मुक्म्मल मोहब्बत - 11 Abha Yadav द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मुक्म्मल मोहब्बत - 11


मुक्म्मल मोहब्बत -11


"नील,कहां मटरगश्ती कर रहे हो ?बहुत लापरवाह हो.काम कब शुरू करोगे?"मोबाईल उठाते ही ऐनी ने तोप के गोले उडा दिये.


"डियर, ऐनी !कभी तो प्यार से बात कर लिया करो.बिस्तर पर हूँ . भला रात के ग्यारह बजे कहां मटरगश्ती करुंगा."

"क्या चल रहा है?"

"वोटिंग."

"कब तक वोटिंग करोगे. माना तुम्हें नैनी झील में वोटिंग पंसद है. लेकिन, कब तक ?"

"अब ,यह सिलसिला लंबा चलेगा."

"पागल हो गए हो तुम?"ऐनी दहाड़ी.

"तुम्हारी दुआ से भला चंगा हूँ."

"काम कब शुरू करोगे?"

"शुरू कर दिया. झील में वोटिंग करते हुए."

"ठीक से बात करो."ऐनी झल्लायी.

"मुझे वोट में एक बला की खूबसूरत लड़की कहानी सुना रही है."

"जवान,खूबसूरत लड़कियों को देखकर तो तुम वैसे भी फिसल जाते हो."ऐनी हँसी.

"ऐनी, बच्ची है,वह.चौदह-पन्द्रह साल की.नौवीं कक्षा की स्टूडेंट."

"नानसेंस !परियों की कहानी सुना रही होगी."

"नहीं, अपने दोस्त की कहानी सुना रही है. हेडिंग भी उसी ने बताया है-मुक्म्मल मोहब्बत."मैंने ऐनी को बताया.

"उसके बारे में डिटेल में बताओ."

"वह मुझे झील के किनारे मिलती है.वोट में सैर करते हुए कहानी लिखवाती है.इससे जायदा उसके बारे में कुछ नहीं पता. उसके बारे कुछ जायदा पूँछने से शायद वह डर जाये.अगले दिन आये ही न."मैंने ऐनी को संतुष्ट करना चाहा.


"कहानी कैसी है?"

"उसकी सोच अच्छी है. हेडिंग अच्छा है. सम्भव है कहानी अच्छी निकले.वैसे पंसद न आने पर तुम्हारे लिए दूसरी कहानी लिखूंगा. अभी यही चलने दो."

"जैसा तुम ठीक समझो."ऐनी ने एक झटके से फोन काट दिया.

दो मिनट के लिए ही सही ,मेरी कुशलता तो पूँछ लेती ऐनी. क्यूँ करती हो इतना काम.सारी उम्र पड़ी है ,काम के लिए. प्यार -मोहब्बत की बातें भी कर लिया करो.-सोचते हुए मुस्कुरा दिया मैं. ऐनी के लिए काम की यही उम्र है.प्यार-मोहब्बत के लिए सारी जिदंगी पड़ी है.


ऐनी से छिटक कर मेरे सोच मधुलिका की ओर बढ़ गये. उसे जानने की उत्सुकता अब मुझे भी होने लगी है.उसका घर कहां है. घर से आती है या हॉस्टल में रहती है. अब तक अकेले ही आ रही है. उसके परिवार का कोई या उसकी कोई फ्रेड़ भी उसके साथ नहीं होते.मेरे झील पर पहुंचने से पहले ही वह वहां मौजूद मिलती है. हां,जाते हुए अवश्य देखता हूँ. वोट से उतरकर वह सामने वाली पहाड़ी की ओर जाती है. सोचता हूँ, उसके पीछे जाकर उसका घर देख आऊं. लेकिन, यह ख्याल भी जेहन में अधिक नहीं टिका.यह ठीक है, अकेले आती है. बिंदास है.लेकिन, उसकी मासूमियत देखकर डर जाता हूँ.बेहद मासूम हरकतें हैं ,उसकी.एकदम बचकानी.

ऐसा भी हो सकता है -किसी रिश्तेदार के घर रह रही हो. इधर घूमने चली आती हो. वैसे भी अंधेरा होने से पहले वापस चल देती है. शायद इतना ही घूमने की उसे परमीशन हो.ऐसे में, मैं उसके पीछे उसके घर पहुंच जाऊं तो उसके रिश्तेदार की आँख में किरकिराऊँगा ही.साथ ही मधुलिका का झील पर आना बंद हो सकता है. वैसे भी मेरा और मधुलिका का साथ तभी तक है,जब तक वह झील पर आ रही है और मैं नैनीताल में हूँ.

मधुलिका को जायदा जानने के चक्कर में कहानी अधूरी रह जायेगी और अब यह मैं चाहता नहीं हूँ.वैसे इतना तो उससे पूँछ ही सकता हूँ-कहानी पूरी लिखवायेगी.वैसे भी वह कहानी अपनी मर्जी से लिखवा रही है.यह अलग बात है कि अब मुझे भी उसके दोस्त बादल में रूची होने लगी है.भले ही यह कच्ची उम्र का समर्पण हो लेकिन, है निस्वार्थ. वैसे भी इस उम्र में दोस्ती के मायने सिर्फ दोस्ती ही होती है. तभी तो बचपन के दोस्त.... लगोंटिया यार ...जैसे शब्द बने हैं. ऊपर से बादल जैसे सुपर हीरो से भला कौन आकृष्ट नहीं होगा.

.....बादल के हटते ही जेहन में मधुलिका समाने लगी.परी जैसी मधुलिका में बादल की जान अवश्य बसती होगी. इतनी खूबसूरत, भोलीभाली लड़की किसी की भी चाहत हो सकती है.औरों की बात छोड़िए. चंद दिनों में मेरे ही दिलोदिमाग में छा गई है. बादल तो उसी के कालेज में पढ़ता है. रोज ही मिलता होगा. हो सकता है उसके काफी करीब हो वह भी मधुलिका का अपना बहुत अच्छा दोस्त मानता हो.शायद अनछुई, अद्भुत मोहब्बत हो दोनों के बीच.

मैंने एक गहरी सांस लेकर निगाह दीवार घड़ी पर डाली.घड़ी आधीरात का ऐलान कर रही थी. अब ,मुझे लाईट ऑफ करके सो जाना चाहिए. सुबह पांच बजे जोशी आंटी बेड-टी लिए कमरे के गेट पर होगीं.

हां,आंटी की बेड -टी मेरी नींद खराब नहीं करती.मुझे भी सुबह जल्दी उठने की आदत है.




क्रमशः