दोस्ती से परिवार तक - 5 Akash Saxena "Ansh" द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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दोस्ती से परिवार तक - 5

खून से लगभग पूरे लाल हो चुके और सफ़ेद चादर से ढके स्ट्रेचर पर, भीड़ को चीरती हुयी... लोगों की परछाईयों को समेटती हुयी कुछ गाड़ियों की रोशनी पड़ रही होती है... भीड़ मे फिर हलचल होने लगती है....
'अरे!कौन होगा बेचारा'

"पता नहीं इसके घर वालों को पता भी होगा की नहीं"

'कितनी दर्दनाक मौत मरा है भगवान इसकी आत्मा को शांति दें '
भीड़ में खड़े लोग ऐसी ही बातें करने लगते हैँ और फिर थोड़ी देर बाद उस आदमी का चेहरे पर से कपड़ा हटाया जाता है......जो की कुछ हद तक साफ किया जा चुका था... ताकि उसकी पहचान हो सके....चेहरे पर से कपड़ा हटते ही भीड़ मे सन्नाटा छा जाता है....सब बस उस लाश को ही देख रहे होते हैँ....

चेहरे पर गहरे घाव, एक आंख पर बँधी पट्टी, कान और नाक से बेहता खून, कटे होंठ....इतनी बुरी हालत की शायद कोई मारा हुआ इंसान भी उसे देखकर रो पड़े.....

तभी एक हवलदार जोर से आवाज लगाकर पूछता है 'क्या यहाँ कोई है जो इस आदमी को जानता हो... क्या कोई इसके साथ मे है? '.... हवलदार कई बार आवाज़ लगाता है लेकिन कोई आगे नहीं आता.... मनीष, रिया को वहीँ छोड़कर हिम्मत कर के उठता है और नम आँखे लिए धीरे धीरे हवलदार की तरफ बढ़ता है....काफी जाम लग चुका था...तो पुलिस सब को जाने को कहने लगी और उस डेड बॉडी को भी एम्बुलेंस में रख कर सब जाने लगे...सबको जाता देख मनीष ने आवाज़ लगायी..'.सर! सर! रुकिए ज़रा'.....
ट्रैफिक के शोर में मनीष की आवाज़ उन तक नहीं पहुंची वो भीड़ को हटाकर आ पाता...तब तक एम्बुलेंस का सायरन फिर शुरू हुआ और साथ में ही पुलिस की गाड़ियों के सायरनों की आवाज़े भी इतने शोर में फिर से गूँजने लगी...उस लाश को लेकर वो काफ़िला चलने लगा....मनीष एम्बुलेंस तक पहुँचता तब तक एम्बुलेंस थोड़ा आगे जा चुकी थी, उसके मन में बस राहुल का ख्याल था और बस उसने बिना कुछ सोचे एम्बुलेंस के पीछे दौड़ लगा दी... एम्बुलेंस काफ़िर रफ़्तार पकड़ चुकी थी....मनीष ने पूरी ताकत लगा दी पर वो उस तक नहीं पहुँच पाया और हाँफ़ते हुए वहीँ बैठ गया....उसने थोड़ा वक़्त लिया, फिर वो उठा और रिया को फ़ोन किया....
"हेलो रिया!देख मैं यहाँ खड़ा हूँ तू गाडी लेकर जल्दी से इधर आ".....

रिया रोते हुए बोली....'लेकिन मनीष... अब हम कहाँ जाएंगे'

मनीष-वो सब छोड़, तू बस जल्दी से गाड़ी लेकर आ! जल्दी आ....

रिया-पर मनीष!

मनीष-पर वर छोड़ तू जल्दी आ नहीं तो एम्बुलेंस निकल जायेगी....हमें उसके पीछे जाना ही होगा।
रिया- अच्छा! अच्छा आती हूं तू वहीँ रुक!

रिया उठी, उसने अपने आंसू पोंछे और जल्दी से गाड़ी
की तरफ बढ़ी....दरवाज़ा खोल कर वो अंदर बैठी ही थी की फ़ोन बजा....राहुल का फ़ोन जो कार में रह गया था....रिया ने झट से फ़ोन की तरफ देखा और अपने काँपते हाथों से फ़ोन उठा कर देखा....तो वो राहुल की माँ का कॉल था...रिया समझ नहीं पायी की वो क्या करे?..उसने कॉल रिसीव नहीं किया और कॉल कट गयी...फ़ोन की बैटरी बिलकुल डेड हो चुकी थी...रिया ने फ़ोन देखा तो उसमे 53 मिस्ड कॉल थी...जो की राहुल के घर से ही थी...इतने में फ़ोन स्विचड ऑफ हो गया...