उन दोनों को वहां देख मैंने अम्बे मां को मन ही मन धन्यवाद दिया,और उनको बचाने के विषय मे सोचने लगी।मैं किडनैपर के बारे में कुछ नही जानती थी कौन है,कहाँ से है।उसने क्यों इन दोनों को किडनैप किया है।वही उस समय मेरे मन मे बहुत सी उलझने चल रही थी। डर भी लग रहा था मुझे।लेकिन बस इंसानियत की खातिर हिम्मत कर वहां रुकी हुई थी।हॉस्टल के नियम कायदे उस समय मेरे दिमाग से निकल चुके थे बस याद था तो केवल उन दोनों की मदद कर किसी तरह उनको बचाना।मैने चारो ओर चौकन्नी दृष्टि से देखा।उनके आसपास कोई नही था।ये देख मेरे मन मे शक आ गया ऐसा कैसे हो सकता है कि किडनैपिंग हो और वहां कोई हो नही।कुछ तो गड़बड़ है।ऐसा सोच मैं दीवारों पर चारो ओर देखने लगती हूं तो मुझे वहां एक कैमरे जैसा कुछ दिखाई दे जाता है और मैं उन दोनों को अकेले छोड़ने का कारण समझ जाती हूँ।
अब मैं क्या करूँ कैसे मदद करू इनकी।कुछ क्षण सोचने लगती हूँ।और फिर अंदर जाने का निर्णय लेती हूं।खिड़की की मदद से मैं अंदर घुस जाती हूँ।और चोरी चुपके पहले कोई ऐसी चीज़ ढूंढने लगती हूँ जो मुसीबत के समय हथियार का काम कर सके।बहुत ढूंढने पर मुझे एक कौने में कई सारे धारदार हथियार और कुछ बंदूके रखी मिली।मैं देख कर समझ गयी ये इन सबके ही होंगे।तभी खिड़की के पास मुझे कुछ आहट सुनाई दी।मैं आहट सुन डर जाती हूँ और फौरन छिपने की जगह ढूंढने लगती हूँ।पास ही में टेबल रखी होती है सो टेबल के नीचे ही छुप कर बैठ जाती हूँ।धड़कने तो मेरी ऊपर नीचे हो जाती है।मन मे भय डेरा जमा लेता है बस निरंतर माता रानी को याद कर रही होती हूँ।टेबल से निकल एक नज़र खिड़की की तरफ देखती हूँ तो अमर को वहां ताकाझांकी करते हुए पाती हूँ।ये देख एक गहरी सांस लेती हूं और बाहर निकल अमर के पास पहुंचती हूँ।
तुम यहाँ कैसे पहुंचे अमर?
तुम्हारा पीछा करते हुए।🙂।और कैसे!!
अब जब आ ही गए हो तो अंदर आ जाओ जल्दी से।किसी ने देख लिया तो हम दोनों मुसीबत में पड़ जाएंगे।मैं अमर का हाथ पकड़ उसे अंदर बुलाते हुए कहती हूँ।उस समय अमर को वहां देख मुझे जो खुशी मिली उसे बयां नही कर सकती।क्योंकि डूबते हुए को तिनके का सहारा बहुत होता है और जिस जगह मैं थी उस समय अमर का वहां होना मेरे लिए सुकून देने वाला था।मेरे फेस पर स्माइल आ जाती है और हम दोनों ही खिड़की से हट एक पर्दे के पीछे खड़े हो जाते हैं।
अमर हमे सतर्क रहना पड़ेगा क्योंकि वहां पर जहां वो दोनों बंधक है वहां कैमरा लगा हुआ है।अभी तक तो मुझे ये भी नही पता कि यहां हो क्या रहा है इतनी सजावट क्यों है यहां।
कोई बात नही निया।।अब एक काम करते हैं तुम यहाँ नज़र रखना और यहां से कहीं जाना नही।मैं सबसे पहले ये कैमरे को हटा कर आता हूँ।यहां से नही बल्कि वहां से जहां इसका कनेक्शन है।समझ रही हो मैं क्या कह रहा हूँ।
मैं समझ गयी अमर।।मुझे यहां इन दोनो को देखना है ताकि तुम सबसे पहले कैमरा हटाओ जिससे मैं मौके का फायदा उठा इन दोनों को यहां से निकाल ले जाऊं।
गुड।।समझदार हो।।ठीक है मैं जा रहा हूँ।और हां तुम इस कैमरे की रेंज से बाहर ही रहना।।और मैंने पोलिस को फोन कर दिया है।लेकिन प्रॉब्लम यही है कि रात का समय है और ये एरिया कौन सी है मुझे इस बारे में जानकारी नही है।बस इतना पता है कि राजस्थान की सीमा पर स्थित है ये गांव क्योंकि ऑटो से आते समय मैंने बोर्ड पर लिखा देखा था,राजस्थान राज्य की सीमा प्रारम्भ। लेकिन तुम घबराना नही हिम्मत से काम लेना!! ठीक है।
ओके।।कह मैं मुस्कुरा देती हूं जिसे देख अमर के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है।मैं उसे थम्ब दिखा आल द बेस्ट कहती हूँ।अमर छिपते छिपाते अंदर चला जाता है।मैं वही खड़े होकर चारो ओर दृष्टि रखने लगती हूँ।कुछ ही घड़ी बीत पाई होती है कि कदमो की आहट आने लगती है मैं वही साइड से खड़ी हो जाती हूँ।कुछ लोग अंदर कमरे से निकल कर उन दोनों की ही तरफ जाते हैं।और लड़की से कहते है श्रद्धा, म्हारी लाडो तुम चलो अंदर तैयार हो जाओ।श्रद्धा जिसकी कजरारी आंखों में लाचारी और डर साफ दिखाई देता है उस व्यक्ति से कहती है नही चाचाजी,मैं ये ब्याह नही करूँगी।आप तो समझिए इस बात को। बापू सा से ज्यादा मैं आपकी गोद मे खेल कर बड़ी हुई हूँ।उनसे ज्यादा आप मुझे जानते हैं।प्लीज चाचाजी, यूँ आप सब बड़े अपना फैसला हम पर मत थोपिए। श्रद्धा की आंखों से आंसू निकल रहे है वो विनती करती हुई वहां मौजूद उसके चाचा से हिम्मत जुटा कर बोल रही होती है क्योंकि डर उसके चेहरे पर साफ देखा जा सकता है।हाथ पैर उसके कांप रहे होते हैं।लेकिन न जाने किसकी प्रेरणा से वो बोले जा रही थी।
रे छोरी, इस घर मे ब्याह के मामलों में लड़कियों से नही पूछा जाता।थारी बड़ी बहन की शादी तो था ने अपणी आँखों से देखी थी न।न ही उससे पूछा गया और न ही उसने कभी व्याह से पहिले अपणे पति सों बात करी।लेकिन था ने तो अपणी पसंद भी खुद ही चुन ली वो भी गैर बिरादरी में।रे छोरी अपने बापू सा को तो तू जानत है समझत है, वो था कि जाण लेण से पहिले सोचेंगे भी नही।ये हमारे समाज की परंपरा के खिलाफ है।तू मेरी बात तो समझ।अपणे नही ई छोरे के बारे में सोच।
उनकी बातों से मुझे इतना तो समझ आ गया कि वहां एक नारी इस समाज के खोखले नियमो की भेंट चढ़ने जा रही थी।उनकी बातें सुन कर मुझे उस लड़की की जगह खुद का अक्स दिखाई देने लगा।क्योंकि बचपन से ही मुझे भी समाज के इन्ही नियम कायदों की जंजीरों में जकड़ कर रखा गया।उस लड़की की हिम्मत देख मेरी आँखों मे भी चमक आ गयी।
बस अब एक ही धुन सी सवार हो गयी थी मुझ पर किसी भी तरह उस लड़की को इस शादी से बचाना है।
उसके चाचा साथ के आयी हुई औरतों से इशारा करते है उसे अंदर ले जा कर तैयार करने के लिए।
श्रद्धा,हाथ पैर पटक भरपूर कोशिश करती है उनके साथ न जाने की।लेकिन सफल नही हो पाती!! महिलाएं उसे जबरदस्ती खींच कर अंदर कमरे में ले जाती है।उसके साथ जो लड़का होता है वो भी बहुत मिन्नते करता है ऐसा अनर्थ न करने के लिए लेकिन वो सभी उसकी बातों को अनसुना कर वहां से चले जाते हैं।मेरी आँखों मे उन दोनो का रोना देख कर आंसू आ जाते हैं। जब सभी लोग वहां से चले जाते है तो मैं भी उस लड़के के पास पहुंच जाती हूँ।और उसे छुड़ा कर उससे सारी बात पूछती हूँ।
मेरा नाम दीपराज है और मैं आगरा से हूं।ये लड़की जिसे ये लोग अभी यहां से लेकर गए थे वो श्रद्धा है।श्रद्धा और मैं एक दूसरे से बेइंतहा मोहब्बत करते हैं
हमारी मुलाकात कॉलेज में हुई।पहले दोस्ती और फिर प्यार हो गया।।मैं अलग जाति से हूं और वो अलग जाति से!! जिस वजह से उसके परिवार वाले हमे एक नही होने दे रहे हैं।तथा यहां उसकी शादी उसकी मर्जी के खिलाफ कर दे रहे हैं।उसके पिताजी पुराने ख्यालातों के है उस पर इस गांव में उनका दबदबा भी है।और तो और वो गांव के मुखिया पद पर भी है।
मैं - तो आप दोनों फतेहपुर सीकरी क्या करने गए थे!!और वहां झगड़ क्यों रहे थे?
दीप - सॉरी हमारे मिसबिहेव के लिए।।हम दोनों ने वहां से भाग कर शादी करने का प्लान बनाया था।और हमारे जो दोस्त हमारा साथ दे रहे थे उनसे संपर्क ही नही हो पा रहा था।जिस कारण हम दोनों फोन में व्यस्त हो गए थे औऱ झगड़ा शुरू हो गया..!!
प्लीज़ आप हमारी हेल्प कीजिये न।इस शादी को रोक लीजिये।।प्लीज़ दीदी आप कुछ कीजिये न। दीप अपने दोनों हाथ जोड़ कर मुझसे मिन्नते करने लगता है।उसकी हालत ऐसी हो गयी थी जैसे कोई तेजवान लड़का यकायक बीमारी से ग्रसित हो अपना तेज खो चुका हो।एक पल में ही उसने मुझसे नाता जोड़ लिया।उसकी हालत मुझसे देखी ही नही जा रही थी।।आंखों में आंसू,चेहरा एकदम निस्तेज, आंखे बेनूर, हाथ पैर बेजान जैसे धीरे धीरे उसकी जान शरीर का साथ छोड़ रही हो।कोई किसी से इतनी मोहब्बत कैसे कर सकता है कि अपने साथी के दूर होने पर ये जीवन ही नीरस हो सांसे साथ छोड़ने लगे।मैं उसे सांत्वना देती हूं तथा उससे हिम्मत रखने को कहती हूँ।मुझे समझ नही आ रहा होता क्या करूँ कैसे इन परिस्थितयो से बाहर निकल सब ठीक करूँ
मैं - दीप!!भाई!! आप यहीं रुकिए मैं अंदर श्रद्धा के पास जाती हू तथा मौका देख उसे वहां से निकालने की कोशिश करती हूं।
दीप हाथ जोड़ लेता है और जैसे तैसे मुस्कुरा कर धन्यवाद दीदी कहता है।मैं वहां से अंदर के कमरों की तरफ चली जाती हूँ।ताकाझांकी करते,छिपते छिपाते मैं श्रद्धा के पास पहुंच जाती हूँ।उसके पास कमरे में कई महिलाएं होती है। जिनमे से एक मुझे कमरे में झांकते हुए देख लेती है।मैं फौरन छिपने की कोशिश करने लगती हूँ।लेकिन छिप नही पाती।वो मेरे पास आ जाती है और अपनी ही भाषा मे सवाल करने लगती है।मुझे बातें बनाना तो आता नही था सो मैं उससे कुछ नही कह पाती।वो शायद श्रद्धा की मां होती है, जो मेरी ख़ामोशी में छुपे शब्दो को समझ गयी।।
देख छोरी तुम यहाँ इस कमरे तक आ गयी हो तो मतलब तुम्हे अब तक किसी ने नही देखा घर मे।अपनी भलाई समझ और यहां से चुपचाप चली जाओ इस घर मे इंसान नही रहते हैं, पशु है बिन बुद्धि के।थारी भलाई के लिए कह रहयी हूँ, जाओ यहां से।
उनकी आंखों में बेबसी और,मजबूरी साफ दिख रहयी थी।आंखों के आंसू और लड़खड़ाती हुई जुबान से निकले शबद एक मां की इस विवाह के प्रति अनिच्छा साफ जाहिर कर रहे थे लेकिन पति की आज्ञा पालन के संस्कार उनके हाथ मे बेड़ियों की तरह जकड़े थे जिन्हें वो चाह कर भी नही तोड़ पा रही थी।
मैं वहां से निकल आयी और कोई और तरीका सोचने लगी।लेकिन कुछ नही सूझा तो मैं वापस हॉल की तरफ आने लगी रास्ते मे मेरी नज़र दूल्हे के कमरे पर पड़ती है।दूल्हे की कदकाठी देख मेरा न चलने वाला दिमाग भी दौड़ने लगता है और एक प्लान मेरे दिमाग में आता है मैं फौरन हॉल की तरफ जाती हूँ जहां मौजूद अमर मेरा इंतज़ार कर रहा होता है...
मैं दीप और अमर के पास पहुंचती हूँ।और अमर को अपने आइडिया के बारे में बताती हूँ।जिसे सुन अमर कहता है पागल हो क्या..??
ऐसा भी कहीं होता है यार।।दूल्हा बदल दें।अरे कैसे बदलोगी ये भी तो सोचो।।हम दो और वहां इतने सारे लोग।।नही नियति हमे कुछ और सोचना पड़ेगा।
ओह हो अमर और कोई रास्ता होता तो हम लोग उसे ही अपना लेते न।ये बेढंगा ख्याल क्यों अपने मन मे लाते।
मेरी बात सुन कर अमर मेरा हाथ पकड़, मेरे हाथ के ऊपर अपना हाथ रख मेरी आँखों मे देखता है जिनमे मुझे मेरे लिए परवाह साफ दिखाई दे रही थी।नियति ये लोग बहुत खतरनाक है।रूढ़िवादी लोग है अगर हमने ऐसा कुछ किया तो इसके परिणाम निकलेंगे हम इस बारे में नही जानते।हो सकता है ये लोग हमें ही नुकसान पहुंचा दे।या फिर श्रद्धा और दीप दोनो की ही जान ले ले।तुम समझदार हो यार दिमाग से काम लो।मैं एक काम करता हूँ मैं जाकर उस लड़के से ही बात करता हूँ।उसे सारी बात बताता हूँ।अगर समझदार होगा तो मेरी बातों की गहराई को समझेगा।
अमर के इस तरह समझाने से एक अपनापन महसूस होता है मुझे और एक राहत महसूस होती है माता रानी की मेहर से इतना अच्छा दोस्त मिला है मुझे।अमर की परवाह और धैर्य देखकर अमर के प्रति मेरी भावनाएं बदलने लगती है। मैं अमर की आंखों में देखते हुए उसे थैंक्स कहती हूँ और अपना हाथ छुड़ा कर खड़ी हो जाती हूँ।
अमर को मैं दूल्हे के रूम के बारे में बता देती हूं और अमर वहां के लिए निकल जाता है।सभी इधर उधर के कार्यो में व्यस्त होते है दीपराज की तरफ किसी का ध्यान ही नही होता है।
अमर जे कमरे में जाने के दस मिनट बाद ही चिल्लाने की जोर से आवाज़ आती है।जो अमर की होती है।
मेरे ह्रदय में धक सी होती है।एक अजीब सी घबराहट और बैचेनी महसूस होने लगती है।शायद अमर को उन लोगो ने देख लिया है और शायद बंधक भी बना लिया है।मुझे कुछ समझ नही आ रहा क्या करूँ मैं।कुछ देर तो मैं बैचेनी में खुद से ही बड़बड़ाने लगती हूँ।न जाने क्या हुआ है अंदर।।जो अमर इतनी जोर से चिल्लाया।मुझे जाकर देखना चाहिए।बस अमर ठीक हो उसे कुछ नही होना चाहिए।।किसी अनिष्ट की आशंका से मेरी आँखों से आंसू टपकने लगते हैं।नही यूँ इस तरह रोने से कुछ सही नही होना अमर ने कहा था दिमाग से काम लो..
मुझे खुद को शांत करना होगा तभी मैं कोई रास्ता निकाल पाऊंगी।बुदबुदाते हुए मैं योग का सहारा ले दो तीन बार सांस अंदर बाहर करती हूं।जब मन शांत हो जाता है तब मैं कुछ सेकंड के लिए सोचती हूँ और दीप को वापस उसी जगह बांध खुद कहीं छिप जाती हूं।और चोरी चुपके बाहर क्या चल रहा है ये देखने की कोशिश करने लगती हूँ।।कमरे से कुछ लोग निकलते हैं जिनके साथ अमर होता है लेकिन वो बेहोश होता है।वो सभी आते है और अमर को भी वहीं बांध वापस कमरे में चले जाते हैं।
मैं ये देख सहम जाती हूँ और अमर के पास आकर उसे उठाने की कोशिश करने लगती हूँ लेकिन वो नही उठता।अब कोई और रास्ता नही है मेरे प्लान को फॉलो करने के अलावा।।अब जो होगा देखा जाएगा।वैसे भी उम्मीद पर तो दुनिया कायम है।यही सोच मैं दीपको अपना प्लान बताती हूँ।
दीप प्लान को एक्जिक्यूट करने के लिए तैयार हो जाता है।मैं दीप को खोल देती हूं और हम दोनों एक एक कर दूल्हे के कमरे में पहुंचते है।संयोग से उस समय सिर्फ दूल्हा अकेला होता है।उसे अकेला देख मैं मन ही मन माता रानी को धन्यवाद देती हूं।वो शीशे के सामने खड़ा हो खुद को निहार रहा होता है।और स्वयम को देख देख कर मंद मंद मुस्कुरा रहा होता है।किसी के आने की आहट जान पीछे मुड़ जब देखता है तो दीप फुर्ती से आगे बढ़ता है और दूल्हे को बेहोश कर देता है।हिचकिचाहट उसके चेहरे पर दिख रही है लेकिन कोई और रास्ता न देख मजबूरी में ऐसा कर देता है।दीप दूल्हे के गेटअप में तैयार हो जाता है और मैं वापस बाहर निकल जाती हूँ।रिवाज के अनुसार दीप ने सेहरा पहना हुआ होता है।दोनो के परिवारीजन दोनो को मंडप में ले जाते हैं और विधि विधान से शादी करा देते हैं।सब कुछ सही जा रहा होता है कि तभी न जाने कहाँ से एक बाधा आ जाती है।विवाह के बाद दूल्हे का टिका करने की भी एक रस्म होती है जिसे दीप को भी पूरा करना होगा।
अम्बे मां अब तो सारी पोल खुल जाएगी अब क्या होगा।मैं कुछ सोच कर कर पाती तभी कुछ महिलाएं आती है और दीप को पकड़ पास की ही कुर्सी पर बिठा देती हैं एवम उसका सेहरा उठा देती हैं।दीप को अचानक दूल्हे की जगह देख श्रद्धा की मां खुद को संयत नही कर पाती और उनके मुंह से निकल ही जाता है दीप तुम..
हे अम्बे मैया।।अब क्या होगा।।अमर को भी होश आ जाता है तथा वो भी मेरी तरह ही सहम जाता है।
दीप नाम सुन कर सभी दीप की तरफ देखने लगते हैं।जो सबके बीच कुर्सी पर बैठा हुआ होता है।
श्रद्धा के पिता दीप को देख गुस्से से तिलमिलाने लगते हैं।वो दीप के पास आते हैं तथा गुस्से में उसके दो चार थप्पड़ जड़ देते हैं।दीप के गालों पर ठाकुर साहब के उंगलियों के निशान उभर आते है।।ये खबर श्रद्धा के पास भी पहुंचती है और वो दौड़ती हुई सबके बीच आ जाती है।दीप पर अपने पिता को हाथ उठाते देख वो उनके पास जाती है और उनसे हाथ जोड़ दीप को छोड़ देने के लिए विनती करती है।श्रद्धा को देख उनका गुस्सा और भड़क जाता है।गुस्से में वो अपने पास मौजूद हथियार निकालते है और देखते ही देखते श्रद्धा पर वार कर देते हैं।ये सारी घटना मेरी आँखों के सामने घटित होती है जिसे देख मैं डर से खड़े खड़े कांपने लगती हूँ।डर की वजह से मैं अमर का हाथ पकड़ लेती हूं और उसके पीछे खड़ी हो जाती हूँ।एक पिता ने अपनी ही पुत्री की निर्मम हत्या कर दी इस समाज की रिवायतों के लिए।इस समाज को चलाने के लिए बनाए गए नियमो की वजह से आज एक नारी मृत्यु के घाट उतार दी गयी।ये देख श्रद्धा के पिता अब दीप पर हमला करने वाले है अमर उठता है और फुर्ती से दीप का हाथ पकड़ कुर्सी से खींच लेता है।जिससे ठाकुर साहब का वार निष्फल हो जाता है।ये देख वो गुस्से से पागल हो उठते ही और अपनी बंदूक निकाल कर अमर पर निशाना लगा देते हैं।अमर की तरफ बंदूक ताने देख मैं अंदर तक सिहर जाती हूँ।हिम्मत कर माता रानी को याद कर अमर की तरफ दौड़ पड़ती हूँ।ठाकुर साहब गोली चला देते है और मैं अमर को धक्का दे देती हूं जिसके कारण गोली मेरी बाजू पर लग जाती है और मैं चिल्लाते हुए वहीं बैठ जाती हूँ।।ठाकुर साहब का गुस्सा अभी भी शांत नही हुआ होता है वो दोबारा बंदूक ताने खड़े ही होते है कि तभी पोलिस की गाड़ी के सायरन की आवाज़ उन्हें सुनाई देती है जिस वजह से वहां मौजूद सभी व्यक्ति नौ दो ग्यारह होजाते हैं।
दीप श्रद्धा के पास जाकर बैठ जाता है उसकी आँखों से आँसू बहने लगते हैं।श्रद्धा ....प्लीज़ आंखे खोलो! देखो वादा किया था तुमने हम हमेशा साथ रहेंगे।।जीवन के सफर में कभी एक दूसरे को अकेला नही छोड़ेंगे।श्रद्धा...उसका रोना सुन सबके हृदय रो उठते है।श्रद्धा की मां उसकी बड़ी बहन,उसकी चाची और घर की अन्य महिलाएं भी करुण विलाप करने लगती है।
इस घटना का मुझ पर गहरा असर पड़ता है।कहीं न कहीं इस घटना के लिए मैं स्वयं को दोषी समझती हूं।और अमर से कहती हूं...काश मैं आपकी बात मान लेती तो शायद श्रद्धा दीप से दूर नही होती!!वहीं अमर इन सब बातों पर ध्यान नही देता।मुझसे चुप रहने के लिये कहता है।पोलिस वहां आ जाती है सारी आवश्यक कार्यवाही कर श्रद्धा की बॉडी को हिरासत में ले पोस्टमार्टम के लिए भेज देती है।वही अमर और मुझे दोनो को हॉस्पिटल पहुंचा देती है।रास्ते मे ही मुझे मूर्छा आ जाती है।जब आंख खुलती है तो खुद को हॉस्पिटल में देखती हूँ।अमर मेरे पास ही सिरहाने पर बैठा हुआ होता है।उसकी आंखें भारी भारी होती है जिन्हें देख कोई भी समझ सकता है कि अमर रात भर सोया नही है।पूरी रात उसने मेरे सिरहाने बैठ बिता दी है। वर्ष 2007 की वो रात मेरे जीवन का टर्निंग पॉइंट बन जाती है।जहां मेरे जीवन मे बहुत कुछ घटित हुआ।कुछ अच्छा तो कुछ बहुत बुरा।
अमर को देख कर मैं उसका हाथ पकड़ कर उसकी आँखों मे देख कहती हूँ
थैंक यू अमर।मेरे साथ होने के लिए। अच्छे और सच्चे दोस्त कैसे होते हैं ये मैंने तुम्हें देख बहुत अच्छे से जाना है।तुमने बिना किसी स्वार्थ के,बिना अपनी परवाह किये मेरा साथ दिया ऐसे लोग बहुत कम होते हैं इस दुनिया मे।और किस्मत से तुम मुझे मिले हो अमर।थैंक यू।।
ओह हो निया।।दोस्त भी कहती जाती हो और थैंक यू भी कहती हो।।याद रखना नो सॉरी नो थैंक्स इन फ्रेंडशिप..!! समझी।।नाउ गिव अ स्वीट स्माइल!! अमर मेरे हाथ के ऊपर अपने हाथ रखते हुए कहता है।अमर मुझे डिस्चार्ज करा मेरे रूम पर पहुंचा देता है।जहाँ वार्डन उससे कुछ नही कहती और रश्मि को बुला कर मुझे अंदर भेज देती है।तथा अमर से कहती है.....
वार्डन - अमर।।थैंक यू।बेटा!! मेरे बच्चे को सम्हालने के लिए।दीपराज मेरा ही बच्चा है।कल जो भी हुआ दीप ने मुझे सबकुछ बता दिया है।इसीलिए तुम चिंता न करना नियति से कोई कुछ नही कहेगा बाकी इस घटना को कैसे सम्हालना है वो मैं देख लुंगी।
अमर मुस्कुराते हुए हाथ जोड़ लेता है और वहां से चला जाता है।
उस रात को घटी घटना के बाद मैंने निर्णय लिया मुझे जीवन मे सामाजिक क्षेत्र में ही कुछ करना है।विशेषत ऐसी महिलाओं के लिए जो श्रद्धा की ही तरह समाज में फैली हुई इन कुरीतियों, और रिवाजो की मारी हुई है।श्रद्धा को तो मैं बचा नही पाई लेकिन उस जैसी ही अन्य महिलाओं की मदद कर शायद मेरे मन को थोड़ी शान्ति मिल सके।
अगले दिन हम सभी कोलेज के बगीचे में बैठे हुए होते है।जहां अमर सुचिता जान बूझ कर एक दूसरे से बातचीत करते हैं।मै भी वहां मौजूद होती हूं लेकिन मेरी तरफ कोई ध्यान ही नहीं देता।मै न जाने क्यूं वहां से चिढ़ कर जाने लगती हूं।न जाने क्यों मुझे उन दोनों की बातो से बुरा लगता है।
मैं वहां से उठ कर जाने लगती हूँ तो अमर कहता है कहाँ चली।।
मैं - (थोड़ा चिढ़ते हुए) क्यों बताऊं।।आप दोनों बातें कीजिये न।पूछ काहे रहे हो।क्या फर्क पड़ता है मैं यहां मौजूद रहूं न रहूं।मुझे कुछ काम है लाइब्रेरी में वो कर मैं अभी आती हूँ।
ओके।।मैं वहां से चली जाती हूँ।तथा जाकर लाइब्रेरी में बैठ जाती हूँ।ये क्या हो रहा है मेरे साथ।।उसकी अपनी लाइफ है मुझे बुरा क्यों लग रहा है।हद है यार।।
वहां से कुछ किताब इश्यू करा लेती हूं और लेकर अमर के पास पहुच जाती हूँ।जहां सुचिता अमर से कुछ डिसकस कर रही होती है और अमर हाथो के इशारों के साथ सुचिता को समझा रहा होता है।
मैं अमर के पास न जाकर एक तरफ चली जाती हूँ और बेंच पर बैठकर अमर को निहारने लगती हूँ।उसका इस तरह सुचिता हेल्प करना मुझे अच्छा लग रहा था। कुछ देर बाद जब अमर फ्री हो जाता है तो मेरी तंद्रा टूटती है।
नियति तुम वहां क्या कर रही हो।यहां आओ हमारे पास बैठो।अमर मेरी ओर देख मुझे अपने पास बुलाते हुए कहता है।मैं भी मुस्कुराते हुए अमर के पास पहुंचती हूँ।
निया तुम ये बताओ तुम किस फंक्शन में पार्टिसिपेट करोगी।अब डांसर हो कमाल की तो रंगारंग प्रस्तुति तो दोगी ही न।
हां मजबूरी का नाम निया का पार्टिसिपेट करना।।अगर ये न भी कर देगी तो लेक्चरर की फेवरेट जो ठहरी।वो अवश्य इसकी एक प्रस्तुति रखेंगे।सुचिता हंसते लेकिन मुंह बनाते हुए मेरी तरफ देख कर कहती है।
हम्म ये तो सही कहा सुचिता।कॉलेज के फंक्शन और निया का कोई प्रोग्राम न हो असम्भव लगता है।
अमर की इस बात पर मैं मुस्कुराए बिना नही रह पाती।मुझे याद आता है कि मुझे कुछ ngo से संपर्क भी करना है।अमर सुचिता मुझे किसी काम से थोड़ा जल्दी निकलना है आज रश्मि से कह देना मेरा इंतज़ार न करे प्लीज़।।
ओके निया।।मैं बोल दूंगा।
मैं अमर और सुचिता को बाय कह वहां से निकल जाती हूँ।
कॉलेज के गेट से बाहर निकल अपने बैग में सम्हाल कर रखा हुआ ngo लिस्ट को निकाल लेती हूं और ई रिक्शा कर एक ngo के अड्रेस पर पहुंचती हूँ।जो शहर में ही स्थित होता है।दरवाजे पर ही लिखा होता है सुस्वागतम... एक नेम प्लेट लगा होता है जिस पर ngo का नाम लिखा होता है।मैं दरवाजे से अंदर जाती हूँ।एक छोटे से कमरे को ऑफिस की तरह इस्तेमाल किया जाता है एक महिला मुझे दरवाजे से थोड़ा आगे बैठी हुई दिखती है जो मुझे ऑफिस के अंदर पहुंचा देती है।मैं जाकर वहीं एक चेयर पर बैठ कर नगों के मालिक का इंतज़ार करने लगती हूँ।जो एक प्रौढ़ उम्र की महिला होती है।महिला और मैं कुछ देर बैठ कर बातचीत करते हैं।महिला मुझे अंदर लेकर जाती है जहां कुछ अपाहिज लोग आश्रित होकर रह रहे होते हैं।उस महिला के कार्य से मैं प्रभावित होती हूँ और ngo से जुड़ जाती हूँ।उनसे बातचीत कर मैं वहां से वापस आ जाती हूँ।और अपनी कोचिंग पहुंचती हूँ।वहां पर बाकी स्टाफ मेरा हालचाल पूछते हैं।सबसे बात कर मैं अपनी क्लास में चली जाती हूँ।जहां मैं देखती हूँ अमर भी मौजूद रहता है।अमर के साथ साथ सुचिता भी होती है।मुझे अपनी आंखों पर यकीन नही होता तो मैं आंखे मल दोबारा देखती हूँ।लेकिन अमर वहां मौजूद होता है मेरी क्लास में। मैं मुस्कुरा देती हूं और क्लास कंटीन्यू करने लगती हूँ।
इसिहास के कुछ प्रश्न पूछती हूँ बताती हूँ।कुछ टॉपिक्स क्लियर करती हूं।कुछ ही देर में क्लास खत्म हो जाती है।मैं बाहर स्टाफ रूम में जाकर बैठ जाती हूँ।तथा अमर के बारे में सोचने लगती हूँ।अमर ऐसे कैसे किसी भी क्लास में बैठ सकता है।हो न हो उसका इस कोचिंग से कोई न कोई रिलेशन जरूर है तभी वो यहां बार बार आ जाता है और क्लास में भी बैठ जाता है।कोई उसे रोकता टोकता भी नही।ये सब बातें मैं सोच ही रही होती हूँ कि तभी एक कलीग की आवाज़ मेरे कानों में पड़ती है मिस आपकी क्लास है आप जाइये अटेंड करने।।जी...जाती हूँ कह मैं उठ कर अपनी क्लास में चली जाती हूँ।वहां भी अमर मौजूद होता है।एक तरफ तो उसे देख मन को खुशी मिलती है वहीं दूसरी तरफ सुचिता के यूँ हर जगह उसके साथ होने से मुझे चिढ़न भी होती है।ये सुचिता भी न हर पल गोंद की तरह ही चिपकी रहती है अमर के साथ।कभी उसे अकेला ही नही छोड़ती।क्यों चिपकती है वो इतना।।उसे और कोई काम धंधा नही है क्या।मन ही मन सोच रही होती हूँ।और बोर्ड पर हिस्ट्री के प्रश्न लिख उनके जवाब देने को कहती हूँ।
क्लास खत्म हो जाती है मैं क्लासरूम से बाहर आ स्टाफ रूम से अपना बैग उठा रूम पर जाने के लिए निकल आती हूँ।अमर सुचिता भी बाहर ही खड़े होते हैं। मैं उन्हें इग्नोर कर ऑटो पकड़ रूम के लिए निकल जाती हूँ।अगले दिन कॉलेज में केज फंक्शन के लिए नामांकन होते है जिनमे मेरा फॉर्म तो मेरी डांस टीचर खुद ही भर देती है और मुझे बता देती है।
सुचिता तिरछी मुस्कान के साथ अमर की ओर देख कहती है देखा अमर कहा था न।निया को तो परफॉर्म करना ही होगा।अब इतनी अच्छी डांसर जो ठहरी।टीचर्स ने तो इससे पूछा भी नही कि इसे परफॉर्म करना भी है या नही।बस इसे बता दिया कि इसका फॉर्म भर दिया गया है यानी रंगारंग कार्यक्रम में इसका नाम लिख दिया गया है।
हम्म सुचिता।चलो कोई नही।अब हम लोग भी अपने अपने नाम लिखवा दे।भई मुझे भी रंगारंग कार्यक्रम में एक प्रस्तुति रखनी है अमर तुम्हारे साथ! कैसा रहेगा
हमारी बॉन्डिंग भी तो कितनी अच्छी है।खूब जमेगी मेरी तुम्हारी क्या कहते हो इस बारे में।
ओह नो।ये फिर शुरू हो गयी।।मन तो कर रहा है अभी इसकी आंखों पर पट्टी बांध दूँ।इसे सिर्फ अमर ही दिखता है और कोई नही।पूरे कॉलेज के लड़के क्या अदृश्य हो गए है जो इसे दिखते ही नही जब देखो अमर अमर अमर के नाम की माला जपती रहती है।अमर ये,अमर वो,अमर ऐसा है,अमर वहां चले।।मुझे तो लग रहा है ये अमर को पसंद करने लगी है।तभी तो हर समय उससे आस पास रहने की कोशिश करती है।
क... क...क्या कहा अभी मैंने खुद से पसंद...मतलब सुचिता अमर को पसंद..।नही नही ये योग सीर्फ अच्छे दोस्त ही है।मैं कुछ ज्यादा ही सोचने लगी हूँ यहां आगरा आकर।।कुछ भी सोच लेती हूं....ऐसा कुछ होता तो हम दोस्तो को पता होता न।सबको नही लेकिन मुझे और रश्मि को तो पता ही होता।
सब डिसाइड कर लेते हैं।अक्षत वाद विवाद में और मैं हिस्ट्री चर्चा में अपना नाम लिखाते है।सुचिता अमर,रंगारंग कार्यक्रम में भाग लेते हैं।आशीष इन सबसे दूर ही रहता है।रश्मि गायकी में हाथ आजमाती है।सबके नामांकन फॉर्म फिल हो जाते हैं।वही कॉलेज में ड्रामा भी हो रहे होते हैं।हम सभी दोस्त मिल कर खुद का एक प्ले रखते हैं जो कि इतिहास से ही संबंधित एक लव स्टोरी बेस्ड होता है।
हम सभी तैयारियों में रम जाते है क्योंकि ज्यादा दिन नही बचे होते हैं।सो सभी फंक्शन की अच्छे से तैयारियां करते हैं।कॉलेज फंक्शन शुरू हो जाते हैं।सबसे पहले वाद विवाद होता है।जिसमे अक्षत भाग लेता है।
उसका टॉपिक होता है क्या डोमेस्टिक वायलेंस के लिए सिर्फ पुरुष ही जिम्मेदार है महिला नहीं..
ये दो ग्रुप में प्रतियोगिता होती है जिनमे एक पक्ष में होता है और दूसरा विपक्ष में। एक एक कर प्रतियोगी को बोलने का मौका दिया जाता है।
इसके बाद इतिहास विषय पर सटीक ज्ञान रखने के लिए चर्चा करने वाली प्रतियोगिता होती है।जिसमे एक तरफ सारे कैंडिडेट होते है और दूसरी तरफ हिस्ट्री के एक्सपर्ट।जो एक एक कर सभी कैंडिडेट को एक टॉपिक देते है और उसके विषय मे टू द पॉइंट जानकारी देने को कहते है।जो प्रतियोगी जितने सटीक तरीके से उत्तर देगा उसे उतने ही ज्यादा मार्क्स मिलेंगे।और अंत मे विजेता भी वही होगा।
कॉलेज के इयरली फंक्शन में प्रतियोगिताए तो यही दो होती है।बाकी सब प्रोग्राम होते है जो मनोरंजन के उद्देश्य से कराए जा रहे है।अब बारी होती है गायकी की जिसमे रश्मि अपनी आवाज़ में बॉलीवुड के कुछ सांग्स प्रेजेंट करती है जो स्टूडेंट्स को काफी पसंद आते हैं।
गायन के बाद रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत किये जाते हैं!।जिनमें अमर, मेरी और सुचिता तीनों की परफॉर्मेंस होती है।मेरी प्रस्तुति पहले होती है।तो मै स्टेज पर जाती हूं एवम् काहे छेड़े छेड़े मोहे गीत पर शास्त्रीय नृत्य प्रस्तुत करती है।जो सभी को बहुत पसंद आता है।
मेरे बाद बारी अमर सुचिता की होती है।वो दोनो आते है और अपनी प्रस्तुति शुरू करते हैं।गाना प्ले होता है...
मधुवन में जो कन्हैया किसी गोपी से मिले।
कभी मुस्काए कभी छेड़े कभी बात करे..
राधा कैसे न जले।
जैसे जैसे गाने के बोल आगे बढ़ रहे थे वैसे वैसे मेरी जलन भावना भी बढ़ रही थी।जब खुद को मै रोक नहीं पाती तो स्टेज की तरफ बढ़ जाती हूं और उन दोनों के साथ परफॉर्म करने लगती हूं।
भले ही मै स्टेज पर जलन भावना के साथ जाती हूं लेकिन बात जब नृत्य की होती है तो सिर्फ एक ही भावना हृदय में होती है खुशी की।नृत्य करने से मुझे एक अनोखी ही खुशी मिलती है।गाना पूर्ण होता है और जब अपनी खुशी की दुनिया से निकल वास्तविकता के धरातल पर लौटती हूं तो खुद को शर्मसार महसूस करती हूं।और नज़रे नीची कर वहां से जाने के लिए कदम बढ़ाती हूं।तालियों की उठी गूंज से मेरे कदम रुक जाते है और जब नज़रे उठा सामने देखती हूं तो पूरा ऑडिटोरियम को खड़े हो तालियां बजाते हुए पाती हूं।
हम तीनों सभी को धन्यवाद कह स्टेज से नीचे उतर आते हैं।और हम सभी प्ले के लिए अपने अपने गेटअप में तैयार हो जाते है।
अब अगला जो प्रोग्राम है वो ऐतिहासिक प्रेम कहानी है जिसे कोलेज के कुछ छात्र अपने अभिनय से हम सब के सामने प्रस्तुत करेंगे...प्ले का नाम है पृथ्वीराज और संयोगिता!!
अमर हमारे प्ले के लिए अनाउंसमेंट हो गई है।चलो सभी स्टेज पर। मै सभी से कहती हूं।अमर मै अक्षत आशीष रश्मि सुचिता सभी स्टेज पर पहुंचते हैं।
अक्षत और रश्मि के सुझाव देने पर अमर को पृथ्वीराज का किरदार और मुझे संयोगिता का किरदार दिया गया।आशीष ने संयोगिता के पिता का किरदार स्वीकार किया।अक्षत की हाइट कद काठी ठीक ठाक होने की वज़ह से उसने चित्रकार का किरदार निभाने की इच्छा जाहिर की।रश्मि को मेरी सखी,(दासी) का किरदार दिया गया।और सुचिता को बीच बीच में दृश्यों कि व्याख्या का कार्य दिया जाता है अर्थात सूत्रधार का कार्य सुचिता स्वीकार कर लेती है।
स्टेज पर पहुंच सभी अपने अपने किरदार को जीवंत करने लगते हैं।
**( पृथ्वीराज चौहान दिल्ली का अंतिम हिन्दू शासक था!! जिन्होंने बारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में दिल्ली में शासन किया।पृथ्वीराज चौहान ने बचपन में ही शेर का जबड़ा फाड़ कर अपने वीर योद्धा होने का प्रमाण दे दिया था।इतिहास पृथ्वीराज को शब्दभेदी बाण लक्ष्य भेदन के लिए भी पहचानता है।पृथ्वी राज चौहान ने अपने ननाश्री अनंगपाल का शासन सम्हालने के लिए दिल्ली की गद्दी पर बैठा)
सुचिता परदे के पीछे से दर्शकों को बताती जाती है और अमर उसके कहे अनुसार पृथ्वीराज का किरदार निभाता जाता है। पृथ्वीराज को दिल्ली की गद्दी पर बैठाया जाना और राजकाज के कार्य का दृश्य..
कन्नौज में महाराज जयचंद के महल में एक चित्रकार पन्नाराय का आगमन होता है।
पन्नाराय - महाराज जयचंद को चित्रकार का प्रणाम।मै आपके दरबार में अपनी कला का प्रदर्शन करना चाहता हूं।।
राजा जयचंद - अवश्य।।आप अपनी कला का प्रदर्शन कीजिए।।
पन्नाराय अपने साथ लाए हुए कुछ चित्र राजा जयचंद को दिखाता है।उसके बनाए हुए चित्र इतने जीवंत लग रहे थे जैसे वो चित्र अभी अपनी जीवंतता का प्रमाण दे देंगे।उन चित्रों में बहुत से राजा महाराजाओं के चित्र होते है।इन्हीं राजाओं में से एक है पृथ्वीराज चौहान।
राजा जयचंद उसकी कला से बहुत प्रसन्न होते हैं।वो उसे प्रसन्नता स्वरूप पुरस्कार भी देते हैं।और कुछ दिन राजमहल में रुक कर कुछ और चित्र बनाने को कहते हैं।पन्नाराय के बनाए हुए चित्रों को महल में रहने वाली दासियां भी देखती है।और उन्हीं चित्रों में से एक पृथ्वीराज की सुंदरता को देख उसके बारे में चर्चा करने लगती हैं।
इन्हीं दासियों में से एक होती है संयोगिता की सखी।।जो पृथ्वीराज की सुंदरता का वर्णन संयोगिता के समक्ष करती है।
दासी - राजकुमारी संयोगिता।।दरबार में जो चित्रकार आया था उसके पास एक चित्र है दिल्ली के राजा पृथ्वी राज चौहान का।उस चित्र में राजा की वीरता के साथ साथ उसकी सुंदरता को भी दर्शाया गया है।पूरे महल की स्त्रियों में उन्हीं के रूप की चर्चा हो रही है।
संयोगिता - अच्छा।फिर तो हम उस चित्र को अवश्य ही देखना चाहेंगे।आखिर ऐसी क्या खासियत है उस चित्र में।
राजकुमारी संयोगिता और उसकी दासी पृथ्वीराज के चित्र को देखती है।केवल चित्र देखकर ही संयोगिता पृथ्वीराज के समक्ष अपना हृदय हार जाती है।
कुछ दिनों बाद चित्रकार महल से चला जाता है और घूमते हुए दिल्ली पहुंचता है।वो अपने साथ कन्नौज में बनाए गए चित्रों को भी लेकर आता है जिनमें राजकुमारी संयोगिता का चित्र भी शामिल होता है।
पृथ्वी राज पन्नाराय के बनाए गए चित्रों को देखता है तो राजकुमारी की खूबसूरती पर फिदा हो जाता है।समय गुजरता है।राजा जयचंद अपनी पुत्री संयोगिता का स्वयंवर रखते है। अन्य राजाओं को आमंत्रित किया गया होता है लेकिन पृथ्वीराज को नहीं बुलाया गया है।जयचंद ने पृथ्वीराज का अपमान करते हुए उसकी मूर्ति बनवाकर द्वारपाल की जगह खड़ा कर देता है।
राजकुमारी संयोगिता हाथो में वरमाला लिए स्वयंवर के लिए खड़ी होती है।चारो तरफ देखती है लेकिन पृथ्वीराज नहीं दिखते हैं उसकी नज़र पृथ्वीराज की मूर्ति पर पड़ती है वो वरमाला लेकर उसी मूर्ति को तरफ जाती है और मूर्ति को वरमाला डालने के लिए हाथ आगे बढ़ाती है तब तक पृथ्वीराज वहां आ जाते है और वरमाला पृथ्वी के गले में पड़ जाती है।
राजा जयचंद कुछ कहते करते तब तक पृथ्वीराज संयोगिता को वहां से ले नौ दो ग्यारह जाते हैं।
परदा गिरता है और प्ले समाप्त हो जाता है( इस भाग में जो पृथ्वीराज और संयोगिता के जीवन के कुछ भागों का वर्णन किया है वो केवल जानकारी के आधार पर किया है!! हो सकता है कुछ गलती हो गई हो,उसके लिए क्षमा प्रार्थी!! कृपया इसे अन्यथा न लें)
तालियों को गड़गड़ाहट पूरे हॉल में गूंजने लगती है जो हमारे प्ले की सफलता दर्शा रही होती है।उस प्ले को करते समय मुझे अमर के लिए कुछ विशेष ही भावनाए महसूस हो रही होती है।जो मैंने पहले किसी के लिए महसूस की ही नहीं कभी।पृथ्वी संयोगिता वरमाला के समय तो एक पल के लिए मै भूल ही गई थी कि ये सिर्फ प्ले है हकीकत नहीं।मुझे सब कुछ वास्तविक लग रहा था।
कुछ पलो के लिए तो मै उसकी आंखो में खुद के अक्स को देखने लगी।तालियों के शोर से मेरी तंद्रा टूटी और मै उसकी आंखो के मोह से बाहर निकली।
हम सभी चेंज कर बाहर सबके पास आकर बैठ जाते हैं।जहां कुछ ही देर में प्रतियोगिताओं के परिणाम की घोषणा होने वाली होती है।
इस प्ले के बाद सुचिता का व्यवहार भी मेरे लिए बदल गया था।न जाने क्यों वो मुझसे कुछ कटी कटी रहने लगी।
परिणाम की घोषणा हो चुकी थी।वाद विवाद में अक्षत और एक और प्रतियोगी बराबरी पर आए जिस कारण दोनो को ही विजेता घोषित किया गया।वहीं इतिहास चर्चा में मै ही प्रथम स्थान पर रही।टीचर होने का बेनिफिट मुझे मिल गया था।
कोलेज के फंक्शन समाप्त हो गए और हम सब अपने अपने निवास के लिए निकलने लगे।रूम पर पहुंच फ्रेश हो मै और रश्मि साथ बैठ कर आज के दिन के बारे में बात करने लगते हैं।
निया एक बात सच सच बताओगी।।रश्मि थोड़ा सीरियस होकर मुझसे पूछती है!!
क्या !! पूछ न क्या जानना है तुझे!!
रश्मि मेरी आंखो में देखते हुए कहती है निया तुम्हारे और अमर के बीच कोई कनेक्शन है न।मै ये नहीं कह रही हूं कुछ गलत रिश्ता है।मै उस कनेक्शन कि बात कर रही हूं जो दिल से जुड़ा है।जिस्म से नहीं।
मै रश्मि की बात सुन शॉक्ड हो जाती हूं।मेरे चेहरे की रौनक गायब हो जाती है और पसीना निकलने लगता है जिसे देख रश्मि कहती है अरे अरे घबराओ नहीं यार।।मैंने पहले ही कहा कोई गलत रिश्ते की बात नहीं कर रही हूं मै।मै तो दिल के कनेक्शन कि बात कर रही हूं।आंखो में दिख रही उन भावनाओ की बात कर रही हूं जो तुम उसके लिए रखती हो लेकिन अनजान हो खुद ही इस बात से।
रश्मि तुम ये क्या कह रही हो।ऐसा कुछ भी नहीं है यार।तुम ना कुछ ज्यादा ही पारखी बनने की कोशिश कर रही हो और कुछ नहीं।अब दोस्त है हम तो उस नाते कनेक्शन अच्छा है हमारा।और तुम इस कनेक्शन को दिल और आंखो के कनेक्शन से जोड़ रही हो।हद है यार।मै नज़रे चुराकर उससे कहती हूं।
किससे झूठ बोलने की कोशिश कर रही हो नज़रे चुराकर।।तुम मानोगी नहीं लेकिन सच यही है निया।
मै रश्मि से आगे कुछ कहती उससे पहले ही उसका फोन रिंग होने लगता है।जो उसके घर से होता है।रश्मि कॉल उठाती है और अपनी फैमिली से बात करने में लग जाती है।
मै बेड पर बैठ रश्मि की बातो के बारे में दोबारा सोचने लगती हूं।लेकिन खुद के ही तर्को से उलझ कर रह जाती हूं।क्या सच में मुझे अमर से प्यार हो गया है। अगर ऐसा हुआ तो बहुत मुश्किल पड़ जाएंगी मेरे लिए।क्यूंकि मैंने सुना है प्यार की राहें आसान नहीं होती है।कदम कदम पर इम्तिहान देने होते हैं।मेरे लिए तो ये बहुत मुश्किल है।घरवाले तो मेरी शादी के सपने देखने में लगे है न जाने कब घर से बुलावा आ जाए नियति।।लौट आओ अब, तुम्हारी शादी पक्की कर दी है।बाकी की पढ़ाई शादी के बाद कर लेना।आगे ससुराल वालो ने पढ़ने दिया तो!!
और ऐसे में अमर के लिए मेरे मन में ऐसी भावनाएं कतई उचित नहीं होगी।इससे अच्छा तो इन भावनाओ की पोटली बना के दिल के एक कोने में दबा देना होगा।खुद से बड़बड़ाती जाती हूं।जब मन में द्वंद चल रहा हो न तो कुछ देर शांति से बैठ जाना चाहिए जब मन थोड़ा शांत हो जाए तो मंथन कर सभी पहलुओं पर गौर कर लेना चाहिए। जिससे सही निर्णय लेने में आसानी मिलती है।
रश्मि की बात सुन कर जो थोड़ी बहुत कनफ्यूजन थी वो भी दूर हो जाती है।लेकिन मै खुद ही सब कुछ अपने हृदय में ही कैद करने का निर्णय ले लेती हूं।अगले दिन कॉलेज में हम सभी मिलते हैं।शाम को लिए गए सारे निर्णय अमर को देख धरे के धरे रह जाते हैं।उसकी मासूमियत और दिल को अपनी तरफ खींचने वाली आवाज़ सुन मै फिर से उसकी ओर खिंच जाती हूं।
न जाने कौन सी डोर थी जिसने मुझे अमर से जोड़ रखा था।मेरे लाख चाहने पर भी उस डोर की वजह से मै उससे मुंह मोड़ ही नहीं पाती।
अमर - गाइज।।मेरे घर आज मेरी बहन को देखने लडके वाले आ रहे है मुझे जल्दी जाना होगा घर के लिए।भाई हूं तो कुछ जिम्मेदारियां भी बनती है मेरी।
ओके।।अमर।।लेकिन कल जब आना तब मिठाई का डिब्बा लेकर आना भूलना नहीं।सभी अमर से कहते हैं।
ओके डन।अमर कॉलेज से चला जाता हैं।हम सभी लेक्चर अटेंड करने लगते हैं।रश्मि बार बार मेरे चेहरे की तरफ देखती है फिर अपने कार्य मै लग जाती है।
लेक्चर ख़तम होने के बाद रश्मि कहती है आज अमर नहीं था क्लास रूम में तो तुम्हारा मन नहीं लगा न।एक बैचेनी सी छाई रही तुम्हारे मन में।मैंने नोटिस किया निया।।अब फिर भी तुम नहीं समझना चाहती तो ये तुम्हारी मर्ज़ी है।
मै हैरानी से रश्मि की तरफ देखने लगती हूं जिसे देख वो कहती है ऐसे हैरानी से मत देखो दोस्त हूं तुम्हारी ट्वेंटी फॉर आवर तुम्हारे साथ ही रहती हूं।समझने लगी हूं तुम्हे अच्छे से।
अक्षत आशीष सुचिता लाइब्रेरी से आ जाते है।उसके बाद सभी कॉलेज गार्डन में बैठ कर कुछ टॉपिक्स पर डिस्कशन करने लगते हैं।कुछ देर बाद सुचिता वहां से अपना फोन लेकर उठ जाती है।
अमर रास्ते में होता है। बाइक ड्राइव कर रहा होता है की तभी उसके मोबाइल पर कॉल आता है जो सुचिता का होता है।शायद इंपॉर्टेंट हो ये जान कर अमर कॉल उठा लेता है।एक हाथ से बाइक चला रहा होता है और दूसरे हाथ से फोन पकड़े होता है।तभी सामने के मोड़ से एक ब्लैक गाड़ी निकल कर आती है।अचानक से सामने गाड़ी आ जाने के कारण अमर हड़बड़ा जाता है।जिससे बाइक का बैलेंस बिगड़ जाता है। अमर चीखते हुए फोन छोड़ दोनो हाथो से बाइक सम्हालने की कोशिश करता है।ब्लैक गाड़ी से तो टकराने से बच जाता है लेकिन ब्रेकर होने की वजह से बाइक उछलकर पलट जाती है।और अमर के साथ दुर्घटना घटित हो जाती है....
अमर के साथ दुर्घटना घटित हो जाती है।और उसका फोन तो पहले ही गिर चुका होता है।बाइक पलटते हुए आगे तक चली जाती है लेकिन अमर बाइक उछलते समय ही उससे गिर चुका होता है।जिस कारण उसके साथ बड़ा हादसा होने से बच जाता है।उसके सर में हाथो की कोहनियों में और घुटने में ज्यादा चोट लगती है।
हादसे की जानकारी मिलते ही आसपास की दुकानों सड़क पर चलते हुए राहगीर सभी उसकी ओर दौड़ पड़ते हैं।एक व्यक्ति पुलिस को कॉल कर हादसे कि जानकारी देता है तो वहीं दूसरा अमर के कपड़ों में फोन ढूंढने लग जाता है।एक व्यक्ति की नजर अमर से कुछ दूर पड़े एक फोन पर पड़ती है तो वो फोन उठा कर उसे ऑन करने की कोशिश करने लगता है।
अमर!! हेल्लो! ! हेल्लो! ! अमर क्या हुआ है अमर!! तुम कुछ बोल क्यू नही रहे हो!! अमर सुन रहे हो न।सुचिता गार्डेन में ही फोन पर चिल्लाते हुए कह रही है लेकिन फोन तो कब का कट गया होता है।क्या हुआ सुचिता...तुम ये फोन पर अमर अमर क्यू चिल्ला रही हो
अक्षत आशीष रश्मि और मै सभी एक साथ सुचिता से पूछते है।सुचिता जो उस समय बहुत घबराई हुई होती है उससे कुछ कहते ही नहीं बन रहा होता है।बस अमर अमर बात करो,कुछ कहो,कहते कहते ही रोए जा रही होती है।
सुचिता की हालत देख कर मुझे कुछ गलत होने का अंदेशा होता है सो मै बेग उठा उल्टे पांव ही वहां से बाहर दरवाजे की ओर दौड़ जाती हूं।उस समय मेरे मन में बुरे ख्याल आ रहे होते है।बस मन ही मन सब ठीक हो ऐसी माता रानी से प्रार्थना करती हूं।दरवाजे पर पहुंच वहां से अमर के घर जाने के लिए ऑटो बुक करती हूं।उस समय सही गलत अच्छा बुरा किसी का ख्याल नहीं करती मै। बस किसी तरह जल्द से जल्द
अमर तक पहुंच उसे एक नजर देख लेना चाहती हूं।तसल्ली कर लेना चाहती हूं कि वो ठीक है कि नहीं।मै ऑटो से अमर के घर के रास्ते की तरफ ही होती हूं तभी मैं देखती हूं कि सड़क के किनारे एक जगह काफी लोग घेरा बनाकर एकत्रित होते हैं।देख कर ऐसा लगता है किसी के साथ दुर्घटना हुई है।मै ऑटो रुकवा लेती हूं और ऑटो से उतर कर लोगो के हुजूम की तरफ जाती हूं।जहां पुलिस अपनी गाड़ी को लेकर एम्बुलेंस के साथ चली जाती है।मै वहां मौजूद लोगों से वहां एकत्रित होने की वजह पूछती हूं।अरे बिटिया आजकल के नौजवान हम बड़ों की सीख और सड़क के नियमो की अनदेखी करने को अपनी शान समझते हैं।एक नौजवान युवक यही कोई अठारह उन्नीस बरस का अपनी मोटर गाड़ी से जा रहा था रस्ट में किसी का फोन आ गया और उसने बिन गाड़ी रोक फोन उठा लिया बा फिर क्या था सावधानी हटी दुर्घटना घटी वाली कहावत सिद्ध हो गई।
एक व्यक्ति मेरे पूछने पर मुझे बताता है जिसे सुन मेरे दिल में धक्क सी होती है और मुंह से निकलता है अमर..!!सच का पता चलते ही मै तुरंत ऑटो की तरफ जा उससे सिटी हॉस्पिटल चलने को कहती हूं।
खुद का फोन तो मै हॉस्टल में छोड़ आई थी।अपनी जगह रश्मि का उठा लाई थी।जो उस रात से एक दिन पहले ही मैंने शाम को चैटिंग के बाद रख दिया था।ओह गॉड अब मै कैसे बाकी फ्रेंड्स से संपर्क कर उन्हें सूचित करूं।ओह नो कैसा असर पड़ा मुझ पर इस घटना का।ये तो भूल ही गई की मैंने रश्मि के फोन में रिचार्ज कर लिया होता है।मै रश्मि का फोन उठाती हूं और सोशल ऐप्स ओपन करती हूं।तथा रश्मि अक्षत को एक मेसेज छोड़ देती हूं।ये बात तो मेरे दिमाग से उतर ही जाती है कि सुचिता ने पहले ही सब कुछ बता दिया होगा और जहां तक मै सबको समझती थी सब अब तक तो हॉस्पिटल के लिए निकल भी आए होंगे। रास्ते में होने के कारण मैंने बड़ी मुश्किल से आंसुओ को रोक कर रखा हुआ होता है।लेकिन दिल में निरंतर प्रार्थना जारी थी।कुछ ही देर में मै हॉस्पिटल पहुंच जाती हूं।जहां पुलिस द्वारा सूचित किए जाने पर अमर के माता पिता मौजूद होते हैं।उनको देख मै वहीं रुक जाती हूं।और इंतजार करने लगती हूं डॉक्टर्स का।लेकिन हृदय की बैचेनी के आगे हार जाती हूं बस मन ही मन माता रानी का स्मरण करने लगती हूं।अमर के पिताजी को घर से कॉल आ जाता है और वो वहां से कॉमन रूम की तरफ चले जाते हैं।तभी अमर के कमरे से नर्स के साथ डॉक्टर आते है वो अमर की मां से कहते है सब ठीक है कुछ चोटें आई है पेशेंट को लेकिन वो जल्द ही रिकवर कर लेगा।
डॉक्टर की बात मै सुन लेती हूं और मन ही मन खुश हो माता रानी को धन्यवाद देती हूं।अमर की मां उसके पिताजी के पास ये बताने चली जाती है वहीं मै मौका देख अमर के रूम में चली जाती है।अमर उस समय आंखे बंद कर रेस्ट कर रहा होता है।मै जाकर कुछ क्षण अमर के पास पड़े स्टूल पर बैठ जाती हूं।अपना फोन वहीं टेबल पर रख देती हूं।कुछ देर अमर को नज़र भर देख चुपके से वापस रूम पर लौट आती हूं।अक्षत आशीष सुचिता तीनों कॉलेज से अमर को देखने निकल जाते है।अमर सब से मिलता है लेकिन बार बार दरवाजे कि तरफ देखता है।
अक्षत - शुक्र है!तुम ठीक हो।हम सब तो घबरा ही गए थे जब सुचिता ने तुम्हारे बारे में बताया।ये बेचारी तो तबसे चुप ही नहीं हो रही।इस घटना के लिए खुद को जिम्मेदार समझ रही थी।
पगली जो है ये।।ओय पगली ये सब होने वाला था इसीलिए तुम्हे जरिया बनाया भगवान जी ने बस।तुम जिम्मेदार नहीं हो समझी।।अब ये आंसू पोंछो और देखो तुम्हारा दोस्त तो बिल्कुल ठीक है।बस ये थी बहुत सिर में,हाथो में लगी है।
अच्छा अंकल आंटी कहां है यहां दिख है नहीं रहे।।अरे वो दी के रिश्ते वाले आ रहे थे न तो दोनो घर चले गए।आखिर वो कार्य भी तो आवश्यक है।ऐसे कामों में टला मली अच्छा शकुन नहीं माना जाता।
अक्षत आशीष अमर की बात सुन थोड़े से हैरान रह जाते है लेकिन उसे अजीब ना लगे इसीलिए उसकी बातो में हां से हां मिला देते हैं।
पता नहीं ये निया कहां चली गई कहीं दिख ही नहीं रही।जब सुचिता तुम्हारे विषय में बता रही थी तब वो भी वहीं मौजूद थी लेकिन फिर जब हम सब ने यहां आने का निश्चय कर बात करनी चही तो वो वहां नहीं थी।यहां तक कि रश्मि को भी नहीं पता कि वो अचानक कहां गई।
अमर अक्षत की बात सुन सोच में पड़ जाता है।आखिर नियति कहां जा सकती है।तभी उसे अपने बेड के पास ही रश्मि का फोन रखा दिखता है जो रश्मि ने नियति को दिया था वो भी अमर के कहने पर..वो समझ जाता है नियति चुपके चुपके यहां आई थी।चुपके चुपके बिन किसी को बताए...मतलब उसके हृदय में भी मेरे लिए फीलिंग्स है तभी वो मेरे साथ हुई दुर्घटना की बात सुन कर खुद को रोक नहीं पाई होगी और तुरंत यहां मुझे देखने आई होगी।।ओह गॉड ये लड़की भी न सबसे अलग है।।कभी कुछ नहीं कहेगी सामने से।जताएगी ऐसे जैसे इसे वाकई कोई फर्क नहीं पड़ रहा हो।लेकिन चोरी चोरी चुपके चुपके देखने भी आयेगी।।झल्ली है ये।।
नियति के बारे में सोचते सोचते अमर मुस्कुराने लगता है।जिसे देख अक्षत कहता है क्या बात है कैसे अकेले अकेले मुस्कुरा रहे हो।वो भी इस हालत में कुछ तो विशेष बात जरूर है...मुझे भी बताओ मै जानना चाहता हूं क्यों हंस रहे हो अकेले अकेले।।
अब तुम्हारे प्रश्नों पर हंसी आ गई मुझे।तुम खुद ही सोचो निया जैसी लड़की जिसकी दुनिया कोलेज कोचिंग और घर तक ही सिमटी हुई है वो भला कहां गायब होगी।या तो कोचिंग गई होगी या फिर अपने रूम पर।अभी कितना बज रहा है बारह के आसपास ही होगा और तुम सबको आए यहां दस मिनट ही हुए होंगे तो वो डेफिनेटली रूम पर होगी।तुम लोग चाहो तो रश्मि से कॉल कर पूछ लो।समझ गए भाई।
हां अमर समझ गया।और हम सब के साथ शायद अपनी फैमिली के डर की वजह से नहीं आई।।
हो सकता है अक्षत।सुचिता को अमर अक्षत की बातो से चिढन होती है वो बात बदलते हुए कहती है कोई नहीं अमर जो अपने होते है और जिन्हें हमारी परवाह होती है उन्हें हमारे बारे में जानकर कोई भी हालात रोक नहीं सकते।अच्छा अब तुम रेस्ट कर लो हम लोग बाहर बैठते है।
ओह गॉड।।तुम लोग भी न कैसी फॉर्मेलिटी की बाते कर रही हो।अरे तुम लोग तो मुझे यहीं का वासी बनाने में तुले हुए हो।शाम तक मुझे डिस्चार्ज भी मिल जाएगा।ऐसा मुझे लगता है।
ओके फिर तो ये और भी अच्छा है।सभी एकसाथ ही चलेंगे फिर घर पर।कहते हुए सभी दोस्त खिलखिलाने लगते हैं।डॉक्टर आते हैं और अमर का चेक अप करते हैं।तथा उसे डिस्चार्ज कर देते है।
अमर अक्षत सुचिता आशीष सभी अमर को घर ले जाते हैं।उसे उसके कमरे में छोड़ कुछ देर उसके पास बैठ वापस निकल आते हैं।
रूम पर रश्मि नियति का कोचिंग से लौटने का इंतजार कर रही होती है।नियति कोचिंग से आ जाती है।रश्मि उससे अमर के बारे में पूछती है। नियति अमर भी ठीक है।थोड़ा सा चोट आई है उसे सिर में,हाथ पैरों में।शायद उसे डिस्चार्ज भी मिल गया होगा।
अच्छी बात है ये तो।।तुम बताओ ये मुंह क्यू लटका रखा है।अमर के बारे में सोच कर परेशान हो न।रश्मि नियति के पास आकर बैठते हुए कहती है।
नहीं ......रश्मि ! ! वो तो बस ऐसे ही न जाने क्यूं मूड खराब है।मुझे समझ ही नहीं आ रहा क्यू ऐसा हो रहा है।
नियति।।देख मैंने पहले भी कहा था और अब भी कह रही हूं अपनी फीलिंग्स को जितना छुपाओगी उतना ही तुम्हे प्रॉब्लम होगी।
रश्मि मै सब समझ गई हूं।लेकिन मेरे लिए ये सब इतना आसान नहीं है तुम नहीं समझोगी।प्यार यदि मुक्कमल न हो तो जीवन भर तकलीफ दर्द देता है।और सब कुछ जानते हुए मै कैसे इस राह पर चल लूं।प्रेम तो हो गया मुझे ये मेरे वश में नहीं था।लेकिन उसका इजहार करना न करना वो मेरे हाथ में है।
नियति तुम खुदा नहीं हो।जो सब कुछ पहले से ही पता होगा तुम्हे ऐसा होगा ऐसा नहीं।भगवान कृष्ण के वचनों को शायद तुमने कभी सुना नहीं है।कर्म करो।फल की इच्छा नहीं।फल तुम्हे कर्म के अनुसार मिल ही जाएगा।तुम्हारे अनुसार तो फिर दुनिया में किसी को कुछ करना ही नहीं चाहिए।है न।
झल्ली हो तुम, पगली हो तुम।।अच्छा एक बार को सोच लो कि तुम्हारा प्यार मुकम्मल नहीं हो पाएगा।लेकिन इस प्यार की कुछ खट्टी मिठाई यादें तुम्हारे पास होंगी जो कठिन हालातो में तुम्हे हिम्मत देगी।तुम्हारे उदास चेहरे पर मुस्कुराहट ले आयेगी।समझी कुछ।।और वैसे भी मेरा मानना है जिंदगी के जितने पल भी जियो खुल के जियो।।
रश्मि की बात मेरी समझ में आ जाती है और मै एक निर्णय पर पहुंच जाती हूं।तथा अमर के कोलेज आने का इंतजार करने लगती हूं....
क्रमशः .....