बात बस इतनी सी थी - 32 Dr kavita Tyagi द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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बात बस इतनी सी थी - 32

बात बस इतनी सी थी

32.

पूरा एक महीना बीतने के बाद जब मैं लखनऊ से लौटकर पटना के ऑफिस पहुँचा, तब मैंने मेरा स्वागत करने के लिए मंजरी सहित मेरे कई सहकर्मियों को हाथों में फूल मालाएँ और बुके लेकर मेन गेट पर एक साथ खड़े पाया । यूँ तो अबसे पहले भी मैं एक-एक दो-दो महीने के लिए कंपनी की ओर से आउट ऑफ स्टेशन जाता रहता था, लेकिन मेरा ऐसा स्वागत पहली बार हो रहा था । मेरा अनुमान था कि यह सब मंजरी के कहने पर हुआ था । शायद उसने मुझे इस दौरान काफी मिस किया था और उसका यह पूरा महीना मेरा इंतजार करने में बीता था ।

पिछले एक महीने से या कहूँ कि महीने के दूसरे सप्ताह से, जब से मैंने मधुर की मोबाइल स्क्रीन पर मंजरी का फोटो देखा था, तब से मेरे लिए भी मंजरी पहले की अपेक्षा ज्यादा आकर्षक और पहले से कुछ ज्यादा कीमती चीज बन गई थी । लखनऊ से लौटने के बाद मेरा मन मंजरी में उतना ही नयापन और उतना ही आकर्षण महसूस कर रहा था, जितना कभी दिल्ली के ऑफिस की पहली मुलाकात में किया था ।

लेकिन इसके साथ ही एक कड़वा सच यह भी था कि तब मैं मंजरी के बारे में कुछ नहीं जानता था, जबकि अब मैं उसके बारे में बहुत कुछ जानता था । अब मैं जानता था कि मंजरी नाम का वह सुगंधित चमकीला फूल, जो चारों ओर वातावरण में अपनी खुशबू बिखेरकर सबको अपनी तरफ आकर्षित करके अपने पास आने के लिए आमंत्रित कर रहा है, उसे छूने-भर के लिए हाथ बढ़ाने से पूरा शरीर लहूलुहान हो जाएगा । मैं मंजरी नाम के इस फूल को पाने की चाहत में बिन्धे उन काँटों की चुभन को अभी तक भूल नहीं पाया था, जिन्होंने केवल मुझे ही नहीं, मेरी माँ को भी लहूलुहान कर दिया था ।

फिर भी, मेरे दिलो-दिमाग पर मंजरी का नशा चढ़ रहा था और वह नशा लगातार बढ़ता ही जा रहा था । मेरा वह पूरा दिन अपने केबिन में बैठकर लैपटॉप पर नजर गड़ाए हुए मंजरी के बारे में सोचते-सोचते बीता । कई बार मैंने लैपटॉप से नजर हटाकर चोर नजरों से मंजरी की ओर देखा । मेरा अनुमान था, मंजरी की दशा भी मेरे ही जैसी हो रही होगी । लेकिन मंजरी अपने ऑफिस के काम में व्यस्त थी ।

मेरा मन ऑफिस के काम में नहीं लग रहा था, इसलिए पूरे दिन ऑफिस में रहकर भी मैं ऑफिस का कुछ काम नहीं कर सका था । अगले चार दिनों तक भी मेरी यही दशा रही । ऑफिस में हर रोज मेरी एंट्री होने के बावजूद पिछले चार दिन का मेरा काम पेंडिंग पड़ा देखकर पाँचवे दिन कंपनी के सीईओ ने मुझे अपने ऑफिस में बुलाकर पूछा -

"मिस्टर चंदन ! आपकी तबीयत कैसी है ?"

"ठीक है सर !"

"तो फिर पिछले चार दिनों का आपका काम पैंडिंग क्यों पड़ा है ? क्या आप नहीं जानते हैं कि पिछले चार दिनों में आपने कुछ भी काम नहीं किया है ?"

सीईओ ने मेरा रिपोर्ट कार्ड मेरे सामने मेज पर पटकते हुए कहा । मेरे पास उसके प्रश्न का कोई उत्तर नहीं था । मैंने कुछ नहीं बोला, चुप बैठा रहा । मुझे मौन देखकर उन्होंने दोबारा कहा -

"काम करने में मन नहीं लग रहा है, तो कुछ दिन के लिए लीव पर चले जाओ और घर में बैठकर रेस्ट करो या फिर कहीं घूम फिर आओ ! जब मूड ठीक हो जाए, तब ज्वाइन कर लीजिएगा !"

"ओके सर !"

कहकर मैं उठ खड़ा हुआ । जैसे ही मैं सीईओ के ऑफिस से बाहर निकलने के लिए दरवाजे की ओर बढ़ा, मैंने देखा कि मंजरी दरवाजे पर खड़ी हुई मेरे बाहर आने का इंतजार कर रही थी । मेरे बाहर आते ही वह अंदर चली गई और मैं अपने केबिन में आकर दोबारा काम में मन लगाने की कोशिश करने लगा मैं ।

अपनी कोशिश में सफल हो पाता, इससे पहले ही मेरी नजर मेरे केबिन के आगे से गुजरती हुई मंजरी पर जा पड़ी । मेरी आँखों के सामने से गुजरकर वह अपने केबिन में जा बैठी, लेकिन मेरे काम में लगे हुए ध्यान को उसने एक बार फिर भटका दिया था । मैं एक बार फिर अपनी काम में मन लगाने की कोशिश में विफल हो गया था ।

काम से ध्यान हटने के बाद मैं थोड़ी देर तक मंजरी को निहारता रहा और यह अनुमान लगाने की कोशिश करता रहा कि "मंजरी को सीईओ ने अपने ऑफिस में क्यों बुलाया होगा ? क्या उसका भी काम पेंडिंग चल रहा है ?"

"नहीं ! यह कैसे हो सकता है ? वह तो पूरे दिन काम में व्यस्त रहती है !" मेरे अंतर्मन ने ही मेरे प्रश्न का उत्तर दिया ।

कुछ देर बाद मंजरी अपने केबिन से उठी और मेरे केबिन में आकर मुझसे बोली -

"आपकी तबियत को क्या हो गया है ?"

"मुझे क्या होगा ? कुछ भी तो नहीं ! क्यों ? तुम्हें ऐसा क्यों लगा कि मेरी तबियत को कुछ हुआ है ?"

"सीईओ सर ने बताया कि आपकी तबीयत ठीक नहीं है !"

"नहीं, मेरी तबीयत एकदम बिल्कुल ठीक है !"

"आपको सीईओ ने अपने ऑफिस में क्यों बुलाया था ? क्या तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है ?"

"नहीं ! मुझे सीईओ सर ने नहीं बुलाया था । मैं खुद सीईओ सर के ऑफिस में कुछ दिन के लिए लीव के बारे में बात करने के लिए गई थी ।"

"कुछ दिन के लिए लीव के बारे में बात करने के लिए ? क्यों ? क्या तुम्हारी भी तबीयत ठीक नहीं है ?" मैंने आश्चर्य से पूछा ।

"तबीयत तो ठीक है !"

"फिर लीव क्यों ?"

"बस ऐसे ही काम करने का मूड नहीं है ! कुछ दिन रेस्ट करने का मूड है !"

"ओह ! यह बात है, तो जरूर लीव पर जाना चाहिए !"

मैंने मंजरी के झूठ पर चुटकी लेते हुए कहा । उसके मूड की बात पर मेरा यूँ चुटकी लेना उसको अच्छा नहीं लगा, इसलिए वह उसी क्षण मेरे केबिन से बाहर जाने को वापिस मुड़ गई । मैंने उसको बीच में टोकते हुए पूछा -

"लीव एप्लीकेशन एक्सेप्ट हुई ? या नहीं ?"

"नहीं !" मंजरी ने मेरे केबिन से बाहर जाते-जाते कहा ।

मंजरी के जाने के बाद मैं अपना टाइम पास करने के लिए अपने केबिन से उठकर प्लांट हैड अक्षय पांडे के केबिन में चला गया । पांडे के साथ मेरी अच्छी पट जाती थी । मेरे वहाँ पहुँचते ही पांडे ने मुझ पर व्यंग का भाला फेंका - "

"मेरे यार में कुछ तो बात है ! लखनऊ में बैठे-बैठे पटना में छोकरी पटा ली !" कहकर पांडे हँस पड़ा ।

"पांडे जी, आपके कहने का क्या मतलब है ? मैं समझा नहीं !"

"इतने भी भोले मत बनो ! इसमें समझने-समझाने की कौन-सी बात है ? ऑफिस का हर बंदा जानता है कि जब से तुम लखनऊ से लौटे हो, न तुमने ऑफिस का कुछ काम किया है, न तुम्हारी उस पटाखा छोकरी मंजरी ने !"

"कैसी बात करते हो पांडे जी ? मैं तुम्हारे पास कुछ गपशप करके टाइम पास करने के लिए आया था ! एक तुम हो कि मुझ पर अपने बाण बरसाने लगे !"

"अच्छा जी ! यह बताओ कि तुम ऑफिस मे टाइम पास करने के लिए आते हो ? या काम करने के लिए ? कोई आदमी ऑफिस में बेठकर टाइम पास तभी करता है, जब उसका दिल काम छोड़कर कहीं और जा लगा हो ! तुम अपने मन की जिस हालत को हम सबसे छिपाते फिरते हो, हम उसी का कच्चा चिट्ठा खोल रहे हैं, तो हमारी बातें तुम्हें बाण और भाले लग रही हैं !"

"ऐसा कुछ नहीं है, पांडे जी ! आपको कुछ गलतफहमी हो गयी है !"

"तो फिर सीईओ ने जो तुम दोनों को छुट्टी लेकर कुछ दिन घूमने फिरने और आराम करने के लिए क्यों कहा है ? उसका क्या ?"

"यह मैं कैसे बता सकता हूँ ? और किन दोनों को कहा है सीईओ ने ?"

"तुम्हें और तुम्हारी पटाखा छोकरी को !"

"वह तो कह रही थी कि वह खुद सीईओ से छुट्टी माँगने के लिए गई थी, पर छुट्टी नहीं मिली !"

"झूठ बोलती हैं ! बहुत चालाक है मैडम ! मैंने खुद सीईओ को तुम दोनों से लीव पर जाने के लिए कहते सुना है ! मैं एक-एक शब्द बता सकता हूँ, तुम दोनों से सीईओ ने क्या-क्या कहा था और तुमने उन्हें क्या जवाब दिया था !"

"चलो बताओ ! देखते हैं, तुम्हारी बात में कितनी सच्चाई है ?"

मेरे चैलेंज को एक्सेप्ट करके पांडे जी ने मेरी और मंजरी की सीईओ के साथ होने वाली बातों का ऐसा वर्णन चित्रण कर दिया जैसेकि उन्होंने सब कुछ रिकॉर्ड करके रखा था ।

पांडे जी की बातें सुनकर मुझे भरोसा हो गया था कि मंजरी ने मुझसे झूठ बोला है । सच यह था कि वह खुद सीईओ से छुट्टी माँगने के लिए नहीं गई थी । लेकिन मुझे मुझसे उसके झूठ बोलने की जानकारी होने पर भी किसी तरह का गुस्सा न आकर हल्की सी हँसी के साथ उस पर प्यार आ रहा था । मैं मेरे केबिन में आकर मंजरी के किये गये झूठे दावे के बारे मे सोचने लगा -

"मंजरी मेरे केबिन में क्यों आई थी ? क्या वह वास्तव में केवल मेरी तबीयत के बारे में खैर खबर लेने के लिए और अपने उस झूठे दावे के लिए आई थी कि उसे सीईओ ने नहीं बुलाया था, वह खुद उनके ऑफिस में छुट्टी माँगने के लिए गयी थी ? या उसके आने की कोई और वजह थी ? "

मेरे इस प्रश्न का उत्तर मेरे पास पहले से ही मौजूद था और वह उत्तर यह था कि मंजरी की हालत भी बिल्कुल मेरे जैसी थी । जैसे ऑफिस के काम में मेरा मन नहीं लग रहा था, वैसे ही उसका मन भी ऑफिस के काम में नहीं लग रहा था । जैसे मैं अपने केबिन में बैठा हुआ अपने सामने लैपटॉप रखकर चोर नजरों से उसको देखकर यह अनुमान लगाने की कोशिश करता था कि मंजरी का अपने काम में कितना मन लग रहा है ? ठीक वैसे ही मंजरी मेरे केबिन में मेरी का जायजा लेने के लिए आई थी ।

यह सब जानने समझने के बाद कि मंजरी की हालत भी बहुत कुछ मेरे जैसी ही है, मेरे मनःमस्तिष्क को कुछ तरो-ताजगी का एहसास हो रहा था । दोपहर तक का समय व्यर्थ गँवाने के बाद अब मेरा मनःमस्तिष्क अपनी नौकरी की अहमियत को समझते हुए काम की ओर प्रवृत्त होने लगा था ।

आधा दिन काम करने के बाद जब शाम को हम अपने -अपने केबिन से बाहर आए, तब हम दोनों के होठों पर उज्जवल मुस्कान नाच रही थी । तीन महीने हम दोनों के इसी तरह बीत गए । इस दौरान हम दोनों में न तो इतनी कड़वाहट बढ़ी कि एक दूसरे की शक्ल देखते ही हम में से कोई एक अपना रास्ता बदलने को मजबूर हो जाए ! न किसी प्रकार की कोई नोक-झोंक हुई और न ही अन्य किसी तरह का कोई मतभेद हुआ । न ही हम दोनों में इतनी घनिष्ठता बढ़ी कि कहीं जाकर साथ-साथ चाय कॉफी पीएँ या लंच डिनर एक साथ करें !

क्रमश..