अनकहा अहसास - अध्याय - 7 Bhupendra Kuldeep द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अनकहा अहसास - अध्याय - 7

अध्याय - 7

क्या बात है डियर, तू क्लास लेने नहीं गयी। माला ने अंदर आते ही पूछा।
नहीं यार आज मन नहीं था।
क्यों भला ?
बस ऐसे ही मन नहीं कर रहा था।
अच्छा मैंनेजमेंट चेंज हुआ इसलिए।
हाँ ऐसा ही समझ ले।
वो कितना हैंडसम है ना ?
कौन वो ?
अरे वही जो नया चेयरमेन आया है।
अच्छा अनुज।
अनुज तो ऐसे बोल रही है जैसे तेरी कोई पुरानी यारी हो उससे।
रमा थोडा़ हड़बड़ा गई,नहीं नहीं ऐसी कोई बात नहीं है।
हाँ तो फिर सर बोल। बॉस हैं तुम्हारे। माला बोली।
तुझे बड़ी जलन हो रही है माला।
मुझे तो एक ही नजर में भा गए यार। माला बोली।
अच्छा तो क्या करेगी।
अपना लक ट्राई करूँगी और क्या ?
तभी कमरे में चपरासी अंदर आया।
मैडम नए चेयरमैन सर ने सभी स्टाफ को कान्फ्रैंस रूम में बुलाया है।
अच्छा तुम चलो हम आते हैं। रमा बोली
दस मिनट में सभी लोग कान्फ्रैंस हॉल में इक्ट्ठा हो गए।
इत्तेफाक ऐसा हुआ कि रमा और अनुज को ठीक एक दूसरे के सामने की सीट मिली।
कान्फ्रैंस चालू होने से पहले ही एक दो बार दोनों की नजरें चार हो गई। जैसे ही अनुज की नजर रमा पर पड़ती वो एकदम सिहर जाती थी।
वो कागजों में उलझी होने का नाटक करने लगी।
फिर उसने देखा कि माला अनुज को एकटक देखे जा रही है।
माला। ऐ माला। ये तू क्या कर रहीं है ?
कुछ नहीं यार बस अपना घर बसाने का प्रयत्न कर रही हूँ।
मैडम ! फॉर युअर काइन्ड इनफारमेशन। उसका घर बस चुका है और वो शादीशुदा है। रमा फुसफुसाई।
ये सुनते ही माला का चेहरा ढ़ीला पड़ गया।
क्या। वो सही में शादीशुदा है ?
हाँ जी। वो सच में शादी शुदा है।
ओ नो! मैं कितने सपने संजो डाली थी पर तुमने सब तोड़ दिए।
मैंने ? मैंने क्या किया। शादी उसने की है।
पर बताया तो तूने ना। तू नहीं बताती तो मैं कम से कम कुछ और दिन सपनों में जी लेती। हट यार। अब मेरा मूड खराब हो गया। मैं जाती हूँ घर। सर पूछेंगे तो बोल देना उसकी तबियत खराब हो गई थी।
अरे इतनी सी बात पर तू उदास हो गई। बैठ ना मैं अकेली हो जाऊँगी।
नहीं यार। मुझे जाने दे। अब मेरा मन नहीं कर रहा है बैठने का। कहकर वो उठी और बाहर निकल गई।
साईलेंस प्लीज। तभी प्रायार्य महोदय की आवाज गूँजी।
सब चुप हो गए।
देखिए, आज आप सब लोगों को इसलिए बुलाया गया है, क्योंकि एक महत्वपूर्ण चर्चा आप सभी लोगों से करनी थी और वो बात ये है कि हमारे पुराने प्रबंधन समिति की जगह अब नए प्रबंधन समिति ने लिया है। आज मि. अनुज कुमार और मि. शेखर ने हमारे कॉलेज का ऑनरशिप लिया है। मि. अनुज कुमार चेयरमैन हैं और उनके मित्र मि. शेखर सचिव के रूम में कार्यभार देखेंगे। मैं पूरे महाविद्यालय के स्टाफ की ओर से मि. अनुज को स्वागत करता हूँ और सचिव मि. शेखर का भी स्वागत करता हूँ। अब मैं चेयरमेन सर को आमंत्रित करता हूँ कि वो दो शब्द कहें।
धन्यवाद प्राचार्य महोदय। अनुज ने बोलना चालू किया आप सभी को नमस्कार। मेरा नाम अनुज कुमार है मैं बी. के कन्स्ट्रक्शन का मालिक हूँ। मैंने पहली बार किसी शैक्षणिक संस्था में रूचि लेकर पैंसे लगाए हैं। आप सभी के सहयोग से हम कॉलेज को नई ऊचाईयों तक लेकर जाऐंगे। हाँ, हो सकता है इसके लिए मैं आपको ज्यादा काम करने को कहूँ। उसने रमा की ओर देखते हुए बोला। उससे आपको थोड़ी परेशानी भी हो सकती है परंतु आप निश्चिंत रहे ये महाविद्यालय की बेहतरी के लिए होगा।
रमा समझ पा रही थी कि आखिरी लाईने उसी के लिए कही जा रहीं है। वो सौ प्रतिशत उसको परेशान करने ही आया है। वो चुपचाप सिर झुकाकर बैठी रही।
इस सब के चक्कर में थोड़ी ज्यादा देर हो गई थी और चूंकि आज माला भी पहले चली गई थी तो उसे अकेले ही लौटना था। वो मेन रोड पर आकर ऑटो की प्रतीक्षा करने लगी। काफी देर हो गयी पर एक भी ऑटो नहीं मिल रही थी।
अचानक एक कार उसके सामने आकर रूकी।
कोई परेशानी है मैडम ? अनुज ने शीशा खोलकर पूछा। रमा हड़बड़ा गई।
जी कोई परेशानी नहीं मैं चली जाऊँगी।
आईये मैं आपको छोड़ देता हूँ।
नहीं धन्यवाद। मैं चली जाऊंगी। रमा संकोच में थी।
देखिये अंधेरा हो गया है। मैं आपको छोड़कर नहीं जा सकता। आईये बैठ जाईये। मैं छोड़ देता हूँ ।
नहीं कहा ना मैंने। शुक्रिया आपका। प्लीज।
अच्छा ठीक है। कहकर अनुज ने वहीं गाड़ी आगे कर साईड में लगा दिया और साईड मिरर से उसे देखने लगा।
रमा देख रही थी कि वो साईड मिरर से उसको लगातार देख रहा है पर अंधेरा बढ़ता जा रहाथा और ऑटो भी नहीं मिल रही थी।
5 मिनट, 10 मिनट, 15 मिनट दोनो अपनी अकड़ में खड़े रहे। अनुज भी वहीं खड़ा रहा और रमा भी वहीं खड़ी रही। कोई बातचीत नहीं।
आखिरकार थक हारकर रमा कार तक गई और कार की पिछली सीट पर बैठ गई।
सामने आ जाइए मैडम मैं आपका ड्राईवर नहीं हूँ। अनुज बोला।
मेरे पीछे बैठने भर से आप ड्राईवर नह बन जाऐंगे।
चलाइये गाड़ी। रमा बोली।
पर मुझे तो ऐसा ही लगेगा। सामने आ जाईये नहीं तो गाड़ी नहीं चलाऊँगा। अनुज नाराज होते हुए बोला।
रमा के पास तो विकल्प ही नहीं था। वो उठी और सामने सीट पर जाकर बैठ गई।
अनुज ने गाड़ी स्टार्ट की और शहर की ओर चलने लगा।
कहाँ पर छोड़ना है मैडम आपको ?
स्वर्ण भूमि सोसाईटी। रमा ने शीशे से बाहर देखते हुए उत्तर दिया।
अच्छा ठीक है क्या मैं गाना चालू कर सकता हूँ।
आपकी गाड़ी है आप जानो।
अनुज ने जानबूझकर वही गाना लगाया जो रमा को बहुत पसंद था और वो अनुज का हाथ पकड़ दोहराती थी।
“तेरा साथ है तो मुझे क्या कमी है
अधेरों में भी मिल रही रौशनी है।”
ये गाना बंद कर दीजिए प्लीज। मुझे ये गाना नहीं सुनना है। रमा परेशान होते हुए बोली।
पर मुझे तो सुनना है और यही गाना सुनना है। अभी तुमने कहा ना कि आपकी गाड़ी है जो आप चाहें कर सकते हो।
ठीक है सुनो, मुझे क्या करना है रमा अपना मुंह फिराए हुए थी।
सुनूँगा और जरूर सुनूँगा, पूरे कॉलेज को लाऊड स्पीकर लगाकर सुनाऊँगा।
मुझे परेशान करने आये हो। रमा उसकी ओर अब गुस्से से देखते हुए बोली।
परेशान। तुमको कौन परेशान कर सकता है उल्टा तुम सबको परेशान करने में माहिर हो।
चुप रहो। मैने किसी को परशान नहीं किया।
अच्छा मैं तो बड़ा खुश नजर आ रहा हूँ ना तुमको।
देखो अनुज हम दोनों की जिंदगी अब अलग हो चुकी हैं तुम अपनी जिंदगी जिओ और मुझे
अपनी जिंदगी जीने दो।
मेरी जिंदगी आज भी तुमसे अलग नहीं हो पायी है। क्यों धोखा दिया तुमने मुझे रमा। क्यों धोखा दिया बताओ ?
अनुज की आँखें भर आयी।
धोखे वाली कोई बात नहीं है। जब मै तुमसे कोई प्यार ही नहीं करती तो धोखे वाली बात ही कहाँ हैं।
अच्छा, तुम मुझसे प्यार नहीं करती ? तो ये पिंक साड़ी अब तक क्यों रखी हो ?
बस ऐसे ही। मैं तुमसे प्यार नहीं करती मतलब नहीं करती।
तो उतरो मेरी गाड़ी से। अभी उतरो।
क्या ?
हाँ, तुम्हारी सोसाईटी नजदीक ही है पैदल जाओ।
अजीब आदमी हो पहले खुद ही बिठाते हो फिर कहीं भी उतार देते हो।
और तुमने मुझे अपने जीवन से उतार दिया उसका क्या। उतरो।
रमा चुपचाप उतर गयी।
जाओ यहाँ से। रमा ने हाथ जोड़कर कहा।
अनुज वहाँ से निकल गया।

क्रमशः

मेरी अन्य तीन किताबे उड़ान, नमकीन चाय और मीता भी मातृभारती पर उपलब्ध है। कृपया पढ़कर समीक्षा अवश्य दे - भूपेंद्र कुलदीप