पूर्व कथा जानने के लिए पिछले अध्याय अवश्य पढ़ें।
पंचम अध्याय
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गतांक से आगे….
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पांचवें कमरे में रहते हैं पचपन वर्षीय अविवाहित नीलेश,मस्तमौला, बिल्कुल आजाद परिंदा।आप सोच रहे होंगे कि एक प्रौढ़ व्यक्ति को वृद्धाश्रम में रहने की आवश्यकता क्या पड़ गई।तो उनकी कहानी कुछ यूं है---
नीलेश के पिता एक उच्च व्यवसायी एवं मां एक अत्याधुनिक महिला थीं।पिता धन कमाने में व्यस्त रहते तथा मां अपनी पार्टियों एवं कथित समाजसेवा में।
जब दौलत बेहिसाब होता है और कोई रोक-टोक करने वाला न हो तो बच्चों के कदम बहकने से कौन रोक सकता है।पढ़ाई--लिखाई में तो नीलेश का मन लगता नहीं था, बिंदास खाना-पीना एवं दोस्तों के साथ तफरीह करना।मां-बाप से तो लगाव था नहीं, एक छोटी बहन थी जो घर में सबसे अलग थी,कीचड़ में कमल जैसी,किसी भी अवगुण से अछूती।हां, बहन से बेहद स्नेह था नीलेश को,उसी की वजह से कभी-कभार हॉस्टल से घर आ जाता था।बस इतना गनीमत था कि कभी कभी शराब पीने के अतिरिक्त औऱ किसी नशे की लत में नहीं पड़ा।।घूमते-फिरते फोटोग्राफी का शौक चढ़ गया।
ऐसा नहीं था कि नीलेश की जिंदगी में प्रेम ने दस्तक न दिया हो।बहन की ही सहेली थी उर्वशी, यथा नाम तथा रूप,बेहद खूबसूरत, यदि एक बार निगाह पड़े तो हटने का नाम ही न ले।युवा नीलेश प्रथम मुलाकात में ही होश गवां बैठा।उर्वशी को ईश्वर ने फुर्सत में बनाया था, रूप के साथ साथ गुणों की भी धनी थी,जिसकी भी जीवनसाथी बनती, उसका जीवन संवर जाता।वैसे आकर्षक तो नीलेश भी कम नहीं था, अतः जब नीलेश ने उर्वशी के समक्ष मित्रता का हाथ बढ़ाया तो वह इनकार न कर सकी।शीघ्र ही उनकी मित्रता प्यार के पथ पर चल पड़ी।जीवन में प्रेम के प्रवेश करते ही नीलेश में आश्चर्यजनक परिवर्तन आया।सर्वप्रथम तो इर्दगिर्द मंडराते चापलूस मित्रों से किनारा कर लिया।अब या तो उर्वशी के साथ होता, या उसके ख्यालों में डूबा रहता।
इसी बीच बहन का विवाह हो गया।नीलेश के घर वालों को भी उर्वशी बेहद पसंद थी,अतः वे अब उनका विवाह कर देना चाहते थे।लेकिन दो-तीन वर्षों के साथ में उर्वशी समझ चुकी थी कि नीलेश अपने भविष्य के प्रति गम्भीर नहीं है, हर बात को हवा में उड़ा देता है, किसी भी बात पर संजीदा नहीं होता है।
जब भी वह आगामी जीवन के बारे में बात करती तो वह तुरंत कह देता कि कल किसने देखा है, आज में जीना चाहिए।उर्वशी समझाती,"सही है, कल का क्या पता, कब कौन सी समस्या सामने आ जाय, इसलिए इंसान को हर परिस्थिति से जूझने की पूरी तैयारी पहले ही कर लेनी चाहिए।"
पिता के व्यवसाय को संभालना नीलेश को कतई पसंद नहीं था, इतना बन्धन उसे सहन नहीं था।फोटोग्राफी के शौक में उसने डिप्लोमा कर लिया था।उर्वशी ने समझाया कि वाइल्डलाइफ या फैशन फोटोग्राफी में भी कॅरियर बनाया जा सकता है।उसकी प्रेरणा से नीलेश ने वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी प्रारंभ कर दिया, जल्दी ही वह सफलता की ऊंचाइयों को छूने लगा,जिसने उसके भ्रमण के शौक को पंख लगा दिए।अब उसका ज्यादातर समय देश-विदेश में घूमने में निकलने लगा।
प्रेम तो ठीक है लेकिन इस तरह बंजारों सी जिंदगी उर्वशी पूरी उम्र नहीं बिता सकती थी।वह समझ चुकी थी कि नीलेश के साथ पैसा-प्रसिद्धि तो मिलेगी, परन्तु उसके साथ को वह तरस कर रह जाएगी।
नीलेश भी समझ गया था कि वह उन्मुक्त आकाश का वह पक्षी है जो पिंजरे में नहीं बंध सकता।अतः आपसी रजामंदी से दोनों ने अपने रास्ते अलग कर लिए।कुछ समय तो वे एक दूसरे की यादों में मौजूद रहे, फिर शीघ्र ही अपनी अपनी जिंदगी में आगे बढ़ गए।पिता के व्यवसाय को दामाद ने संभाल लिया।नीलेश की पटरी अपने बहनोई से नहीं खाती थी।धन तो उसके पास भी अत्यधिक था लेकिन घर नहीं बनाया, क्योंकि एक जगह ज्यादा दिन ठहरता ही नहीं था।उसके सभी मित्रों-परिचितों का अपना परिवार था, सभी व्यस्त थे, अब वह भागते -भागते थकने लगा था।कभी कभी कहीं ठहरना चाहता था, इसी तलाश ने उसे सांध्य गृह तक पहुंचाया था, लेकिन यहां भी वह एकाध माह रहता, फिर किसी जगह कभी काम के सिलसिले में, कभी भ्रमण के लिए निकल जाता था।जबतक रहता, उसके बातों,ठहाकों से पूरा घर गुंजायमान रहता है।उसकी जीवंतता हम सबमें एक अद्भुत उत्साह का संचार कर देता है।जब वह बाहर जाता है तो हम सब उसकी वापसी का बेहद बेसब्री से प्रतीक्षा करते हैं।वह हमारे घर की जान बन चुका है।
क्रमशः ……
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