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मंथन 10

मंथन 10

सोचते-सोचते पांच दिन व्यतीत हो गये, पर मुर्तियाँ नहीं मिलीं। रश्मि, रवि और बशीर मियां की बैठक शुरू हुई। गाँव के भी कुछ लोगों को बुलवा लिया गया। रवि पटेल रंगाराम से बोला-‘पटेल, मेरे मन में तो एक बात आ रही है।‘

‘कहो कहा बात ?‘

‘ये मुर्तियाँ मिलनी चाहिए।‘

पटेल रंगाराम बोला-‘जामें अपनो कहा जोर।‘

बशीर जोश में आते हुए बोले, ‘जोर क्यों नहीं, हम आन्दोलन छेड़ देते हैं। पुलिस अपराधियों को पकड़ने का प्रयास तेज कर देगी।‘

बात पर प्रश्न रवि ने कर दिया-‘चाचाजी, आन्दोलन कैसे करेंगे ?‘

पटेल झट से बोल पड़ा-‘मूर्ति फिरहू न मिली तो।‘

बशीर मियां झट से बोले, ‘मन्दिर पर भूख हड़ताल का प्रोग्राम रखा जा सकता है।‘

पटेल ने बात काटी-‘अरे छोड़ो मियां जे बातिन में कहा धरो है?‘

अब वे दूसरा उपाय सोचते हुए बोले, ‘तो फिर मूर्तियों की सेवा के बदले जो जमीन है उसे छीन लेना चाहिये। अरे जब मुर्तियाँ ही चली गईं तब मन्दिर में किस की पूजा होगी।‘

रश्मि बोली-‘आपकी बात तो उचित है।‘

‘तो फिर हम उस जमीन पर कब्जा करने के लिये धावा बोल देते हैं ?‘

बशीर की इस बात को रंगाराम ने फिर काटा-‘आदमी मज्जायगो।‘

रश्मि बोल पड़ी-‘कौन मारेगा ?,‘

रंगाराम ने उत्तर दिया ‘महन्तये, कछू कम समझो, बाकी जमीन पै कब्जा करिवों खेल नाने।‘

इस बात के उत्तर में बशीर मियां बोले-‘तो पहले मैं मरने को तैयार हूँ।‘

बात पर फिर रंगाराम ने डांट पिलाई-‘देखो मियां, ऐसी नेतागिरी हमें अच्छी नहीं लगत।‘

‘पटेल, लोगों ने मुझे इसलिए नहीं जिताया कि मैं अब आराम से मजे करूं।‘

अब रवि बोला- ‘प्रश्न चोरी का नहीं है, प्रश्न है हमारी संस्कृति का, जो विदेशों में बेची जायेगी। हमारे देश की कितनी बदनामी होगी।‘

अब रंगाराम ने सलाह दी-‘देखियो डाक्टर, कहीं तुम उल्टे न फंस जाऊ।‘

‘पटेल, यदि मैंने गलती की होगी तो मुझे सजा मिलनी ही चाहिए।‘

‘तो डाक्टर ऐन बना लेऊ प्रोग्राम, पर होशियारी कन्नो परेगी।‘

बशीर मियां बोले-‘अरे! वह किस-किस को मारेगा। जमीन-जायदाद उसी मन्दिर की हैं। जो चोरी चले गए हैं। जब वह उनकी रखवली नहीं कर पाया तो इस जमीन पर उसका क्या हक?‘

पटेल ने प्रश्न- ‘तो किसका हक है।‘

बशीर ने उत्तर दिया- ‘सारे समाज का, गरीबों का। मजदूर और किसानों का जो वर्शों से उसी जमीन को जोतते आ रहे हैं।‘

‘हमें क्या मिलेगा जो हम मरे ?‘

‘तुम्हारा जिस जमीन पर कब्जा है, उसमें से थोड़ी बहुत तुम्हें भी मिल सकती है।‘ बात सुनकर वह लोभ आ गया तो बोला, ‘ठीक है तो मियां तुम जानों मोय तो ज खूंखार महन्त से डर लगतों।‘

‘हम जो तुम्हारे साथ हैं पटेल ! हम आगे चलेंगे हमें जमीन-जायदाद भी नहीं चाहिए। बस लोगों को सबक मिल जाए, फिर विदेशों में कोई मुर्तियाँ न बेच सके।‘

पटेल ने फिर प्रश्न कर दिया-‘जाको मतलब तो ज है कै महन्त ने ही मूर्ति चुरवाईं हैं।‘

‘तभी तो वह हमें फंसाना चाहता है कि हम फंस जायें तो फिर उसका कौन क्या करता है ?‘

‘अरे तब तो ज बात सच्ची लगतै। ठीक है विचार कर लेऊ। मैं तो चलतों अच्छा राम-राम।‘

बात का समर्थन देकर पटेल का चला जाना, सभी के मनों में शंका उत्पन्न कर गया। सभी जान गये कि इन सारी बातों की सूचना महन्त को मिल ही जायेगी। बात का अन्दाज करते हुए बशीर मियां बोले, ‘अब क्या सोच रहे हो बरखुरदार !‘

रश्मि बोली, ‘यह सोच रही थी कि पटेल लोगों को तोड़ने- फाड़ने की कोशिश भी कर सकता है।‘

रवि बोला-‘ ये पटेल भी महन्त का पक्का नुमाइन्दा है।‘

‘ अब जो हो बरखुरदार, पर हम अपना काम करें। अरे! अब हम ऐसा काम करें जिससे विरोधियों के मुँह बन्द हो जांए।’

‘लेकिन मियां ये सब के सब स्वार्थी तत्व हैं।‘

रश्मि बोली-‘यदि पक्का इरादा हो तो हमारा रास्ता सही है। तो फिर अब काम में देर की जरूरत नहीं है।‘

‘ठीक है बरखुरदार, मैं सूचना भिजवाए देता हूँ तभी तय कर लेंगे कि क्या कदम उठाना है ? अच्छा मैं चलता हूँ फिर शाम को चार बजे यहीं सभी इकट्ठे होंगे, तैयारी रखना।‘

‘जी !‘ रवि ने जवाब दे दिया।

बशीर साहब घर चले गये। जब से वे जनपद के अध्यक्ष बने थे, गाँव का चौकीदार सेवा में रहने लगा था। भारतीय संस्कति को बचाने के नाम पर सारे गाँव के लोगों के पास उन्होंने सूचना भिजवाई। वही जाकर सब जगह सूचना दे आया।

शाम को चार बजे तक गाँव के सभी लोग वहाँ आ गये। पटेल भी आ गया तो बशीर मियां ने आज के कार्यक्रम के अध्यक्ष पद के लिए पटेल रंगाराम का नाम प्रस्तावित कर दिया। पटेल घिघियाते हुए निवेदन करने लगा- ‘मियां मैं आपके सामने अध्यक्ष। नहीं, अध्यक्षता तो आपको ही करनी पड़ेगी।‘ सभी की श्रद्धाएं बशीर साहब पर थीं तो सभी बोल पड़े, ‘मियां पटेल कह रहे हैं तो अध्यक्ष तुम्हें ही बन्नों परेगो।‘ बशीर मियां को कहना ही पड़ा, ‘ठीक है आप सब लोग कहते हैं तो ।‘ वाक्य अधूरा छोड़ कर अध्यक्ष के आसन पर बैठ गये।

सभा की कार्यवाही का भार रश्मि ने सम्हाला। सभा शुरू हुई। रश्मि ने प्रस्ताव रखा, ‘हम देख रहे हैं हमारी संस्कृति बिकती जा रही है। हम चन्द कागज के टुकड़ों पर अपने को इतना गिराते चले जा रहे हैं कि अपना सिर उठाकर अपनी संस्कँूृति के बारे में दो शब्द भी नहीं कह सकतेे। हमारे गाँव के मन्दिर से मूर्ति चोरी होना ही एक बात नहीं है, इससे दूसरी बात भी जुड़ी है कि ये मुर्तियाँविदेशों में बेच दी जायेंगी, तब दूसरे देशों में लोग हमारी धार्मिक भावना को क्या समझेंगे? यही कि पैसों के लिए हम अपने धर्म को बेच सकते हैं। नहीं ं ं ंनहीं ं ं ंहम यह सहन नहीं कर सकते। मन्दिर की मुर्तियाँ वापिस आनी ही चाहिए।‘

सभा से आवाज आई ‘वापिस न आईं तो । अरे जब अभी तक नहीं मिली तो क्या भरोसा?ं‘

बात पर रश्मि आगे बोली-‘तो मूर्तियांे के हितार्थ जो महन्त को मिलता था, उसे बन्द कर देना चाहिए यानी मन्दिर की सारी सम्पत्ति छीनकर गरीबों में बाँट दी जाए। इसीलिए मैं चाहती हूँ सुबह साढ़ सात बजे सभी लोग अपने-अपने हल लेकर उस जमीन को जोतने चलें। अभी ही इसकी सूचना महन्त के पास भी भेज दी जाए कि तुम्हें ये जनता की अदालत तुम्हारी मन्दिर की सेवा से तुम्हें प्रथक करती है।‘

इस बात पर तालियों की गड़गड़ाहट आकाश में गूंज गई। रश्मि ने कहना जारी रखा-‘ अब आप लोगों में से इस सम्बन्ध में कोई कुछ कहना चाहे तो यहाँ आकर कहे। जिससे हम सब उस बात पर विचार कर सकें।‘

बात सुनकर रंगाराम वहाँ आ गये और बोले-‘ज बारे में मैं सोचतांे कै महन्त की कोई गलती नहीं है। मूर्ति चोरी गईं तो वे क्या करें ? बिन्ने तो पूजा के लिए पुजारी रखा है। बिनकी जायदाद पर कब्जा करनो नाजायज बात है। फिर वे भी कछू कम नाने। बिनकी जायदाद पर कब्जा करिबो खेल नाने। तासे बेकार के चक्कर में मत परो, फिर जो तुम सब करोगे तामें मैं हूँ, तैयार हों।‘ कहकर बैठ गया।

सभी इस बात पर चुप रहे तो बशीर साहब उठे और खड़े होकर अपने आसन से ही बोले-‘ ‘जब हमारी संस्कति यानी हमारी आत्मा पर चोट पहुँचाई जा रही है। हम सहन नहीं कर पा रहे हैं। चोट पहुँचाने वाले को हम दण्ड देकर, व्यवस्था में परिवर्तन करना चाहते हैं। जिससे लोग ऐसा काम करने में डरेंगे। अपनी जान की बाजी लगाकर अपने ईश्वर की रक्षा करेंगे। अब मैं चाहता हूँ। प्रस्ताव के अनुसार सभी लोग साढ़े सात बजे अपने-अपने हल लेकर मदरसे पर आ जावें। इससे देश को एवं हमारी संस्कृति को एक नई दिशा मिलेगी। देश से मूर्तियों की चोरी बन्द हो जावेगी। यह एक जघन्य अपराध है। गौ हत्या से भी बड़ा पाप। ये मन्दिर के पुजारी ही लोभ में आकर यह जघन्य अपराध कर डालते हैं। अरे, जिस भगवान की खातिर खापी रहे हैं, उसी को बेच कर खा जाएं। हम उसे तब अल्लाह के नाम पर न खाने देंगे।‘

बात पर तालियों की गड़गड़ाहट। बशीर साहब ने बोलना जारी रखा -‘अल्लाह के बन्दों का हक उसके बन्दों को मिलना चाहिए। अल्लाह के बन्दे गरीब हैं। हरिजन आदिवासी हैं, मजदूर हैं। यह हक उन्हें ही मिलना चाहिए।‘

पुनः तालियों की गड़गड़ाहट। अब वे पुनः बोले - ‘मैं आप लोगों से आग्रह करता हूँ कि कल सुबह साढ़े सात बजे अपने-अपने हल लेकर बंसी वाले खेत पर चलें।‘ इस बात पर भी तालियां बजीं और सभा विसर्जित हो गई। सभी अपने-अपने घर चले गये।

सभा समाप्त होने के बाद बशीर साहब और रवि गाँव में लोगों को सलाह-मशविरा के रूप में साहस दे रहे थे। कहीं कोई हार मानकर घर बैठा न रह जाए। घटना की जानकारी सभी को हो गई थी। गाँव की महिलाओं के पास खबर भेज दी गई। उनके आने का समय हो गया। एक-एक दो-दो करके महिलाएं आनी शुरू हुईं। कुछ ही समय में सारा का सारा अस्पताल भर गया। पहले की तरह रश्मि ने अपनी बात का परिचय कराया, फिर पुरूश समाज में हुए निर्णय को लेकर एक प्रस्ताव रखते हुए रश्मि बोली- ‘पुरुश समाज ने जो प्रस्ताव स्वीकार कर दिया है। हम चुपचाप उनकी बातों का समर्थन करते रहें ? सत्य क्या है ? इसकी खोज का ठेका क्या पुरुशों ने ही लिया है ? हमें उनसे उस नहीं रहना चाहिए। आज हमें तय करना है कि हम उन्हें साथ दें या न दें। हमारी सभा स्वीकार करेगी तो हम उनका साथ देंगे। सारा गाँव साथ दे रहा है। हमें अपने विवके से काम लेना है। उनके विवके पर जीना-मरना इस युग में शोभा नहीं देता है।‘

वह कुछ क्षण रुककर फिर बोली-‘‘हमारे निर्णय को पुरुश वर्ग ने नहीं माना तो हम उनका साथ नहीं देंगे।‘

बात पर सरजू पटेलिन बोली, ‘हमाई बात बिन्ने नहीं मानी तो हम बिनको कहा कर लंगे।‘

रश्मि बोली, ‘हम जमीन पर इनका कब्जा नहीं होने देंगे। हम महन्त का साथ देंगे। पुरूश क्या समझते हैं कि हम उनसे डरते हैं ? हमें उनकी जूठन खाकर पलते रहना चाहिए। अब यह नहीं हो सकता। हमें बराबरी का हक चाहिए ?‘ कह कर रश्मि चुप हो गई। सभी औरतों ने बात का तूल बनाना चाहा।

अब विशुना की मां उठी और बोली, ‘देखियों डाक्टरनी बाई काऊ यें मरवा मत दियो।‘

रश्मि झट से बोली, ‘कैसी बात करती हो चाची? जहाँ आपका पसीना गिरेगा वहाँ मैं अपना खून बहा दूंगी।‘

बात पर सरजू पटेलिन उठी और कहने लगी, ‘जिन्हें अपओं मत देनो होय वे अपनों हाथ उठा दें। जोर-जबरदस्ती काऊ से नाने।‘

कहते में हाथ उठने लगे। अब रश्मि बोली, ‘बस बस मैं जान गई कि कौन उनके साथ है, कौन नहीं ? हम पुरुशों के साथ हैं। जीवन की गाड़ी के दो पहियों में हम भी एक हैं और दूसरे पुरुश हैं। विरोध हमें पुरुशों से नहीं है। किसी भी मसले पर विचार करने का हक हमें भी है। चाहे वह मामला घर का हो, चाहे बाहर का हो !‘

तालियां बजीं रश्मि ने बोलने का क्रम जारी रखा, ‘मेरी सबसे यही प्रार्थना है कि हमारी यदि जरूरत पड़ती है, तो हम तन-मन-धन से पुरूशों का साथ देंगी। अब मैं भारत माता की जय के साथ अपना कहना समाप्त करूंगी। भारत माता की सभी ने कहा- ‘जय !‘ सभा समाप्त हो गई। रश्मि ने अपने अस्पताल की गैस-बत्ती से रास्ता दिखाया। सभी को घर-घर छोड़ने गई। रास्ते से सभी अपने-अपने घर जाती गईं और अन्त में रश्मि अपने अस्पताल पर लौट आई।

रात रवि नहीं लौटा। उसने खबर भेज दी कि मैं रात में बशीर साहब के यहाँ ही ठहरूंगा। रश्मि ने यह सोच कर कि महन्त को खबर मिलते ही यहाँ आ सकता है इसलिए रश्मि अस्पताल पर ही सोई। रवि के पिता इन्द्रजीत जी भी सोने आ गये। इससे डर की बात न थी। रश्मि को रात को नींद नहीं आई, सोचती रही। गाँव को इतनी बड़ी अग्नि परीक्षा में झोंक कर कहीं हम गाँव को पथरा तो नहीं रहे हैं। यह गाँव की ही अग्नि परीक्षा नहीं है। यह हमारी भी अग्निपरीक्षा है। रवि और बशीर साहब के मनों में भी यही बातें सवार थीं। जीवन को दांव पर लगा कर खेले जाने वाला खेल ही भाग्य का निर्णायक बन गया था।

बशीर मियां भोर होने का बड़ी देर से इन्तजार कर रहे थे। सोने का प्रयत्न करते तो बुरे-बुरे सपने सामने आ जाते।

भौर हो गई। रवि और बशीर साहब लोगों को तैयार करने निकल पड़े, जिससे कार्य में विलम्ब न हो जाये।

सुबह के सात बज गये। सभी लोग अपने-अपने हल लेकर बंशी वाली बगिया के लिये चल दिये।

बंशी वाली बगिया आ गई। यह खेत बीस बीघा का था। गाँव भर इसे सबसे अच्छा खेत मानता था। इसी पर सबसे पहले कब्जा करने का प्रोग्राम था। खेत की मेंड़ पर सभी एक कतार में खड़े हो गये। अपने-अपने हलों को सजाने लगे, जिससे वे धरती के सीने को चीर कर अनाज उगलवा सकें।

इस खेत के चारों ओर गन्ने के खेत थे। सभी अपने-अपने काम में लग गये थे। यह पहला अवसर था, जब गाँव के हल सामूहिक रूप से चल रहे थे। रवि, रश्मि और बशीर मियां वहाँ मौजूद थे ही। गन्ने के खेत की मेंड़ से आते हुए कुछ लोग दिखे। महन्त कुछ लोगों को लेकर घटनास्थल पर आ गया। महन्त को आया देखकर सभी के हाथ-पांव ढीले पड़ गये। रवि, रश्मि और बशीर मियां उनकी ओर बढ़े, रश्मि महन्त के सामने पड़ गई। उसे देख महन्त पहचानते हुए बोला, ‘अरे साधना तुम, भई तुम तो अपनी थीं। तुम्हीं इन लोगों को समझा देतीं।‘ अब बशीर मियां आगे आ गये और बोले, ‘वह बेचारी मुझे सब कुछ बता चुकी कि तुम ं ं ं।‘

‘कहो -कहो, रूक क्यों गये मियां। क्या कहने में शर्म आती है ?‘

‘अपनी बेटी के बारे में कुछ भी कहने में शर्म सभी को आती है।‘ रवि ये बातें सुन रहा था, पर समझ नहीं पा रहा था कि ये क्या बातें हो रही हैं ?‘ महन्त की आवाज कानों में गूंजी- ‘मियां ये हल वापिस लिवा जाओ, क्यों झगड़ा बढ़ाते हो ?‘

बशीर ने झट से उत्तर दिया-‘मजदूर और किसान तुमसे क्या झगड़ा कर पायेंगे ?‘ वह बोला, ‘तुम्हीं उन्हें इसके लिए मजबूर कर रहे हो।‘

बशीर को सफाई देनी पड़ी- ‘मैं मजबूर कर रहा हूँ।‘

यह बात महन्त ने अनसुनी कर दी और अपने लठैतों को आदेश देते हुए बोला, ‘बद्री, जाओ, कोई भागने न पाये।‘ यह आदेश सुनकर तो सभी समझ गये वह लड़ना ही चाहता है। अब रश्मि चीखी, ‘कमीने, मैं सब कुछ सहन कर सकती हूँ, पर इन मजदूरों और किसानों पर किया अत्याचार सहन नहीं कर सकती।‘

‘तो रानी क्यों लिवा लायी इन्हें यहाँ।‘ रानी शब्द सुनकर बशीर मियां महन्त पर परेनियां उठा कर दौड़े। महन्त के कुर्ते के नीचे पिस्तौल थी। महन्त ने पिस्तौल निकाली और चला दी ‘ठांय‘। बशीर मियां के सीने में गोली लगी। रवि ने आगे बढ़कर महन्त की पिस्तौल वाली कलाई पकड़ ली। रश्मि ने बशीर वाली परेनियां हाथ में उठा लीं और महन्त के सिर में दे मारी। पिस्तौल हाथ से छूट गई। अब रश्मि ने पिस्तौल उठा ली। ट्राईगर दवा दिया। पिस्तौल ने दूसरी गोली उगली, ‘ठांय‘ गोली महन्त के लगी। लाश धड़ाम से गिरी, छोटी-छोटी नुकली घास पर बिछ गई।

अब रवि और रश्मि उन लठैतों की ओर मुड़े तो सभी भागे जा रहे थे। लोग उनका पीछा करते हुए बढ़ रहे थे। रवि और रश्मि जोर-जोर से चिल्लाये।

‘सभी वापिस आओ‘ कहते हुए रवि और रश्मि बशीर साहब के पास आ गये। रश्मि ने साड़ी फाड़ी और पट्टी रवि की ओर बढ़ा दी। बशीर खून से लथपथ थे। रवि को पट्टी हाथ में लिये देख बोले, ‘अब मेरा ं ं ंसमय ं ं ं आ गया है ं ं ं रवि ं ं ं भीख ं ं ं मांगता ं ं ं हूँ।‘

‘कहो कहो ?‘ अब झटके के साथ सांस लेते हुए बोले ं ं ं‘इस ं ं ं इस कमीने ं ं ं ने मेरी बेटी के साथ ं ं ं साथ ं ं ऊं ऊं ं ं ं । बेटा, रश्मि का इसमें कोई दोश नहीं है। आपस में खाई ं ं ं न बन जाये।‘

रवि सभी बातें समझते हुए बोला, ‘मैं वादा करता हूँ।‘

‘अब तक सभी लोग वहाँ आ चुके थे। बशीर मियां की इन बातों को समझने की कोशिश कर रहे थे। कोई भी बातों का अर्थ समझ नहीं पा रहा था। अब बशीर रश्मि को सम्बोधित करके बोले, ‘बेटी रश्मि, ं ं ं अब तो तू ं ं ं मेरे सपनों को ं ं ं ।‘ गर्दन लुढ़क गई।‘ रश्मि चीखी, ‘नहीं इ ई ं ं ं ई।‘

बद्री पहलवान ने भाग कर पुलिस स्टेशन को सूचित कर दिया। अभी यहाँ से कोई भाग भी न सका था। सभी किंकर्तव्य विमूढ़ से थे। अब क्या करें ? क्या न करें ? सोच-विचार के बाद रवि पुलिस को रिपोर्ट देने जाने ही वाला था तभी एक जीप गाड़ी रास्ते में आते दिखी। सभी समझ गये कि पुलिस आ गई है। यह देख रवि वहीं रूक गया। कुछ लोगों ने वहाँ से खिसकना चाहाँ रश्मि समझ गई तो बोली-‘हम सब तभी बच पायेंगे जब सभी साथ दें। एक भी फूटा तो हम सभी अन्दर किये जा सकते हैं।’ सभी भयभीत से खड़े रहे। पुलिस आ गई। सभी को चारों ओर से घेर लिया। सभी के बयान लिये जाने लगे। रवि ने सभी से कह दिया, बचान सच-सच देना, झूठ बोलने की जरूरत नहीं है।

सभी ने सच-सच बयान दिये। पुलिस लाशों को पोस्ट मार्टम के लिये ले गई। सभी लोगों को भी पकड़ कर ले गई।

दोनों पार्टियों पर मुकदमा चालू कर दिया गया। सभी को जमानत करवानी पड़ी। रश्मि की जमानत लेने से पुलिस ने इन्कार कर दिया। उस पर बिना इरादतन हत्या का केश दफा 304 बी लगाकर जेल भेज दिया गया। रवि सहित सभी लोग छोड़ दिये गये।

शाम होने से पहले सभी लोग गाँव में बशीर मियां की लाश को लेकर लौट आये। सभी लाश को लेकर बन्शी वाले खेत पर पहुँच गये। बशीर साहब को उसी जगह दफनाया गया जहाँ उनके प्राण निकले थे। दफनाते समय न कोई हिन्दू था, न ईसाई, न सिख। सभी के सभी भारतीय थे।

अब बशीर साहब को दफना कर सभी उदास मन से लौट रहे थे। सभी के मन भारी थे। ऐसा लग रहा था मानो सभी एक बड़ा बोझ अपने सिर पर लादे चले आ रहे हों। चुपचाप सभी गाँव की ओर चले आ रहे थे।

रंगाराम ने मौन तोड़ा-‘बशीर मियां अच्छे आदमी हतो। ज ठीक रही जहाँ मरो तही दफना दओ।‘

अब विशुना बोला-‘अब तो कक्का व खेत को नाम सोऊ बशीर वाई बगियां पज्जायेगी।‘ बात सभी को भा गई। विशुना पहली बार इतना अच्छा बोला था।

अखबारों के पृश्ठ पर दूसरे दिन यह खबर छपी, ‘खेरा ग्राम में चोरी गई मुर्तियाँ सान्ताक्रूज ऐरोड्रम से बरामद।‘

‘विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि उक्त मूर्तियांे के चोरी जाने के कारण खेरा गाँव की जनता को बड़ी ठेस पहुँची है। घटना के फलस्वरूप गाँव के लोगों ने मन्दिर की जमीन पर कब्जा करना चाहाँ मन्दिर का महन्त चन्दनदास जमीन की रक्षा के लिये लठैतों सहित वहाँ आ गया। मुठभेड़ में महन्त और गाँव के नेता एवं जनपद अध्यक्ष बशीर मियां की जानें गईं। मूर्तियों को ले जाते हुए दो विदेशी गिरफ्तार कर लिये गये हैं। मन्दिर की मूर्तियों की चोरी में महन्त का नाम लिया जा रहा है। पुलिस ने शान्ति भंग एवं मर्डर के केस में दोनों पक्षों पर मुकदमा दायर कर दिया है।

पुलिस केस को न्यायालय में ले गई। रश्मि की जमानत की अर्जी लगा दी गई। न्यायालय ने जांच के बाद हत्याकांड में महन्त की ही पिस्तौल होने के कारण रश्मि की जमानत स्वीकार कर ली।

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