मुक्म्मल मोहब्बत - 8 Abha Yadav द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मुक्म्मल मोहब्बत - 8


मेरे दिमाग के सारे चेनलों में बस एक ही नाम की धूम मची थी-मधुलिका.... मधुलिका... मधुलिका. वह मेरे दिलोदिमाग में इस कदर हाबी थी कि नींद में भी उसका चेहरा मेरी आँखों के आगे से नहीं हटा था.मेरा क्या जिसने भी उसे देखा होगा उसका यही हाल हुआ होगा. वह है ही बला की खूबसूरत. अजीब सा आकर्षक है, उसमें. एक मदहोश कर देने वाला नशा.सोचता हूँ, अभी अधखिली कलीहै.खिलकर फूल बनेगी तब....तब शायद आग लगा देगी हर जवां दिल में.

मन में एक संशय उठा. जिसे मैं अनछुई कली समझ रहा हूँ कहीं वह किसी ऐसी जगह से....तभी उसका सम्बोधन... हाय स्वीट... डियर...वह भी एक अनजान जवां युवक के लिए. एक संस्कारिक लड़की तो ऐसा नहीं बोलेगी. मन कुछ बिचलित सा हुआ-आज के जमाने की लड़की है.आजकल सभी बच्चे डियर माम...डियर पा....डियर फ्रेड़... बोलते ही हैं.
जब जब दिमाग उसके बारे में ऐसा-वैसा कुछ सोचने की कोशिश करता दिल हर उस दलील को सिरे से खारिज कर देता.उसकी मासूमियत कुछ गलत सोचने ही नहीं दे रही थी. बस उसका सम्बोधन ही हाय ,स्वीट था.न उसके हावभाव आपत्तिजनक जनक थे और न ही उसने किन्हीं ऐसे शब्दों का प्रयोग किया था, जिससे उसे घटिया करार दिया जाये. बस,वोट शेयर करने का अनुरोध ही किया था. झील की सैर की और अंधेरा होने से पहले ही वापस भी चली गई. उसका भोला सा चेहरा ,हिरनी के शावक सी चाल...याद कर मुस्कुरा दिया मैं.

सारा दिन इसी ऊहापोह में बीत गया था. कब नाश्ता किया, कब लंच लिया, कब शाम हो गई ,पता ही न लगा.वैसे मुझे इंतजार भी शाम का ही था.आज फिर मैंने वोटिंग का निश्चय किया था. मैं उससे फिर मिलना चाहता था. वैसे न उसने मिलने को कहा था और न ही मैंने उसे आने को.कहता भी कैसे. वोट रूकते ही तो कूदती-फाँदती चली गई थी.

मधुलिका और मुझमें दस -बारह बर्ष का अंतर तो है ही.फिर भी मेरा मन उससे मिलने को बैचेन हो रहा है.

मैंने वोट का प्रीपेड किया और झील के किनारे यूँही टहलने लगा.यह कहना जायदा सही होगा -मैं मधुलिका का इंतजार करने लगा.साथ ही मन में घुमड़ते सवालों का जबाव पाने का निश्चय भी करने लगा.

"हाय!स्वीट."वही सुरीली आवाज कानों में पड़ी तो मेरा चेहरा खिल गया.


"मधुलिका, तुम!"मुझे उसके की खुशी थी.लेकिन, यकीन नहीं था.

"डियर, स्वीट !आज वोटिंग नहीं करोगे."उसने भोले पन से अपनी आँखें झपकायीं.

मेरी नजर उसके सिर से पाँव तक फिसल गई. आज भी उसने कल के डिजाइन कु ड्रेस पहनी थी.बस,कलर चेंज था.आज हल्की आसमानी ड्रेस थी.जूते भी आसमानी थे.किसी जल परी सी लग रही थी, वह.

"आज वोट नहीं ली."उसने मुझे खामोश देखकर पूँछा.


"हां,ली है.आओ."मैं वोट की तरफ बढ़ गया.


मधुलिका बिना हिचकिचाये वोट में बैठ गई. मैं वोट को झील के बीच में ले गया.

"तुम इधर घूमने आये हो?"अपने हाथ का गजरा सूंघते हुए वह बोली.


"हां,कुछ दिनों में चला जाऊंगा."मैंने उसे बताया.


"क्यूँ?"कहकर वह उदास हो गई.


"काम के सिलसिले में आया हूँ. काम पूरा हो जायेगा. चला जाऊंगा."

"क्या, काम करते हो?"वह बात मुझसे कर रही थी.लेकिन उसका चेहरा झील के पानी की ओर था.


"कहानी लिखता हूँ "


"कहानी...कहानी ...लिखते हो.यानि रायटर हो."उसने अपना चेहरा मेरी ओर किया और जल्दी जल्दी आँखें झपकाने लगी.बिल्कुल डॉल की तरह .

मुझे उसके इस तरह देखने पर हँसी आ गई..-"क्यों विश्वास नहीं है?"

"न तुम्हारे पास पेन है,न डायरी है,न लैपटॉप है.कैसे लिखोगे, कहानी."

"घर में कमरे में बैठकर लिखता हूँ."

"किसमें?"

"डायरी में पेन से.लैपटॉप में टाईप करके."मैंने उसे बताया.

"यहां नहीं लिख सकते?"

"यहां वोट में ....झील में..."मैं उसके चेहरे की ओर देखने लगा.

"रायटर हो.कहीं भी लिख सकते हो."वह बडे़ विश्वास से बोली.

"हां,यहां भी लिख सकता हूँ, लैपटॉप पर. लेकिन, तब जब कोई कहानी जेहन में आयेगी तब."मैंने उसकी जिज्ञासा शांत की.


"ओह,स्वीट !मैं तुम्हें कहानी सुनाऊं तो लिखोगे?"

"तुम कहानी सुनाओगी?"मैं अचकचा गया.


"हां,मेरे पास एक प्यारी सी कहानी है.तुम लिखो न!"उसने अनुरोध किया.

मुझे हंसी आ गई-"परी वाली, शेर भालू वाली...."्

"नहीं, इन सबसे अलग.बहुत अच्छी सी."


"किसी किताब में पढ़ी है?"

"नहीं, मुझे आती है."कहते हुए उसकी आँखों में चमक आ गई.

मैंने सोचा घर में मां या दादी-नानी से सुनी होगी. मै उसका दिल नहीं तोड़ना चाहता था. मैंने कहा-"बताओ,कहानी."


"अभी कैसे लिखोगे?तुम्हारे पास लिखने को कुछ नहीं है?"उसने परेशान होकर कहा.

"वाह सुदंर के साथ साथ बुध्दिमान भी हो .लोग गलत कहते हैं-हुस्न बड़ा नाजुक होता है अक्ल का बोझ उठाया नहीं जाता."

वह टुकुर-टुकुर मेरा मुँह देखने लगी,फिर धीरे से बोली-"कहानी नहीं लिखोगे?"

"लिखूंगा. कल लैपटॉप लेकर आंऊगा तभी.तुम बताना, मैं टाईप करता रहूंगा."मैने उसे संतुष्ट करने के लिए कहा.

"वेरी गुड!"वह ताली पीट कर खुशी से उछल पड़ी .जैसे दुनिया जहान का खजाना मिल गया हो.

अंधेरा घिरने को तैयार खड़ा था.मालरोड और पहाड़ी की बस्तियों में जुगनू चमकने लगें थे.मैने वोट को आगे बढ़ाना चाहा तो उसने वापस चलने का इशारा किया.

मैं ने वोट किनारे लगा दी.इस बार वोट से उतरकर वह सीधे नहीं भागी.उसने पलट कर मेरी तरफ हाथ हिलाया. फिर उछलती कूदती अपनी राह चली गई.


क्रमशः