैस रूम की ओर चल पड़ा जब वह कांफ्रैस रूम पहुँचा तो उसने गेट हल्का सा खुला देखा। पहले तो वो गेट को जोर से खोलकर अंदर जाने की सोचा फिर याद आया कि गगन ने कहा था आवाज सुनना है। तो वह वहीं गेट पर खड़ा होकर पहले धीरे से अंदर चारों ओर देखा। अचानक उसे शेखर और रमा नजर आए। वो एकदम चैक गया। वो दोनो चेयर पर नहीं बैठे थे बल्कि शेखर घुटने बल बैठा था और रमा खड़ी थी। उसे थोड़ी शंका हुई। उसने सोचा सुन ही लेता हूँ। आखिर क्या बातचीत हो रही है और वो कान लगाकर उनकी बात सुनने लगा। तभी शेखर की आवाज आई।
देखो मैं तुमको अपने दिल की बात बता चुका हूँ। बस आखिरी में तुमसे एक बात पूछना चाहता हूँ पर उससे पहले तुमसे एक वादा करता हूँ कि तुम्हारा जवाब चाहे जो भी हो। हाँ या ना। हम दोस्त थे और हमेशा दोस्त रहेंगे।
बताओ क्या बात है। रमा की आवाज आई।
क्या तुम मुझसे शादी करोगी। शेखर की आवाज आई।
ये सुन के अनुज सन्न रह गया। उसके होश उड़ गए। एक पल के लिए उसे लगा कि वो अंदर जाए और शेखर को मार डाले। आखिर उसकी इतनी हिम्मत कैसे हो गई कि मेरी रमा को प्रपोज करे। फिर उसने थोड़ा विचार किया कि रमा तो खुद ही मना कर देगी। उसे शेखर को मारने की कोई आवश्यकता ही नहीं है। वो तो मुझसे प्यार करती है ना तो किस तरह उसको एक्सेप्ट करेगी ऐसा संभव ही नहीं है कि वो स्वीकार कर ले। वो मुझसे मोहब्बत करती है चाहे हमारे बीच जितनी भी लड़ाई हो। वो पक्का मना कर देगी। यह सोचकर वो वहीं रूक गया और उसके जवाब की प्रतीक्षा करने लगा।
तो बताओ ? तुम्हे मेरा शादी करने का प्रस्ताव स्वीकार है कि नहीं। शेखर ने फिर कहा।
बिल्कुल शेखर। मैं बिल्कुल तैयार हूँ तुमसे शादी करने के लिए। रमा की आवाज गूँजी।
अनुज एकदम धक्क से रह गया। वो एकदम शून्य हो गया। वो एकदम टूट गया। उसका मन तो कर रहा था कि अंदर जाए और दोनो को चिल्लाए परंतु अब तो किसी को कुछ बोलने का फायदा ही नहीं था। उसकी आँखों के सामने अंधेरा छा गया। उसका दिमाग अब हाईपर होने लगा था। जैसे तैसे वह ऑफिस पहुंचा वो ऑफिस में चेयर पर बैठा बैचेन होने लगा। क्या करूँ ? क्या करूँ ? रमा इतनी धोखेबाज तो नहीं हो सकती, और शेखर मैंने तो उसे दोस्त समझा था। मैं अगर दिल्ली चला गया तो इनकी तो मौज हो जाएगी। मैं ऐसा होने नहीं दूँगा। मैं रमा और शेखर को अलग कर दूँगा, हाँ ये ठीक रहेगा। फिलहाल तो मैं रमा और शेखर को अलग कर देता हूँ। अब तक तो मेरे मन में रमा के लिए चाहतें थी, पर एक बार और मुझे धोखा देकर नफरत करने का मौका उसने मुझे खुद ही दे दिया, वो धोखेबाज थी और आज भी धोखेबाज है। अब तो मैं उसे कभी भी अपनी जिंदगी में आने नहीं दूँगा। चाहे जो भी हो जाए। उसको मेरे जीवन के साथ खेलने को अधिकार किसने दिया ? गद्दार, विश्वासघाती, धोखेबाज मैं तुमको माफ नहीं करूँगा। पर पहले तो शेखर की खबर लेता हूँ। नहीं मैं शेखर को अभी कुछ नहीं कहता। अभी उसको मेरी जगह दिल्ली भेज देता हूँ। उसने यह सोचकर कालबेल बजाई।
जी सर ? चपरासी अंदर आकर पूछा।
शेखर को बुलाओ।
जी सर। कहकर चपरासी चला गया।
हाँ अनुज। कहते हुए शेखर अंदर आया।
बैठो। मैं सोच रहा हूँ कि मेरी जगह तुम दिल्ली चले जाओ। मुझे यहाँ कुछ जरूरी काम आ गया है। अनुज बोला
अचानक क्या जरूरी काम आ गया अनुज ?
आ गया है एक जरूरी काम।
तो मुझे बताओं मैं कर देता हूँ। शेखर बोला
भाई तुम कर सकते तो मुझे रूकने की क्या जरूरत थी। तुम करोगे कि नहीं बस ये बताओ।
यार मुझे भी एक जरूरी काम था। अगर मेरी जगह कोई और जाएगा तो नहीं चलेगा क्या ?
नहीं मैनेजमेंट में कोई और नहीं जिसको भेजा जा सके। मैं सिर्फ तुम पर भरोसा कर सकता हूँ। तुम जाओ। मेरा आदेश समझकर जाओ।
ठीक है अनुज। तुम इतना फोर्स कर रहे हो तो मैं ही चले जाता हूँ। बताओ कब जाना है ?
कल !! मैं तुम्हारी टिकिट बुक करा देता हूँ। तुम अपनी तैयारी कर लो। सारी फाईल इस बैग में है। तुमको कोई परेशानी नहीं होगी।
ठीक है अनुज मैं फाईल देख लेता हूँ। कहकर शेखर फाईल उठाया और अपने चेंबर में चला गया।
इधर अनुज का मन एकदम विचलित हो रहा था, क्या करे, क्या करे। अभी शेखर मौजूद है तो रमा से भी बात करने का कोई फायदा नहीं। क्या करूँ, क्या करूँ। वेट करना उचित होगा। शेखर को पहले जाने देता हूँ, फिर रमा की खबर लेता हूँ। वो एकदम हाइपर हो रहा था। यहाँ रहूँगा तो अपना आपा खो दूँगा, ऐसा करता हूँ घर चला जाता हूँ। यह सोचकर वह उठा और बिलकुल अवचेतन मन से घर की ओर निकल गया।

क्रमशः

मेरी अन्य तीन किताबे उड़ान, नमकीन चाय और मीता भी मातृभारती पर उपलब्ध है। कृपया पढ़कर समीक्षा अवश्य दे - भूपेंद्र कुलदीप।

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