बागी आत्मा 16
सोलह
आत्मसमर्पण के सम्बन्ध में चर्चा अपना प्रभाव जमाने लगी थी। आशा की भाग दौड़ सफल होती दिख रही थी। आशा मुख्यमंन्त्री जी से मिली। अपनी बात को उनके सामने रखा। सभी ओर से उसे अनुकूल उत्तर मिले। रेडियो पर प्रतिदिन शाम की न्यूज में विद्युत गति से यह बात फैल गई। अखबारों में तरह-तरह की चर्चायें आने लगीं। सरकार की ओर से शीघ्र ही आत्मसमर्पण की तारीख घोशित कर दी गई। कोई भी अखबार में एक लेख प्रकाशित हुआ उसका सार इस प्रकार है।
चम्बल नदी जो 205 मील लम्बी, इस क्षेत्र में बहती है। यह क्षेत्र जो 205 मील लम्बा है। 5 से 10 मील तक भूमि को पानी के बहाव ने ऐसा काटा है कि 10 फीट से लेकर 100 फीट गहरे गड्ढे बना दिए हैं। जहां खेती नहीं हो सकती है। जीविका-उपार्जन डकैती, चोरी, अपहरण इत्यादि कुकृत्य बन गये हैं। कुछ पहाड़ियों की श्रृंखलाएं भी इसमें सम्मिलित हो गई हैं। जिससे इस क्षेत्र में विशालता और भी आ गई है। इसके प्रभाव में भारत के मध्य का काफी बड़ा भाग आ जाता है। प्रदेश के हिसाब से मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा तक प्रभाव में आ जाते हैं।
इन बीहड़ों में कोई भी उपज व्यवसाय के नाम पर नहीं होती है। जो लोगों को रोजी और रोटी दे सके। यहां तो रोजी-रोटी का निर्णय -‘जिसकी लाठी उसकी भैंस‘ के अनुसार ही होती है। जिसके हाथों में जोर है, बस जर जोरू जमीन उसी की हो जाती है। यहां का पानी आदमी के क्रोध में वृद्धि करता है। आदमी की सहन शक्ति समाप्त हो जाती है। आदमी छोटी-सी बात पर मरने मारने पर उतारू हो जाता है।
यहां के लोग डकैती डालते हैं। चोरी करते हैं और पुलिस के डर से इन भारी भरकम बीहड़ों में जा छिपते हैं। यह क्रम सैकडो वर्शों से इस क्षेत्र में चला आ रहा है। इतना लम्बा इतिहास इस क्षेत्र की भूमि ने अपने अन्तः में छिपा रखा है सारा का सारा इतिहास चोरियों और डकैतियों का ही मिलेगा।
कुछ अखबारों में छपा कि ‘बागी सरदार उदयभान आज जौरा के बीहड़ों में बागी बहादुर, साधूसिंह, किशन तथा अन्य पन्द्रह बागियों के साथ आत्मसमर्पण के सम्बन्ध में विचार-विमर्श कर रहे थे। कुछ लोगों का कहना था- उदयभान जिसके कारण इस पूरे क्षेत्र में आतंक था वह कभी आत्म-समर्पण करेगा ? लोगों को यह असम्भव सा लग रहा है।
कुछ लोगों ने इन चर्चाओं को बेबुनियाद तक बता दिया था। सरकार की तरफ से तारीख निश्चित कर दी गई और जौरा में ही इस सब प्रक्रिया के लिये स्थान निश्चित किया गया है। घोशित दिनांक यहां श्री जयप्रकाश नारायण जी पधार रहे हैं। उनके सामने बागी आत्म-समर्पण करेंगे। सारे क्षेत्र का ध्यान उसी ओर लग गया था। यह सब कैसे होगा ? एक प्रश्न चिन्ह बन गया था।
संयोग से माधव की त्रयोदशी वाली तारीख ही आत्म-समर्पण के लिए घोशित हुई। सरकार से बातचीत करने के बाद आशा बीहड़ों में गई। वहां उसने बागियों से बातचीत की और उन्हें आत्म-विश्वास दिलाया। आत्मसमर्पण के सम्बन्ध में सरकार ने जो घोशणायें की उनके बारे में उनसे चर्चा की।
सरकार ने जौरा क्षेत्र को विशेश क्षेत्र घोशित कर दिया। आत्म-समर्पण के सम्बन्ध में बागियों को सलाह देने सरकार की ओर से कुछ लोग नियुक्त कर दिये गये। शान्ति किशन का सहयोग लिया गया। आशा शान्ति मिशन में सक्रिय कार्यकर्ता बन गई। सभी बागियों को आत्मसमर्पण के लिये सलाह देने का काम कर रहे थे।
इस विशेश क्षेत्र में जनता के आदमी बन्दूक लेकर नहीं जा सकते थे। बागियों पर से सभी प्रतिबन्ध उठा लिये गये। वे अपन हथयारें के साथ कहीं भी घूम फिर सकते हैं।
इस घोशणा के बाद तो इस क्षेत्र में बागी खुले आम घूमते-फिरते नजर आने लगे। जो बागी इस बात पर विचार नहीं कर रहे थे। वे भी इस बात पर विचार करने लगे। जो समझदार थे इस सम्बन्ध में आगे आने के लिए उत्सुक हो उठे।
जौरा के आसपास का लगभग 10 मील का क्षेत्र विशेश क्षेत्र घोशित कर दिया गया जिसमें ग्रामीण व पुलिस वाले बन्दूक लेकर नहीं जाते थे। ऐसा लगने लगा था कि एक ही दिन में इस समस्या का अन्त हो जायेगा।‘
पर किसी समस्या का अन्त न दिन में हुआ है न होगा। हां एक चिनगारी उत्पन्न हो गई है जो भविश्य में जलती रहेगी। शायद कभी समस्या का अन्त हो सके।
निश्चित दिनांक को उक्त कैम्प में अपार भीड़ थी। ऐसे लगता था जैसे सारा का सारा चम्बल क्षेत्र यहां आकर इकट्ठा हो गया हो। पुलिस तो वहां थी पर डन्डा पुलिस थी। वह भी बागियों कि लिये नहीं दर्शकों के लिए लगाई गई थी। वहां उपस्थित जन समुदाय की निगाहें उसी मंच की ओर लगी हुई थीं।
मंच पर एक तरफ महात्मा गांधी का चित्र लगा हुआ था। मंच के एक तरफ रामायणों और गीताओं का ढेर लगा हुआ था। यह ढेर क्यों लगाया गया है ? यह कोई भी नहीं समझ पा रहा था। कुछ लोग जो समझ रहे थे। वे सोच रहे थे यह सम्भव नहीं है जिनके हाथों में बन्दूकें रहती थीं वे रामायण और गीता पढ़ा करेंगे।
शाम के ठीक 5 बजे जयप्रकाश नारायण जी घटना स्थल पर आ पहुंचे। उनके आने पर सारे कैम्प में सन्नाटा छा गया। ‘महात्मा गांधी की जय‘ का नारा गूंजने लगा।
कुछ क्षणों तक मंच पर कुछ सलाह-मशवरे हुये। इसके बाद आत्म-समर्पण की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई। जयप्रकाश जी ने अपना भाशण दिया। सरकार से जो वचन उन्हें मिले उनके बारे में चर्चा की इसके बाद उन्होंने आत्म-समर्पण का अर्थ बताया कि जो बागी आत्म-समर्पण कर रहे हैं वह आत्मा से है जिस काम को आप आज तक करते रहे उसकी पुनरावृत्ति न हो।
इस भाशण के तुरन्त बाद सूचना दी गई कि अब बागी सरदार उदयभान अपनी ओटोमेटिक बन्दूक के साथ आत्म-समर्पण कर रहे हैं। अब सभी ने देखा एक लम्बा पूरा जवान बन्दूक लिये मंच पर आ गया। वह बिना किसी हिचकिचाहट के माईक के सामने आ रूका। उसने एक नजर आशा भीभी पर डाली। वे मंच के एक कोने में चुपचाप बैठी थीं। सूचना हुई बागी उदयभान आप सभी के सामने कुछ निवेदन करना चाहते हैं। सभी दर्शक सुनने को उत्सुक हो उठे।
अब उदयभान ने जनता के सामने हाथ जोड़कर कहना प्रारम्भ किया। बन्दूक गले में डाली थी। वह बोलने लगा -
‘हम लोग आज तक जो कुछ भी कुकृत्य करते रहे आप सभी इस बात से परिचत हैं। हम सभी आत्मसमर्पण करने वाले बागी सच्चे मन से उन सभी कामों पर शर्मिन्दा हैं। हमने आप लोगों के साथ मानवोचित व्यवहार भी नहीं किया और हम सभी यह आशा लेकर आत्म-समर्पण कर रहे हैं कि आप लोग हम लोगों एवं हमारे परिवार वालों से अच्छा व्यवहार करेंगे।
इस घटना की सूत्रधार एक महिला है। उनका नाम आशा है। वे बागी माधव की पत्नी हैं। वही माधव जिसने कभी गरीबों को नहीं सताया। हमें यह रास्ता भरने के लिए दिखा गया है कि सभी इस रास्ते पर चलें। यह उनकी अन्तिम इच्छा थी। आज उनकी त्रयोदश्ज्ञी का दिन भी है। हम आत्म-समर्पण कर उनकी त्रयोदशी कर रहे हैं जिससे उनकी आत्मा को शान्ति मिल सकेगी।
आज हम लगभग बीस बागी एक साथ आत्म-समर्पण कर रहे हैं। आशा है आप हमें क्षमादान प्रदान करेंगे।
इसी विश्वास के साथ ं। वाक्य अधूरा छोड़कर उदयभान ने अपनी बन्दूक महात्मा गांधी के चित्र के सामने डाल दी और आगे बढ़कर आशा भाभी के पैर छू लिये। अब वह जयप्रकाश जी के सामने पहुंच गया। उन्होंने उसे रामायण और गीता की एक-एक प्रति दे दी।
उन्हें स्वीकार कर मंच के एक ओर खड़ा हो गया। एक एक करके सभी ने महात्मा गांधी के चित्र के सामने अपनी बन्दूक डाल दी और आशा भाभी के चरण छुये। जयप्रकाश जी के सामने पहुंच गये। उनके रामायण गीता की प्रतियां स्वीकार करके उदयभान के बगल में खड़े होते गये। जब यह क्रम पूरा हो गया तो दो शब्द बोलने के लिए श्रीमती आशा देवी का नाम लिया गया।
आशा स्पीकर के सामने पहुंच गई। आशा ने अपने भाशण में कहना प्रारम्भ किया -
आप सभी के सामने बागियों ने आत्मसमर्पण किया। आप सभी का सक्रिय सहयोग मिला तो वे निश्चित रूप से देश के अच्छे नागरिक बन सकेंगे। समय की बात थी कि वे बागी बने। आप सभी को सताते रहे। लेकिन आज आप लोगों के सामने आत्म-समर्पण कर दिया है। मैं आप सभी की ओर से इन बागियों को, सुपथ पर चलने के लिए आशीर्वाद प्रदान करती हूँ।
न्याय उन्हें जो भी दण्ड देगा इन लोगों ने उसे स्वीकार करने का दृढ़ निश्चय कर लिया है। तभी यहां समर्पण किया है। मुझे विश्वास है न्याय इन सभी के साथ हमदर्दी का व्यवहार करेगा। उसी अगाध विश्वास के साथ । ‘जय हिन्द !‘
भाशण समाप्ति के बाद पुलिस एस0 पी0 मंच पर पहुंच गया। सभी आत्म-समर्पित बागियों को निर्देश देकर बोला -‘मंच से नीचे आप सभी का इंतजार पुलिस की गाड़ी कर रही है कृपया लाइन से चल कर उसमें बैठ जायें।‘
यह सुनकर उदयभान चल दिया तो सभी लाइन से उसके पीछे हो लिये। मंच से उतरकर सभी पुलिस की गाड़ी के पास आ गये। आशा भी मंच से उतर आई थी वह पुलिस की गाड़ी के पास आकर खड़ी हो गई थी। जब सभी गाड़ी में बैठने को हुए तो आशा बोली ‘मैं बहुत खुश हूँ आज बीस दूल्हे एक साथ अपनी ससुराल जा रहे हैं।‘ बात सुनकर सभी बागियों के चहरों पर मुस्कराहट आ गई थी।