मुक्म्मल मोहब्बत - 12 Abha Yadav द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

मुक्म्मल मोहब्बत - 12


मुक्म्मल मोहब्बत-12


"बादल की हथेली से बहता खून देखकर मुझे ऐसा लगा-मेरे शरीर का सारा खून बह गया. मैंने अपनी जेब से रूमाल निकाल कर उसकी हथेली में लपेट दिया. लेकिन, चोट गहरी थी.खून रूक ही नहीं रहा था.मैंने बादल की हथेली को अपनी स्कर्ट में लपेट लिया .खून तो रूका. लेकिन, स्कर्ट रंगीन हो गई."कहते हुए वह रूकी. फिर बोली-"स्वीट तुम्हें पता है?"


"क्या?"टाईप करते हुए मेरे हाथ रुक गये.

"बादल की हथेली में तीन टांके आये."

"ओह!"मैंने धीरे से कहा.

"लिखो न!"
"अंय,हां."मेरे हाथ चलने लगे.

"उसकी हथेली पर पट्टी बंध गई. वह अपने काम एक हाथ से कर रहा था.बैग उठाकर कंधे पर डालना. बैग से बुक निकालना .सब एक हाथ से हो रहा था.मैंने देखा ,उसके दोस्त भी उसकी हेल्प कर रहे थे. तभी न जाने क्यों मुझे उसका दर्द अपने हाथ में महसूस हुआ. मैंने भी अपनी बांयी हथेली पर पट्टी लपेट ली और एक हाथ से काम करने लगी."


मैंने एकदम चौंक कर मधुलिका की और देखा.

वह अपनी बांयी हथेली को तमन्यता से देखकर बोली-"तुम चौंक गये स्वीट !बादल भी मेरी हथेली पर बंधी पट्टी को देखकर ऐसे ही चौंका था.उसने पूँछा भी था,हाथ में क्या हुआ है."
मैंने उसे बताया -"मेरी बजह से तुम्हारे हाथ में टांके आये हैं. तुमने जेवलिन को हाथ नहीं मारा होता तो मेरा काम तो तमाम था."
"हां,लेकिन तुम्हारे हाथ में क्या हुआ?"
"तुम्हारे हाथ के दर्द को मैं अपने हाथ में महसूस कर रही हूँ. मेरी बजह से तुम एक हाथ से काम कर रहे हो. मुझे भी तुम्हारा साथ देना चाहिए न!"


" मेरी बात सुनकर बादल बहुत हँसा.बोला कुछ नहीं. बस,उसकी सर्चलाईट सी आँखें मेरे चेहरे पर घूम गई."


"तुम्हारी हथेली पर पट्टी कब तक रही."मैंने पूँछा.
"जब तक बादल की पट्टी नहीं खुल गई."
"तब तक एक हाथ से काम...."

"बादल भी तो एक ही हाथ यूज कर रहा था."कहकर उसने अपनी बांयी हथेली को इस तरह चूमा जैसे वह बादल की हथेली चूम रही हो.


मैं उसके चेहरे को पढ़ने की कोशिश कर रहा था-यह बचपना है.... दोस्ती है....या प्यार.... कहीं लैला-मंजनू का दोबारा जन्म तो नहीं हो गया. चोट मंजनू को लगे दर्द लैला को हो.


वह अभी भी खोई-खोई सी अपनी बांयी हथेली को देख रही थी. उसकी बड़ी -बड़ी गहरी नीली आँखों में कुछ तरल सा तैर गया था.लगा नैनी झील उसकी आँखों में झिलमिला रही है. इन आँसुओं में दर्द नहीं था.शायद ,यादों का समंदर था.उसके गुलाबी होंठों पर हल्की सी मुस्कान की रेखा थी.जैसे यादों के कँवल उसके होंठों पर खिलने वाले हों.


मैं उसे अपलक निहार रहा था-मोहब्बत केवल युवक-युवतियों की धरोहर नहीं होती. मोहब्बत तो सर्वव्यापी है.सबमें बसती है. एक छोटा बच्चा भी मोहब्बत समझता है. पशु -पक्षी भी मोहब्बत की भाषा पढ़ लेते हैं. शायद मधुलिका भी इसी मोहब्बत को महसूस कर रही है.बादल भी इससे अनजान नहीं होगा. यकायक मेरे मुँह से निकला-"बादल को तुम्हारी बहुत परवाह रहती है. तभी उसने तुम्हारी मुसीबत अपनी हथेली पर ले ली."

"अरे,बादल भी किसी की मुट्ठी में बंद हुआ है कभी ! जहां जरूरत हुई.... उड़ा... पहुंचा.... बरसा....और बस."


"आसमान का बादल या तुम्हारा बादल ?"मैंने हाथ रोक कर प्रश्न किया.

"मेरा दोस्त बादल !हां, बादल केवल मेरा नहीं है. वह सबका है."
मैं देख रहा था उसके चेहरे की मासूमियत को.कितनी आसानी से कह दिया-सबका बादल .प्यार को बंटते देख कोई ईष्या नहीं. नहीं दिखते आसानी से ऐसे लोग जो प्यार को बस प्यार समझें.


वह फिर बोली-"बादल को सबकी परवाह थी.पता है डियर स्वीट !.एक बार क्लास सेंकेंड के पुनीत का बैग घर जाते समय लंगूर ले गया. उसने पढ़ी एक बुक भी नहीं. लेकिन, नोटबुक की पंतगें पेड़ पर बैठे -बैठे हवा में उड़ा दीं.सारे बच्चे बहुत परेशान हुए. पुनीत तो दहाड़े मार कर रो रहा था. बादल ने लंगूर से बैग भी छुड़ाया और पुनीत की नई नोटबुक में काम पूरा करने में हेल्प भी की."


"बादल पढ़ाई में कैसा है?"मैंने पूँछा. मैं जानना चाहता था कि बादल केवल यही सब करता था.या पढाई में भी मन लगाता था.


"तुम सोच रहे हो. बादल इन्हीं कामों में लगा रहता है तो पढ़ता नहीं होगा. सुनो,डियर रायटर! वह हर साल कालेज में टाप करता है. लास्ट ईयर भी किया. समझे,बुध्दू !"मधुलिका आँखें नचाकर बड़ी अदा से बोली.

पहले उसकी अदा पर मुझे हँसी आ गई. फिर कुछ संजीदा होकर बोला-"डियर स्वीट... डियर रायटर....अब बुध्दू ! कितने नाम दोगी ?"

"तुम नाराज हो गए. मैंने तो यूँही प्यार से बुध्दू...."कहते हुए वह हड़बड़ा गई. उसके चेहरे पर उदासी छाने लगी.वह कुछ डरी सी थी.शायद उसे लगा कि मैं नाराज हो गया तो उसकी कहानी नहीं लिखूंगा.


"नहीं, हम दोस्त हो गये हैं. बुरा क्यूँ मानूंगा."मैंने सहजता से कहा मुझे उसके चेहरे की उदासी अच्छी नहीं लग रही थी.


"तुम बहुत अच्छे हो.लेकिन, मेरा दोस्त तो केवल बादल है."वह गम्भीरता से बोली.


मैं अवाक सा उसकी आँखों में बादल के प्रति उसका समर्पण...उसका निश्छल प्यार देख रहा था, जो बस इबादत के सिवाय कुछ नहीं था.



क्रमशः