गवाक्ष - 42 Pranava Bharti द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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गवाक्ष - 42

गवाक्ष

42==

चिकित्सकों ने मंत्री जी को मृत घोषित कर दिया। मंत्री जी के सुपुत्र पहले ही से उपस्थित थे, पिता के न रहने की सूचना जानकर उनकी ऑंखें अश्रु-पूरित हो गईं लेकिन मनों में जायदाद के बँटवारे की योजना प्रारंभ हो गई थी । बहन भक्ति के पहुँचने की प्रतीक्षा करनी ही थी। मंत्री जी अपने कमरे से निकलकर आत्मा के स्वरूप में कॉस्मॉस के साथ अपने आँगन के वृक्ष पर जा बैठे । वे दोनों केवल प्रोफेसर के ज्ञान-चक्षुओं को दिखाई दे रहे थे। डॉ. श्रेष्ठी नीचे अन्य लोगों के साथ बैठे थे । मंत्री जी के दोनों पुत्र पिता की अंतिम यात्रा की तैयारी में संलग्न थे। अचानक उनके कानों में उनके स्वर सीसे से घुल गए ;

"अभी तो मैं अंदर ही हूँ, मेरा पार्थिव शरीर अभी पाँच तत्वों में विलीन भी नहीं हुआ। कुछ दिनों बाद बँटवारे की चिंता कर लेना। "दोनों पुत्र चौंक उठे, कुछ घबरा से भी गए । एक शर्मिंदगी का सा भाव उनके मुख पर छलक उठा लेकिन वे कुछ समझ न पाए कि उनके मृत पिता किस प्रकार उनके कान में यह बात कह सकते हैं!!

" कॉस्मॉस! देखा ?धरती पर मनुष्य कुछ देर के लिए भी भौतिक साधनों के आकर्षण से नहीं बचा रह पाता। "

" यह सत्य है लेकिन मैंने जो ज्ञान प्रोफ़ेसर से प्राप्त किया है, उसके अनुसार यदि मनुष्य जागृत रह सके तो अपने ऊपर नियंत्रण भी रख सकता है। "

"यही तो परेशानी है कॉस्मॉस, मनुष्य पृथ्वी पर आते ही भूल-भुलैया में पड़ जाता है। " मंत्री जी कॉस्मॉस के साथ वृक्ष पर बैठे हुए पूरे वातावरण का जायज़ा लेकर आन्दित हो रहे थे।

मंत्री सत्यव्रत जी के पार्थिव शरीर को बड़े कमरे में दर्शनों के लिए रखवा दिया गया था। रेशमी चादर पर पुष्प बिछाए गए थे, उस पर मंत्री जी स्वयं को लेटे हुए देख रहे थे | "कितना अद्भुत होता है इस प्रकार से स्वयं को देखना ! लेकिन जब हम शरीर में होते हुए भी स्वयं को उससे भिन्न देख पाते हैं तब हमारे लिए इस स्थिति की कल्पना आसान हो जाती है। "उनके मुख से निकला ।

"क्या तुम जानते हो कि पूर्व-काल में पृथ्वी पर यौगिक बल द्वारा प्राणों का त्याग किया जा सकता था एवं वे योगी अपने योग से स्वयं को आत्मा से विलग होते हुए देख सकते थे, महसूस कर सकते थे। लेकिन यह विद्या कुछ ही योगियों के पास थी । "मंत्री जी ने कहा ।

" आज आप देख पा रहे हैं, महसूस कर पा रहे हैं, आप भी योगी बन गए। " कॉस्मॉस ने मंत्री जी से चुहल की ।

" नहीं कॉस्मॉस, यह तुम्हारे कारण संभव हुआ है। मैं कहाँ का योगी हूँ । इसके लिए तुम धन्यवाद के पात्र हो, देह त्याग के पश्चात यही मेरी इच्छा थी । "

"और यह भी कि आपकी अनुपस्थिति में लोग आपके बारे में क्या सोचते हैं, आप यही देखना चाहते थे न ? !" कॉस्मॉस यह सब पहली बार देख रहा था । मंत्री सत्यव्रत जी मुस्कुरा उठे ।

जन्मते समय सब रोते हुए आते हैं किन्तु जब कोई हँसता हुआ जीवन से प्रयाण करता है, उसका जीवन सफल हो जाता है । वह जीवन की वास्तविकता को स्वीकार चुका होता है तथा आवागमन को सहजता से स्वीकार करता है जो बहुत कम लोग कर पाते हैं, केवल वे ही जो जागृत होते हैं। सत्यव्रत को अपनी दिवंगत पत्नी स्वाति की स्मृति हो आई जिसने उन्हें जीवन की वास्तविकता से परिचित करवाया

था। उनके चेहरे पर अपनी प्रिय पत्नी स्वाति की स्मृति से एक शांत मुस्कुराहट फ़ैल गई।

सत्यव्रत देख रहे थे उनके बँगले के बाहर कितने झुण्ड एकत्रित हो गए थे जिनमें भाँति-भाँति के लोग सम्मिलित थे । कुछ लोग मंत्री जी के न रहने की सूचना से वास्तव में दुखी थे जिनमें अधिकांशत:स्त्रियाँ व बच्चे थे जिनके लिए मंत्री जी ने कई संस्थाओं की स्थापना की थी । सत्यव्रत को उनके नेत्रों में आँसू दिखाई दिए ।

एक झुण्ड में ऐसे भी लोग थे जो वैसे तो मंत्री को अंतिम बिदाई देने आए थे किन्तु उनके चेहरे पर एक सुकून पसरा हुआ दिखाई दे रहा था। अपने कलफ लगे धवल चमकीले कुर्ते-पायजामों में उनके चेहरे भी अपने वस्त्रों की भाँति कड़क अभिमान युक्त प्रदर्शित हो रहे थे। अपने चेहरे पर दर्प के कलफ़ से सपाट चेहरे जैसी कलफ़ लगी चुन्नटों वाली कुर्ते की आस्तीनों को ऊपर चढ़ाते हुए वे वार्तालाप कर रहे थे ;

"चलो, एक काँटा तो निकला, जब देखो समाज में बिखरी गरीबी की दुहाई देता रहता था । "

" हाँ, हम व्यापार करते हैं, सदाबरत के लिए धन और लोग थोड़े ही पाल रखे हैं !जब देखो किसी न किसी संस्था को दान लेने के लिए भेज देते थे। मंत्री जी को मना भी कैसे किया जाए?"

" हूँ ---अगर उन्हें कुछ दे-दुआकर छुट्टी हो जाती तो बात भी समझ में आती लेकिन हमारे यहाँ मंगते लोगों और मंगती संस्थाओं की कोई कमी है क्या?" दूसरे ने नाक-भौं सिकोड़ते हुए मन में भरा गुबार निकाला।

अलग अलग विचार, अलग अलग मुख!अलग अलग बातें ! संस्थाओं के लोग इसलिए दुखी थे कि उनसे करुणा व सहानुभूति रखने वाला मसीहा चला गया था । पंडाल लगाने वाले, फूल वाले, स्मारक बनाने वाले सभी का मजमा लगा हुआ था।

मंत्री सत्यव्रत जी की इतनी साख थी, इतना सम्मान था किन्तु सभी उपस्थित लोगों के मन में विभिन्न विचारों के झंझावात ! कुछ स्वार्थी लोग उनकी मृत्यु पर भी मुनाफा ढूँढ़ रहे थे। राजनीति से जुड़े हुए कुछ लोग अपने प्रिय मार्ग-दर्शक की अंतिम यात्रा में शामिल होने आए थे लेकिन बेटी भक्ति के आने पर ही यह यात्रा होगी, जानकार अपने प्रिय नेता के दर्शन करके वापिस लौट रहे थे ।

भीड़ छँटनी आरंभ हो गई, लोग यह कहते हुए लौटने लगे थे कि मंत्री जी की अंतिम यात्रा में दुबारा आ जाएंगे। विभिन्न मीडिया वहाँ अंगद के पाँव जमाए हुए थे। विभिन्न चैनलों से जुड़े पत्रकार सीधा प्रसारण कर रहे थे । प्रत्येक चैनल इस जल्दी में था कि वह सबसे पहले अपने चैनल पर समाचार प्रेषित कर सके । कभी बाहर के वृक्ष पर चढ़कर कैमरे घुमा-घुमाकर मंत्री जी की पार्थिव देह को विभिन्न 'ऐंगल्स' से दिखाया जाता तो कभी पूरी मुस्तैदी से तैनात पुलिस की आँखें चुराकर किसी खिड़की अथवा रोशनदान पर कैमरा चिपका दिया जाता तो कभी बँगले के बाहर की ऊँची चाहरदीवारी के बाहर से उचक-उचककर, विभिन्न अखबारों से जुड़े पत्रकार, कंधे पर कैमरे लटकाए फोटोग्राफर्स पूरी रात भर मंत्री जी से जुड़ी सूचना लेने का प्रयत्न करते रहे थे ।

क्रमश..