उलझन - 13 Amita Dubey द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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उलझन - 13

उलझन

डॉ. अमिता दुबे

तेरह

बहुत दिनों बाद दादी को घर, घर जैसा लग रहा था। ऐसा उनके हाव-भाव से पता चल रहा था। सबने मिलकर खाना खाया। अभी आता हूँ दीदी जाइयेगा मत’ कहकर चाचा बाहर चले गये। दस मिनट बाद लौटे तो उनके हाथ में पान की पुड़ियाँ थीं जिसमें सादा पान दादी के लिए, मम्मी व बुआ के लिए मीठा पान और चाची के लिए गरी इलाइची वाला पान। पापा और चाचा हमेशा से सबके पानों में से थोड़ा-थोड़ा टुकड़ा खाकर संतुष्ट हो गये।

साढ़े दस बज रहे थे घर में ऐसी रौनक थी मानो अभी शाम ही हो। थोड़ी देर बाद सब विदा हो गये। इस वायदे के साथ कि अगले रविवार को सब बुआ जी के यहाँ इकट्ठा होंगे सुबह से ही क्योंकि कलिका दीदी को विदेश में एक बहुत बड़ा पुरस्कार मिला है इसलिए फूफा जी शाम को पार्टी दे रहे हैं। सभी को मिलकर पार्टी की तैयारी करवानी है। घर की सफाई करवानी है। उसे सजाना भी है। सारा इंतजाम बुआ जी के लम्बे चैड़े लाॅन में ही होना है।

लौटते समय सोमू गाड़ी में पीछे दादी के साथ बैठ गया वैसे उसे हमेशा कार में पापा के बगल में आगे बैठना अच्छा लगता है। वह गाड़ी चलाने के टिप्स भी सीखता जाता है लेकिन उसे आज दादी से बतियाने की जल्दी थी इसलिए उसने मम्मी को आगे बैठने दिया और खुद दादी की बगल में बैठ गया। गाड़ी थोड़ा आगे बढ़ी तो उसने फुसफुसाकर दादी से पूछा -

‘दादी कैसा लगा आज, मजा आया ना।’

‘हाँ खूब मजा आया, दादी ने भी उसी की स्टाइल में जवाब दिया। सोमू! तुमने एक चीज मार्क की’ दादी कहने लगीं।

‘क्या दादी ? सोमू को उतावली थी।

‘यह कि आज छोटू, निक्की, मिक्की और बहू हम सबके इकट्ठा होने पर कितना खुश थे और तेरी बुआ जो कलिका को बाहर भेजना नहीं चाह रही थी आज कितना इतरा-इतरा कर उसके टूर के बारे में बता रही थी मानो यह मुटल्ली भी साथ गयी हो।’ दादी ने बेढंगा सा मुँह बनाया।

पापा जो गाड़ी चलाने में मग्न थे को कोहनी के इशारे से मम्मी ने बताया- देखो सोमू अपनी गर्ल फ्रैण्ड से बातें कर रहा है।’ पापा ने हल्का से पीछे देखा और मुस्कुरा दिये तभी दादी ने टोका- ‘भइया आगे देखो, गाड़ी चलाते हुए पीछे देखना मना है।’ चारों खिलखिलाने लगे।

अंशिका रात से ही खूब एक्साइटेड है। कल उसे भूमि और दूसरी लड़कियों के साथ माॅल जाना है। मस्ती करनी है। वैसे वह माॅल मम्मी के साथ कई बार गयी है लेकिन शाम चार बजे माॅल में सुप्रसिद्ध गायक शान आने वाला है, अंशिका तो शान की बचपन से फैन है। उसे शान के कई गाने याद भी हैं। उसे देख सकेगी हो सका तो उससे बातें भी करेगी यह सब सोच-सोचकर वह उत्साहित है। बहुत देर से वह इस उधेड़बुन में है कि माॅल जाते समय वह क्या कपड़े पहने जिससे सुन्दर दिख सके। अपने ग्रुप की सभी लड़कियों से अधिक सुन्दर। वैसे भूमि को छोड़कर बाकी सब लड़कियों से तो वह सुन्दर है ही। भूमि यदि मेकप न करे तो वह भी उसके आगे नहीं ठहर सकती। उसने तय किया कि वह जींस और नया वाला टाॅप पहनेगी जो मम्मी ने उसे बर्थडे पर दिलवाया था जिसे उसने आज तक पहना नहीं था बल्कि ठीक से देखा भी नहीं था।

अंशिका ने अलमारी खोलकर डेªस निकाला तो उसे बहुत प्यारा लगा। इस डेªस से मैचिंग पर्स उसके पास है। रही शूज की बात तो वह ब्लैक बेलीज पहन लेगी। सब कुछ तय कर उसे शान्ति मिली। इस बार उसने अपना प्रोग्राम सौमित्र को नहीं बताया। क्या जरूरी है कि उसे सब बात बतायी जाय ? अंशिका ने अपने से ही तर्क किया - सोमू को बताने से भी क्या फायदा वह उसका मजाक ही उड़ायेगा। उसे वैसे भी भूमि और उसकी सहेलियों से चिढ़ है। कल छुट्टी है और पढ़ने के समय तक वैसे भी वह लौट नहीं पायेगी इसलिए सोमू को बाद में ही सबकुछ बता देगी अंशिका ने निश्चय किया।

आज समय बीत ही नहीं रहा है। ढाई बजे से ही अंशिका ने तैयारी शुरू कर दी है। खाना खाकर घर के बाकी लोग सो गये हैं। मम्मी नानी के साथ कहीं गयी हैं अब उसे इंतजार अपनी बाकी सहेलियों का है सबको उसी के घर आना है। बाद में भूमि की कार से चल देना है। अंशिका चाहती है कि सबके आने से पहले वह तैयार हो जाय।

सबसे पहले सौम्या आयी। आते ही अंशिका से लिपट गयी। हाय अंशी कितनी प्यारी लग रही हो बिल्कुल फिल्मी हिरोइन की तरह। फिर एक-एक कर सब लड़कियाँ आ गयीं। सबने मिलकर कोल्ड ड्रिंक पिया, कुछ स्नैक्स लिये और भूमि के आने पर कार में बैठकर चल दीं। इस समय ठीक साढ़े तीन बजा था।

माॅल में बहुत चहल-पहल थी। बाहर से ही मालूम हो रहा था कि कोई सैलीब्रेटी आने वाला है। उसने घड़ी देखते हुए वाॅचमैन से पूछा क्या शान जी आ चुके हैं ?

‘नहीं अभी नहीं।’ वाॅचमैन ने जवाब दिया।

‘चार तो बज चुके।’ भीड़ के धक्के से आगे बढ़ चुकी अंशिका का स्वर कुछ-कुछ निराशा भरा था।

‘तो क्या हुआ ये सेलीब्रेटीज कभी समय पर आते हैं हमेशा लेट लतीफ होते हैं।’ सौम्या ने जवाब दिया।

माॅल के जिस हिस्से में गायक शान को आना था वहाँ पहले से ही म्यूजिक प्रोग्राम हो रहा था। यह एक प्रकार का काॅन्टेस्ट था जिसमें कोई भी अपना नाम लिखवाकर भाग ले सकता था, एण्ट्री फ्री थी। जब अंशिका और उसकी सहेलियाँ वहाँ पहुँचीं तो एक लड़की झूम-झूमकर माइक पर गा रही थी-

‘जुबी-डूबी डुबी-डूबी पमपारा

जुबी डूबी परमपा

जुबी डूबी जुबी डूबी नाचे क्यों

पागल स्टुपिड मन।’

गीत खत्म होने पर सबने तालियाँ बजायीं। एनाउंसर ने अगला नाम प्रस्तावित करने से पहले यह भी घोषणा की कि इस काॅन्टेस्ट में फस्ट, सेकेण्ड और थर्ड आने वाले प्रतिभागियों को इसी मंच पर शान के साथ परफार्म करने का मौका मिलेगा। सौम्या जो अंशिका के पास ही खड़ी थी अंशिका से जिद्द करने लगी कि उसे भी अपना नाम गाने के लिए दे देना चाहिए। अंशिका ने ‘न’ में सिर हिलाया तब तक दूसरा गीत शुरू हो गया। एक लड़का पूरी ताकत लगाकर गा रहा था अंशी उसका नाम नहीं सुन पायी -

‘मौला मौला मौला मेरे मौला।

मरम्मत मुकद्दर की कर दो मौला।’

इसके बाद दो तीन गाने और हुए। सौम्या ने अंशिका का एण्ट्री फार्म भरकर जमा कर दिया। अब अंशी सोचने लगी वह कौन सा गाना गाये फिल्मी या नाॅन फिल्मी। सौम्या, कीर्तिका और अंशिका को वहीं छोड़कर बाकी लड़कियाँ माॅल में घूमने चली गयीं। तय यह हुआ कि ठीक साढे़ पाँच बजे सभी लड़कियाँ यही इकट्ठा होगीं और तब कुछ खाने-पीने का प्रोग्राम बनाया जायगा।

अंशिका की बारी आ गयी उसने अपनी सुरीली आवाज में गाया -

‘आओगे जब तुम साजना

अँगना फूल खिलेंगे

बरसेगा सावन झूम झूमके

दो दिल ऐसे मिलेंगे’

अंशिका के गाना पूरा करते ही जोरदार तालियाँ बजीं। वंस मोर वंस मोर का स्वर गूँजने लगा। प्रतियोगिता के जजेस ने भी एक नाॅन फिल्मी गीत सुनाने का आग्रह किया। अंशिका ने डूबकर गाया -

‘न जी भर के देखा

न कुछ बात की

बड़ी आरजू थी मुलाकात की’

इस बार भी खूब तालियाँ बजीं। अंशिका जब स्टेज पर थी तो उसे ऐसा लगा मानो सारी दुनिया की निगाहें उसी पर हैं और था भी ऐसा ही मल्टीस्टोरी माॅल के हर छज्जे पर लोग लटके हुए थे। सभी ओर से तालियाँ बज रही थीं। और वाह-वाह हो रही थी।

अंशिका के बाद तीन गीत और हुए दो लड़कों ने गाये और एक लड़की जब गाना गा रही थी तब वह हादसा हो गया। जिसने रंग में भंग कर दिया।

पाँच बजने वाले थे अभी शान का दूर-दूर तक पता नहीं था। पूछने पर पता चला उनको तो सात बजे आना है और उनके आने पर ही यह कान्टेस्ट पूरा होगा और इसका रिजल्ट सुनाया जायेगा।

‘यानि कान्टेस्ट के नाम पर बेवकूफ बनाया जा रहा है।’ कीर्तिका तुरन्त बोली।

‘और नहीं तो क्या ? यह भीड़ बढ़ाने या जुटाने का तरीका है।’ सौम्या ने जोड़ा।

‘हमें इससे क्या ? हम तो सात बजे तक नहीं रुक पायेंगीं। और कौन शान महाशय ठीक सात बजे आ ही जायें।’ अंशिका को निराशा हुई।

वे तीनों बिजली वाली सीढ़ियों की ओर बढ़ीं कि उनके बिल्कुल पास तीसरी मंजिल से एक लड़की धड़ाम से आकर गिरी और तड़पने लगी। उसके सिर से खून का फव्वारा फूट पड़ा जिसके कुछ छींटें सौम्या और अंशिका के कपड़ों पर भी पड़े। जब तक वे कुछ समझतीं तब तक माॅल खालीकर देने की घोषणा होने लगी। सुरक्षाकर्मी तेजी से सबको बाहर ढकेलने लगे। जिस झटके से उन्हें गेट से बाहर आना पड़ा उसमें अंशिका गिरती-गिरती बची सौम्या के पैर पर किसी भारी भरकम बूट वाले का पैर पड़ा और कीर्तिका तो बिछड़कर दूर खड़ी हो गयी। अंशिका ने सौम्या का हाथ पकड़ा सौम्या बड़ी मुश्किल से कुछ कदम चल सकी उसे दर्द के मारे रोना आने लगा। अब सबसे बड़ी समस्या थी सब लड़कियों का इकट्ठा होना और सौम्या का कार तक पहुँचना। सबसे पहले भूमि दिखायी दी। कीर्तिका ने उसे आवाज दी जो शोर में गुम हो गयी फिर लतिका की झलक दिखी थोड़ी देर में वह भी खो गयी। अंशिका की सहायता से तब तक सौम्या फुटपाथ के किनारे बने छोटे से लाॅन की मुडेर पर बैठ गयी। कीर्तिका भूमि की गाड़ी पहचानती थी। तीनों ने यह तय किया कि कीर्तिका कार के पास जाकर सबको ढूँढ़ने की कोशिश करे। क्योंकि भूमि सबको छोड़कर तो जा नहीं सकती और सब लोग कार तक तो किसी प्रकार पहुँचेंगे ही। तब तक अंशिका ने बैग से पानी की बाॅटल निकालकर अपने और सौम्या के कपड़ों पर पड़े खून के छींटों को साफ करने की कोशिश की। ध्ज्ञब्बे हल्के पड़ गये पर मिटे नहीं। अंशिका के कंधे का सहारा लेकर सौम्या बहुत मुश्किल से चल पा रही थी। कार पार्किंग वैसे तो पास में ही थी लेकिन इस समय की भीड़ और अफरा-तफरी में बहुत दूर लग रही थी। कीर्तिका को वहाँ भूमि, लतिका सहित सभी लड़कियाँ मिल गयीं। तब तक दूर से सौम्या और अंशिका भी आती दिखायी दीं जिन्हें हाथ के इशारे से सड़क पर रुकने को कहा गया। आधे घण्टे बाद कहीं गाड़ी बाहर निकल पायी तब तक सौम्या का पैर खूब सूज गया उसका दर्द के मारे बुरा हाल था। अंशिका आसपास देख आयी उसे कोई मेडिकल स्टोर नहीं दिखायी दिया। माॅल के एक-एक कर सभी गेट बन्द होने लगे थे जो गेट खुले भी थे उनसे बाहर निकलने वाले तो निकल रहे थे अन्दर जाने वालों को रोका जा रहा था। इसलिए सौम्या के लिए कोई दवा की व्यवस्था नहीं हो सकी थी।

गाड़ी में सौम्या अंशिका आगे बैठीं। सौम्या बराबर कराह रही थी। सबके दिमाग में एक ही सवाल था आखिर तीसरी मजिल से कूदने वाली लड़की कौन थी ? वह ऊपर से कूदी ही क्यों ? उसे कूदने से किसी ने क्यों नहीं रोका? लेकिन आश्चर्य की बात थी कि वे सभी बिल्कुल चुप थीं। आते समय चिड़ियों की तरह चहकने वाली लड़कियाँ बिल्कुल सन्नाटे में जैसे बोलना ही नहीं जानती हों। तभी ड्राइवर ने भूमि से पूछा - ‘छोटी मेमसाहब ! क्या माॅल की तीसरी मंजिल से कोई लड़की कूद गयी ?’

भूमि ने डाँटते हुए कहा - ‘ड्राइवर तुम बोलते बहुत हो। चुपचाप गाड़ी चलाओ।’

ड्राइवर ढीठ था फिर बोला, ‘मेमसाहब गुस्सा क्यों होती हैं ? न बताना हो तो न बताइये लेकिन डाॅटती क्यों हैं। हमें सब पता है एक लड़की अपने ब्वाय फ्रैण्ड के साथ माॅल में घूम रही थी। दोनों में लड़ाई हो गयी और लड़की तीसरी मंजिल से कूद गयी। अब तक तो वह मर भी गयी होगी। उसकी हालत बहुत खराब थी। पुलिस उसके ब्वाय फ्रैण्ड को पकड़कर ले गयी है। पूछताछ से सब हाल मालूम होगा। न जाने वह लड़की खुद कूदी या उस लड़के ने उसे धक्का दिया यह सब तो कल अखबार से पता चलेगा या केबिल पर न्यूज चैनल वाले दिखायेगें।’