उलझन
डॉ. अमिता दुबे
दस
सौमित्र की पढ़ाई तेज गति से चल रही है। उसमें बाध्ज्ञा आने पर उसे बहुत गुस्सा आता है लेकिन वह कर भी क्या सकता है ? जब उलझनें दोस्तों के रूप में आकर खड़ी हो जाती हैं। अभी बादल का मामला कितनी मुश्किल से निपटा है अब हेमन्त की समस्या आकर खड़ी हो गयी। इस समस्या को कैसे निपटाया जाय ? इसी उलझन में है सौमित्र। हेमन्त उसका सहपाठी है और पढ़ाई में भी अच्छा है। नवीं की परीक्षा में हिन्दी व अंग्रेजी विषयों में उसे धक्का देकर पास किया गया था, लेकिन बोर्ड में तो कोई ध्ज्ञक्का नहीं चलेगा। साइंस और गणित में उसकी तैयारी 90 प्रतिशत की है परन्तु हिन्दी और अंग्रेजी में उसका पास होना मुश्किल है। बोर्ड की परीक्षाओं में केवल कुछ ही महीने शेष हैं इतने कम समय में उन दो विषयों की तैयारी कैसे पूर्ण की जाय जिनकी पढ़ाई ठीक तरह से नहीं की गयी है। दोनों टीचर्स ने नोट्स दे दिये हैं अब परीक्षा के अनुसार उन्हें पढ़ना हेमन्त के लिए मुश्किल हो रहा है।
जब भी हेमन्त किताब खोलता है जल्दी ही ऊब जाता है और फिर से गणित के सवाल लगाने लगता है। दोनों विषयों की टीचर्स उसे खूब चेतावनी दे चुकी हैं वह पढ़ना भी चाहता है लेकिन उसका मन नहीं लगता है। उसने यह बात जब से सौमित्र को बतायी है तब से सौमित्र उलझन में है। उसका छोटा सा दिमाग थक सा गया है सोच-सोचकर लेकिन कोई हल नहीं समझ में आ रहा है। इतने कम समय में हिन्दी और अंग्रेजी की कोई ट्यूटर भी खोज पाना मुश्किल है, वैसे हेमन्त को ट्यूटर की नहीं उसका ध्यान हिन्दी और अंग्रेजी की ओर आकर्षित करने वाले व्यक्ति की आवश्यकता है।
पढ़ाई खत्म कर रात में जब सौमित्र दादी के बगल में लेटा तो बहुत देर तक उसे नींद नहीं आयी। वह बार-बार करवट बदल रहा था। अखबार में पढ़ी एक खबर उसका दिमाग खराब कर रही थी। हताश-परेशान होकर लोग इसी प्रकार के कदम उठाते हैं। इसीलिए वह हेमन्त की समस्या से परेशान था वह नहीं चाहता था कि हेमन्त के साथ भी ऐसा ही कुछ घटित हो।
इस बार उसने दादी की ओर मुँह घुमाया तो दादी ने हाथ बढ़ाकर उसके हाथ को छुआ और कहा - ‘क्या बात है सोमू ! क्यों परेशान हो ? मैं दो-तीन दिन से देख रही हूँ कि तुम परेशान हो, कोई बात हो तो मुझे बताओ इस तरह जागने से तुम्हारी सेहत खराब हो जायेगी, पढ़ाई पर भी असर पड़ेगा।’
सौमित्र उठकर बैठ गया - ‘दादी माँ, आप मेरी बात सुनेंगी ?’
‘हाँ क्यों नहीं, अच्छा हो लेटे-लेटे कहो।’ दादी ने उसे बैठे देखकर कहा।
‘दादी, आपने आज अखबार में एक खबर पढ़ी’
‘कौन सी खबर ?’
‘एक लड़के ने नदी में डूबकर जान दे दी।’
‘हाँ पढ़ी है लेकिन इससे तुम्हारा क्या मतलब तुम क्यों परेशान हो रहे हो ? क्या वह लड़का तुम्हारा परिचित है ? दादी ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी।’
‘नहीं दादी ! वह लड़का भले ही मेरा परिचित न हो लेकिन उसकी आत्महत्या करने का कारण मैं जानता हूँ।’
‘क्या जानते हो तुम ?’
‘यही कि वह लड़का पढ़ाई में अच्छा नहीं था। परीक्षा से डरकर उसने आत्महत्या कर ली। उसके टीचर ने उसे चेतावनी दी थी कि अगर उसने ध्यान नहीं दिया और मेहनत नहीं की तो वह परीक्षा में पास नहीं हो सकेगा और उसके फेल होने की जिम्मेदारी उसी की होगी। और दादी वह लड़का फेल होने से डर गया और बिना परीक्षा दिये ही मर गया।’ सौमित्र ने उदासी से कहा।
दादी को आश्चर्य हुआ यह बच्चा अखबार में छपी खबर को कितने ध्यान से पढ़ता है और उसकी तह तक जाने की कोशिश करता है। लेकिन उन्होंने प्रकट रूप से केवल इतना कहा- ‘अभी सो जाओ, कल सण्डे है सुबह इस पर बात करेंगे। और अगर इससे जुड़ी तुम्हारी कोई समस्या है तो निश्चित जान लो वह हल हो गयी है।’
दादी धीरे-धीरे थपकी देने लगीं और सौमित्र की आँखे नींद के कारण बन्द होने लगीं। थोड़ी देर में वह तो सो गया लेेकिन दादी को सोचने का एक बिन्दु दे गया। दादी सोचने लगीं- बच्चों के बीच में दिनों दिन आत्महत्या की घटनाएँ बढ़ती जा रही हैं। इन घटनाओं का प्रमुखता से अखबारों में छापा जाना कितना घातक है। बच्चों के नन्हें-नन्हें दिमाग पर ये खबरें कितना गहरा असर छोड़ रहीं हैं। विशेषकर टी0वी0 चैनलों पर इन आत्महत्याओं की बार-बार चर्चा करना मासूमों के दिमाग को किस प्रकार झकझोर देता है। कोई इस दिशा में क्यों नहीं सोचता ? दादी की नींद कोसों दूर भाग गयी। ब्लड पे्रशर न बढ़ जाय यह सोचकर दादी ने नींद की गोली निकालकर खायी। वैसे भी कल सण्डे है छुट्टी का दिन। रोज की तरह हड़बड़ी नहीं है।
सुबह दादी की आँख कुछ देर से खुली। नींद की दवा का असर था कि आज रोज की तरह सुबह जल्दी उठने का मन नहीं हुआ। उन्होंने अगल-बगल कमरे की आहट ली सोमू को छोड़कर शायद कोई भी नहीं उठा था। सोमू ड्राइंग रूम में पढ़ाई कर रहा होगा, यह सोचकर उन्होंने उसे पुकारा नहीं और आँख बंदकर दोबारा लेट गयीं। थोड़ी देर बाद उन्हें फिर झपकी आ गयी। सोमू के पुकारने पर दादी ने आँख खोलीं। निगाह घड़ी पर गयी ‘अरे, आठ बज गये’ कहकर वे उठ बैठीं।
सण्डे के दिन सुबह की चाय बनाने का काम सौमित्र का था। दादी की चाय लेकर जब वह कमरे में आया तब तक दादी ब्रष कर चुकी थीं। दादी ने अँगड़ाई लेते हुए कहा - ‘आज तो खूब सोयी। सोमू तुम तो सुबह उठ जाते हो तुमने भी नहीं जगाया।’
‘मैं दो बार इस कमरे में आया। आप गहरी नींद में सो रहीं थीं इसलिए नहीं जगाया। वैसे भी दादी आप ज्यादा सोती ही कहाँ हैं?’ सौमित्र ने कहा।
दादी को उसकी हँसी कल की तरह उदास-उदास लगी। उन्हें रात की बात याद आ गयी। चाय पीते हुए उन्होंने सोमू को पास बैठा लिया और पूछा - ‘सोमू! क्या बात है जिसके कारण तुम कल रात में परेशान थे और मैं देख रही हूँ इधर कई दिनों से तुम टी0वी0 पर अपना प्रिय कार्टून का प्रोग्राम भी पूरे मन से नहीं देखते। मुझे पूरी बात बताओ।’
‘दादी! आपसे रात में जिस खबर की बात मैंने की थी उसे पढ़कर मैं और अधिक उलझन में आ गया। देखा जाय तो जिस बच्चे ने आत्महत्या की उस तरह की समस्या तो क्लास में लगभग 30 से 40 प्रतिषत बच्चों की रहती है।’
‘और नहीं तो क्या? सभी बच्चे सभी विषयों में एक तरह से तेज कैसे हो सकते हैं? किसी को अंग्रेजी ज्यादा अच्छी लगती है तो किसी को हिन्दी। कोई गणित और विज्ञान में तेज है तो कोई भूगोल और इतिहास में। इसमें परेशान होने की क्या बात है?
‘बात है न दादी! मेरा दोस्त हेमन्त...।’
‘कौन हेमन्त जिसकी मम्मी के बाल कटे हैं और खूब गोल-गोल मुँह बना बनाकर बोलती हैं जैसे अंग्रेज हों।’ दादी ने बीच में टोका।
‘हाॅ दादी ! वही उसका हिन्दी और अंग्रेजी पढ़ने का मन ही नहीं करता। जब देखो गणित और साइंस पढ़ता रहता है। किसी ने ज्यादा डाँटा तो इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र और नागरिक शास्त्र पढ़ लेता है लेकिन जब हिन्दी, अंग्रेजी की किताब खोलता है तब बोर होने लगता है।’ सोमू ने बताया।
‘देखो सोमू! कोई भी विषय कठिन या सरल नहीं होता, बच्चे डरकर उसे कठिन बना लेते हैं। तुम्हारे दोस्त की मम्मी को उसकी सहायता करनी चाहिए वह तो घर में ही रहती हैं। दादी ने सुझाव दिया।’
‘पिछली पेरेंटस टीचर मीटिंग में जब मैम ने हेमन्त की मम्मी से उसकी शिकायत की और यहाँ तक कहा कि अगर इसने ध्यान नहीं दिया तो परिणाम घातक होंगे इसके नो डाउट मैथ्स और साइंस में 99 प्रतिशत नम्बर आयेंगे लेकिन हिन्दी और अंग्रेजी में अगर यह फेल हो गया तो ये नम्बर किस काम के? या मान लीजिये खींचतान कर पास भी हो गया तो इसका टोटल एग्रीगेट कम हो जायेगा तब क्या कीजियेगा? इसलिए अभी समय है ध्यान दीजिये। हेमन्त की मम्मी ने केवल इतना किया कि जब वह मैथ्स की पै्रक्टिस करता है तो वे आकर उसको डाँटती हैं कि चलो हिन्दी या अंग्रेजी पढ़ो लेकिन उसकी कोई सहायता नहीं करतीं।’ सोमू ने बताया।
‘सहायता वह क्या करेंगी? तुम्हारी मम्मी तो आॅफिस भी जाती हैं लेकिन फिर भी तुम्हारी पढ़ाई की कितनी चिन्ता करती हैं। उनकी कोशिश हमेशा यह रहती है कि किस प्रकार वे तुम्हारी सहायता कर सकती हैं। बेटा! सहायता करने के लिए बच्चों के साथ बैठना पड़ता है समय देना पढ़ता है। हेमन्त की मम्मी को तो पूरी काॅलोनी में पंचायत करने से ही फुर्सत नहीं है। सुबह से घूमना शुरू कर देती हैं और हेमन्त के पापा के आने तक यही करती हैं।’ दादी ने मानो आँखों देखी कही।
‘दादी! मुझे डर है कि कहीं हेमन्त भी अखबार में छपी खबर वाले बच्चे की तरह इक्जाम देने से ही न डर जाय।’ सोमू ने अपनी चिंता का कारण बताया।
दादी को बहुत अच्छा लगा और दुःख भी हुआ। दुख इसलिए हुआ कि इस छोटी सी उम्र में इस बच्चे का दिमाग कितनी उलझनों से भरा है जिस बात की ओर हम बड़ों को सोचना चाहिए उस ओर यह बच्चा सोच रहा है। खुशी उन्हें इस बात से हुई कि सोमू एक प्यारा बच्चा है वह अपने साथ-साथ अपने दोस्तों की परेशानियों के बारे में भी सोचता है और उन्हें हल करने का प्रयास करता है।
दादी ने सोमू की ओर कुछ सोचते हुए देखा और कहा- ‘ऐसा करना कल से जब तुम्हारे सर गणित और साइंस पढ़ाकर चले जायें यानि 6 बजे से एक घण्टा हिन्दी मेरे साथ पढ़ना।’
‘आप हिन्दी पढ़ायेंगी दादी।’ सोमू को आश्चर्य हुआ।
‘और नहीं तो क्या?’ तुमने मुझे बुद्धू समझा है क्या? तुम्हारी बुआ और पापा की पढ़ाई मैं ही देखती थी। तुम्हारे बाबा तो अपनी नौकरी में ही लगे रहते थे। वैसे हिन्दी में पढ़ाना भी क्या है ? सारे नोट्स तुम लोगों के पास हैं जो कुछ तुम लोगों ने याद किया है उसे बस सुनना ही तो है। कल अपने दोस्त हेमन्त को भी बुला लेना बहुत मजा आयेगा। जब तुम सब साथ मिलकर हिन्दी याद करोगे और मुझे सुनाओगे तो देखना कितनी जल्दी सब याद हो जायेगा। और सोमू! हेमन्त के बहाने तुम और अंशिका भी रोज हिन्दी पढ़ने लगोगे।’ दादी ने प्लान समझाया।
‘हाँ दादी, हम इसी तरह इंग्लिश भी साथ-साथ पढ़ सकते हैं। अभी सितम्बर का महीना चल रहा है हमारे एग्जाम्स तो मार्च में होंगे तब तक अच्छी तैयारी कर लेंगें।’ सौमित्र जो कल उदास लग रहा था आज उत्साहित हो गया। दादी ने उसे नयी राह दिखा दी थी।
सौमित्र और दादी के बीच होने वाली बातों को सुनकर कमरे के बाहर खड़े मम्मी-पापा मन्द-मन्द मुस्कुरा रहे थे। उन्हें विश्वास हो चला था कि सौमित्र बड़ा होकर एक अच्छा इंसान बनेगा। जो इस किशोरवय में समाज के बारे में सोचता है वह बड़ा होकर सभी मानवीय गुणों से परिपूर्ण होगा।
उधर दादी का मन भी प्रसन्न था कि उन्हें सौमित्र और उसके साथियों के बीच सक्रियता के साथ बैठने का मौका मिलेगा। किशोर होते इन बच्चों को अकेला नहीं छोड़ना चाहिए। उनके साथ उनकी समस्याओं पर बातचीत करनी चाहिए। उनके दोस्तों को जाँचना-परखना चाहिए। अगर माँ-बाप के पास समय कम है और वे चाहते हुए भी ध्यान नहीं दे पा रहे हैं तो हम बुर्जुगों को उनकी कुछ सहायता करनी चाहिए आखिर मामला तो हमारे बच्चों के बच्चों का ही है। लड़कियों से अधिक लड़कों की निगरानी जरूरी होती है। लड़कियों का दायरा सीमित होता है लेकिन लड़कों का दायरा आजकल के मोबाइल की काॅल्स की तरह अनलिमिटेड होता है।