दो बाल्टी पानी - 34 Sarvesh Saxena द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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दो बाल्टी पानी - 34

वर्माइन ने गोपी को संडास के बाहर बिठाया और खुद पास के तालाब से पानी भरने चली गयी, चारों ओर सन्नाटा पसरा था जो झिंगूर की आवाजों से बार बार टूट रहा था | वर्माइन गोपी को कोसते कोसते जल्दी जल्दी तालाब के पास पहुंची और बाल्टी को तालाब से भरकर जैसे ही पीछे मुडी तो सामने देख कर उसकी चीख निकल पडी |

चीख सुनकर पास के लोग बाहर आये तो देखा वर्माइन बेहोश पडी थी और पानी की बाल्टी पास मे लुढकी पडी थी | जब वर्मा जी को पता चला तो वो दौडे दौडे आये और वर्माइन को बिना चोटी के देख पागलों की तरह रोने लगे “ हाय ये का कर लिया वर्माइन, अरे इत्ती रात को यहां पानी भरने की का जरूरत थी, हमे कहा होता तो हम भर देते, अब हम उस चुडैल को जिन्दा नही छोडेंगे, या तो गांव में हम या फिर ये चोटी काट चुडैल रहेगी, बताये देते हैं |”

देखते देखते तालाब के पास गांव वालों का मजमा लग गया, बेहोश वर्माइन को घर लाया गया और तभी गोपी दौडा दौडा आया और बोला “ अम्मा उठो हमे सौंचाओ....उठो अम्मा......” ये सुनकर वर्मा जी समझ गये कि वर्माइन इत्ती रात तालाब के पास काहे गईं थी |

सुबह तक सब जगह खबर फैल गई कि वर्माइन की भी चोटी चुडैल ने काट ली | अब गांव वालों का खून खौल रहा था वो हर हाल मे इस चुडैल से पिंड छुडाना चाहते थे | सबने ठान लिया कि अब हमे बेताल बाबा की मदद से मिलकर उस चुडैल से पीछा छुडाना होगा |

अब गांव मे किसी भी औरत या लडकी का बाहर निकलना पूरी तरह से वर्जित हो गया था |

मिश्रा, वर्मा, बनिया और ठाकुर साहब बब्बन हलवाई को लेकर बेताल बाबा के पास गये और इस समस्या का समाधान पूछा तो उन्होने उन सबको कुछ समझाया और फिर एक पोटली देते हुये कहा “ ये भभूत जब उस चुडैल को पकड लेना तो उसके उपर डाल देना, इससे वो कमजोर हो जायेगी और भाग नही पायेगी |

इधर सुनील, पिंकी और स्वीटी भी अपने अपने प्यार के चक्कर में दुखी और परेशान थे और सरला रोज सुनील के ऊपर नये नये टोटके करती |

“ राम कसम अम्मा, हम बिल्कुल सही हैं अरे अब तो ये ताला खोल दो या अईसे ही हमें बकरे की तरह बांधे रहोगी|” सुनील ने सरला से विनती करते हुये कहा |

“ लल्ला हम अम्मा हैं तुम्हारी, हमें पता है का करना है,का नही?? बस थोडा सबर कर उस चुडैल की टांगे ना चीर दीं तो तू हमारा बेटा नहीं|”

ये कहकर सरला कुछ काम में लग गई, सुनील ने भी सोच लिया था कि आज उसे पिंकी से मिलने तो जाना ही है, चाहे कुछ भी हो जाये |

आज हर कोई उस चोटी काट चुडैल को पकड कर ये किस्सा खत्म करना चाहता था इसलिये सबने मिलकर एक खेल रचाया और जा पहुंचे सडक के उस पार वाले नल के पास लेकिन सच ये भी था कि सब का मन धुकुर धुकुर हो रहा था|

रात का सन्नाटा धीरे धीरे गांव मे पैर पसार रहा था और गांव के कुछ लोग नल के पास पेडों के पीछे छुप कर बैठ गये| तभी बनिया जी माने गुप्ता जी आवाज को दबाते हुये बोले “ का कहते हो मिश्रा जी, वो चुडैल आयेगी या उसे हमारे छुपे होने का भी पता चल गया होगा|”

मिश्रा जी मुंह पर कपडा लगाकर बोले “ अरे काहे नही आयेगी बनिया जी, सुभ सुभ बोलो, वो चोटी काट चुडैल जरूर आयेगी और हम उसे दबोच लेंगे|”

मिश्रा जी की बात पूरी नहीं हो पायी थी कि तभी वर्मा जी बोले “अरे चुडैल आये ना आये लेकिन हमें अब बडा जोर की आई है और ई लहंगा चोली हमसे अब और नाही संभल रहा, ससुरी चुडैल के चक्कर मे हमें तुम लोगों ने का बना दिया|”

वर्मा जी को चुप कराते हुये ठाकुर साहब बोले “ का बुदुर बुदुर कर रहे हो वर्मा जी, जनानी के कपडा पहने हो खाली अब जनानी की तरह बतियाओ ना, धीरज धरो और अपने सबर का बांध चुडैल को पकडने के बाद छोडना|”