मुकम्मल मोहब्बत -15 Abha Yadav द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

मुकम्मल मोहब्बत -15



मुकम्मल मोहब्बत -15

"आखिर एक दिन ममा को मानना ही पड़ा कि जाति-बिरादरी से भी ऊँची कोई चीज होती है.वह है-किसी की जान बचा ले जाना अपनी जान की परवाह किए बगैर. किसी की मुसीबत को अपने सीने पर झेल जाना.बिना किसी रिश्ते के,बिना किसी लालच के.दूसरों के दुख को अपना दुख समझना. दूसरों की खुशी को अपनी खुशी. रोते हुए चेहरे पर मुस्कुराहट लाकर खुद मुस्कुराना...."


"तुमने ममा को बताया होगा कि बादल ने कैसे जेवलिन का बार अपनी हथेली पर सहकर तुम्हें बचाया."

"उस दिन मेरी स्कर्ट में लगा खून देखकर ममा बहुत डर गई थीं. उन्हें लगा यह मेरे शरीर से निकला खून है. लेकिन, जब मैंने ममा को सारी बात बतायी तो ममा का मुँह खुला रह गया.-आँखें गीली हो गईं. मुझे यह देखकर बहुत अच्छा लगा.ममा की आँखों में आँसू थे ,वह भी बादल शिल्पकार के लिए. और पता है, डियर, स्वीट!...."


"क्या, मैंने नजरें उठाकर उसकी ओर देखा.


"अगले दिन ममा कालेज गईं. छोट़ा सा गोल्ड का हाय वाला लॉकेट लेकर."फिर रूककर बोली-"तुम जानते हो हाय क्या होता है."


मैंने अस्वीकृति में सिर हिला दिया.


"गोल्ड या सिल्वर का गोल लॉकेट होता है. उस पर हाय लिखा होता है. वह जिसे पहना दो उस पर किसी की हाय नहीं पड़ती. बुरी नजर से बचा रहता है वह.ममा ने बादल को अपने हाथों से लॉकेट पहनाकर उसकी बलायें लीं. उन्होंने नहीं सोचा कि बादल शिल्पकार है और वह गौड़ ब्राह्मण..."


"बादल के गले में हाय पड़ने से तुम्हें बहुत खुशी हुई होगी कि बादल अब बुरी नजर से महफूज है."



"अरे,बुध्दू, बादल ऐंजल है .ऐंजल को महफूज रहने के लिए किसी लॉकेट की जरूरत नहीं होती. वह तो सबका अच्छा करता है. उस पर कौन बुरी नजर डालेगा. उसे तो बस सबकी दुआओं महफूज रखती हैं. लोगों की दुआएं ही उसका लॉकेट हैं."कहकर उसने गहरी सांस ली.


फिर धीरे-धीरे बोली-"हां,मुझे इस बात की खुशी थी कि ममा के मन से छोटी जाति के प्रति मन से घृणा निकल गई थी.वह समझ गई थीं-जो अच्छा काम करे वही ऊँचा है.ऊँची जाति में पैदा होने से कोई महान नहीं बन जाता और नीची जाति में पैदा होने से कोई नीचा नहीं रह जाता. हमारे देश मेंं छोटे लोग भी महान कार्य करके गये. पुराने समय की बात करें तो बाल्मीकी ने रामायण लिखी, जिसे सभी पूजते हैं. आज के जमाने की बात करें तो बाबा अम्बेडकर भारत का संविधान ही लिख गये. इंसान अपने कर्म से छोट़ा -बड़ा बनता है. जाति से नहीं... क्यों, डियर, स्वीट.मैंने सही कहा न!"


मैंने हाथ रोककर सहमति जताई -"मधुलिका ,मैं तुम्हारी बात से सहमत हूँ. कर्म से इंसान छोट़ा -बड़ा बनता है."

"ममा भी यह बात मान गई थीं.फिर कभी उन्होंने बादल से बात करने के लिए मुझे मना नहीं किया. लेकिन.....'"कहते-कहते वह रूकी.और उदास होकर उसने अपना चेहरा अपनी हथेलियों से ढ़क लिया. शायद अपनी आँखों की नमी छुपाने का प्रयत्न कर रही थी.



मैं खामोशी से उसके नार्मल होने का इंतजार करने लगा.साथ ही सोच रहा था-एक बालमन को जाति, पैसा, रूप रंग, ओहदा से क्या सरोकार है.साथियों में जो अच्छा लगा दोस्त बना लिया. जिसका टिफिन अच्छा लगा शेयर कर लिया. दोस्त ने गिफ्ट दी अमूल्य बन गई.


मधुलिका ने धीरे से अपने चेहरे को हथेलियों से अलग किया. लेकिन, चेहरे की उदासी न मिटा पायी.उसकी आँखों का गीला पन साफ दिखाई दे रहा था. उसने गहरी सांस ली-"तुम तो रायटर हो .समझ सकते हो. बताओ जरा-चाहतें रूल्स की गुलाम होती हैं क्या?चाहत की कोई सीमा रेखा नहीं होती कि हम उसके अंदर रहकर अपने प्यार को,अपनी दोस्ती को ,अपनी चाहत को निभायें."कहते हुए मधुलिका का स्वर बहुत तीव्र हो गया.


मैं थोड़ा सा घबरा गया .इससे पहले मैंने उसको इतना उग्र नहीं देखा था.टाईप करते हुए मेरे हाथ रूक गये थे.



"लेकिन, ममा ने रूल्स बना दिए थे -बादल को लेकर. मैं उससे कालेज में मिल सकती थी लेकिन अपनी बर्थडे पर घर नहीं बुला सकती थी. ममा को डर था कि रिश्तेदार यह पंसद नहीं करेंगे."उसने रूक कर मेरे चेहरे को गौर से देखा .फिर धीरे से बोली-"बादल के बगैर में अपनी बर्थडे कैसे मना सकती थी.बादल मेरा सबसे अच्छा दोस्त है. जब पार्टी में दोस्त ही नहीं तो पार्टी कैसी. बादल के बगैर में बर्थडे नहीं मना सकती थी. मैंने बर्थडे मनाना ही छोड़ दिया. दोस्ती के बिना बर्थडे कैसी."कहकर उसने एक हल्की सी हिचकी ली.


"ओह!"मेरे होंठों से आह निकल गई. मैं मधुलिका के अंदर के दर्द को महसूस कर रहा था. वह बुत बनी बैठी थी.जैसे उसकी दिल की धड़कनें रुक गई हो.


गहरी सांस लेकर मैंने लैपटॉप बंद किया और वोट किनारे की ओर ले चला.


क्रमशः