अर्थ पथ - 15 - पलायन: चिंतन, मनन, मंथन Rajesh Maheshwari द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

  • मोमल : डायरी की गहराई - 47

    पिछले भाग में हम ने देखा कि फीलिक्स को एक औरत बार बार दिखती...

  • इश्क दा मारा - 38

    रानी का सवाल सुन कर राधा गुस्से से रानी की तरफ देखने लगती है...

श्रेणी
शेयर करे

अर्थ पथ - 15 - पलायन: चिंतन, मनन, मंथन

पलायन: चिंतन, मनन, मंथन

एक समय था जब मजदूरों व अधिकारियों का वेतन बहुत ही कम था। अब समय के साथ-साथ परिस्थितियां बदलती जा रही हैं। जिससे श्रमिकों को अपने श्रम की कीमत एवं अधिकारियों को अपने अधिकार एवं कर्तव्य की उपयोगिता समझ में आती जा रही है। अब श्रमिकों का आर्थिक शोषण समाप्त हो चुका है। उन्हें उचित मजदूरी प्राप्त हो रही है। वहीं अधिकारी वर्ग भी अपनी कार्यकुशलता के अनुसार वेतन प्राप्त करने लगे हैं। इस प्रकार अधिकारों के विषय में सभी जाग्रत हो गए हैं और धीरे-धीरे कर्तव्य के प्रति भी वे सजग हो जाएंगे। अब हम देखते हैं कि श्रमिक आन्दोलन और कारखानों में हड़तालें कम हो गईं हैं। इस सब का मूल कारण उनके वेतन में समुचित वृद्धि हो जाना है।

किसी भी उद्योगपति,व्यापारी एवं अधिकारियों को अपना समय अनावश्यक लोगो से मिलने में नही गंवाना चाहिए। उन्हें ध्यान रखना चाहिए कि अपना सम्मान एवं गोपनीयता बनाए रखने के लिए चयनित लोगो से ही मिलना जुलना चाहिए। जीवन में हमें अनेक प्रकार के बहुव्यक्तित्व के लोगो से मिलने का अवसर मिलता है यदि आप घमंडी व्यक्ति से मिलते है तो आपको हमेशा उससे बातचीत में उसकी तारीफ करते रहना चाहिए जिससे वह प्रसन्न हो जाए और यदि आप उसकी बातों से सहमत ना हो तो वहाँ पर वाद विवाद ना करके शांत रहे। यदि आप शंकालु व्यक्ति से मिलते है तो उसकी शंकाओं का समाधान तुरंत कर देना चाहिए। यदि आपका मिलना बुद्धिहीन व्यक्ति से होता है तो आपका कीमती समय, उर्जा और बुद्धिमत्ता उसके लिए व्यर्थ है।

यह बात हमेशा ध्यान रखे कि आपकी बातों से कोई अपमानित ना महसूस करें क्योंकि कोई व्यक्ति कितना भी महत्वहीन या छोटा हो कभी ना कभी काम आ सकता है। हम कितने भी ज्ञानवान हो उद्योगपतियों के बीच उद्योग के विषय में जब चर्चा हो रही हो तो दूसरों के विचारों को समझने का प्रयास कीजिए और अपने ज्ञान को उपयुक्त समय पर ही प्रदर्शित करें।

आप अपने काम के प्रति एकाग्रता रखे जिससे आपकी गुणवत्ता से सब प्रभावित हो इसके लिए एक समय में बहुत सारे कामों में न उलझकर वरीयता के हिसाब से कामों निपटाने का प्रयास करें। हमें अपने बारे में अपने द्वारा ही अपने कामों का बखान नही करना चाहिए इससे आप लोगों के बीच हंसी और आलोचना के पात्र बनते हैं। आपकी छवि मेहनती एवं प्रतिभाशाली व्यक्ति की होनी चाहिए। अपने अनुभव के आधार पर ही किसी को सलाह देनी चाहिए।

आप दूसरों के अच्छे कामों की तारीफ करें यदि आप सिर्फ बुराई देखते रहेंगे तो आप एक आलोचक के रूप प्रसिद्ध हो जायेंगे और आपकी टिप्पणियेां पर आपके सहकर्मी चिढने लगेंगे। यदि आप दूसरों की उपलब्धियों की प्रशंसा करेंगे तो आपकी उपलब्धियों की भी तारीफ होगी। आप अपने स्वभाव में समय और परिस्थिति के अनुसार ढलने का गुण विकसित कीजिए। हर व्यक्ति आपका प्रिय नही बन सकता है क्योंकि सबका स्वभाव एक समान नही होता हैं।

जीवन में यदि आपका ध्येय नौकरी करना हो तो आपका लक्ष्य किसी अच्छे संस्थान में प्रथम पाँच अधिकारियों की वरीयता में पहुँचने का होना चाहिए। इसके लिए आपको निरंतर मेहनत व परिश्रम करते रहना होगा। यदि आपको प्रारंभ में कोई भी सम्मानित पद प्राप्त हो तो अवसर का लाभ उठाना चाहिए और मेहनत करके निरंतर उच्चतम पद पर पहुंचने हेतु प्रयासरत रहना चाहिए।

पुराने समय में विदेशो में धनोपार्जन के लिए जाने हेतु युवा लालायित रहते थे परंतु आज समय बहुत बदल गया है और अपने देश में ही अच्छे औद्योगिक संस्थानों द्वारा बहुत अच्छे वेतनमान पर नियुक्तियाँ मिल रही है। इससे राष्ट्रहित की मानसिकता के कारण कई लोग विदेश में नौकरी करने की अब इच्छा नही रखते हैं।

भारतीय रेल्वे में अपनी उत्कृष्ट व कर्तव्यनिष्ठ सेवा प्रदान करने हेतु डायेरक्टर जनरल के स्तर पर गोडल मैडल, जनरल मैनेजर अवार्ड आदि से सम्मानित आई आई टी मुंबई से उत्कृष्ट अंको से उत्तीर्ण सचिन शुक्ला वर्तमान में जबलपुर में डिप्टी जनरल मैनेजर के पद पर कार्यरत है।

उन्होंने अपना अनुभव बताते हुए कहा कि वे जब आई आई टी मुंबई में इलेक्ट्रीकल इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष में पढ रहे थे तब उनके अधिकतर मित्र व सहपाठी अमेरिका के विश्वविद्यालयों में उच्च अध्ययन हेतु जाने के लिये लालायित थे। अमेरिका के विश्वविद्यालय भी भारत के अच्छे अंक प्राप्त करने वाले आई आई टी के छात्रों को बहुत पसंद करते है क्योकि ऐसे विद्यार्थी बहुत मेहनती, बुद्धिमान एवं अपने कार्य के प्रति समर्पित रहते है। मेरे अधिकांश सहपाठियों को अमेरिका के विभिन्न विश्वविद्यालयों द्वारा छात्रवृत्ति देकर उन्हें प्रवेश प्राप्त हो गया था और वे सब इतने खुश हुये कि मानो भगवान ने उन्हें एक नयी जिंदगी दे दी हो।

मुझे भी मेरे मित्रों ने सुझाव दिया कि तुम भी अमेरिका चले जाओ क्योंकि यहाँ अपने देश में योग्यता का सही मूल्यांकन नही है। यहाँ तो सिर्फ जातिगत आरक्षण और भ्रष्टाचार है। यहाँ अच्छे और ईमानदार लोगों को तरक्की के अवसर मिलने में बहुत कठिनाई होती है। यदि तुम अमेरिका चले जाओगे तो तुम्हें उन्नति के अवसर आसानी से प्राप्त होते रहेंगें और तुम आर्थिक रूप से भी बहुत संपन्न हो जाओगे। उनकी बात मानकर मैं भी अमेरिका जाने हेतु प्रयासरत हो गया और प्रभु कृपा से मुझे भी छात्रवृत्ति के साथ वहाँ प्रवेश मिल गया। मैंने जाने की तैयारी शुरू कर दी थी परंतु इससे मुझे बहुत प्रसन्नता महसूस नही हो रही थी और मैं अपनी अंतरात्मा में सोचता था कि अपनी अच्छी जिंदगी के लिए देश छोडकर विदेश में क्यों बस जाऊँ ? क्या अपने देश में ही ईमानदारी से काम करना संभव नही है ? यदि हमारे देश की प्रतिभाओं का इसी तरह पलायन होता रहेगा तो हमारे देश की उन्नति और तरक्की कैसे हो सकेगी ?

मैं इसी उधेडबुन में उलझा हुआ था तभी मुझे भारतीय रेल्वे में उच्च पद पर कार्य करने का अवसर प्राप्त हो गया, फिर भी लोगो का मत था कि अपने देश में केवल चापलूस और भ्रष्ट लोगों की जल्दी प्रगति होती है। तुम अमेरिका में बस जाआगे तो आराम से रहोगे। इसी उधेडबुन में मैं उलझा हुआ था तभी मुझे बचपन में पढा हुआ एक श्लोक याद आया कि जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी अर्थात जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान होती है। यह स्मरण आते ही मैंने दृढ निश्चय कर लिया कि यदि हम स्वयं ऐसी स्थिति को आगे बढकर समाप्त करने का प्रयास नही करेंगें तो हमें ऐसे तंत्र को दोष देने का कोई अधिकार नही है।

किसी भी शासन तंत्र को सुव्यवस्थित ढंग से चलाने हेतु शासन प्रणाली में अच्छे लोगों की आवश्यकता रहती ही है। यदि ईमानदार और समर्पित लोग नही होंगे तो शासन तंत्र जनता के हित में सुचारू रूप में कैसे चल पायेगा ? मन में यह विचार आते ही मैंने अमेरिका जाने की सेाच को अलविदा करके भारत में ही रहकर भारतीय रेल में नौकरी करने का निष्चय कर लिया। मेरा युवाओं को संदेश है कि मैंने जीवन में जो रास्ता चुना वह सही था। मेरी प्रतिभाशाली युवाओं से प्रार्थना है कि वे सिर्फ आर्थिक दृष्टिकोण के कारण देश से पलायन करने का निर्णय ना लेकर अपने देश में ही रहकर सकारात्मक सोच के साथ आगे बढने हेतु कृत संकल्पित हों।