मंथन 3 रामगोपाल तिवारी (भावुक) द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मंथन 3

मंथन 3

तीन

अमावस्या की रात्रि का अन्धकार गाँव को अपने आंचल में समेटे हुए था। रात्रि के दस बजे तक तो गाँव के सारे दीपक बन्द हो गए। लोग अपने-अपने बिस्तर पर पहंुच चुके थे। गाँव के पटेल रंगाराम के यहाँ विशुना ने दस्तक दी। दरवाजा खटखटाया, धीमे से आवाज दी, पटेल आवाज पहचान गए। विशुना उनके कान के पास जाकर फुसफुसाया। तब व बोले, ‘रे विशुना, जा बखत पंचायत के लिए कौन आ जावेगो?‘

‘तो आप जानें कक्का ! बाद में मोय दोष मत दियो।‘

अब पटेल रंगाराम झट से विशुना से बोले, ‘तो रे विशुना, सबके घरेें जा-जा कें चुपचाप कहकंे आ, के पटेल के झां चलो। गाँव की जरूरी पंचायत बैठ रही है।‘

वह चलने लगा तो बोले, ‘देख, इन्द्रजीत और कैलाश के झां मत जइयो।‘

वह बोला-‘बशीर मियां यें बुलावे से, पटेल कक्का कहा फायदा।‘

‘काये ?‘

‘वे मुसलमान हैं, वे जिन बातन में कहा जानें। गऊ को मारिबो तो बे बुरो नहीं मान्त।‘

‘रे ज ठीक कहीं।‘

‘इन्द्रजीत और कैलाश काहे को सच्ची बात कहेंगे। कक्का बे तो कान्ती बाबू के मामा लगतएंें।‘

‘ठीक है जल्दी चलो जा। अभै ही बुला ला।‘ यह बात सुनता हुआ विशुना चुपचाप निकल गया।

रात्रि के बारह बजे, पटेल के घर में पंचायत शुरू हुई। श्यामा भैया ने पटेल की ओर इशारा करके कहा, ‘कहो पटेल, रात के बारह बजे गुप्त पंचायत कैसे बुलाई है ?‘

पटैल ने विशुना की ओर इशारा कर कहा, ‘कहो विशुना, कहा कहें चाहतो?‘

‘विशुना पंचायत के विधान के अनुसार हाथ जोड़कर खड़ा हो गया और बोला, ‘पंचों, जिस बात के कहे से पाप लगतो। ऐसी बात पंचन सों कहनी पड़ रही है, पर यदि न कहू तो और भी पाप लगेगो। जासों ज बात कहनो पड़ रही है। बात पंचन की है पंचन के कानन में पहुँच जाए।’

अब पोथी बोल- ‘बात तो कह।‘

विशुना खड़े होकर हाथ जोड़त हुए बोला-‘े‘आज सवेरे मेरे सामने, जब कान्ती बाबू हल जोतवे लै जावे कें बैल के कंधा पै जुआ रख रहे थे। बाको बैल वाय मारिवे दौरो। कांती को गुस्सा आ गई। ज बात पै बाने ब बैलय खूब मारो। बाय मैंने रोको, व नहीं मानो। तनिक दिनै मैं अपने खेत पै गयो, सो बाय हल चलात में खूब मारत रहे। आज संझाा के सुनी है बैल तनिक दिनें ही मरि गओ। अब पंच बात समझ लेऊ।‘

पटेल बोले, ‘ कोऊ चश्मदीद गवाह है।‘

‘जतो मोय पतो नाने।‘ विशुना ने कहा,

पटेल बोले-‘‘तो फिर पंचो कह देऊ,?

बात कहने के लिए रंगाराम जी तनकर बैठ गए और बोले, ‘शायद कांती ही कहिवे और ना भी आये, पर बात पक्की है भैया, बैल पिटाई से ही मरो है।‘

‘श्यामा भैया बोले बिना न रहे, बोले’- ‘फिर कैसें चले?‘

पटेल अपनी कोई पुरानी ऐंस निकालना चाह रहे थे,झट से बोले- ‘जिस कुए पर कान्ती पानी भरिवे जावे, कोई व कुए से पानी न भरियो। बाको हुक्का पानी बन्द कर दिओ जाबे। क्यों पंचों बात गाँव के न्याय की है न ?‘

सभी ने गर्दन हिला दी ‘ठीक है‘ और पंचायत समाप्त हो गई।

सुबह जिस कुए पर कान्ती के घर के लोग पानी भरने गए। उस पर रवि का घर गया, बशीर साहब गए और कोई न गया तो कान्ती का माथा ठनका कि बात फैल गई। कान्ती कुएं की ओर चला। कोई कुछ कहे, पर लोग दूसरे कुएं पर जाने लगे। पटेल ने मना किया तो कान्ती बोला, ‘हम तो नहीं रूकत। गाँव को जो बात समझ आय,े सो कन्ने,- फिर किसी ने कुछ नहीं कहा तो कुएं पर पहंुच गया। बशीर मियां वहाँ मौजूद थे। हाथ-मुँह धो रहे थे। दोनों की सलाम हुई। जब कान्ती बशीर मियां से बोला, ‘मियां साहब, देखो, गाँव के कुछ लोग मोपै कलंक लगा रहे हैं। अरे! ज गाँव में आप हो खरी कहिबे वारे हो सो तुम्हें पंचायत में बुलाओ नाने।‘

‘कान्ती, यह गाँव ही ऐसा है। क्या झूटी बात है, क्या सच्ची है सब अपनी-अपनी कहतयें।‘

‘ उन्हें पटाने के लिए कान्ती पुनः बोला, ‘कछू कहू है तो अनीत, चाहें मोय समाज से डार देतयें पर तुम्हें तो बुलायतें। अरे चार जगह बैठिवे बारे को तिरस्कार कर दओ, बड़े आये पंच।‘ अब बशीर साहब बोले-

‘वह तो ठीक है, उससे मुझे क्या ? पर मुझे तो डर है कहीं लोग यह नहीं सोचते कि बशीर तो बस मुसलमान हैं। उन्हें गऊ से क्या मतलब है ?‘

‘अरे नेताजी वे तो जही सोचतयं ंतब ही तो तुम्हें नहीं बुलाए।‘

‘खैर जब तक कानों से नहीं सुनूंगा विश्वास नहीं करूंगा।‘

‘एन मत करो विश्वास, बात तो जहीं है।‘

सोचते-सोचते वे कुएं से घर की ओर चले गए।

आज बशीर साहब सारे दिन बेचैन रहे। सोचते रहे कि मैं इन लोगों की परम्पराओं में इतना विश्वास करता हूँ फिर भी ये लोग मुझे अपना नहीं मान रहे हैं। वे मुझे मुसलमान मानते हैं। मेरा धर्म अलग है। शायद यही बात है। लोग समझते क्यों नहीं कि मैं यहाँ का भी हूँ। सारी भारतीय परम्पराओं में विश्वास रखता हूँ। जाने किस-किस प्रकार से सोचते जा रहे थे। मन बोझिल था। इसलिए रवि से मिलने चल पड़े।

आज सुबह से डॉक्टर रवि मक्खियां मार रहे थे। सुबह से एक भी मरीज नहीं आया था। रवि ने तो अपने पिताजी को समझाया, पर वह न माने। जिसकँूा परिणाम भोगना पड़ रहा था। रवि जान रहा था कि उन्हें कान्ती का साथी घोषित कर दिया गया है। पिताजी ठीक ही तो कहते हैं, बात जो होनी थी हो गई। कान्ती से प्रायश्चित करवा देंगे पर लोग तो हमें उल्टे दबा रहे हैं। पिताजी की जिद। मैं विरोध करता लेकिन सामाजिक मामलों में एकदम पड़ना ही नहीं चाहता। सोचते में दरवाजे पर आहट हुई। बशीर साहब थे। रवि ने उनका मुस्कराकर स्वागत किया। पास कुर्सी पर बैठ गये और स्थिति का अन्दाज करते हुए बोले, ‘आज तो कोई मरीज नहीं आया होगा।‘

‘कहाँ साहब, आज का ं ं ं।‘

‘चिन्ता न करो बरखुरदार, चुपचाप रागरंग देखते चलो।‘

‘देख ही रहे हैं।‘

‘इससे यहाँ के सभी पहचान में आ जायेंगे। बस फिर समझ लो, जैसा ठीक लगेगा, करेंगे।‘

‘न हो तो मैं शहर में चला जाऊंगा।‘

‘नहीं-नहीं बरखुरदार, वे इतना ही नहीं समझते कि अस्पताल तो राष्ट्रीय ही नहीं वरन् अन्तर्राष्ट्रीय परिवेश में आते हैं, जिस दिन वे इसका महत्व समझ जाएंगे तब देखना।‘

‘ठीक कहते हो, तब बदलने में देर लगेगी।‘

‘बरखुरदार मुझे तुम्हारा भविष्य उज्ज्वल लग रहा है, पर जरा राजनीति से चलना सीखो।‘

‘यानी डाक्टर को सेवाभाव से नहीं, बल्कि राजनीति से चलना सीखना चाहिए।‘

‘लोग तो यही चाह रहे हैं पर हम ऐसा नहीं करेंगे।‘

‘तो कैसा करेंगे?‘

‘रवि की सेवा चलेगी, रश्मि राजनीति चलायेंगी। तभी सफलता मिल सकती है।‘

‘यानी !‘

‘हाँ रवि, तुम डाक्टरी करो। रश्मि को राजनीति में जाने दो।‘

‘अभी से ही।‘

‘इतनी जल्दी क्या है ? जब समय आयेगा, देखेंगे। रश्मि को चार-दीवारी से मैदान में ले आना है।‘

‘इतना विश्वास है आपको उस पर।‘

‘हाँ रवि, उसके भाषण देने की शक्ति बड़े गजब की है। विचार-शक्ति से तो वह बड़े-बड़ों को मात दे सकती है।‘

‘इसका मतलब है आप उसे बड़े नजदीक से जानते हैं।‘

‘अरे, बाप के साथ रहते-रहते राजनीति की सारी ट्रेनिंग पा गई है। बेटी भी गजब की राजनीतिज्ञ निकलेगी।‘

‘इस सम्बन्ध में मन में कई प्रश्न आकर खड़े हो गए हैं विषय को विचार के लिए रख दिया जाए।‘

‘ठीक है अभी तो सपना है, पर आज मुझे रात की पंचायत में नहीं बुलाया गया।‘

‘कैसे कामरेड हो, इस एक अकेली सामाजिक समस्या से घबरा रहे हो।‘

‘नहीं रवि, घबरा नहीं रहा हूँ बल्कि उसके अन्तः में जाकर उससे जूझना चाहता हूँ।‘

‘जूझने के लिए किसने मना किया है।‘

‘धर्म की ओट लेकर खेले जाने वाले दांव से दूसरे धर्म वालों की हार भी हो सकती है। वे इतना नहीं जानते।‘

‘सच्चाई और ईमानदारी पर खेले जाने वाले हर खेल को जीता जा सकता है।‘ रवि ने कहाँ

बशीर साहब बोले, ‘रात की पंचायत में निश्चित निर्णय हो जाएगा।‘

‘कान्ती तो ं ं ं !‘

‘महन्त के यहाँ गया होगा। महन्त के न्याय को पैसों से खरीद लेगा।‘

‘रंगाराम जी भी तो महन्त के ही आदमी हैं।‘

‘भइया, वे ही आग लगाते हैं वे ही बुझा देते हैं। उनकी तो अपनी घर की पंचायत है।‘

‘बनी रहे साहब ! उनकी ही पंचायत देख लेते हैं।‘

ओर तभी उन्हें विशुना बुलाने आ गया, ‘चाचा, रात पंचायत है सभी लोगों को आना है।‘

‘कैसी पंचायत, हमें भी बताओ ?‘

‘पतो नाने कैसी ? रात में सब पतो चल जायेगो आओगे तो।‘

रवि चुप रह गया, बशीर साहब भी चुप रह गये तो वह चला गया। अब बशीर साहब बोले-

‘पंचायत का निर्णय क्या होगा ? कुछ भी नहीं कहा जा सकता।‘

‘बात तो ऐसी ही है।‘ कहते हुए उठ खड़े हुए। चिन्ता की रेखाएं चेरहे पर स्पष्ट दिखाई दे रही थीं। रवि भी चिन्तित हो गया। अब बशीर साहब जा चुके थे।

‘दिन अस्त होते ही लोगों का चौपाल पर आना प्रारम्भ हो गया था। रवि के पिता भी पंचायत में आये थे तथा गाँव की सातों जातियां पंचायत में भाग ले रही थीं। रवि इसी कारण पंचायत में नहीं आया था, क्योंकि घर का एक प्रतिनिधि तो भाग ले ही रहा है। पर वह ऐसी जगह आ बैठा जहाँ से सारी बाते सुनी जा सके।

बशीर साहब जरा देर करके चले। बार बार यह सोचते जाते कि जाऊं कि न जाऊं। लेकिन उनके कदम उन्हें पंचायत में ले ही आए। आते ही पहचान गए कि महन्त के भेजे लोग भी पंचायत में हैं, लेकिन महन्त पंचायत में नहीं आया। अब बशीर साहब समझ गये कि ये महन्त के खरीदे हुए लोग पंचायत में आये हैं। निश्चित रूप से सौदा तय हो गया होगा ! तभी ये लोग आये हैं। बशीर साहब को देखकर मीर मढ़ाना के पटेल लालजीराम जी बोले, ‘अरे आओ मियांजी, बड़ी देर कर दी।‘

‘हाँ पटेल, जरा यों ही देर हो गई।‘ यह उत्तर सुनकर वे चुप हो गये।

रात्रि के दस बजे पंचायत शरू हो गई। महन्त की चाल के अनुसार पटेल लाललीराम मुखिया बन गए। चालें तो उसमें भी चलीं, पर मौन बहुमत लालजीराम को मिला। फिर सभी समझ गए कि गाँव के धर्माध्यक्ष महन्तजी के ये नुमाइंदे हैं। कोई विरोध न कर सकँूा।

अब मुखिया जी गो ब्राह्मण, संस्कृति के रक्षक बनकर पंचायत का संचालन करने लगे। पहले बात की खोजबीन की। विशुना से पूछा गया। उसने कहा, ‘मैंने बैल मरत तो नहीं देखो। जब बैल सारे दिन हल में चलो है फिर वाय एकदम कहा हो गऔ। यह बात सुनकर मुखिया ने विशुना को ललकारा, ‘कोऊ ठोस बात होती ताऊ ठीक रहती।‘ बात ढलती दिखी तो रंगाराम बोला, ‘जाको मतलब है कि बात गलत है।‘

‘देखो पटेल, मेरो मतलब जनाने। मैं कछूं जोई हो, बात को तथ्य तो देखनौ ही परैगो।‘ अब विशुना झट से बोला, ‘सबेरे के बख्त बैल कान्ती पे मारिवे दौरो तब से तनिक दिन नो ब मारिबो ही लगो रहो। मैंने बाय सवेरे ही समझाओ कै बैल को ऐसे मत मारे। पर व न मानों। पंचो, जब मैं तनिक दिनै वहाँ से निकरौ तो तबहू व बैलयें मारिबे लगो। संझा को सुनी कि बैल खेत में ही मरि गओ।‘ अब मुखिया जी बोले-‘बैल मरिबै के बख्त को कोई चश्मदीदी गवाह है।‘

पंचायत में सन्नाटा छाया रहाँ कोई न निकला। तब रंगारंग खड़ा हो गया, बोला, ‘जा को मतलब तो ज भओं कै कान्ती निर्दोष है।‘ अब मुखिया रंगाराम के पास गया और कान में फुसफुसाया। बशीर मियां बोले, ‘देखो साहब, बात ऐसी करो कै सब सुनते रहें।‘ अब मुखिया को बोलना ही पड़ा, ‘कहीं अन्यायी दण्ड से वंचित न रह जाए और कहीं न्याय धोखा न खा जाए कि निर्दोष को दण्ड दे दे।‘

बात सुनकर पटेल श्यामलाल खड़े हो गये और बोले, ‘मुखिया जी, अब फैसला सुना देऊ।‘ अब मुखिया जी उठकर एक झुन्ड में गए और चुपके-चुपके बातें कीं, फिर लोगों के दूसरे झुन्ड में गए, तीसरे में गए। कुछ लोगों को फिर अपने पास बुलाया, सलाह-मशवरा किया।

अब निर्णय सुनाने के लिए तन कर बैठते हुए बोले, ‘सुनो पंचो, बात यों है कि इस मामले में चश्मदीद गबाह की कमी है। इसलिए हम उसे छोड़ना भी नहीं चाहते और उसे दण्ड देना भी नहीं चाहते।‘

मियां बशीर को बोलना ही पड़ा, ‘देखो पंचो, आदमी को बीच में लटका कर मत रखो।‘

‘ठीक है, बीच में लटकाकर नहीं रखेंगे, तो न्याय खेरापति के अधीन छोड़ देते हैं।‘

अब रंगाराम बोला, ‘कैसे ? साफ-साफ कहें।

‘सात दिन के अन्दर यदि कान्ती को कोई हानि हो जाए तो समझ लो वह दोषी है, नही ंतो निर्दोष है ही।‘

‘हानि समझ में नहीं आई तो।‘

‘नहीं, हानि साफ दिख जायेगी ज हम सब पंचन की खेरापति से प्रार्थना है कि बात साफ हो जाए। ज ठीक है पंचो !‘

‘सभी का स्वर निकला- ठीक है और सभी उठ खड़े हुए। खेरापति के मन्दिर की परिक्रमा सभी ने की और अपने-अपने घर चले गए।

सात दिन ं ं ं

गँव इन दिनों में पूर्व की भांति दो हिस्सों में ही बंटा रहाँ दो कुएं, दो घाट यानी सारा का सारा गाँव दो दलों में विभाजित रहाँ डा0 रविकान्त के अस्पताल में गाँव के थोड़े ही मरीज आते थे। घटना के कारण कुछ-कुछ लोग अपने मरीजों को शहर ले जाने लगे थे। आज सातवां दिन भी समाप्त हो गया। कान्ती के यहाँ कोई अप्रिय घटना नहीं घटी। मरीज जा चुके थे। रवि चुपचाप बैठा यहीं सोच रहा था कि कान्ती ने अस्पताल में कदम रखा। और बोला-

‘राम-राम डाक्टर साहब !‘

‘राम-राम, कहो आज कैसे ?‘

‘जोईं चलो आओ। अरे जब खेरापति पै छोड़ दई तोऊ अपने कुआ पै गाँव के पानी भरिवै नहीं जात। न राम-राम करें।‘

‘यह तो उनके अपने मन की बात है।‘

‘सो बात कहाँ कत्तैं महन्त को पांच सौ रूपया पकरा आओ सो ं ं ं। नहीं बे तौ बई बखत कलंक लगा कें जातये।‘

‘ भैया कान्ती , मेरी समझ में नहीं आता कि रंगाराम कैसे मान गया?‘

‘अरे थोड़े बहुत जाऊ पै आ गए होंगे। बतो मोसे कल्ल ही कह दईती, कै मैं लालजी राम यें भेजगों, सब काम निबटा आयेंगे। अब तुम्ह ही देख लेऊ कैसो निर्णय दओ के कोऊ कछू कहही नहीं सकत। साफ-साफ बरका गए। भैया पैसा से सब हो जातो।‘

‘अब समझा कि ये लोग ऐसा निर्णय क्यों दे गऐ।‘

‘कैसा डाक्टर साहब ?‘

‘खेरापति पर छोड़ने का निर्णय कुछ जमा नहीं।‘

‘काये तो और कहा कत्तै ?‘

‘देख भईया वे तौ तूने पटा लये, नही ंतो वे ही तुम्हें सजा दै जातै।‘

‘कही सोऊ सांची। सब गाँव कस गओ।‘

‘अब तुम्हें क्या चिन्ता ?‘

‘बिन के सात दिना निकर गये। अब कोऊ कहा कत्तैं।‘

‘तुम तो अब चैन से रहूँ सब धीरे-धीरे आन-जान लगेंगे।‘

‘न आयें-जायें ! खबावे होय तो अच्छे-अच्छे भगत चले आंगे।‘

‘अच्छा ?‘

‘सच्ची है महाराज ता दिना पैसा बनो है ता दिना कोऊ नहीं बनो।‘

तभी गाँव का मरीज वहंा आ गया। कान्ती अपने घर चला गया। थोड़ी देर में दवा लेकर वह मरीज भी चला गया। अब रवि अकेला रह गया। बैठे-बैठे सोचने लगा।

गाँव महन्त के इशारों पर चलता है। चले क्यों न, लोग लेन-देन करने जायेंगे तो महन्त के यहाँ। जमीन बटाई पर लेेंगे तो महन्त की। बाकी उपजाऊ जमीन जो ठहरी। गाँव का हर आदमी कहीं-न-कहीं महन्त के चंगुल में उलझा हुआ है। इसी कारण न्याय है तो महन्त, अन्याय है तो महन्त। यही सोच पाया था कि दरवाजे पर आहट हुई-बशीर साहब थे।

उसके सामने पड़ते ही बशीर साहब बोले-‘कहो बरखुरदार, चुपचाप कैसे बैठे थे ?‘

‘यों ही सोच रहा था।‘

‘क्या सोच रहे थे ? हमें नहीं बतलाओगे।‘

‘महन्त के बारे में।‘

‘उसके बारे में क्या सोचते हो ? वह तो बरखुरदार आदमी नहीं है हैवान है हैवान !‘

‘सारा गाँव उसके चंगुल में फंसा हुआ है।‘

‘अरे, सरपंची के चुनाव में मुझे उसी की वजह से ही हार खानी पड़ी है।‘

‘इस गाँव की जनता मूर्ख है।‘

‘मूर्ख नहीं है डाक्टर साहब उसके चंगुल में फंसी है, इस गाँव में उसके एजेंन्ट बिखरेे हैं।‘

‘ये पटेल रंगाराम ं ं ं।‘

‘ठीक है बरखुरदार, यह उसका पक्का एजेन्ट है। महन्त तो गाँव में आता ही नहीं है। सारे काम इसी के माध्यम से होते हैं।

‘कैलाश भी तो महन्त से लेन-देन करता है।‘

‘अरे जो वह कर्ज देता है तो वसूल भी कर लेता है। हर महीना पांच रूपये प्रति सैकड़ा तक का लोग ब्याज देते हैं और कर्ज लेते हैं।‘

‘इतना महंगा ब्याज ?‘

‘अरे न दिया तो वह लोगों को वहीं बुला लेता है, मार के डर से सभी ं ं ं।‘

‘हरे राम-राम, यह तो बड़ा अत्याचार कर रहा है।‘

‘बरखुरदार, उससे जूझे बिना, हमें किसी तरह की कोइ सफलता नहीं मिल सकती। हम तो अपने मकसद में तब सफल होंगे जब इस महन्त के चंगुल से गाँव मुक्त हो जायेगा।‘

‘कानून का कोई ऐसा रास्ता नहीं जिससे ं ं ं।‘

‘बरखुरदार, कानून तो सभी का साथ देता है, पर डारपोक कानून के लाभों से वंचित रह जाते हैं।‘

‘फिर ?‘

‘उससे जूझना ही पड़ेगा। लोगों को अपनाना पड़ेगा। दबे हुए लोगों का साथ देना पडे़गा।‘

‘यह तो नेतागिरी हुइर्, फिर डाक्टरी ?‘

‘तुमसे दोनों नहीं बनते तो रश्मि को नेतागिरी शरू करा दो।‘

‘और मैं डाक्टरी करूँ।

‘तो वह थोड़ी डाक्टर है जो डाक्टरी करती और तुम ं ं ं।‘

‘लेकिन उसे चार दीवारी से कैसे बाहर लाया जाए ?‘

‘अपने अस्पताल में नर्स के कार्य हेतु उसे इस बहाने घर से निकाला जा सकता है।‘

‘घर के लोग विरोध करेंगे।‘

‘क्या विरोध करेंगे ?‘

‘कहेंगे कौन से इतने मरीज आते हैं जो सम्भलते नहीं हैं।‘

‘देखो, अभी अस्पताल में मरीजों की संख्या इतनी कम हो गई है। थोड़े दिनों बाद जब मरीज बढ़ जायेंगे तो घर के लोगों को समझा कर निकाला जा सकता है।‘

‘सभी लोग पुरानी परम्पराओं में ढले हुए हैं। रश्मि पर्दा नहीं करती, उसका भी इतना विरोध है ं ं ं ?‘

‘तो न निकालो बेाचरी को, फिर उसके पढ़े-लिखे होने का क्या फायदा हुआ ?‘

‘मैं तो चाहता हूँ कि वह् ं ं ं।‘

‘तो फिर विरोध की चिन्ता नहीं करनी चाहिए।‘

‘लेकिन मरीजों की संख्या तो बढ़े।‘

‘अरे इसमें चिन्ता की क्या बात है ? आज नही ंतो कल मरीज बढ़ंेगे ही। शहर में एम0 बी0 बी0 एस0 डाक्टर क्या इतना सस्ता इलाज करेंगे ? पर विश्वास रखो ?‘ तभी किसी मरीज के आने की आहट हुई। बशीर साहब बोले- ‘देखो, लोग सोच-सोच कर आ रहे हैं। भाईजान, तुम अब अपने मरीज को देखो, हम चलते हैं।‘

‘बशीर साहब चले गए। रवि मरीज को देखने में व्यस्त हो गया।

आज अस्पताल का काम कम था। इसी कारण आज घर जल्दी पहुँच गया था। रश्मि से बातें करने के मूड में भी था। जब बैड-रूम में पहुँचा तो दस बज चुके थे।

‘आज भी स्पताल में कोई मरीज नहीं आया ?‘

‘नहीं रश्मि, आज तो फिर से मरीजों का आना प्रारम्भ हो गया है, पर पहले की तरह ंनहीं ं ं।‘

डाक्टर साहब,‘ लोगों की अवधारणाएं समय के अनुसार धीरे धीरे बदलतीं रहतीं हैं।‘

‘‘ तुम्हें लोगों की मनोवृति का इतना गहरा अध्ययन है।’

‘आपको पता तो है कि बी.ए. में मनोविज्ञान मेरा विषय रहा है। पिताजी ने मेरी मनोवृति देखकर ही इस विषय को लेने का परामर्श दिया था।’

‘ ये नेता लोग जनता जनार्दन की मनोवृति के अच्छे जानकार होते हैं।;

‘ तो क्या इसी कारण आप मुझ से नेता बनने के लिये कहते रहते हैं।;

‘ मैं तुम में नेताओं के सारे गुण देख रहा हूँ, लेकिन तुम झूठ फरेब की राजनीति नहीं कर सकँूतीं।’

‘मैं इसी कारण इस नेता गिरी से दूर रहना चहती हूँ। मैं अपने कालेज में अध्यक्ष पद पर भारी बहुमत से चुनी गई थी।’

‘मैंडम, गाँव की राजनीति और कालेज की राजनीति में जमीन आसमान का अन्तर होता हैं।

‘ आप और बशीर चाचा जी की,मेरे राजनीति में आने की बातें स,े दूर भाग रही हूँ। आप कहेंगे मैं जीवन के हर प्रसंग में दर्शन की तलाश करने लगती हूँ।

रश्मि, गृहस्थ जीवन में इतनें दर्शन की आवश्यकता नहीं होती।‘

‘होती क्यों नहीं, काश ! आज हमारे देश की हर नारी दार्शनिक हो तो देश तो क्या, संसार की काया पलट हो सकती है।‘

‘तब तो तुम बहुत ही बड़ी दार्शनिक जान पड़ रही हो।‘

‘ दार्शनिकता तो हम सबके रग-रग में समाई होती है। प्रत्येक व्यक्ति आंशिक रूप से ही सही मनोबिज्ञान का जानकार होता है और मनोबिज्ञान आदमी को दार्शनिक की ओर मुखतिब करता है। डाक्टर का पेशा करने वाले यदि मनोबैज्ञानिक नहीं है तो वह मरीज का ठीक से इलाज भी नहीं कर पायेगा।‘

‘‘रश्मि जी , आप ठीक कहती हैं। मुझे मरीज के मन की बात जानना अच्छा लगता है। इससे उसका इलाज काने में आसानी रहती है। ‘

‘ डाक्टर साहब, यदि आप मरीजों की सेवा भावना से इलाज करेंगे तो आप मुझे नेता बनाने में भी मदद कर सकते हैं।’

‘शायद तुम्हारे यही विचार बशीर साहब ने सुने होंगे तभी तो वे तुम्हें इस चहार दीवारी से बाहर लाने की सिफारिश करते रहते हैं।‘

‘सिफारिश से नहीं, अगर आप स्वयं मुझे इस योग्य समझते हैं तो मैं बाहर निकलने के लिए मना नहीं करूंगी।‘

‘पूत के पांव तो पालने में ही दिख जाते हैं।‘

‘तो फिर कब इस नारी का अहल्या की तरह उद्धार कर रहे हैं?‘

‘समय की प्रतीक्षा है।‘

‘कैसा समय ?‘

‘अस्पताल में मरीजों की संख्या बढ़ जाये, मैं काम न सम्हालने के बहाने तुम्हें घर से बाहर ले जाऊंगा।

‘ काश ! मैं नेता बनने की जगह, आपके अस्पताल की परिचारिका बन सकती।‘

‘ इस गाँव के वातावरण को देखकर तो बशीर साहब तुम्हें राजनीति में लाना चाहते हैं।‘

‘ अब समझी, आप मुझे राजनीति में लाने की बात कह कर मुझ से राजनीति कर रहे हे।‘

‘रश्मि की यह बात सुनकर रविें मुस्कराकर रह गया। वह दिनभर का हारा थका था तो जल्दी सो गया, लेकिन रश्मि को आज खुशी के मारे नींद नहीं आ रही थी। पहले वह सोचती रही- वह घर से बाहर निकलेगी। घर के लोग तथा गाँव के लोग विरोध करेंगे। मैं सब कुछ सह लूंगी।

-मेरे सामने गाँव की समस्याएं आयेंगी, लेकिन गाँव के वातावरण पर तो महन्त छाया हुआ है। महन्त, मुझे तो इस महन्त से सख्त नफरत है। देश भर में महन्त जाति का अवलोकन करने निकलें तो शायद सभी ऐसे ही निकलेंगे।

-मैं कई बार इस महन्त के बारे में रवि से पूछने का मन कर चुकी हूँ। लेकिन रह जाती हूँ। कहीं यह महन्त ं ं ं।

तभी रवि ने करवट बदली। जागते हुए बोला-‘तुम जाग रही हो ?‘

‘हाँ।‘

‘क्यों ? क्या बात हो गई ?‘

‘यों ही खुशी के मारे कि मैं अस्पताल की सेविका बनूंगी।‘