मुकम्मल मोहब्बत - 7 Abha Yadav द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मुकम्मल मोहब्बत - 7


मैं वोट का प्रीपेड करके वोट की ओर बढ़ा ही था कि दूर से एक सुरीली आवाज सुनाई दी-"हाय,स्वीट !"
मैं मन ही मन हँसा. तुम्हें ही मेरी खूबसूरती नहीं दिखाई देती.मेरा खूबसूरत हेयरस्टाइल, छः फीट की लम्बाई के साथ गठा बदन,काली बड़ी -बड़ी आँखें, गुलाबी होंठ. आत्मविश्वास से भरी चाल.जहां जाता हूँ, लड़कियां फिदा हो जाती हैं. अब,देखो न !आ गई लड़की कंम्पनी देने.


अ...र..रे,ऐनी नाराज न होना. मैं उस कंम्पनी की बात नहीं कर रहा.वह तो बह तुम्हारे लिए ही रिजर्व है.

इस बार आवाज ठीक पीछे से आयी-"हाय स्वीट!"


वोट की ओर बढ़ते कदम रुक गये. मैंने पलट कर देखा तो मेरी आँखों ने छपकना बंद कर दिया. समझ नहीं पा रहा था-किसी अप्सरा की कन्या तो इन्द्र लोक से जमीन पर पर तो नहीं उतर आई.शायद अपनी मां से बिछड़ गई हो.बचपन में कहानियों में पढ़ना था.परीऔर अप्सरा जमीन पर घूमने आती हैं. कभी भूल वश यही रह जाती हैं.
मैं उसके रूप में डूबने लगा-झील सी गहरी ,नीली,पनीली आँखें. कंवल की पंखुड़ी से गुलाबी रसीले होंठ.कोई भी भँवरा मचल कर उसका रस चूसने को आतुर हो जाये. रंग ऐसा जैसे दूध में गुलाब की पंखुड़ी मिला दी हों.वेशभूषा भी उसकी खूबसूरती से मैच करती.सफेद घेरदार लम्बी फ्राक जिसपर गुलाबी लेस लगी है.काले लंबे करली बाल.जैसे काली घटाओं ने चांद को अपने आगोश में ले लिया हो.सिर पर भी फ्राक से मैच करती कैप.सफेद कैप पर गुलाबी लेस .पैरों में सफेद मोजे के साथ गुलाबी जूते.

"हैलो, डियर!"पुनः उसकी आवाज मेरे कानों में पड़ी तो मैं अपने पूरे होशोहवास में आ गया.

लेकिन, हैरत म़े अभी भी था. एक चौहदय-पन्द्रह साल की लड़की और यह संबोधन! एक बार के लिए मैंने सोचा जमाना बहुत तेजी से भाग रहा है. स्कूल, कालेज की लड़कियां भी....

लेकिन, उसके चेहरे पर नजर टिकते ही यह संम्भावना हवा के झोके सी उड़ गई. चेहरे की मासूमियत, उसका भोलापन. अनछुई कली का एहसास करा रहा था.अब मन में एक ही विचार ठहर गया-जल्दी में ही मां-बाप यहां पढ़ने के लिए छोड़ गये होंगे. झील का आकर्षण उसे यहां खींच लाया है.स्कूल में नई होगी. अभी कोई दोस्त नहीं बना होगा. इसलिए यहां अकेले आ गई.


इस बार मैंने उसकी तरफ मुस्कुरा कर देखा.

"मैं तुम्हारे साथ वोट शेयर करूं?"उसने बड़ी मासूमियत से पूँछा.

मैं न नहीं कर सका.मैंने मुस्कुरा कर स्वीकृति में गर्दन हिला दी.

मेरी स्वीकृति मिलते ही वह वोट में चढ़कर बैठ गई. वोट में बैठकर बहुत खुश नजर आ रही थी, वह.

वोट लेकर मैं झील के बीच में चला गया. वह बड़ी तमन्यता से झील का पानी देख रही थी. जैसे उसकी गहराई नाप रही हो.बीच -बीच में बांये हाथ में बंधा मोगरे का गजरा सूंघ लेती.मोगरे के गजरे को देखकर मुझे विश्वास हो गया कल इसी ने नैना देवी को मोगरे के फूल मेरे पीछे से चढ़ाये होंगे जिन में से दो फूल मेरे हाथों म़े आ गये थे.

अभी अंधेरा नहीं घिरा था.मालरोड और पहाड़ी बस्तियों की लाईट जल गई थी.

मैं इस लड़की के बारे में जान लेने को उत्सुक था.उसकी मासूमियत को देखकर कोई गम्भीर प्रश्न नहीं कर सकता था लेकिन औपचारिकता के नाते उसका नाम तो पूँछ ही सकता था.

"तुम्हारा नाम क्या है?"मैंने वोट का पैडल दबाते हुए पूँछा.


"मधुलिका."वह चहक कर बोली.

"बहुत सुंदर नाम है."फिर मैंने धीरे से कहा-"तुम भी बहुत खूबसूरत हो."


"थैक्स, स्वीट.ऐसा सभी कहते हैं."वह फिर चहकी.

मुझे उसका चहकना अच्छा लगा.मैने मुस्कुरा कर कहा-"खूबसूरत चीज को सभी खूबसूरत कहेंगे.

"तुम्हारा नाम?"उसने अपनी बडी-बड़ी पलकें उठाकर मेरी और देखा.

मैं उसकी गहरी नीली पनीली आँखों में डूबते-डूबते बचा.


"हैलो,तुम्हारा नाम?"उसने पुनः पूँछा.

"नील...नील..."मैं अपने को संयत कर जल्दी से बोला.

"बड़ा प्यारा नाम है,नील...आकाश की तरह नीला... इस झीलके पानी जैसा भी...."कहकर वह मुस्कुरा दी.

मैं उसे खंगालना चाह रहा था. अभी भी ढ़ेरों सवाल मेरे दिमाग में दस्तक दे रहे थे. आगे उससे कुछ पूँछता. वह धीरे से बोली-"वापस चलो."


अंधेरा घिरने लगा था.मुझे भी लगा उसे वापस जाना चाहिए.मैंने वोट किनारे की ओर मोड़ दी.वोट रूकते ही वह कूद कर वोट से उतर गई.

मैं उसको उसके घर छोड़ने या साथ चलने की बात कहता उससे पहले ही वह उछलती-कूदती सामने की पहाड़ी की ओर चल दी.

उसका उछलते-कूदते जाना मुझे अपने बचपन की ओर खींच ले गया-उछलना, कूदना, दौड़ना ,भागना सब बचपन तक ही सीमित हैं. ज्यों ज्यों बड़े होते जाओ.यह छोटी -छोटी किन्तु अपने आप में पूर्ण खुशियां हमारे हाथ से फिसलती जाती हैं. और एक गम्भीर, औपचारिक जिदंगी शुरू हो जाती है.

मैंने एक गहरी सांस ली और अपनी कार की ओर बढ़ गया.


क्रमशः