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मन की बातें

मन की बातें ।
_मुकेश राठोड़ ।

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शायराना अंदाज से।

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क्या जानू ।
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कैसे मिली तनहाई क्या जानू ;
दर्द है या दवाई क्या जानू ? ।

कोई रूठी हुई है मुुजसे भी;
परी है या परसाई क्या जानू ? ।

बादलों में छाई है काली घटा?
या जूल्फ उसने लहराई क्या जानू ? ।

भरोसा नहीं था मेरे प्यार का !
की ऐसे ही फड़फड़ाई क्या जानू ? ।

सामने मिली कुछ इस तरह से,
की कैैसे नज़र टकराई क्या जानू ? ।

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जरुरी तो नहीं।
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कोई हमसे प्यार करे , जरुरी तो नहीं ;
अपना दिल दुश्वार करे, जरुरी तो नहीं !

सब, अपने मर्जी के मालिक है भाई ;
कोई मुझे अपना यार करे, जरुरी तो नहीं !

मां हर बच्चे को प्यारी लगती है ;
सबकी मां दुलार करे, जरुरी तो नहीं।

माना की वो चाहती है मुजको बहुत ;
हर जनम न्योछार करे ,जरुरी तो नहीं।

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लोग मिल जाते हैं।
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मन में हो चाहत,तो लोग मिल ही जाते है;
कोई ना आये आहट,लोग मिल ही जाते है।

कहा था किसी को ,लाख मन्नते करके,
मिलेगे इधर ही ,या जन्नते ,मरके ;
क्या बताऊं किसीको क्या दर्द मिला है मूजको;
मिले जो दिल को राहत, लोग मिल ही जाते हैं।

खामोशी सी छाई है, उसकी तन्हाई से ,
लगता है डर मुजकों,खुद की परछाई से ;
न जाने किस बात का , दिया है दर्द खुदको ;
खुद को मिले गरमाहट, लोग मिल ही जाते हैं।

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लगा में।
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किसी को जूठा ,किसी को सच्चा लगा में ;
जिसकी जितनी जरूरत ,उतना अच्छा लगा में।

किसी को मोटा ,किसी को पतला लगा में ;
किसी को नोटा, किसी को बच्चा लगा में।

कोई खुद को मानती थी होशियार बड़ा ;
किसी,किसी को ,अक्कल का कच्चा लगा में।

देखती है आज भी , मुजको हर तरफ से ;
सायद पहेचाननेमे ,उसको लुच्चा लगा में।

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नई जान मिली है ।
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एक नई पहचान मिली है ,
लोगो में जो शान मिली है;
अच्छा लगता है सब कुछ अब,
जैसे कि नई जान मिली है।

अब किसी से क्यू गभराना ?
बे वझा ही क्यू मरजाना ;
क्यू लगता कोई खान मिली है;
जैसे कि नई जान मिली है।

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कहासे लाऊ।
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हर चेहरे पे हसीं कहासे लाऊ,
हर मुस्कान सच्ची कहसे लाऊ।

आखिर में भी तो इंशान हूं यारो,
हर दिए की बत्ती काहसे लाऊ ।

मुजमे भी है कुछ कमिया ,क्या करू;
उतनी बड़ी में हस्ती, काहासे लाऊ।

रंजिश नहीं अब जमाने की मुजकॊ,
बिना डाली की पत्ती कहासे लाऊ।

मर रहे है लोग सैकड़ों की तादाद में,
हर कुएं की रस्सी कहासे लाऊ।

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इन्सान दिखते है कफनों में
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खोया हूं में सपनों में,
कभी मूजमे ,कभी अपनों में।
क्या करू ,कहा जाऊ,
इन्सान दिखते है कफनो में।

घूम रही है लासे जैसे,
ता ता थै थै नाचे जैसे,
क्या करू,कहा जाऊ,
इन्सान दिखते है कफनो में।

कहीं नहीं भगवान पड़ा है,
सबके अंदर हैवान पड़ा है,

कौन मारे,कौन बचाए,
सबके सब बेजान पड़ा है,
क्या करू,कहा जाऊ
इन्सान दिखते है कफानो में।

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_मुकेश राठोड़।


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