सुलझे...अनसुलझे - 10 Pragati Gupta द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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सुलझे...अनसुलझे - 10

सुलझे...अनसुलझे

नई बीमारी

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बात महिना भर पहले दीपावली के आसपास के समय की है| बाज़ारों में कुछ ज्यादा ही चहलपहल दिख रही थी| पर लगभग सभी चिकित्सकों के क्लीनिकों में मरीज़ कम थे क्योंकि त्योहारों पर आसपास के गाँव से मरीज़ कम ही आते है और अगर आते भी है तो सिर्फ़ वही, जिनको बहुत जरूरी दिखाना हो|

मैं भी बस सेंटर के कामकाज से जुड़े पेपेर्स को व्यवस्थित कर ही रही थी कि एक 40-45 वर्ष कि महिला अपनी 15-16 वर्ष की बेटी के साथ अन्दर आयी| स्टाफ के पूछने पर कि आपको क्या करवाना है वह महिला बोली ...

‘मुझे सवेरे से काफी सीने में दर्द महसूस हो रहा है अगर आपके यहाँ अभी डॉक्टर हो तो दिखाना चाहूंगी|’ महिला ने ज़वाब दिया|

‘क्या नाम है आपका? डॉ.साहिब आते ही है, तब तक मैं आपकी स्लिप बना देता हूँ|’ स्टाफ ने मरीज़ा को कहा ...

‘मीरा नाम है मेरा| बाकी जो भी विवरण उम्र और पते आदि से सम्बंधित थे स्टाफ ने पूछे| वह महिला बताकर चुपचाप अपनी बेटी के पास आकर बैठ गई|बीच-बीच में वह अपनी बेटी से कुछ बोल रही थी| जो कि लगातार अपने मोबाईल में व्यस्त थी| माँ के कुछ बोलने पर वह थोड़ी देर माँ की तरफ देख लेती फिर अपने मोबाइल में व्यस्त हो जाती|

इस बीच मेरी नज़र मीरा जी की बिटिया पर पड़ी जो कि अपने मोबाइल में ही गुम थी| बीच-बीच में माँ को देख लेती और उनकी तबियत का पूछ लेती पर उसका ध्यान सिर्फ़ मोबाइल में ही था| दूर से देखने में मुझे लग रहा था कि वह मोबाइल में कभी कुछ लिख रही है तो कभी कुछ पढ़ रही है| कभी लगता कि वह मुस्कुरा रही है| प्रथम दृश्य तो यही था कि वह माँ के लिए चिंतित तो थी पर अपने आप में गुम कुछ ज्यादा थी| दो-तीन बार तो मैंने उस पर ध्यान दिया बाकि फिर मैं भी अपने काम में लग गई|

डॉक्टर के आते ही माँ-बेटी दोनों उनके पास चली गई और मैं भी अपना ध्यान अपने काम में लगाने लगी|थोड़ी ही देर में मुझे परामर्श डॉक्टर के चेम्बर से,मीरा के रोने की आवाज़े आई| शायद डॉक्टर से वह अपनी बेटी के लिए कुछ रोते-रोते बोल रही थी चूँकि आवाज़े साफ़ नहीं थी तो मैं ज्यादा नहीं सोच पाई|थोड़ी देर बाद ही मेरे पास डॉक्टर का फ़ोन आ गया ....

‘मैडम इस मरीज़ा की परेशानी सिर्फ़ इसकी अपनी परेशानी नहीं है बल्कि इसकी बेटी की है| जिसके भविष्य को लेकर यह महिला अति चिंतित है|जिसकी वजह से इनको भारीपन और दर्द महसूस हो रहा है|मैंने माँ को दर्द में आराम के लिए मेडिसिन दे दी है| पर अगर हमने माँ-बेटी की काउंसिलिंग नहीं की तो दोनों ही अलग-अलग बीमारियों से ग्रसित हो जायेगी| जिसकी वजह से इनकी और भी परेशानी बढ़ सकती है| मैं इनको आपके पास भेज रहा हूँ मेरे से ज्यादा आप आप इन दोनों की समस्या सुलझा पाएंगी|’

डॉक्टर यह सब बोल कर चुप हो गए और उनका फ़ोन डिसकनेक्ट हो गया|

थोड़ी ही देर में माँ-बेटी मेरे चेम्बर में आ गई|

‘क्या बात है मीरा जी! मुझे पूरी बात बताइए|’ मैंने मरीज़ा को बोला और चुपचाप उसके बोलने का इंतज़ार करने लगी|

‘मेम! यह मेरी बेटी वृन्दा है दसवीं की छात्रा है| अगर आज मैं इसको अपनी बीमारी का बोल कर यहाँ नहीं लाती तो यह हरगिज़ नहीं आती| हालांकि इसके बारे में ही सोच सोचकर मेरे सीने में दर्द शुरू हुआ है|पर इसको कितना समझ आता है मुझे नहीं पता| जैसा कि शायद आपने भी देखा हो यह जब देखो तब अपने मोबाइल में लगी रहती है|हर समय फोटो खींचना सोशल साइट्स पर डालना या फिर दूसरी साइट्स से नए-नए दोस्त बनाना ,सारा-सारा समय चेट करना|स्कूल में क्या और कैसे पढ़ती है मेरे लिए बहुत चिंता का विषय है|….

इसके परीक्षाओं के परिणाम भी मुझे कोई संतुष्टि नहीं देते|इसको टोको तो लड़ाई करती है| मुझे तो लगने लगा है कहीं इसको इस तरह देखते-देखते,मैं ही पागल न हो जाउं|प्लीज आप अगर कुछ कर सके तो मेरी और इसकी मदद करे|…

पढ़ती लिखती यह कितना है...मुझे नहीं पता पर घर पर होने पर यह सारा-सारा समय मुझे मोबाइल में लगी हुई देखती है| कभी इसका मोबाइल चेक करना चाहो तो उसमे लॉक लगा रहता है| मैं नहीं चाहती थी इसको मोबाइल देना पर एक दिन जब मैंने इसका मोबाइल छिपा दिया तो यह मुझे मरने कि धमकी देने लगी| इसके पापा भी इसको समझ-समझा कर हार गए है|...

यह हममें से किसी का कुछ भी नहीं सुनना चाहती| बस इसके हिसाब से सब चलता रहे यह बहुत राज़ी है| अन्यथा इसका क्रोध हमारे लिए परेशानी का सबब बन जाता है| पहले बीच-बीच में थोड़ा बहुत फ़ोन देखती थी पर अब तो मुझे समझ ही नहीं आता इसको क्या होता जा रहा है| जैसे-जैसे बच्चा समझदार होता है बड़ी क्लास में आता है अपनी पढाई पर ध्यान लगाता है ताकि कुछ करियर बन सके पर यहाँ तो इसको अब हमारी कोई भी बात समझ ही नहीं आती| उल्टा इसको लगता है हम कुछ ज्यादा ही सोच रहे है|’

मीराजी लगातार इतना कुछ बोल कर चुप हो गई और मेरा ध्यान उनकी बेटी पर गया ..जिसका नाम वृंदा था| वह अपनी माँ को लगातार घूरे जा रही थी जैसे कि माँ ने कोई बड़ा अपराध कर दिया हो| पर चूँकि बच्ची घर पर नहीं थी तो अपनी माँ से कुछ भी पलट कर ज़वाब देने कि स्थिति में नहीं थी|

पर माँ की आँखों में एक तरह से लाचारी नज़र आ रही थी| जैसे कि वह अनचाहे ही अपने घर की परेशानी को घर के बाहर ले कर आ गई हो| माँ बेटी कि वजह से इतना अवसाद में थी कि उसकी बेबस आँखें बस हर शब्द पर छलकने को तैयार-सी ही दिख रही थी| दूसरी ओर बेटी माँ के इस व्यवहार के लिए बिलकुल तैयार नहीं थी| उसको शायद माँ कि तबियत का थोड़ा लिहाज़ था जिसकी वजह से वह माँ के साथ आई थी और माँ के इतना कुछ बोल देने के बाद भी वह चुपचाप सुनती रही|

और मैंने भी इस तरह नहीं सोचा कि बच्ची भी पेशेंट है| खैर सबसे पहले मुझे माँ बेटी को नार्मल करना था ताकि दोनों कि समस्याओं का किसी तरह समाधान निकले|

आज कल स्थितियां और परिस्थितियां कुछ अजीब-सी ही हो गयी है| बच्चा आठ नौ महीने का होता नहीं है माँ-बाप बच्चे के हाथ में मोबाइल दे कर खाना खिलाते है| उसकी समझ में क्या आता है क्या नहीं यह तो पता नहीं बस बटन दबा-दबा कर वह कुछ न कुछ खोलकर ख़ुद को व्यस्त रखता है| तब माँ-बाप उसको खाना खिला पाते है|...

कुछ केसेस में यह पेरेंट्स कि नासमझी होती है क्यों कि वह अपनी मेहनत बचाने के लिए सरल विकल्प ढूंढ़ते है| कहीं पेरेंट्स कि मजबूरी है जहाँ दोनों के कामकाजी हैं और एकल परिवार में रहने से बच्चों को कोई देखने वाला नहीं है| अपने-अपने काम से लौट कर माँ-बाप दोनों इतना थके हुए होते है कि बस चाहते है किसी तरह बच्चा खाना खाए और सभी रेस्ट करें| माँ-बाप दोनों के कामकाजी होने से समय की कमी अक्सर ही माँ-बाप को बच्चों के साथ अतिरिक्त मेहनत थकन देती है|

ऐसे में बच्चो के लिए मोबाइल कब खिलौने से उनकी जिद बन जाता है न तो पेरेंट्स को पता चलता है न बच्चों को पता चलता है| बचपन की आदतें कब धीरे-धीरे अजीब-सी आदतों का रूप ले लेती है| यह बीमारी के रूप में विकराल रूप धारण करने के बाद ही पता चलता है|

‘मीरा जी! मैं आपकी बेटी से अकेले में बात करना चाहूंगी| आप प्लीज कुछ देर बाहर आराम से बैठिये और निश्चिन्त रहिये सब धीरे-धीरे ठीक हो जायेगा| शायद मेरा यह एक वाक्य ही किसी माँ के लिए इतना शान्ति दे जाएगा मुझे उनके मुहं के बढ़े हुए तनाव में कुछ आती कमी के साथ महसूस हुआ|

‘क्या नाम है तुम्हारा बेटे? किस क्लास में पढ़ती हो? भविष्य में क्या बनाना चाहती हो? मैंने बच्ची से पूछा...

जी मेरा नाम वृन्दा...दसवी क्लास में हूँ ..क्या बनाना चाहती हूँ अभी सोचा नहीं है मैंने| बोल कर वह चुप हो गई.....

‘कितने साल की हो बेटा?’..

‘आंटी मैं सत्रह साल की हूँ परीक्षाय ख़त्म हो चुकी है ग्यारवी में आ जाउँगी|’..

‘अरे वाह! वृन्दा अगली साल तो तुम वोट डालने वाली उम्र में आ जाओगी बेटा| क्या सोचती हो किस पार्टी को वोट दोगी|

‘पता नहीं आंटी| कभी सोचा नहीं इस बारे में|’....

‘वृन्दा एक बात तुम्हारी मुझे बेहद पसंद आई कि तुम जो भी बोलती हो बहुत सीधा और सच बोलती हो| जो कि आजकल के काफ़ी प्रतिशत बच्चों में देखने को मिलता है| जो भी सच होता है बच्चे साफ़-साफ़ बोल देते हैं| अगर वह अनुतीर्ण भी हो जाते है या कम नंबर आते है तो भी बेहिचक बोल देते है| मुझे तो तुम जैसे हर बच्चे की यह आदत बहुत ही अच्छी लगती है|’ इतना सब कुछ सुनने के बाद अब वृन्दा मुझे कुछ नार्मल-सी दिखाई दी|

‘पर बेटा आजकल के बच्चे एक और बात के लिए मैंने बहुत स्पष्ट विचारों वाले देखे हैं ...वह क्या आंटी? वृन्दा ने पूछा|...

‘आजकल के बच्चे अपने भविष्य के प्रति बहुत जागरूक भी है| उनको पता है कब क्या करना है और कैसे करना है? तुमको नहीं लगता कि तुम यहाँ पिछड़ रही हो| तुमको पता है अठारह साल वोट डालने कि उम्र इसलिए रखी गई है क्यों कि इस उम्र के बच्चों से यह उमींद की जाती है वह अब समझदार हो गए है| साथ ही वह न सिर्फ़ अपना भला बुरा सोचेंगे बल्कि वह देश के भविष्य को भी संभालेगे|’....

अब वृन्दा कुछ बोलने कि स्थिति में तो नहीं थी पर वह अब सोचने की स्थिति में जरूर थी| न जाने क्यों आज मुझे ऐसा लगा कि ग्यारवी और बारहवी के बच्चो को वोटिंग राईट मिलने से पहले उनको इन ज़िम्मेवारियों के प्रति सजग जरूर करना चाहिए| ताकि उनके मन में इस सोच की प्रक्रिया तो चलना प्रारम्भ हो|

इस बीच एक बात जो मैंने नोटिस की वह यह कि वृन्दा ने एक भी बार अपना मोबाइल नहीं देखा था| यह मेरे लिए सकारात्मक प्रतिक्रिया थी मेरी बातों की| चूँकि मुझे वृन्दा के सामने उसकी मम्मी की कही बातों को दोहराना नहीं था तो मैंने अपनी तरह से ही उसको मुद्दे पर लाने की भी चेष्टा की|

‘वृन्दा एक बात और है बेटा तुम बहुत प्यारी हो| एक बात बताओगी जब तुम अपने दोस्तों को अपनी फोटो भेजती हो तुम्हारे दोस्त क्या कहते है बेटा?...

‘कुछ दोस्त मेरी बहुत तारीफ़ करते है आंटी कि तू कितनी सुन्दर है वृन्दा,कुछ भी पहनती है बहुत अच्छी लगती है| पर आंटी आपको पता है कभी-कभी मुझे लगता है वह झूठ बोल रहे है क्यों कि वह आपस में मज़े ले रहे होते है यह मैंने कई बार महसूस किया है|’...

अब वृन्दा मुझ से काफ़ी सहज हो गई थी तभी मेरे साथ काफ़ी अच्छे से अपनी बातें साझा कर रही थी|

‘फिर क्यों भेजती हो फ़ोटो तुम उनको?...

‘आंटी मुझे लगता है कि अगर में फोटो भेजती रहूंगी तो मेरे दोस्तों में मेरी बातें होगी|’...

‘और अगर तुम्हारे नंबर बहुत अच्छे आते है तो बातें होंगी या नहीं वृन्दा?’..

‘आंटी नंबर ही तो नहीं आते है|’...

‘आयेगे तो तभी न, जब तुम अपना अधिकतर समय पढाई में लगाओगी| तुमको नहीं लगता तुम पहले बहुत सारी फ़ोटो खीचती हो,फिर दोस्तों को भेजती हो, फिर उनके कमेंट्स से कभी ख़ुश होती हो तो कभी दुखी होकर अपना पूरा दिन खराब कर लेती हो| अगर यही समय पढाई में लगाओ तो नंबर अच्छे आयेगे और तुम्हारी चर्चा स्कूल में होगी और तब तुम्हारे चेहरे पर आई मुस्कराहट तुमको किता ख़ूबसूरत बना देगी| तब तुम एक बढ़िया से फ़ोटो मुस्कुराते हुए नम्बरों के साथ डालोगी तो तुम्हारे दोस्त ही क्या कोई भी तुमको नापसंद करेगा क्या|’...

पर आंटी मुझे पढने में मज़ा नहीं आता है|..

‘जब नंबर अच्छे नहीं आते तो पढने में मज़ा कैसे आएगा बताओ| तभी तो हम सेल्फी जैसी बातों में दिमाग़ लगाते है| जैसे ही एक बार तुम्हारा लक्ष्य निश्चित होगा तुम बहुत ख़ुश महसूस करोगी| एक बार जैसे मैं कहूँ मेरे हिसाब से करोगी बेटा|’....अब मुझे दूसरी बात पर भी आना था|

‘वृन्दा तुम्हारी मम्मी बहुत प्यार करती है बेटा तभी तुम्हारे लिए बहुत परेशान है| अगर तुम पहले पढ़ाई पर लक्ष्य साधकर बाद में दूसरी चीज़ों को वक्त दोगी तो उसको एतराज़ नहीं होगा बेटा|’....तुम्हारा सोच-सोच कर ही उसकी तबियत ख़राब हो रही है| बेटा पेरेंट्स से ज्यादा तुम्हारा भला कोई नहीं सोच सकता है| हमेशा ध्यान रखना....

‘आंटी! आप बहुत अच्छी है,आपने मुझे बहुत अच्छे से बहुत सारी बातें बताई जो मैंने कभी नहीं सोचा अब आपसे बात करने के बात मुझे लग रहा है मैंने मम्मी के साथ अच्छा नहीं किया| आंटी आप मेरे से वापस बात करेंगी न|’...

‘हाँ! बेटा क्यों नहीं करुँगी तुम कभी भी आओगी मुझे अच्छा लगेगा|’...अब मेरे मन में आशा कि किरण जाग गई थी कि वृन्दा के सही हो जाने से मीरा जी भी समय के साथ ठीक हो जाएगी|...

अब दोनों उठ कर अपने घर के लिए रवाना हो गई थी और मैं सोचने लगी कि इन गज़ेत्ट्स कि भूमिका हमारी जिंदगी में कितना गड़बड़ कर सकती है| यह समय के साथ व्यक्ति को अपने ही जीवनकाल में नज़र आ जाता है| मोबाइल हो या कोई भी गज़ेत्ट्स इन सबके मानसिक या शाररिक प्रभाव हो सकते है| अतः समय रहते इनके दुष्प्रभावों पर गौर जरूर करना चाहिए||

प्रगति गुप्ता