नैनीताल आकर नैना देवी के मंदिर न जाऊं ऐसा हो नहीं सकता .वैसे मैं पूजा-पाठ नहीं करता. कभी भगवान के नाम की धूप, दीप भी नहीं जलाता. मेरे फ्लैट में किसी भगवान की फोटो या मूर्ति भी नहीं है. लेकिन, कहीं दूसरे शहर घूमने जाऊँ और राह में कोई मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारा दिख जाये तो मत्था जरूर टेक लेता हूँ. वह भी पूरी श्रद्धा के साथ. नैनीताल आकर भी एक बार नैनादेवी के मंदिर जरूर आता हूँ. आज भी इसी उद्देश्य से चला आया.
मैंने देवी के आगे मत्था टेका. आँख बंद कीऔर हाथ जोड़कर खड़ा हो गया. मंदिर में भीड़ जायदा नहीं थी.फिर भी दायीं ओर धक्का लगा तो मैंने आँखें खोलकर दायीं ओर देखा.एक बुजुर्ग हाथ जोड़े, आँखें बंद किए प्रार्थना में मग्न थे.मैं देवी की ओर मुताबिक हुआ तो अपने हाथों में मोंगरे के दो फूल देखकर चौंकगया. फूल तो मैंने खरीदे ही नहीं फिर हाथ में कहां से आ गये. वैसे भी मैं मंदिर में चढ़ाने के लिए फूल धूप,प्रसाद जैसा कुछ नहीं खरीदता. बस,मत्था टेका, आँखें बंद की हाथ जोड़े. बस.फिर वापसी. वैसे भी धर्मस्थलों में प्रवेश करते हुए मेरा उद्देश्य पूजा पाठ से जायदा उस स्थान की कलाकृतियों को देखना होता है.
लेकिन, बिना फूल खरीदे हाथ में फूल आना बिल्कुल फिल्मी स्टाईल था.देवी-देवता प्रसन्न हुए. हवा का तेज झोका आया .फूल टूटकर भक्त की झोली में. मैंने सोचा शायद देवी ने ऐनी के लिए प्रेम कथा लिखने का आशीर्वाद दिया है.फिर मुझे खुद पर हंसी आ गई. मैं कब से अंधविश्वास में पड़ने लगा.पीछे से किसी ने देवी पर फूल चढ़ाएं होगें. उन्हीं में से यह फूल मेरे हाथ पर गिर गए.
"चलो,देवी मां ,मुफ्त में फूल मिले हैं, तो तुम्हारे चरणों में अर्पित ही कर देता हूँ."मैंने दोनों फूल देवी के चरणों में चढ़ा दिए.
मैंने हाथों को सूंघा. हाथों में भी मोंगरे के फूलों की खुशबू थी.अच्छा लगा मुझे. फूल एकदम ताजे रहे होंगे. तभी हाथों में इतनी महक है.
मंदिर से निकल कर मैं झील की ओर चल दिया. अंधेरा घिरने लगा था.घिरते अंधेरे में झील की खूबसूरती और बढ़ जाती है. आसपास की बस्तियों में जलती लाईट की परछाई जब झील में पड़ती है तो लगता है आकाश से सितारे जमीं पर उतर आये हैं. ऐसे में वोटिंग करो तो लगता है फलक की सैर कर रहे हैं. चारों ओर सितारे ही सितारे.
एक बार के लिए सोचा-वोट ले लूं.फिर कुछ सोचकर रुक गया. आंटी इंतजार कर रही होगीं. वैसे भी अंकल वाली खिचड़ी खानी है .उसके लिए लेट करना ठीक नहीं. कल वोटिंग करूंगा और खाना भी बाहर ही खा लूंगा.
मैं वापस जाने के लिए मुड़ा ही था कि ऐनी की काल आने लगी.
"हैलो, ऐनी."
"कहां हो.अभी तक फोन भी नहीं किया. कहां बिजी हो गए."ऐनी का स्वर तीव्र था.
"डिनर के बाद में तुम्हें आराम से वीडियो कालिंग करता. तुम समय से पहले टपक गईं."मैने हँसकर कहा.
"इस समय हो कहां?"ऐनी का स्वर और तीखा हो गया.
"नैना देवी के मंदिर से निकला हूँ. झील के पास हूँ.और हां, आज मैंने देवी के चरणों में फूल चढ़ाएं"मैंने ऐनी को बताया.
"तुम होश में तो हो.तुम फूल,धूप दीप जैसी चीजों में विश्वास ही नहीं रखते. तुम्हारे लिए यह सब दिखावा है.तुम्हारे भगवान तो बस दिल में रहते हैं'ऐनी बिना रूके बोलती चली गई.
"सुनो,तो.मैंने खरीदे नहीं थे.अपने आप हाथ में आ गए तो चढ़ा दिए."
"ओ,हलो, जायदा फिल्मी डायलॉग मत मारों."ऐनी भड़क गई.
"अरे,पीछे से कोई देवी पर चढ़ा रहा होगा. मोंगरे के दो फूल मेरे हाथ पर गिर गये जो मैंने देवी के चरणों में चढ़ा दिए."मैंने ऐनी को शांत किया.
"ठीक है. आगे का प्रोग्राम बताओ."
"कल शाम वोटिंग करूंगा."
"तुम सैर सपाटा करने गये हो या काम करने."ऐनी फिर बिगड़ गई.
"मोहतरमा'कहानी कोई साग भांजी नहीं कि बाजार से खरीद लाओ.जरा मूड बनने दो डियर."
"ओ.के.टेक केयर."कहकर ऐनी ने फोन काट दिया.
मैंने फोन जेब के हवाले किया और मालरोड की ओर चल दिया. जोशी आंटी के लिए बाल मिठाई भी लेनी थी.
क्रमशः