सुनवाई Alka Pramod द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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सुनवाई

सुनवाई
कनिका ने घड़ी देखा रात के ग्यारह बज गये थे पर नितिन अभी तक नही आया था ,कनिका को चिन्ता होने लगी ।नितिन उसकी आँखों का तारा था क्षण भर भी उसे उदास देखना उन्हे गवारा न था।तभी द्वार की घंटी बजी ,कनिका दौड़ कर दरवाजा खेालने गई ।उसने सोच लिया था कि आज नितिन से कह देगी कि कल से वह उसके लिये दरवाजा खोलने के लिये इतनी रात तक नही जागेगी। अगर दस बजे के बाद घर में पांव रखा तो न तो खाना मिलेगा न मैं बात करेगी। ँ
द्वारा खोलते ही सामने खाकी वर्दी वाले को देख कर कनिका का हदय काँप उटा। कहीं नितिन के साथ तो कुछ नही हुआ इस आशंका ने उसकी सुध बुध बिसरा दी। इसके पूर्व कि वह कुछ पूछती पुलिस वाले ने कहा ‘‘ यह नितिन का घर है ’’?
‘‘जी हां बताइये मैं उसकी माँ हूँ वह ठीक तो है न ’’?
‘‘पहले आप उसे बुलाइये तब में बताऊँगा कि वह ठीक है कि नहीं ’’।
‘‘मतलब?’’
‘‘आपके बेटे के विरुद्ध अरेस्ट वारेंट है ’’।
‘‘ कनिका मानो आसमान से गिरी हो उसने कहा ‘‘ देखिये आपको कोई गलतफहमी हुई है यह नितिन गुलाटी का घर है नितिन मेरा बेटा यूनिवर्सटी में बी एस सी का छात्र है, कोई चोर उचक्का नहीं है ’’।
’’जी हाँ मैं उसी नितिन गुलाटी की बात कर रहा हूँ जो यूनिवर्सल कालेज में बी एस सी कर रहा है और इसी घर में रहता है ’’।
‘‘ क्यों क्या किया है मेरे बेटे ने ?’’कनिका को अभी भी विश्वास था कि पुलिस वाले को धोखा हुआ है ,वह किसी और नितिन के भ्रम में उसे बेटे को पूछ रहा है।
उस पुलिस वाले ने कहा ‘‘ आपके बेटे पर बलात्कार का आरोप है ।
कनिका के पाँव तले जमीन खिसक गई। ‘‘ नहीं नहीं मेरा बेटा ऐसा नहीं कर सकता वह शरीफ घर का बेटा है ।’’
‘‘देखिये वो कैसे घर का बेटा है मुझे उससे कुछ लेना देना नहीं है पर जिस लड़की के साथ उसने खिलवाड़ किया है उसने उसी का नाम लिया है ’’ दरोगा ने घर का चप्पा चप्पा छान डाला फिर नितिन को न पा कर फिर आने की धमकी दे कर चला गया । वो तो घर में सब कुछ उलट पलट कर चला गया पर कनिका के मन में जो झंझावत उत्पन्न कर गया उसके समक्ष उलट पलट कुछ न थी।
कनिका को विश्वास था कि किसी दुश्मनी में उस लड़की ने ऐसा कहा होगा ।उसने उस लड़की से मिलना तय किया। रात किसी तरह कटी पर सुबह ही वह थाने पहुँच गई । वहाँ वह लड़की और उसके घर के लोग ,मित्र और कुछ तमाशा देखने वाली भीड़ उपस्थित थी। कनिका को देखते ही किसी ने कहा ‘‘ अरे यह ही तो है उस बलात्कारी की माँ ’’ सब उसे घूर घूर कर देखने लगे , ।
लोगों ने उसे घेर लिया कोई बोला‘‘ इसी को अगवा कर लो तब तो बच्चू हाथ आएंगे।’’कुछ लोग तो उसे अपशब्द भी कहने से बाज न आये, जिन्हंे सुनकर कनिका लज्जा से गड़ गई ,अपमान से उसका चेहरा लाल हो गया। वो तो पुलिस के सिपाही ने उसके अन्दर जाने का रास्ता बनाया अन्यथा पता नही कनिका उसके साथ भीड़ क्या करती। अन्दर वह लड़की बैठी थी उसकी सूजी आँखें ,चेहरे का आक्रोश और अस्त व्यस्त स्थिति उसकी सच्चाई के साक्षी थे ।संभवतः पूरी रात वह और उसका परिवार कोतवाली में ही रहे थे, फिर भी कनिका का मन न माना ,उसने उस लड़की से पूछा ‘‘ क्या जो बयान तुमने दिया है वह सच है ’’?
मानवी बिफर पड़ी ‘‘ आप क्या समझती हैं मुझे अपना तमाशा बनाने का शौक है जो मैं यह कोतवाली ,लोगों के उल्टे सीधे प्रश्नों और मेडकल चेकअप की यातना सह रही हूँ’’।
कनिका सकपका गई, अपने को संयत करते हुए शान्त स्वर में उसने पूछा ‘‘ नहीं मेरा मतलब है कि क्या तुम श्योर हो कि तुम्हारे साथ अनाचार करने वाला नितिन गुलाटी ही था ’’?
‘‘ जी हाँ वन हन्ड्रेड वन परसेंट श्योर हूँ ’’ उसने कनिका को घूरते हुए कहा।
तभी मानवी की माँ न उसे उपेक्षा से देखते हुए कहा ‘‘ आपको क्या पता एक बेटी की इज्जत क्या होती है ,आपके बेटा है न ,तो दे दी उसे खुली छूट कि जाओ बेटा जो मन में आये करो आखिर मर्द हो। ’’
पीछे से मानवी के पिता श्री रंजन बोले ‘‘ आप अपने बेटे को चाहे लाख छिपा लें, जितने चाहें जोर लगा लें पर वह बचेगा नही कानून केे हाथ बहुत लम्बे हैं ।’’
कनिका पर व्यंग्य के वार पे वार हो रहे थे कोई मानने को तैयार नहीं था कि उसे नहीं पता कि नितिन कहाँ है। उसे चेतावनी दे दी गई थी कि वह कहीं बाहर नही जाएगी।
किसी प्रकार आघातों से क्षत विक्षत वह घर आकर कटे पेड़ के समान ढह गई । कालेज में शिक्षिका कनिका का इतना अपमान तो जीवन में कभी न हुआ था। कनिका महिला कालेज में पढ़ाती है और स्त्री वादी बातों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेती रही है, पर आज उसकी बड़ी-बड़ी बातों की धज्जियाँ उड़ गई थीं, वह भी उसके अपने बेटे के कारण और वह प्रश्नों के कटघरे में खड़ी थी। अचानक उसे ध्यान आया कि नितिन होगा कहाँ ,हो सकता है बेटा अपराधी ही हो पर है तो उसके हदय का टुकड़ा।उसके बारे में सोचते ही वह काँप उठी ‘ हे भगवान मेरे बेटे को बचा लो’
तभी उसके अन्तर्मन ने उसे टकोहा मारा ‘‘ अच्छा अगर मानवी तेरी बेटी होती तो भी क्या तू यही कहती?’’
उसने स्वयं से तर्क किया ‘‘ क्या पता मिहिका झूठ बोल रही हो ’’ उसकी हालत देखने के बाद ऐसा मानने को मन नहीं कर रहा था।पर अपने बेटे पर ऐसे आरोप पर भी उसे विश्वास नहीं हो रहा था। उसे याद है कि उसने नितिन के पापा नवीन के जाने के बाद अकेले ही कितने लाड़ प्यार से उसे पाला है। जीवन में आये संघर्षों की तनिक भी आँच उसने नितिन पर नहीं पड़ने दी। स्वयं सारे दुख झेल कर उसे अपने आंचल की ओट में सुख के साये में छिपाए रखा।
नितिन लगभग दस वर्ष का रहा होगा जब उसने हठ ठान लिया था कि उसके सारे दोस्त कार से स्कूल आते हैं वह बस से नहीं जाएगा, तब कनिका ने अपने आफिस से अग्रिम धन ले कर एक सेकेंड हैंड कार खरीद ली थी। जब कार घर पर आई तो नितिन मारे खुशी के उसके गले लग गया था और उसको ढेर सारी किस्सी दे डाली थी। नितिन की प्रसन्नता देख कर कनिका भूल गई थी कि इस अग्रिम की कटौती के लिये उसे कहाँ-कहाँ अपनी आवश्यकताओं में कटौती करनी पड़ेगी। एक नितिन ही तो उसके जीने का सहारा था, उसकी हर इच्छा पूरी करके मानो वह अपनी इच्छाएं पूरी करती थी। नितिन बड़ा होता गया साथ ही उसकी फरमाइशें भी । कभी कभी कनिका उसकी इच्छाएं पूरी करते-करते हाँफ जाती थी पर नितिन उसकी कमजोरी था उसके मुख पर उदासी वह देख न पाती।
पर आज जो हुआ उसकी तो उसने कल्पना भी नहीं की थी। उसके मन अभी भी नहीं मान रहा था कि उसका बेटा, अपना खून ऐसा कर सकता है।क्या उससे कहीं संस्कार देने में चूक हुई है ,पर वह तो सदा उसे बचपन में अच्छी बातें ही बताती थी । उसके मन ने उसे आश्वासन देना चाहा , क्या पता किसी के दबाव में या नितिन से शत्रुता में किसी और का दोष नितिन पर मढ़ रही हो? उसका बेटा ऐसा नहीं कर सकता ।इस तर्क में उसे एक आस की किरण दिखाई दी, वह व्यग्र हो गई नितिन से मिलने को। नितिन का फोन मिल नहीं रहा था उसके सभी दोस्तों को वह काल कर चुकी थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसे कैसे ढूँढे।वह तो पुलिस का सहारा भी नही ले सकती थी पुलिस तो उसे स्वयं ही ढूँढ रही है और भगवान करे वह पुलिस को न मिले ,नहीं तो भले वह अपराधी हो या न हो पुलिस उसका पता नहीं क्या हाल करेगी।
उसने टीवी खोला उस पर भी यही समाचार आ रहा था। वह किससे कहे क्या कहे। उसने एक दो अपने परिचितों को सहायता के लिये काॅल किया, पर सबने उसकी सहायता तो दूर सहानुभूति दिखाना भी उचित नहीं समझा। अगले दिन समाचारों में भी इसी काले समाचार से पन्ने रंगे थे। उसमें अपने कालेज जाने का साहस न था। उसने फोन पर अपनी अस्वस्थता को बहाना करने हेतु फोन किया पर उधर से सुनने को मिला उसने उसके पैरों तले जमीन हिला दी। उसकी प्रधानाचार्या ने कहा ‘‘ देखिये मिसेज कनिका गुलाटी आपके बेटे की इस हरकत के बाद हम आपको अपने गल्र्स कालेज में रख कर अपनी बदनामी नहीं करवा सकते ।’’
‘‘ पर इसमें मेरा क्या दोष?’’ कनिका ने कहा तो उधर से आवाज आई ‘‘ संतान को संस्कार मां बाप ही देते हंै।’’
मानवी ने बताया था कि काफी दिनों से नितिन उसके पीछे पड़ा था पर मानवी टालती रही । उस दिन वह पीछे पड़ गया उसके साथ काफी पीने चलने के लिये । नितिन के अधिक हठ करने पर मानवी ने उसे झिड़क दिया नितिन को यह रास न आया । मानवी प्रायः कक्षा के बाद लायब्रेरी में बैठ कर पढ़ती थी।दूसरे दिन जब मानवी की सहेलियाँ चली गईं और वह लायब्रेरी में पढ़ रही थी ,तो नितिन ने उसे किसी से झूठा संदेश भिजवाया कि मानवी को केमिस्ट्री की रंजना मैडम लैब में बुला रही हैं। यद्यपि कालेज समाप्त हो चुका था पर मानवी ने सोचा, होगा कोई काम अतः वह चली गई।लैब में जब मानवी पहुँची तो वहाँ कोई न था ,वह इसे किसी का मजाक समझ कर लौटने को हुई कि वहाँ छिपे नितिन ने दरवाजा बन्द कर लिया और उसके साथ व्यभिचार किया। लैब थोड़ा दूर था और कालेज का समय समाप्त हो चुका था अतः मानवी की चीख कोई सुन नहीं पाया। कनिका मन ही मन विश्लेषण कर रही थी कि ऐसा क्यों हुआ । भले उसने बेटे को गलत बातें नहीं सिखायीं पर शायद उसकी हर इच्छा को पूरी करके उसे निरंकुश बना दिया। उसने जो चाहा वो पाया इसी लिये तो वह मानवी की ‘न’ को सह नहीं पाया।मानवी का अभी तक घर न आना उसे दोषी सिद्ध कर रहा था।
काश! वह बेटे के प्यार में अंधी न होती ,उसके क्रिया कलापों ,उसकी हठी प्रकृति को देख पाती ,काश! वह थोड़ी सी कठोर बन करे नितिन को संयम का पाठ भी पढ़ा पाती।अब बहुत देर हो चुकी थी कनिका फफक-फफक कर रो पड़ी ।उसे मानवी के बारे में सोच कर ही स्वयं से घृणा होने लगी। भले ही मानवी तथा अन्य लोग उसे नफरत से देख रहे थे पर वह भी एक स्त्री होने के नाते मानवी की पीड़ा को अनुभव कर पा रही थी और कोई समय होता तो वह अब तक नारी वाद का झंडा उठा कर निकल चुकी होती पर यहाँ तो दुश्मन उसका अपना बेटा था ।
तभी बाहर घंटी बजी वह बाहर गई तो पुलिस के सिपाही ने बताया कि नितिन पकड़ा गया और उसे थाने बुलाया गया है कनिका उसी हालत में थाने की ओर चल दी।
पुनः भीड़ के आक्रोश और व्यंग्य का तीर सहते कोतवाली पहुँची। नितिन ने उसे देख कर चैन की साँस ली बोला ‘‘ मम्मा मैं आपका ही इन्तजार कर रहा था। देखो मुझे बचाओ कोई बड़ा वकील करके मेरी जमानत कराओ’’।
‘‘ बेटा जो आरोप तुझ पर लगा है क्या वह सच है ?’’ कनिका ने पूछा।
‘‘मम्मी अब कम से कम आप मेरी इन्क्वायरी न करो, किसी तरह मुझे बाहर निकालो।’’
नितिन के इस उत्तर ने उसकी रही सही आशा भी समाप्त कर दी। कनिका के तन बदन में आग लग गई वह भूल गई कि नितिन उसका बेटा है उसने नितिन को कई झापड़ जड़ दिये और कहा ‘‘तूने ऐसा नीच काम क्यों किया?’’
नितिन ने चिढ़ कर कहा ‘‘ मम्मी आप मेरी मम्मी हैं कि उस लड़की की?’’
कनिका ने कहा ‘‘यही तो दुख है कि मैं तेरी माँ हूँ, तूने दुष्कर्म भले मानवी के साथ किया है पर इज्जत मेरी लुट गई है कोई अन्तर नहीं है मेरी और उसकी पीड़ा में । उसकी कम से कम सुनवाई तो है पर मेरी तो कोई सुनवाई भी नहीं है।’’ यह कह कर कनिका वहीं धरती पर गिरकर मुँह ढाप कर बिलख पड़ी।
अलका प्रमोद