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उलझन - 4

उलझन

डॉ. अमिता दुबे

चार

अंशिका बहुत दुविधा में है। यह बात वह सौमित्र को बताये या न बताये। यदि वह सौमित्र को बताती है तो कहीं वह मैम को बता देगा तो बहुत बुरा होगा। लेकिन अगर वह सोमू को नहीं बताती है तो वह इतनी बड़ी बात पचाये कैसे ? बहुत सोचने के बाद उसने तय किया कि वह सोमू को सब कुछ बतायेगी लेकिन पहले यह वायदा ले लेगी कि सोमू इसे किसी को नहीं बतायेगा।

‘सोमू ! तुम्हें एक बात बताऊँ।’ होमवर्क करते हुए अंशिका ने कहा।

‘हाँ बताओ।’ सोमू ने लापरवाही से उत्तर दिया।

‘पहले तुम गाॅड प्राॅमिस करो कि तुम यह बात किसी को नहीं बताओगे।’

‘ऐसी क्या बात है अंशी !’

‘है कुछ’

‘तो बताओ न।’

‘पहले तुम गाॅड प्राॅमिस करो।’

‘गाॅड प्राॅमिस। अब बताओ भी।’ सौमित्र की जिज्ञासा बढ़ रहीं थी।

‘देखो सोमू! तुमने गाॅड प्राॅमिस किया है। भूलना नहीं।’

‘अब तुम बोलोगी भी या यों ही बातें बनाओगी।’ सोमू ने कुछ झल्लाते हुए कहा।

‘सोमू ! आज मैंने भूमि के पास स्कूल में मोबाइल देखा।’

‘किसके पास ?’

‘भूमि के पास’ ‘कौन भूमि ?’

‘वही भूमि जो अभी एक हफ्ता पहले अपनी क्लास में नयी आयी है। जिसके पापा ट्रांसफर होकर कानपुर से आये हैं। किसी कम्पनी में जी0एम0 हैं।’ अंशिका ने बताया।

‘तुमने कैसे देख लिया ? और तुमने तुरन्त मैम को क्यों नहीं बताया ?’ सोमू ने अंशिका की क्लास ले डाली।

‘लंच में मैं और भूमि कैंटीन की तरफ गये। बाद में वह बैग लेकर बाथरूम चली गयी। लौट कर आयी तो हँसी के मारे दोहरी हुई जा रही थी। मैंने पूछा तो बोली किसी को बताओ नहीं तो तुम्हे एक चीज दिखाती हूँ। मैं कुछ जवाब देती इससे पहले वह मेरा हाथ पकड़कर बाथरूम में घसीट ले गयी। दरवाजा अन्दर से लाॅक कर उसने अपने बैग से मोबाइल निकाला जिसमें एक मैसिज था। भूमि ने बताया कि यह मैसिज उसके ब्वाय फ्रैंड ने कानपुर से भेजा है। उसने जो मैसिज पढ़कर सुनाया वह एक भद्दा सा चुटकुला था। मुझे सुनकर अच्छा नहीं लगा।’ अंशिका ने बताया।

‘तुमने उससे यह नहीं कहा कि हमारे स्कूल में मोबाइल एलाऊ नहीं है। मैम ने देख लिया तो बहुत डाॅट पड़ेगी।’ सौमित्र को अंशिका पर गुस्सा आने लगा।

‘कहा तो था लेकिन वह बोली-कानपुर के स्कूल में भी कहाँ एलाऊ था? मैं तो वहाँ भी ले जाती थी। एक बार आया ने पकड़ लिया था। मैंने उसे खूब लालच दिया पर वह नहीं मानी और क्लासटीचर मैम से शिकायत कर दी। मैम ने प्रिंसिपल मैम का डर दिखाया तो मैंने उनसे साॅरी बोल दिया और दोबारा ऐसी गलती न करने की कसम खा ली। लेकिन तुम्हें बताऊँ मैं तब भी नहीं मानी और रोज ले जाती रही लेकिन उसके बाद कभी पकड़ी नहीं गयी।’ अंशिका ने बताया। बादल ने हाईस्कूल तक की पढ़ाई अपने गाँव के अंग्रेजी माध्यम के स्कूल से की थी। उसका गाँव शहर से मात्र 40 किलोमीटर दूर होने के कारण अपेक्षाकृत अन्य गाँवों से विकसित है। वहाँ सरकारी अस्पताल, टीबी डाॅट सेण्टर, सरकारी स्कूल सहित एक अंग्रेजी माध्यम का स्कूल भी है जिसके प्रबन्ध्ज्ञक महोदय निकटवर्ती शहर से वैन द्वारा शिक्षक/शिक्षिकाओं को बुलवाकर शिक्षण कार्य करते हैं। आसपास के गाँवों के थोड़े अच्छे परिवारों के बच्चे इसी अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में पढ़ने आते हैं। बादल की माता जी उसके दादी-बाबा और खेती-बाड़ी के कारण गाँव के घर में ही रहती थीं जबकि उसके पिताजी एक सरकारी विभाग में पहले चपरासी बाद में क्लर्क होने के कारण शहर में ही रहते हैं और रविवार और अन्य अवकाश के दिनों में ही घर आ पाते थे।

हाईस्कूल परीक्षा बादल ने प्रथम श्रेणी में उत्तीण की। दो विषयों में विशेष योग्यता के साथ उसने 70 प्रतिशत अंक अर्जित किये थे। पूरे गाँव या आसपास के अनेक गाँवों में उसकी खूब तारीफ हुई थी। उसके पिताजी ने उसका भविष्य बनाने के लिए उसे अपने साथ शहर ले जाना तय किया था जहाँ एक इण्टरमीडिएट कालेज में उसका नाम 11वीं कक्षा में उन्होंने लिखवा दिया था। माता जी अभी भी गाँव में रहती थीं। बादल अपने पिताजी के साथ एक कमरे के मकान में रहता था। पिताजी खाना बनाकर आॅफिस जाते थे और स्कूल से लौटर बादल सारे बरतन धो डालता था। उसके बाद वह अपनी पढ़ाई करता। पिताजी तो सात-साढ़े सात तक घर आ पाते। बादल की छुट्टी दो बजे हो जाती थी। स्कूल घर से तीन किलोमीटर दूर था। पिताजी ने एक साइकिल दिलवा दी थी। जिससे वह स्कूल आता-जाता था साथ ही पास की सब्जी मण्डी से फल आदि भी ले आता था।

सौमित्र की काॅलोनी के पास एक ई0डब्ल्यू0एस0 टाइप मकानों की काॅलोनी थी जिसमें बादल के पिताजी ने किराये का मकान ले रखा था। वहाँ मुँह अँधेरे से ही सार्वजनिक नल पर बाल्टियों की खड़खड़ाहट शुरू हो जाती थी। सबको काम पर जाने की जल्दी होती थी और बिना पानी के काम कैसे हो ? इसलिए जल्दबाजी में लोग एक दूसरे से बेमतलब झगड़ने भी लगते। अच्छा खासा तमाशा बन जाता। शुरू-शुरू में तो बादल को बड़ा अटपटा लगा। गाँव के शान्त वातावरण में उसका बचपन बीता था इस प्रकार के वातावरण का वह आदी नहीं था लेकिन धीरे-धीरे उसे इस तमाशे में मजा आने लगा। बिना किसी अधिक प्रयास के वह इस माहौल में रच बस गया। वहीं उसकी मुलाकात एक आटो चालक रहमान से हुई। रहमान उसके बगल वाली गली में रहता था। जिस समय बादल स्कूल के लिए निकलता उस समय रहमान भी अपनी आटो रिक्शा निकालकर सड़क की ओर आ रहा होता। कई बार उन लोगों की अचानक भेंट हो गयी। रोज मिलते-मिलते मुस्कुराहट का आदान-प्रदान भी होने लगा।

एक दिन सुबह-सुबह बादल ने साइकिल निकाली तो वह पंचर थी। इतनी सुबह पंचर बनाने वाला कोई बैठा नहीं होगा यह सोचकर उसने साइकिल खड़ी कर दी और पिताजी जिन्हें अब वह भी औरों की तरह पापा कहने लगा था, को बताकर पैदल ही निकल पड़ा। अगले मोड़ पर रोज की तरह आटो वाला निकलने को तैयार खड़ा था। बादल जैसे ही उसकी बगल से निकला उसने टोका- ‘क्यों पहलवान आज पैदल ही।’

‘हाँ भाई क्या करुँ, सुबह-सुबह साइकिल पंचर हो गयी, इतनी सुबह कोई पंचर बनाने वाला नहीं मिलता है इसलिए पैदल चल पड़ा।’ बादल ने जवाब दिया।

‘जाना किधर है ?’

‘हैप्पी मार्डन स्कूल, वही जो चैक में है।’

‘अच्छा बैठो मैं उसी ओर जा रहा हूँ।’

‘तुम्हें परेशानी होगी।’

‘परेशानी कैसी ? मुझे तो उसी रूट पर रोज आटो चलानी होती है। कई चक्कर लगते हैं मेरे तो दिन भर में। न चक्कर लगाऊँ तो कैसे काम चले।’ वैसे तुम्हारा नाम क्या है और कहाँ रहते हो। यहाँ के तो लगते नहीं कहाँ के रहने वाले हो ? रहमान ने बादल का पूरा इण्टरव्यू ले डाला।

रहमान के साथ बादल को आटो में बैठना बहुत अच्छा लगा। अपना पूरा परिचय उसने रहमान को बताया और जब वह स्कूल के सामने आॅटो से उतरा तब तक रहमान से उसकी अच्छी दोस्ती हो गयी थी। रहमान ने उससे छुट्टी का टाइम पूछ लिया और उस दिन छुट्टी के समय वह उसे लेने आ गया। इस तरह आज साइकिल के पंचर ने रहमान से बादल की दोस्ती करवा दी जो आगे चलकर बादल के बिगड़ने का बहुत बड़ा कारण बनी।

हाईस्कूल में दो विषयों में विशेष योग्यता के साथ पास होने वाला बादल ग्यारहवीं की अर्द्धवार्षिक परीक्षा में फेल हो गया। उसने अपना रिपोर्ट कार्ड पापा को नहीं दिखाया और अभिभावक के हस्ताक्षर के स्थान पर पापा का नाम टेढ़े मेढ़े अक्षरों में संक्षेप में लिखकर जमा कर आया। पापा को स्कूल के विषय में ज्यादा कुछ पता नहीं था। अभी तक परिवार गाँव में रहा था इसलिए बच्चों के स्कूल आदि के विषय में उन्हें कभी चिन्ता नहीं करनी पड़ी। वैसे वे सीधे-साधे जीव थे अपनी नौकरी अपने घर में सिमट कर रहने वाले। बाहर दुनिया में क्या हो रहा है वह नहीं जानते थे।

जब बदल पहले-पहले शहर आया था तो उसके मन में ढेरों उत्साह था। कुछ बनने कुछ करने की तमन्ना थी। लेकिन जैसे-जैसे दिन बीत रहे थे उसका मन पढ़ने में कम और अन्य खुराफाती गतिविधियों में लगने लगा था। स्कूल तो वह अब भी साइकिल से जाता था लेकिन स्कूल से लौटने के बाद जैसे-तैसे वह कपड़े बदलता था और उल्टा सीधा खाना खाकर साइकिल कमरे के अन्दर खड़ी कर वह रहमान के साथ आॅटो में घूमा करता। यह घूमना सात-आठ बजे तक चलता। ज्यादातर वह पापा के आने से पहले लौट आता और अगर कभी वह कुछ पहले आ जाते तो समझा देता कि आज उसे एक दोस्त के यहाँ काॅपी लेने जाना पड़ा। पापा पूछते साइकिल क्यों नहीं ले गये तो वह चाय का पानी गैस पर चढ़ाते हुए कहता दोस्त का घर पास ही है इसलिए पैदल ही चला गया।

पापा इतना थके होते कि कुछ पूछते ही नहीं बस खाना आदि बनाने में जुट जाते। रोज यह तो जरूर पूछते कि तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है लेकिन ‘ठीक’ या ‘अच्छी’ सुनकर सन्तुष्ट हो जाते। सच्चाई यह थी कि बादल का मन पढ़ने में बिल्कुल नहीं लग रहा था। आटो चालक रहमान के साथ खड़े होकर ‘एक सवारी चैक’ की पुकार लगाने में उसे खूब मजा आने लगा था।

इसी बीच स्कूल की मासिक परीक्षा में वह सभी विषयों में फेल हो गया। कक्षा अध्यापक ने पिताजी को बुलाने को कहा तो उसने पापा के गाँव जाने का बहाना बनाया। राना सर ने उसे मेहनत से पढ़ने और पढ़ाई में ध्यान देने के लिए अच्छा खासा भाषण दिया जिसे वह सिर झुकाकर सुनता रहा। क्लास से निकलते हुए उसने ठीक से पढ़ाई करने का संकल्प लिया और साइकिल निकालकर घर की ओर चल पड़ा। लेकिन जैसे ही वह अपनी गली के मोड़ पर आया उसे रहमान दिख गया। यद्यपि उसने दृढ़ निश्चय कर रखा था कि आज वह रहमान के साथ नहीं जायेगा। लेकिन रहमान के आग्रह पर वह फिर चल पड़ा पढ़ाई को अगले दिन के लिए स्थगित करते हुए। यह अलग बात है कि ऐसा अगला दिन कभी नहीं आया और वार्षिक परीक्षा में बादल बुरी तरह फेल हो गया। उसको अगली कक्षा में पदोन्नति किसी भी प्रकार से नहीं दी जा सकती थी ऐसा उसके अध्यापकों का कहना था। अब तो पिताजी को बुलाने के अलावा कोई चारा नहीं था। लेकन बादल फिर भी टालता रहा।

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