अनकहा अहसास - अध्याय - 12 Bhupendra Kuldeep द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अनकहा अहसास - अध्याय - 12

अध्याय - 12

फिर सब लोगों ने रमा को उठाकर अनुज की गाड़ी में पहुँचाया और अनुज उसे स्वर्ण भूमि सोसाईटी ले गया।
अनुज ने बैग के साईड में ही पहले देखा तो उसे वहीं फ्लैट की चाबी मिल गई। उसने उसे ले जाकर बेड पर लिटाया और डॉक्टर को चेकअप करने दिया।
डॉक्टर ने चेक अप करके ड्रिप चढ़ा दिया और अपने पास ही से कुछ दवाईयाँ दे दी।
अनुज ने उनकी फीस अदा की फिर वो चले गए।
अनुज किचन में जाकर पानी गरम करके लाया और नैपकीन हाथ में लेकर उसके चेहरे को साफ किया।
चेहरा साफ करते वक्त वर्षों बाद उसने रमा के चेहरे को गौर से देखा। वो बहुत मासूम और सुदंर दिखाई दे रही थी परंतु कमजोरी एकदम साफ झलक रही थी।
वो धीरे से नीचे झुका और उसके माथे को चूम लिया। समय दो पल के लिए ठहर गया। वो एकटक उसके चेहरे को देखता रहा। पर देखते-देखते ही कब उसकी आँख लग गई पता ही नहीं चला।
सुबह पांच बजे के आस-पास रमा की बेहोशी टूटी।
धीरे से उसकी आँख खुली। ऊपर उसे अपने घर का फैन दिखा। वो थोड़ी आश्चर्यचकित हुई। तभी उसे अपने हाथ को पकड़े होने का अहसास हुआ।
उसने देखा कि अनुज उसका एक हाथ अपने चेहरे से लगाकर स्टूल में बैठा-बैठा ही सोया हुआ है और उसका दूसरा हाथ रमा के ऊपर रखा है। ये देखते ही रमा की आंखे भर आयी। ये रमा के लिए बहुत इमोशनल पल था। उसकी आंखे छलछला गई। वो इस पल से वंचित नहीं होना चाहती थी इसलिए चुपचाप आंखे बंद करके वैसे ही पड़ी रही। ये बहुत अद्भुत और अनमोल पल था उसके लिए। उससे रहा ही नहीं जा रहा था। वो अनुज को छूने के लिए अधीर हो रही थी। उसने ड्रिप लगे हाथ से अनुज के हाथ को छुआ। इस स्पर्श से अनुज की नींद टूट गई।
रमा फिर से सोने का अभिनय करने लगी।
अनुज जाग गया था। उसने देखा कि रमा की सांसे अब सामान्य चल रही है। वो फिर से झुका और रमा के माथे को चूम लिया। रमा एकदम सिहर गई।
उसकी आँखों में आँसू अब भर चुका था। अनुज जैसे ही बाथरूम की ओर गया। आँसू आँखों के कोनो से बह निकले।
अनुज फ्रेश होने के लिए बाथरूम चला गया।
रमा अब जोर-जोर से सुबकने लगी।
अनुज उसको कितना चाहता है और वो है कि उसे कुछ बता भी नहीं पा रही है। उसे अपने आप से नफरत हो रही थी।
तभी बाथरूम का गेट खुलने की आवाज आई।
रमा जल्दी से अपने आँसू पोछी।
ओह!! तो मैडम आपको होश आ गया।
मुझे क्या हो गया था और मैं यहाँ कैसे आई ? रमा ने पूछा।
लगता है आप मुझसे डर गई हैं मैडम, शायद खाना पीना छोड़ दिया है आपने, इसीलिए बेहोश हो गयी थी।
मैं बेहोश हो गई थी ? रमा ने आश्चर्य से पूछा।
हाँजी। आप बेहोश हो गयी थी। बड़ी मेहनत कराई रात भर। अब भी डरकर खाना नहीं खाना है कि हिम्मत है मुझसे फाईट करने की।
देखिए सर आपने मेरी मदद की इसके लिए धन्यवाद परंतु अब मै पूरे तरीके से सब कुछ सहने के लिए तैयार हूँ। कौन सी दवाई हैं बताईये। मुझे खाना है। उसने ऐसा कहकर दवाई उठायी और खा ली, पर ये मत समझिए कि मैं झुकने वाली हूँ और ये बात विशेष रूप से याद रखिए कि ना तो मुझे किसी से कभी प्यार था, ना है और ना होगा। इसलिए प्लीज मुझे इन सब के लिए क्षमा करें।
अनुज तो चाहता ही था कि वो खाना और दवाई खाए इसीलिए बोला।
ठीक है ठीक है खाओ और लड़ो मेरे साथ। मैं भी देखता हूँ कितनी हिम्मत है आप में।
मेरी हिम्मत को चैलेंज करने की आवश्यकता नहीं है सर। मैं बहुत हिम्मती हूँ और एक बात आपको बता दूँ। अब मैं आपके सारे ताने सहकर भी आपके कॉलेज में काम करने के लिए तैयार हूँ लेकिन सिर्फ एक साल। फिर ना तो आप मुझे रोक पायेंगे और ना आपका कॉलेज।
ये सुनकर अनुज गुस्से से टावेल को बेड पर फेका और पलटकर मुस्कुराते हुए कमरे से निकल गया तभी गेट पर मधु आते दिखी।
अरे! मधु तुम यहाँ। अच्छा हुआ तुमने मुझे बता दिया कि रमा कहाँ है। मैं सही वक्त पर पहुँच पाया। 10 मिनट और लेट होता तो ट्रेन निकल जाती। अनुज बोला ।
मैं बस आपकी खुशी चाहती हूँ भैया। मुझे माफ कर दीजिए। अनुज आगे बढ़कर मधु को गले से लगा लिया।
भैया क्या मैं जाकर रमा से मिल लूँ।
बिलकुल मिल लो और उसको कुछ खिला भी देना। वो दिनभर कुछ खाई नहीं है।
ओहो। आप तो उसकी चिंता कर रहे हो।
चिंता माई फुट। वो तो मेरी चिंताकर नहीं रही है तो मैं क्यूँ उसकी चिंता करूँ। अनुज बोला और निकल गया।
रमा चुपचाप लेटी थी कि मधु बेडरूम अंदर आती हुई दिखाई दी।
अरे मधु। आओ प्लीज। वो उठने की कोशिश करने लगी।
लेटी रहो। लेटी रहो। मैं स्टूल में बैठ जाऊँगी।
कहकर वो स्टूल में बैठ गई। अच्छा मैं तुम्हारे लिए कुछ बना कर लाती हूँ। वो कुछ बना कर लाई और देते हुए बोली मुझे माफ कर दो रमा।
मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है मधु। मेरी ओर से तुम अपना दिल साफ रखना। तुम तो अपने भाई की खुशी ही चाहती थी ना ? रमा बोली।
हाँ पर मैं तुम्हारी भी खुशी चाहती थी रमा।
मैं खुश हूँ मधु। अपने जीवन से, हालातों से मैं एकदम खुश हूँ, हाँ बस तुम्हारे भाई के जीवन में वापस नहीं आऊँगी।
क्यों रमा क्यों? मैं जानती हूँ कि चाहे तुम जितना भी मना करो मेरे भाई को तुम बहुत चाहती हो।
ऐसी कोई बात नहीं है मधु। मैं बस जल्दी से अपना एक साल खत्म करके यहाँ से चली जाना चाहती हूँ।
मुझे समझ में नहीं आता रमा कि तुम दोनों के बीच क्या रिश्ता है और कैसा रिश्ता है।
वो उधर हार नहीं मानते तुम इधर हार नहीं मानती आखिर ऐसा कब तक चलेगा।
जब तक तुम्हारे भाई की शादी नहींहो जाती मधु।
वो शादी नहीं करेगा रमा। करनी ही होती तो दो साल में कर चुका होता। अच्छा ये बताओ तुम शादी क्यों नहीं कर लेती। क्या तुम किसी बात की प्रतीक्षा कर रही हो।
मैं किस बात की प्रतीक्षा करूँगी मधु। मेरे लिए तो तब भी हालात वैसे ही थे जैसे आज हैं। बल्कि तुम अपने भाई को समझाओ कि मेरे पीछे लगे रहने से मेरा मन बदलने वाला नहीं है। अपने लिए कोई अच्छी जीवनसाथी तलाश कर ले और बढ़िया खुशहाल जिंदगी जिए।
भैया को समझाना अब मुश्किल है रमा। बस ये है कि मैं चाहती हूँ उनके व्यवहार में थोड़ा परिवर्तन आए और कम से कम तुम्हारे साथ बेहतर व्यवहार करें। मधु बोली
चलो उम्मीद करतें हैं रमा बोली।
ठीक है रमा मैं जाती हूँ कहकर मधु वहाँ से निकल गई।

क्रमशः

मेरी अन्य तीन किताबे उड़ान, नमकीन चाय और मीता भी मातृभारती पर उपलब्ध है। कृपया पढ़कर समीक्षा आ2शाय दे - भूपेंद्र कुलदीप।