बागी आत्मा 15
पन्द्रह
सारे दिन उदयभान खन्दक में पड़ा रहा। इतने बड़े जीवन में उसे कभी दुःख नहीं हुआ था। वह तो दूसरों को दुःख देता था। पर आज उसे स्पश्ट अनुभव हो रहा था कि दुःख क्या होता है ? मां के रहस्यमय जीवन ने उसे निश्ठुर बना दिया था। मां के मरने के बाद मां का दुःख भी नहीं हुआ बल्कि यह मां के साथ समाज ने जो कुकृत्य दिये थे उसका बदला लेने को बेचैन हो उठाा था।
आज स्थिति बिलकुल विपरीत थी। जीवन में रहस्यमय ढंग से एक भाई से मुलाकात हुई। कुछ भी उसका सुख न मिल पाया कि आपस की लड़ाई में मारा गया। भाभी ं ं ं भाभी सच में देवी हैं। आज दिन भर उनकी क्या स्थिति रही होगी पुलिस के डर से भाभी को सांन्तवना देने गाव तक न जा सका था अभी तो भाभी जवान ही हैं। कैसे निकालेगी सारी जिन्दगी।
यह अच्छा हुआ है मेरे बच्चे उनके पास हैं अन्यथा उन्हें जीवन निकालना और मुश्किल पड़ जाता। भाभी देवी हैं तभी तो वे अपने पति को सुपथ पर लाने के लिये जीवन भर प्रयत्न करती रहीं। उनसे एक ऐसा काम करवा लिया आज तक न कोई बागी ने ऐसा काम करवाया होगा।
मैं मैं कितना नीच निकला कि सारी जिन्दगी लोगों को सताता रहा। माधव को बदनाम करता रहा। लूट-पाट हत्या में ऐशो-आराम में मेरे जीवन का मुख्य उद्देश्य था। मैं भइया का दुश्मन बन गया। भइया मुझे अच्छे रास्ते पर लाने का प्रयास करते रहे। मैं अपने साथियों को उसके प्रति भड़काता रहा। उनकी मौत का कारण बना मैं।
मेरे कारण ही उन्हें गोली मारी गई । साधूसिंह को दोश देना उचित नहीं है। भइया मुझे सरदार बनाना चाहते थे। बहादुर उनके विपरीत कभी न जाता। कुछ सोचकर रह गया। मेरे साथियों ने सोचा होगा। मैं इस गैंग से मिलकर उन्हें मरवाना चाहता हूँ। साधू सिंह भी तो सरदार बनना चाहता था। उसे मौका मिला वह मौके का लाभ क्यों छोड़ता ?
जो हुआ सो किस्मत से हुआ। अगर भइया जीवित रहते तो आत्म-समर्पण वाली बात पूरी करा डालते। भाभी यह सब करा देगी भाभी समझदार बहुत हैं। किसी से बात करने में डरती नहीं हैं अस्पताल उनकी ही योजना है।
भईया की अर्थी में कितने सारे लोग गये थे। इतने आदमी तो राव वीरेन्द्र सिंह की अर्थी में भी न गये होंगे। सारी कहानी का जड़ तो राव वीरेन्द्र सिंह ही है। भईया भी अजीब थे। दुश्मन की पत्नी को अस्पताल की अध्यक्षा बना गये हैं। यह फायदा तो इससे अवश्य होगा कि दुश्मनी बढ़ने की अपेक्षा दुश्मनी घटेगी ही। सुना है कस्बे के लोग कहते रहते हैं कि वे माधव से अधिक रूश्ट नहीं है। कस्बे के सभी लोग भईया की प्रशंसा करते हैं।
इस प्रकार के विचारों के क्रम में वह सारे दिन खोया रहा। न कुछ खाया, न पिया। रात होने की व्यग्रता से इन्तजार करता रहा जिससे वह घर जा सके। डरा-डरा सा रहा, कहीं पुलिस उन्हें खोजने के लिए निकल न पड़े।
दिन बड़ी मुश्किल से व्यतीत हुआ। शाम हो गई। अब मन में धीरज आया। अन्धेरा सा हो गया तो बिना किसी की परवाह किये वह कस्बे की ओर चल दिया।
जब वह घर पहुंचा तो वह ठिठककर रूक गया। किवाड़ बन्द थे। आवाज लगाना खतरे से खाली नहीं था। जल्दी ही घर के अन्दर भी दाखिल हो जाना चाहता था। उसने किवाड़ को धक्का दिया। अन्दर से कुन्डी बन्द नहीं थी। वह समझ गया मेरी प्रतीक्षा में ही कुन्डी खुली छोड़ी गई है। किवाड़ खोलकर अन्दर दाखिल हो गया। सभी उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे। सभी फुसफुसाकर रोने लगे। जोर से इसलिये न रो पाये कि कोई सुन न ले कि कौन आया है। थोड़ी देर में उदय के समझाने पर सभी शान्त हो गये।
आशा अपनी देवरानी की ओर निर्देश कर बोली -‘भागवती इनके लिए खाना तो दे। बेचारे सारे दिन भूखे प्यासे किसी खाई में पड़े रहे होंगे।
‘भाभी शायद किस्मत मंे यही लिखाकर आया हूँ ऐसा ही जीना है ऐसे ही मर जाना है।
‘कल से मैं आप लोगों के समर्पण के लिये प्रयास करने ग्वालियर के कलेक्टर के पास जा रही हूँ। देखें सफलता मिलती है या नहीं।‘
‘भाभी यदि यह काम हो जाये तो भईया की आत्मा को शान्ति मिल सकेगी।‘
इतनी ही बातें हो पाई थीं कि भागवती खाना परोस लाई। उदय भोजन करने लगा। सोचने लगा भाभी कितनी विचार शील महिला हैं फिर क्यों इन्होंने एक डाकू से शादी कर डाली ? अभी यह बात पूछना ठीक नहीं है।
तभी आशा बोली -‘क्या सोच रहे हो ?‘
‘कुछ नहीं भाभी।‘
‘कुछ तो भईया के बारे में !‘
‘नहीं।‘
‘ तो फिर ?‘
‘आपके बारे में।‘
‘मेरे बारे में क्या सोचते हो ? मुझे मेरी नहीं तुम्हारी, भागवती की ओर इन बच्चों की चिन्ता है।‘
‘तुम्हें मेरे रहते तो चिन्ता करनी ही नहीं चाहिये।‘
‘आप भी तो अधिक चिन्तित दिखाई दे रही हैं।‘
‘मेरी क्या है ? मैंने तो जिस दिन एक बागी से शादी की, उसी दिन जानती थी कि ये होगा। जो जिन्दगी भर दूसरों को रूलाने के लिए बागी बना है। उसके लिये भी रोना है। हां उसकी तुम लोगों के आत्मसमर्पण। कीइच्छा पूरी हो जाये।‘
‘बहुत ही मुश्किल काम है ! एक ओर कड़ा कानून है दूसरी ओर सुधारवादी मांग ? कानून हमारी क्यों सुने ? वह अपनी कहेगा।‘
‘उदय तुम इसके लिये चिन्तित मत हो। मैं प्रयास कर रही हूँ।‘
‘भाभी !‘
‘उदय मैं चाहती हूँ तुम सभी बागियों को आत्मसमर्पण के लिए तैयार करो। जब अधिक संख्या में बिना शर्त लोग आत्मसमर्पण करेंगे तो कानून के ठेकेदार अवश्य सोचेंगे। वे चाहें तो वैसा कानून भी बना सकते हैं, जिससे हमें थोड़ी बहुत सुविधा मिल जाये।‘
‘ठीक है भाभी सभी को समझाऊंगा।‘
‘सभी से मेरा नाम लेना कि भाभी ने कहा है। सभी मान जायेंगे फिर तुम्हें भईया की त्रयोदश भी तो करनी है।‘
यह बात सुनकर उदय बोला -‘भाभी यदि मेरा आत्मसमर्पण हो जाये। इससे अच्छी त्रयोदशी भईया की और क्या हो सकती है ?‘
‘ उदय ! तुम भी अब भईया की तरफ बातें करने लगे हो। अच्छा है इससे भगवती की मांग में सिन्दूर भरने का अधिकार तो बना रहेगा।‘
‘हां, अगर सरकार मान गई तो।‘
‘मेरा विश्वास तो है कि सरकार मान जायेगी।‘
‘और सरकार न मानी तो ?‘
‘तो क्या जंगल में बन्दूक से मरने से, कानून द्वारा दी गई मौत श्रेश्ठ होती है।‘
‘तुम चाहती हो भाभी मुझे फांसी हो ?‘
‘चाहती तो नहीं हूँ फिर भी यदि फांसी होती है तो ?‘
‘मेेरी कोई बात नहीं है भाभी ! पर अन्य बागी फिर आत्मसमर्पण के लिए तैयार न हांेगे।‘
‘जब तुम तैयार हो गये हो तो वो क्यों नहीं होंगे ? इकट्ठे सभी को एक साथ फांसी पर लटकाने के प्रश्न पर सरकार अवश्य विचार करेगी।‘
‘कानून अन्धा होता है वह तो साक्ष्य पर निर्भर करता है।‘
‘हम अपने विचार पर दृढ़ हैं। बांकी सब ऊपर वाले की इच्छा पर है जो हो ।‘
‘अच्छा भाभी अब तो नींद आ रही है सुबह फिर जल्दी उठकर जंगलों में भटकना है।‘
‘तो उठो बिस्तर तैयार है हां जागते सोना ! पुलिस का चक्कर भी लग सकता है।‘
‘आज तो पुलिस ने एक बहुत बड़े बागी को मारा है आज तो वे चैन से सोयेंगे। आज चक्कर लगाने यहां कौन आता है ?‘
‘यह आलश्य अच्छा नहीं है ?‘
‘अच्छा भाभी मैं सचेत सोऊंगा ।‘ कहते हुए वह अपने बिस्तर पर जा लेटा और सोचते-सोचते सो गया।