आपकी आराधना - 13 Pushpendra Kumar Patel द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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आपकी आराधना - 13







भाग - 13

मिस्टर अग्रवाल की ये बातें सुनकर आराधना फूली न समायी और सोंच कर ही पागल सी हो गयी। शायद ये किसी सपने से कम न हो, पर सपने भी तो एक दिन सच हो सकते हैं न। लेकिन अचानक से ये सब कैसे ?
शायद ये उसकी प्रार्थनाओं का ही असर है
लगता है इस बार भगवान ने उसकी विनती स्वीकार कर ली। इतनी बड़ी खुशखबरी वह बिना मनीष से साझा किये कैसे रह सकती थी ?
एक बेटा जो अपनी माँ और बहन के प्यार के लिए तरस रहा था शायद उसे सब कुछ मिल जाये।
उसने मनीष को कॉल किया

" हेलो मनीष जी "

" हेलो आराधना "

" पता है आपको..
आंटी और शीतल खुद हमे लेने आ रहे हैं, मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा "

" पापा ने मुझे भी बताया अब यकीन तो करना ही पड़ेगा न "

" मनीष जी!
मैं बता नहीं सकती आपको
मेरे पाँव तो जमी पर टिक ही नही रहे "

" जब खुशियाँ आचनक से आ जाये तो ऐसा ही होता है।
पता है आराधना इस दिन का कितना इंतजार था हमें, काश मैं भी वहां मौजूद होता "

" हाँ जी, पता नही कैसे गुजरेंगे आपके बिना ये दो दिन "

" मेरा मन तो करता है आरू, सब छोड़कर मै तुम्हारे पास ही आ जाऊँ
पर क्या करूँ? कॉलेज का इतना इम्पोर्टेन्ट वर्क है और फर्स्ट टाइम मुझे जिम्मेदारी सौंपी गई है "

" कोई बात नही मनीष जी, आप काम पर पूरा ध्यान दीजिये। और फिर आपका वंश है न मेरे साथ "

" वंश नही मेरी आरु,
वंशिका कहो..
कितनी बार कहा है लड़की होगी, बिल्कुल आराधना पार्ट 2 "

" अच्छा ठीक है
मिस यू मनीष जी
आई लव यू "

" लव यू टू
मेरी आरू, मिस यू सो मच "

मनीष और आराधना मन ही मन खुशियों के समुंदर मे गोते लगाए जा रहे थे। एक तरफ नन्हे मेहमान की खुशी जिसका नामकरण उन्होंने पहले ही कर दिया था और फिर कमला और शीतल के आने की खबर।
मनीष ने उसे कहा कि वह कल मम्मी और शीतल के पसंद का ही खाना बनाये और आगे बताया कि कल के अरेंजमेंट के लिये उसने अमित से बात कर ली है वह बाजार से सारी खरीददारी कर लेगा।

शाम के 6 बज रहे थे ढलती सूरज की किरणें खिड़की से आरधना के चेहरे पर ही बिखर रहे थे तभी दरवाजे पर दस्तक हुई।

" अरे! अमित जी आप..."

" आराधना जी.....
ये कुछ सामान है।
मनीष जी ने बताया कि कल आंटी और शीतल जी आ रहे हैं , मतलब आपका वनवास खत्म..."
अमित ने थैला थमाते हुए आराधना से कहा।

" जी अमित जी, पापा जी ने कहा है आंटी भी बेकरार है हमसे मिलने के लिये "

" दैट्स ग्रेट
हमारा भी मिलना हो जाएगा इसी बहाने
वैसे टाइमिंग क्या है उनके आने का ? "

" पापा जी ने कहा था शायद 10 बजे तक "

" ठीक है वैसे तो कॉलेज मे कल एक मीटिंग है
तो मुझे आने मे थोड़ा लेट हो सकता है "

" कोई बात नही अमित जी,
आप आराम से आना। वैसे भी कल रात का खाना आपको यहीं खाना है "

अमित पहले तो मना करने लगा, उसने इतना तो जान लिया था कि कमला आंटी थोड़ी शख्त है और शायद उसका यहाँ आना उनको अच्छा न लगे। लेकिन आराधना का दिल रखने के लिए उसने हाँ कहा।

आराधना ने रात का खाना जल्दी ही खा लिया,
और जुट गयी तैयारी मे उसने फूलदान मे नये फूल सजायें, पर्दे बदले और जो कुछ भी बन पड़ा वो किया।
वैसे भी तो वह हमेशा से ही साफ सफाई और डेकोरेशन के मामले मे अव्वल थी। कल का सूरज उसके लिए नया सवेरा लाने वाला था , आखिर मिस्टर अग्रवाल ने जो कहा था वही हो रहा था। कोई भी माँ अपने बच्चों से ज्यादा दिन तक नाराज नही रह सकती और हर माँ तो एक दिन चाहती है कि नन्हें बच्चे की किलकारी उसके आँगन मे गूँजे।
पर न जाने क्यों रह - रह कर उसे मनीष की याद सता रही थी। काश! वो भी उसके साथ होता तो इस अधूरेपन मे रंगीनियाँ भर जाती, इन आर्टिफिशियल फूलों से भी सुगन्ध आने लगती। काश ! मनीष और वो एक साथ ही कमला आंटी का आशीर्वाद ले पाते। एकपल के लिये तो उसे ऐसा लगा मनीष उससे बहुत दूर है फिर अपने पेट पर हाथ घुमाते हुए वह महसूस करने लगी उस नन्ही सी जान को और मन ही मन गुनगुनाने लगी।

# तुम बिन जिया जाए कैसे
कैसे जिया जाए तुम बिन
सदियों से लम्बी हैं रातें
सदियों से लम्बे हुए दिन
आ जाओ लौट कर तुम
ये दिल कह रहा है #

पता नही अचानक उसकी आँखें क्यों नम हो गयी और वो नींद में खो गयी।

सुबह के 11 बज रहे थे आराधना ने घर का सारा काम पूरा कर लिया था।
वह दरवाजे के पास खड़ी होकर बाहर की ओर ही निहार रही थी। उसकी धड़कने धीमे- धीमे बढ़ती जा रही थी न जाने कब वो पल आ जाये जब कमला आंटी और शीतल उसके सामने हो।
इंतजार की घड़ियां खत्म हुई एक चमचमाती कार सामने आकर रुकी और उसमे से कमला आंटी और शीतल बाहर आई। उन्होंने ड्राइवर को कुछ इशारे मे कहा और ड्राइवर कार मोड़ते हुए आगे की ओर बढ़ गया। वही पुराने ठाट-बाट और एटीट्यूड के साथ माँ - बेटी नये ड्रेस मे जँच रहे थे। धीरे-धीरे आराधना ने अपने कदम बढ़ाये और उन्हे अंदर बुलाया। अपने सिर पर पल्लू चढ़ाते हुए उसने कमला आंटी के पैर छुए।

" जीती रहो "
फलों से भरा बैग थमाते हुए उसने धीमे से कहा।

शीतल ने तिरछी निगाहों से देखते हुए आराधना से कहा -
" बहुत ज्यादा खुश नजर आ रही हो आरधना,
क्या बात है ? "

" बस आप दोनों को इतने दिनों बाद देखा है,
उसी की खुशी है "
आराधना ने सकुचाते हुए जवाब दिया और किचन की ओर गयी।

" कैसी हैं आंटी आप? "
पानी का गिलास और नाश्ते की प्लेट सामने रखते हुए आराधना ने कमला आंटी से कहा।

" कैसी हूँ मै?.....
जिस माँ का जवान बेटा छीनकर तुमने अपने बस मे कर लिया, और जिसके पति को अपने इशारे पर नचा रही हो । उस माँ से हाल- चाल पूछती हो....
कुछ तो शर्म करो लड़की।

क्रमशः......