बात बस इतनी सी थी - 28 Dr kavita Tyagi द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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बात बस इतनी सी थी - 28

बात बस इतनी सी थी

28.

वीडियो के पहले दृश्य में मेरी माता जी बोल रही थी और उनके सामने मंजरी के साथ उसके मम्मी-पापा चुप बैठे हुए उन्हें सुन रहे थे । माता जी कह रही थी -

"यह आप भी अच्छी तरह जानते हैं कि मैं तो सिर्फ यह चाहती थी कि मेरे बेटे की शादी उसकी मन-पसंद लड़की के साथ हो जाए, जिसको वह चाहता है और उसका घर बस जाए ! मैंने कभी आपसे दहेज नहीं माँगा था ! आप खुद अपनी मर्जी से अपनी बेटी की खुशी के लिए उसको दिल्ली में एक फ्लैट खरीदकर देना चाहते थे ! आप चाहते थे कि आप अपनी बेटी की शादी के अवसर पर उसे सरप्राइज गिफ्ट के तौर पर फ्लैट दें ! फ्लैट खरीदने में आप मेरी और मेरे बेटे की मदद चाहते थे, जिसके लिए आपने मुझे अस्सी लाख रुपये दिए थे ! क्या यह बात एकदम पूरी तरह सच नहीं है ?"

"हाँ-हाँ, बिल्कुल सच है ! आप एकदम पूरी तरह सच कह रही हैं !"

मंजरी के पापा ने मेरी माता जी के बताए हुए सच को स्वीकार कर लिया, तो माता जी ने फिर बोलना शुरू किया -

"आपसे मेरा पहला सवाल तो यही है कि जब आप भी मानते हैं कि यह सच है कि मैंने आपसे कभी दहेज नहीं माँगा था, तो फिर आपने मुझे अस्सी लाख रुपये देते हुए चोरी से मेरी वीडियो क्यों बनवाई ?"

अपने प्रश्न का उत्तर पाने के लिए माता जी कुछ सेकंड तक मंजरी के पापा का मुँह ताकती रही । वह सिर झुकाकर बिल्कुल चुप बैठे रहे । उनकी ओर से कोई जवाब नहीं मिलने पर माता जी ने उन पर आरोप लगाते हुए कहा -

"मेरी इस तरह वीडियो बनाना आपकी सोची-समझी चाल थी, जिससे आपकी बेटी जिंदगी भर लड़के को ब्लैकमेल करती रहें और उसको दबाकर रख सके !"

"नहीं, बहन जी ! यह आप गलत कह रही हैं ! ऐसा बिल्कुल भी नहीं है !"

"ऐसा नहीं होता, तो उसी वीडियो को दिखाकर शादी के मंडप में भरे समाज में आप हमारा इतना अपमान न करते !"

"बहन जी ! दरअसल मंजरी को तब तक आपके और हमारे बीच में होने वाली बातों का पता नहीं था, इसलिए जानकारी की कमी में वह सब हो गया था ! पर आप उसका यह मतलब बिल्कुल न समझें कि ... !"

"उस दिन मैं अपने अपमान का कडुवा जहर पीकर इसलिए चुप रह गई थी, कि मेरे बेटे का दिल ना टूटे और इन दोनों बच्चों का घर बसने से पहले ही न उजड़ जाए ! जिसने पूरे समाज के सामने मेरा अपमान किया, मैं उसी को इज्जत के साथ अपने घर की लक्ष्मी बनाकर ले गयी ! लेकिन आपने क्या किया ? मेरे बेटे के खिलाफ कोर्ट में केस पर केस डालते रहें ! कभी घरेलू अत्याचार का केस, कभी गुजारे भत्ते का केस, तो कभी दहेज का केस !"

"तो और क्या करती हैं मैं ? केस करने के अलावा मेरे लिए और कोई रास्ता भी तो नहीं छोड़ा था आप लोगों ने ! आपके बेटे के साथ शादी करके मेरी पूरी जिंदगी तबाह हो गई है !"

"तुम्हारी कौन-सी जिंदगी कहाँ तबाह हुई है ? जिंदगी तबाह तो तुमने मेरे बेटे की कर दी है ! तुमने तो मेरे बेटे के साथ केवल एक रात बिस्तर साझा करके झूठी वीडियो को सबूत बनाकर मेरे बेटे से अस्सी लाख रुपये हड़प लिये !"

माता जी के कड़वे शब्द सुनकर मंजरी अपना आपा खो बैठी । उसने गुस्से से उबलते हुए माता जी पर अपना प्रहार किया -

"एक औरत होकर किसी लड़की पर इतना भद्दा आरोप लगाते हुए आपको जरा भी शर्म नहीं आती ? कैसी औरत हैं आप ? जैसी आप हैं, ऐसा ही आपका बेटा है ! आपके साथ जो कुछ हुआ है, बिल्कुल ठीक हुआ है ! आप जैसे लोगों के साथ ऐसा ही होना चाहिए !"

"मंजरी, बेटी ! हमारे साथ क्या होना चाहिए ? क्या नहीं होना चाहिए ? और तुम्हारे साथ क्या होना चाहिए ? यह सब तो ऊपर वाले की अदालत में तय होता है ! तुम्हारी इतनी ताकत नहीं है कि तुम ऊपर वाले के फैसले को चुनौती दे सको ! वहाँ ऐसी झूठी वीडियो दिखाकर केस नहीं जीते जाते !"

"आपको ऊपर वाले पर इतना ही भरोसा है, तो उसीसे अपनी गुहार लगाइए न ! आप यहाँ क्यों चलकर आई है ?"

मंजरी ने आवेश में आकर कहा, तो उसके पापा ने उसको समझाया -

"अपने घर आए मेहमान से ऐसे बात नहीं करते, बेटी ! छोटे-बड़े का मान-सम्मान रखकर बातें किया करते हैं !"

मंजरी अपने पापा का निर्देश मानकर चुप हो गई । लेकिन तब तक मंजरी के शब्दों से निकले अपमान का जहर माता जी पर अपना असर कर चुका था । माता जी ने मंजरी को लक्ष्य करके कहा -

"ऊपर वाले पर तो मुझे पूरा भरोसा है ! उसकी अदालत में कभी किसी के साथ अन्याय नहीं होता, देर भले ही हो जाए ! वहाँ सबको न्याय मिलता है !"

"इसका मतलब, ऊपर वाले ने आपके साथ भी अन्याय नहीं किया है ? और आपको न्याय मिल गया है ?"

मंजरी ने माता जी का उपहास करते हुए हँसकर कहा । मंजरी के इस व्यवहार से माता जी का असंतोष और बढ़ गया था । वे बोली -

"सुन मंजरी ! जब ऊपर वाले की लाठी पड़ती है, तो उसकी आवाज नहीं होती ! जो मैं अब तक नहीं कहना चाहती थी, तूने मुझे वही सब कहने के लिए अब मजबूर कर दिया है ! तूने अपनी शादी के मंडप में एक विधवा माँ का अपमान किया था, उसकी सजा तुझे मिल चुकी है ! याद कर, तू चाहती थी कि मैं अपने बेटे को तेरे पास छोड़कर चली जाऊँ ! तेरे चाहने-भर से मैं चंदन को तेरे साथ छोड़कर अपने ससुर के घर मुजफ्फरपुर चली गई थी ! तू भरे-पूरे घर में अपने पति के साथ अकेली रही, फिर भी तुझे पति का प्यार नहीं मिल सका ! अब तूने कोर्ट में एक झूठी वीडियो दिखाकर मेरे पति का दिया हुआ घर, एक विधवा के लिए उसके पति का छोड़ा हुआ घर हड़पकर पाप किया है, उसकी बद दुआ तुझे कहीं का नहीं छोड़ेगी ! तूने जो पाप किया है, इसकी सजा ऊपर वाला तुझे जरूर देगा ! जो शब्द आज मैं तुझसे कह रही हूँ, तू लिख ले ! आज मैं कह रही हूँ कि जिंदगी भर तुझे कभी किसी मर्द का प्यार नहीं मिलेगा ! मर्द के प्यार के लिए तू आखरी साँस तक पल-पल तड़पती रहेगी !"

माता जी की बद् दुआ सुनकर मंजरी की मम्मी तड़प उठी । वह बोली -

"नहीं-नहीं, बहन जी ! मेरी बेटी को ऐसी बद्दुआ मत दीजिए ! आपकी ... !"

मंजरी की मम्मी की बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी, तभी उसके पापा बोल उठे -

"मैं मानता हूँ बहन जी, आपके साथ गलत हुआ है ! दरअसल दोनों बच्चों ने आपस में लड़-झगड़कर कब ? क्या फैसला ले लिया ? यह मेरी जानकारी में नहीं था ! आपने यहाँ आने का फैसला बिल्कुल सही लिया है ! अब आपने मुझे बताया है, तो मैं आपको भरोसा दिलाता हूँ कि एक से डेढ़ महीने में मैं आपका फ्लैट आपको वापस दिला दूँगा ! दोनों बच्चे अब बच्चे नहीं रह गए हैं, इसलिए इनके बारे में तो कोई भी फैसला यही करेंगे, लेकिन आपकी संपत्ति पर हमारी ओर से कोई आँच नहीं आएगी !"

"भाई साहब, आप ऐसे ही शान्ति से मेरा फ्लैट मुझे दे देंगे, इसी में आपकी भी भलाई है ! आपकी बेटी ने पूरे समाज के सामने वे अस्सी लाख रुपये वापिस लिये थे । भले ही हमने उस घटना की विडियो नहीं बनायी, पर अपने फ्लैट को वापिस लेने के लिए मैं आज ही पूरे समाज को इकट्ठा करके आपके मान-सम्मान को तार-तार कर सकती हूँ ! इससे भी आप मेरा फ्लैट वापिस नहीं दिलाएँगे, तो मैं मेरा फ्लैट वापिस लेने के लिए समाज के लोगों को गवाह बनाकर कोर्ट से गुहार लगाऊँगी और झूठी वीडियो को सबूत बनाने का मुद्दा बनाकर आपके ऊपर मान-हानि का दावा ठोकूँगी !"

बहन जी ! मैं पहले ही कह चुका हूँ, एक से डेढ़ महीने में आपका फ्लैट आपको वापस मिल जाएगा ! रही वीडियो की बात, आज के बाद वह वीडियो भी कभी किसी के सामने नहीं आएगी ! मैं उसे आज ही नष्ट कर दूँगा, आप मेरा विश्वास कर सकती हैं !"

मंजरी के पापा की बात पूरी होते ही मेरी माता जी ने मोबाइल में चल रही वीडियो बंद कर दी । उस वीडियो में अब तक के देखे-सुने हुए वार्तालाप से यह सरलता से समझा जा सकता था कि मंजरी ने झूठी वीडियो के बल पर कोर्ट-केस के माध्यम से मुझसे जो अस्सी लाख रुपए लिये थे और जिन्हें देने के लिए मुझे अपने पिताजी के खून पसीने की गाढ़ी कमाई से खरीदा हुआ फ्लैट ओने-पोने दामों में बेचना पड़ा था, मंजरी ने वह अपनी मर्जी से और इतनी आसानी से मेरी माता जी को नहीं दिलाया था, जितना कि वह ऑफिस में मुझे दिखाने की कोशिश कर रही थी । अपने ही फ्लैट को वापस पाने के लिए मेरी माता जी को काफी मशक्कत करनी पड़ी थी । माता जी के शब्दों में कहें, तो सच की जीत के लिए उन्हें लड़ना पड़ा था । वीडियो बंद करने के बाद माता जी ने मुझसे कहा -

"देख लिया तूने उस मंजरी का और उसके माँ-बाप का असली रूप ? इतना ही दम था बस उनमें ! तू भी कहता था कि उसके पास मुझे दहेज में अस्सी लाख रुपये देने के सबूत का वीडियो है ! बेटा, सच के आगे झूठ कहीं नहीं टिकता है ! एक झूठी वीडियो से सच को नहीं हराया जा सकता ! सच को अपनी जीत के लिए बस खड़ा होना और थोड़ी सी हिम्मत से लड़ना पड़ता है । अंत में जीत तो सच की ही होती है !"

मैं माता जी के बोले हुए एक-एक शब्द को ध्यान से सुन रहा था । उनका एक-एक शब्द मुझे वेद-वाक्य की तरह सत्य का दर्शन करा रहा था । माता जी ने कुछ क्षण रुककर फिर बोलना शुरू किया -

"वह मंजरी ऑफिस में तुझे फ्लैट की रजिस्ट्री के पेपर्स देते हुए ऐसे दिखाने की कोशिश कर रही होगी, जैसेकि उसने अपनी मर्जी से हमारा फ्लैट वापिस लौटाकर हम पर बड़ा एहसान कर दिया है ! कुत्ते की दुम है ये लोग, जो कभी सीधे नहीं हो सकते !"

हालांकि माता जी जो बातें मंजरी के बारे में कह रही थी, वह काफी हद तक सच थी, किंतु फिर भी जाने क्यों ? मुझे मंजरी के बारे में वह सब सुनना अच्छा नहीं लग रहा था । मैंने माता जी से कहा -

"माता जी ! जो भी हो, यह तो उनकी भलमनसात ही है कि उन्होंने सच को सच मान लिया और हमारा फ्लैट खरीद कर आपको वापस कर दिया ! वह आपके सच को मानने से ही मना कर देते, तब आप क्या कर लेती ?"

"तूने वीडियो में नहीं सुना था क्या कि तब मैं क्या करती ? मैं अब भी इतना जरूर कह सकती हूँ कि जब तक मेरा फ्लैट वापस नहीं मिलता, मैं उन्हें भी चैन से नहीं रहने देती ! उनके झूठ को मैं कभी नहीं जीतने देती !"

माता जी का आत्मविश्वास और साहस देखकर मैं नतमस्तक था । किंतु मंजरी और उसके मम्मी-पापा की उस शराफत को सिरे से नकार देना मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था, जिसका परिचय उन्होंने केस जीतने के बावजूद अस्सी लाख रुपयों की बड़ी रकम के बदले हमारा फ्लैट खरीदकर वापिस लौटा दिया था ।

आज से पहले माता जी ने कभी भी मंजरी और उसके परिवार के बारे में कोई कड़वी या नकारात्मक बात नहीं कही थी । आज जब माता जी मंजरी और उसके परिवार के खिलाफ भली-बुरी बातें कहकर अपनी चोट खाई ममता को संभालने की कोशिश कर रही थी , तो जिस अनुपात में वे उन्हें भली-बुरी बातें कह रही थी, उसी अनुपात में मैं मंजरी की ओर फिसलता जा रहा था ।

मंजरी और उसके परिवार को लेकर मैं और माता जी बातें कर ही रहे थे, तभी मेरी कंपनी से कॉल आई कि मुझे एक महीने के लिए लखनऊ जाना है । कंपनी का आदेश सुनकर मैं खुश था ? या दुखी था ? मुझे समझ नहीं आ रहा था ।

एक ओर, अब मैं चाहता था कि मुझे लखनऊ न जाना पड़े । मैं पटना के ऑफिस में ही रहूँ, जहाँ मंजरी पूरे दिन हर पल मेरी आँखों के सामने रहेगी । दरअसल मंजरी को दिये हुए अस्सी लाख रुपयों के बदले हमारा फ्लैट वापस लौट आने के बाद और मंजरी के बारे में माता जी से कुछ कड़वी बातें सुनने के बाद मेरे दिल में मंजरी के लिए कुछ कोमल भाव पनपने लगे थे ।

दूसरी ओर, मंजरी के साथ अपने पुराने संबंधों और पुरानी बातों को याद करके मैं चाहता था कि एक ही कंपनी और एक ही ऑफिस में काम करने के बावजूद भी एक महीने तक मेरा मंजरी से सामना नहीं होगा, तो मैं ज्यादा सुकून और चैन से रह सकूँगा !

सच तो यह था कि मुझे लखनऊ जाने का आदेश कंपनी की ओर से मिला था और इस आदेन का पालन करना मेरे लिए उतना ही जरूरी था, जितना कि मेरा नौकरी करना । यह टूर मेरी नौकरी का ही एक हिस्सा था । मैं जाना नहीं चाहता, तो भी नौकरी करते रहने के लिए मेरा लखनऊ जाना जरूरी था ।

मैं नौकरी करते रहना चाहूँ और कोई वाजिब कारण बताए बिना लखनऊ न जाना चाहूँ, यह संभव नहीं था । लखनऊ जाने के लिए मेरा टिकट मेरी ईमेल पर आ चुका था । इसके साथ ही फाइव स्टार होटल रेनेसेन्स में मेरे लिए में कमरा बुक हो चुका था । इसलिए अगले दिन शाम को मैं लखनऊ के लिए रवाना हो गया ।

क्रमश..