बात बस इतनी सी थी - 33 Dr kavita Tyagi द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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बात बस इतनी सी थी - 33

बात बस इतनी सी थी

33.

तीन महीने बाद बारह मार्च के दिन कंपनी के एमडी की ओर से एक बड़े शानदार फार्म हाउस में पार्टी का आयोजन किया गया, जिसमें हमारे ऑफिस के ज्यादातर अधिकारी-कर्मचारी आमंत्रित थे । बॉस की पार्टी में जाना जरूरी था । न जाने का कोई कारण भी नहीं था ।

छः साल पहले इसी दिन मेरी और मंजरी की शादी संपन्न हुई थी । तभी से यानि कि शादी के बाद से आज तक न जाने क्योंन मुझे वह दिन अपनी जिंदगी का सबसे मनहूस दिन लगता रहा था । इसलिए उस दिन किसी भी पार्टी में जाना और एंजॉय करना मुझे अच्छा नहीं लगता था । लेकिन बारह मार्च 2019 का दिन कुछ अलग तरह की परिस्थिति और मनाःस्थिति लेकर आया था ।

अब मंजरी और मेरे बीच कोई कानूनी या सामाजिक दमघोंटू बंधन नहीं था, जिससे मुझे घुटन महसूस हो और जिसे खोलने या तोड़ने को हरदम मेरा मन छटपटाता रहे । अब न तो हम दोनों में से किसी की एक-दूसरे के प्रति सामाजिक या कानूनी जिम्मेदारी थी और न ही समाज या कोर्ट के किसी नियम कानून को मानने की कोई मजबूरी थी । दूसरी ओर, आज हम दोनों एक ही ऑफिस में काम करते हुए आपस में एक-दूसरे के साथ हँसते-बोलते भी थे और एक दूसरे को जरूरत पड़ने पर सहयोग करते थे । वास्तव में किसी बंधन के बिना भी आज हम दोनों एक दूसरे के साथ थे ।

12 मार्च 2019 की रात को कंपनी के एमडी की पार्टी चल रही थी । पूरा फार्म हाऊस रंग-बिरंगी लाइट्स से जगमगा रहा था । जिस समय मैं फार्म हाऊस में पहुँचा, उस समय तक काफी देर हो चुकी थी । मुझसे पहले ही मेरे ऑफिस के ज्यादातर सहकर्मी वहाँ पहुँच चुके थे । वहाँ पहुँचते ही मेरी आँखें वहाँ पर उपस्थित मेहमानों के बीच मंजरी को तलाशने लगी थी । तभी मंजरी को तलाशती मेरी आँखों के भावों को पढ़कर कई दोस्तों के साथ पांडे ने मेरे पास आकर मेरे कंधे पर हाथ मारकर कहा -

" तुम्हारी पटाका छोकरी अभी नहीं आयी है ! जब तक वह नहीं है, तब तक चलो, हम यारों के साथ एक-दो पैग लगा लो ! उसका साथ देने के लिए तुम्हारा मूड़ रंगीन बन जाएगा !"

मैं मुस्कुराकर चुपचाप पांडे के साथ चल दिया । कुछ क्षणों के बाद मैं पांडे और ऑफिस के कई दोस्तों के साथ खड़ा हुआ ड्रिंक करने लगा, लेकिन मेरी नजर बार-बार दरवाजे की ओर जाकर वापस लौट आती थी । मेरे मन की बेचैनी को भाँपकर पांडे बार-बार मजाक ले रहा था । मैं दो पैग पी चुका था, लेकिन अभी मुझे बिल्कुल भी नशा नहीं चढ़ा था । तभी मैंने मंजरी को मेरी ओर आते हुए देखा ।

गहरे गुलाबी रंग की महँगी साड़ी में सजी-सँवरी मंजरी उस समय बहुत सुंदर और स्मार्ट लग रही थी । मुझे मंजरी का उस समय उधर आना कुछ ठीक नहीं लग रहा था । मैं नहीं चा ता था कि मंजरी उधर आए जहाँ मैं खड़ा था, क्योंकि मैं जानता था कि उसको मेरा ड्रिंक करना बिल्कुल पसंद नहीं है । मंजरी वहाँ आकर कोई बखेड़ा न कर दे, यह सोचकर उसी समय मैं शराब का गिलास मेज पर रखकर मंजरी की ओर बढ़ गया ।

मैं जैसे ही गिलास मेज पर रखकर अपनी जगह छोड़कर मंजरी की और बढ़ा, पांडे के साथ-साथ बाकी सब दोस्त ठहाका लगाकर हँसने लगे । उन सबको हँसता हुआ छोड़कर मैं मंजरी की तरफ बढ़ता गया । उनसे दूर मंजरी की ओर जाते-जाते मेरे कानों में उनकी हँसी के फव्वारे में भीगी हुई यह कहने की आवाज सुनाई पड़ी -

"अरे ! इतना तो लोग अपनी बीवी से भी नहीं डरते, जितना तू ऑफिस की पटाखा छोकरी से डर रहा है !"

दरअसल मेरे ऑफिस में सब मंजरी को मेरी गर्लफ्रेंड समझते थे । उनमें से किसी को भी अभी तक यह नहीं पता था कि मंजरी मेरी एक्सवाइफ भी है । उन सभी की बात सुनकर भी अनसुनी करके मैं मंजरी की ओर बढ़ता चला गया । मंजरी ने मेरे निकट पहुँचते ही कहा -

"चंदन ! तुम शराब पी रहे थे ?"

"हाँ ! तुम भी पियोगी ?"

मंजरी ने 'हाँ' या 'ना' में जवाब नहीं दिया । उसने केवल शराब का तिरस्कार करने के लिए अपनी शक्ल सड़ी-सी बना दी । उसका जवाब देते हुए मैंने कहा -

"शराब इतनी भी बुरी चीज नहीं है, जितना कि तुम समझती हो ! चाहो, तो तुम भी एक-आधा पैग ले सकती हो ! उस तरफ लेडीस के लिए अलग से इंतजाम किया गया है ! एक बार पिओगी, तो देखना मज़ा आ जाएगा !"

"नहीं-नहीं ! एडवाइज के लिए थैंक्यू सो मच ! मुझे ऐसा मजा नहीं चाहिए !"

"तो तुम्हें क्या चाहिए ? बताओ मुझे !" मैंने सरूर में डूबकर कहा । अब मुझे नशा चढ़ने लगा था ।

"चलो कुछ देर वहाँ बैठते हैं !" मंजरी ने उधर संकेत करके कहा, जहाँ हरे-भरे पेड़-पौधे दिखाई दे रहे थे ।

"चलो !" कहकर मैं चुपचाप मंजरी के पीछे-पीछे चल दिया । वहाँ जाकर मंजरी पत्थर की बनी हुई एक बेंच पर बैठ गई और मुझे भी अपने बगल में बैठने का इशारा करके बोली -

"यहां बैठ जाओ ! कब तक यूँ ही खड़े रहोगे !"

मंजरी का संकेत पाकर मैं बेंच पर उसके बगल में बैठ गया । बैठने के बाद अचानक मेरी नजर उधर चली गयी, जहाँ कुछ मिनट पहले मैंने पांडे के साथ ऑफिस के दूसरे दोस्तों को छोड़ा था । मैंने देखा, वे सभी मुझे और मंजरी को एक साथ बैठे देखकर हँस-हँसकर कुछ कह रहे थे । दूर होने के कारण मैं उनके शब्दों स्पष्ट नहीं सुन पाया था । मंजरी उन सबकी नजर से और उन सबकी बातों से बेखबर अपनी ही धुन में खोयी हुई थी ।

कुछ देर तक हम दोनों चुप बैठे रहे । चार-पाँच मिनट बाद मैंने चुप्पी तोड़ी और मंजरी से कहा -

"तुमने मुझे यहाँ क्यों बुलाया है ?"

"मैं अकेली थी ! तुम सामने खड़े दिखाई दिए, तो तुम्हें बुला लिया !"

"हँ-हँ-हँ-हँ ! मतलब मैं तुम्हारे अकेलेपन को दूर करने का ओजार हूँ !"

"तुम यह समझ सकते हो !"

"तुम्हें अकेलापन अखरता है, तो अकेली क्यों आई हो ? अपने हस्बैंड को साथ क्यों नहीं ले आई थी ?"

"हस्बैंड ? मेरा कोई हस्बैंड नहीं है !"

"मतलब, तुमने मुझसे अलग होने के बाद अभी तक शादी नहीं की है ?"

"नहीं !"

"नहीं ? तुम्हारे सजने-सँवरने के स्टाइल से तो लगता है कि तुमने मुझसे अलग होने के बाद शादी कर ली होगी !"

"तुम पुरुषों की यही दकियानूसी सोच औरतों की सारी समस्याओं की जड़ है ! तुम लोगों की सोच है कि औरत सिर्फ मर्दों को रिझाने के लिए सजने-सँवरने वाली बेजान गुड़िया है ! अपनी इसी सोच के कारण तुम महिलाओं को आगे बढ़ते हुए नहीं देख सकते !"

"मंजरी मैडम, यह सोच पुरुषों की नही, औरतों की है ! पुरुष न तो उसको सजने-सँवरने को कहता है और न ही कभी उसको आगे बढ़ने से रोकता है ! यह ठीक से समझ लो तुम !"

"रोकता है पुरुष ! शादी से पहले पुरुष जिस लड़की के आगे-पीछे दुम हिलाता फिरता है, शादी होते ही वह उस लड़की पर इतना कंट्रोल करने लगता है कि उसकी मर्जी के बिना लड़की ने साँस भी लिया, तो वह उसको अपराधी घोषित कर देता है !"

"तुम गलत और एकदम उल्टा कह रही हो ! शादी के बाद लड़की यह सोचती है कि उसका पति साँस भी उसकी इजाजत के बाद ही लें ! पति कब ? कहाँ जाता है ? क्यों जाता है ? किससे मिलता है ? और क्या बात करता है ? लड़की को पति से इन सारे प्रश्नों का पल-पल का हिसाब चाहिए होता है ! मैंने तुम्हें अपने पल-पल का हिसाब नहीं दिया, तो उसका नतीजा आज हम दोनों के सामने हैं कि हम दोनों की शादी टूट गई !"

"और तुम्हें तुम्हारी दकियानूसी सोच के चलते हमारी शादी टूटने के बाद भी मुझ पर कंट्रोल करने में कोई संकोच नहीं है ?"

"कैसे ?"

"अरे, मैं अपने सजने-सँवारने का स्टाइल कैसा रखूँ ? यह मेरी अपनी मर्जी है ! मेरा अपना शौक है ! अब मेरे सजने-संँवरने का स्टाइल भी दूसरे लोग डिसाइड करेंगे क्या ?"

"तुम अभी भी दूसरों के पीने-खाने के बारे में डिसाइड कर सकती हो कि वे क्या खाएँ और क्या पिएँ ! पर तुम, तुम हो ! तुम सबसे श्रेष्ठ हो !"

"चलो छोड़ो, अब यह सब बातें !" मंजरी ने विषय से हटने की कोशिश करते हुए कहा ।

"हाँ, यह बिल्कुल सही बात है ! अब हमें ये सब बेकार की बातें करने की कोई जरूरत नहीं है ! सच तो यही है कि अब न मैं तुम पर कंट्रोल कर सकता हूँ, और न तुम मुझसे एक-एक पल का हिसाब ले सकती हो ! हम दोनों में से कोई भी किसी बात को लेकर एक-दूसरे पर किसी तरह का दबाव नहीं बना सकते हैं ! अब हम दोनों साथ भी और आजाद भी ! अब तो तुम खुश हो न ? मैं भी खुश, तुम भी खुश ! फिर किस बात का झगड़ा ?"

यह कहकर मेरे होठों पर हल्की-सी हँसी आ गई । लेकिन मंजरी अभी भी शांत और गंभीर मुद्रा मे बैठी थी । हमारे सामने कुछ ही दूरी पर डांस चल रहा था । मैंने मंजरी का हाथ पकड़कर उसको उठाते हुए कहा -

"डोंट वरी डार्लिंग ! अब तुम आजाद हो ! तितली की माफिक मस्त रहो ! चलो मस्ती के इस मौसम में घुल-मिलकर थोड़ा-सा डांस कर लेते हैं !"

मंजरी उठकर चुपचाप मेरे साथ चल दी और डीजे पर जाकर मेरे साथ डांस करने लगी । थोड़ी देर बाद मैंने कोल्ड ड्रिंक में मिलाकर उसको थोड़ी-सी शराब पिला दी । शराब पीकर वह डांस करते-करते मस्ती में इतना डूब गई कि अपनी असली जिंदगी की पिछली सब बातें भूलकर केवल अपने वर्तमान को पूरी तरह एंजॉय करने लगी । पार्टी खत्म होते-होते रात के दो बज गए थे । मैंने ही रात को अपनी गाड़ी से उसको उसके फ्लैट पर छोड़ा । उसके बाद मैं अपने घर गया ।

अगले दिन जब मैं अपने केबिन में जा रहा था, मेरी नजर अपने केबिन में बैठी हुई मंजरी पर पड़ी । मैंनै देखा था कि वह पहली बार बहुत ही सादे लिबास में ऑफिस में आयी थी । उसके चेहरे पर मेकअप भी नहीं था । लेकिन उसके चेहरे पर संतोष और आँखों में चमक थी । उसको इतना शान्त चित्त मैंने पहले कभी नहीं देखा था । मैं अपने केबिन में जाकर बैठ गया । तभी मंजरी मेरे केबिन में आई और बोली -

"थैंक्यू चंदन ! कल रात मेरा साथ देने के लिए ! काश तुम मुझे यह सब हमारी शादी शुदा जिंदगी में दे पाते, तो मैं खुद को ज्यादा खुशनसीब महसूस कर पाती ! लेकिन अफसोस कि तुम पुरुष लोग सिर्फ उस लड़की के लिए दुम हिलाते हो, जिस पर तुम्हारा कंट्रोल नहीं होता !"

मंजरी की बात सुनकर मुझे हँसी आ गई । मैंने कहा -

"मंजरी मैडम ! कोई पुरुष तुम्हारे साथ जरा-सी इज्जत से, जरा से प्यार से पेश आ जाए और अपनी सामर्थ्य-भर तुम्हारी सहायता करने के लिए तैयार हो जाए, तो तुम लड़कियाँ उसके गले में पट्टा डाल लेती हो ! फिर तुम हीं पर नहीं रुकतीं, तुम उस पट्टे को इतना कस देती हो कि बन्दे का साँस लेना दूभर हो जाता है ! अब आगे उस पुरष पर डिपेंड करता है कि वह तुम्हारे पट्टे को कब तक अपने गले में रखे ? जब पुरुष के गले पर पट्टा कसता है और उसका दम घुँटता है, तो वह उससे मुक्त होने के लिए छटपटाता है । आगे उस पुरुष की सामर्थ्य पर डिपेंड करता है कि उसमें उस पट्टे को तोड़ने की सामर्थ्य है ? या नहीं ? जिसयें पट्टे को खोलने या तोड़ने की सामर्थ्य होती है, वह अपनी आजादी दोबारा पा लेता है ! जैसे मैंने पा ली है !"

मेरी बातों को सुनकर मंजरी थोड़े विश्वास और थोड़े अविश्वास से मेरी ओर एकटक घूरकर देखने लगी थी । उसकी आँखों में मेरे लिए थोड़ा-सा भरोसा देखकर मैंने उसको आश्वस्त करते हुए कहा -

मंजरी, मैं तुम्हें अभी भी यह भरोसा जरूर दे सकता हूँ कि कल रात की तरह तुम्हें जब भी, जहाँ भी मेरी जरूरत होगी, तुम मेरा साथ और मेरा हाथ हमेशा अपनी ओर बढ़ा पाओगी !"

"हूँ !" मंजरी ने अनमने ढंग से कहा । मैंने उससे पूछा -

"तुम्हारे जवाब से तुम खुश नहीं दीख रही ! क्यों ?"

"चंदन ! कोई भी सामान्य लड़की खुश रहने के लिए अपनी जिन्दगी में एक प्यार करने वाला पति चाहती है ! जोकि मेरे पास नहीं है !"

"मतलब तुम अभी भी अपनी स्थिति में संतुष्ट नहीं हो ? लेकिन रात भी और अभी भी तुम संतुष्ट और काफी खुश लग रही थी !"

"इसके अलावा मेरे पास कोई ऑप्शन भी तो नहीं है !"

"मंजरी ! ईश्वर ने जितना दिया है, उसी में मजे के साथ जीना सीखो और चिल्ल करो !"

"हाँ, ठीक कह रहे हो तुम ! इसके अतिरिक्त हम कुछ कर भी नहीं सकते !"

यह कहते हुए मंजरी मेरे केबिन से जाने के लिए उठकर खड़ी हो गयी ।

क्रमश..