दो बाल्टी पानी - 35 Sarvesh Saxena द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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दो बाल्टी पानी - 35

चारों ओर अन्धेरा छा गया था और झींगुर की आवाजें सुनाई दे रहीं थीं कि तभी किसी की पायल बजने की आवाज आई| जिसे सुनकर सबकी घिघ्घी बंध गयी|

बब्बन हलवाई ने बाल्टी को सरकाते हुये वर्मा जी से कहा “ लगता है वो चुडैल आ गयी, अब जाओ... बाल्टी लो और नल पर लगाओ जाके और हां जईसे ही चुडैल तुम्हारी नकली चोटी काटे तुम उसे कस कर पक़ड कर आवाज लगाना हम बेताल बाबा की दी भभूत उस चुडैल पर डाल देंगे|”

वर्मा जी का कलेजा कांप रहा था उन्होने एक एक कर सबकी ओर देखा तो सब उन्हे प्रोत्साहन देते हुये आगे जाने को कह रहे थे|

वर्मा जी ने बाल्टी उठाई और चोटी कटी वर्माइन को याद किया कि तभी उनके अन्दर एक शक्ति आ गयी और वो बदला लेने के लिये वो किसी शूरवीर की तरह लंहगा चोली पहन कर छनछनाते हुये आगे बढ गये|

उधर सुनील ने पिंकी से मिलने की जुगत भिडाई| उसने चारपाई से बंधे बंधे ही पेशाब कर ली और आंखे बन्द करके लेटा रहा| जब सरला कमरे के अन्दर आई तो सुनील को देखकर दग पडी|

“ अरे हरामी ....खम्बा जईसा का पडा है नासमरे, टांगों पर मूत कर मुंह फैलाये पडा है, हे शंभूनाथ अईसी नकारा औलाद को पालने से अच्छा होता कि इसे नौटंकी वालों को दे दिया होता तो आज घर मे चार पैसे भी आते, बुढापे में बस यही देखना रह गया था| उस मुई चुडैल ने जाने कौन सी बूटी सुंघा दी|”

ये कहते हुये सरला ने चारपाई पर लात मारी तो सुनील अपने नाटक से बाहर आया और बोला “ का अम्मा अरे तब नाही दे पाई तो अब देदो, हम खुसी खुसी चले जायेंगे नौटंकी वालों के पास, राम कसम तुम्हारी इस नौटंकी से तो बचे रहेंगें, और एक बात ये हमें चोरों की तरह बांधी हो तो का करें मुतास लगी थी मूत लिये, अब इसके लिये भी तुम्हारे हांथ जोडें का, अब खडी का हो ताला खोलोगी कि हम हग भी लें यहां वईसे हमें कोई परेसानी नहीं समझ लो खूब| ”

सरला ने बुदबुदाते हुये ताला खोला तो सुनील बिजली के जैसे गीले पायजामे सहित ही घर से भाग गया और सरला छाती पीटती रह गयी|

सुनील सीधा पिंकी के घर की तरफ दौड गया|

सडक के उस पार वाले नल के पास चुडैल के इंतजार में बैठे सब लोगों के मन गुब्बारे की तरह फूल गये थे जिनमें पाय़लों की आवाज आते ही सुइ चुभ गयी|

वर्मा जी जनानी के वेश में जल्दी जल्दी नल चलाने लगे और नल से पानी की मोटी धार बहने लगी जिससे बाल्टी कुछ ही देर में भर गयी| झाडियों में छुपे हुये सब लोग अपने हाथों मे चुडैल को पकडने के लिये कुछ ना कुछ इंतजाम किये बैठे उधर ही ताक रह थे कि तभी नल चलना अपने आप रुक गया| हवाओं का रुख और तेज हो गया और डर के मारे वर्मा जी के हांथ पैर कांपने लगे| उन्होने पीछे मुडकर देखा तो उनकी आंखें फटी की फटी रह गयीं क्युं कि सामने सुर्ख लाल साडी मे वही चोटी काट चुडैल लम्बा सा घूंघट किये खडी थी जिसे देखकर वर्मा जी की बोल्ती भी बन्द हो गयी| चुडैल ने एक भयंकर हंसी के साथ अपने दोनों हांथ आगे बढाये और उनकी चोटी पकड ली मगर ये क्या वर्मा जी की नकली चोटी कटने से पहले ही चुडैल के हांथ में आ गयी| डर के मारे वर्मा जी ने अपना लहंगा चढाया और वहां से चिल्लाते हुये साथियों के पास जैसे ही आये कि चुडैल बडी जोर से चिल्ला पडी “ धोखा.....धोखा.....चुडैल के साथ धोखा....नही छोडूंगी....किसी को नही छोडूंगी...... |”