जिंदगी मेरे घर आना - 17 Rashmi Ravija द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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जिंदगी मेरे घर आना - 17

जिंदगी मेरे घर आना

भाग- १७

जैसी की आशा थी (और प्रार्थना भी).... युद्ध बंद हो गया। दोनों पक्षों को जान-माल की भारी हानि उठानी पड़ी। पूरे युद्ध में भारत हावी रहा और इसके जवानों ने अपूर्व वीरता का प्रदर्शन किया था। सारे देश में उत्साह-उछाह की लहर दौड़ गई थी। युद्धस्थल से लौटते जवानों का हर स्टेशन पर भव्य स्वागत होता। उपहार और मिठाइयों के अंबार लग जाते, तिलक लगाया जाता, आरती उतारी जाती।

इस बार उसने भी सक्रिय भाग लिया था, इन सब में। 'लायंस क्लब' में एक कमिटी बनी थी... जिसकी जेनरल सेक्रेट्री का पद संभाला था, उसने। पूरे मनोयोग से जुटी थी इसके कार्यक्रम को कार्यान्वित करने में। खाने-पीने की भी सुध नहीं रहती।

शरद के जौहर के किस्से भी अखबारों में खूब छपे थे.यह सब पढ़ फूली नहीं समाती वह. शहर भर में चर्चा थी। सबकी प्रशंसात्मक नजरों का केन्द्र बन गई थी वह... अब बस इंतजार था उस दिन का, जब शरद के कदम पड़ेंगे, इस जमीन पर। स्वागत का ऐसा सरंजाम करेगी कि ‘शरद‘ भी आवाक् रह जाएगा। बंगले को भी नए ढंग से सजाया-सँवारा जा रहा था।

***

इधर बहुत दिनों से शरद का कोई पत्र नहीं आया था। इंतजार भी नहीं था... अब तो रू-ब-रू मुलाकात होगी। इतना पता था कि वह अपने घायल साथियों की देख-भाल में लगा है। दोपहर में अलसायी सी लेटी थी कि कॉलबेल बज उठी... पोस्टमैन था... लिफाफा ले लिया।

‘टू नेहा‘ - यह आश्चर्य कैसे? दुबारा पढ़ा, उसी के नाम यह खत था... अब अक्कल आई है, शरद महाराज को। खुशी से दमकता चेहरा लिए, अपने कमरे में आ लिफाफा खोला। ‘ओह! चार पन्नों का खत? और चारों पन्ने बिल्कुल भरे हुए‘ ‘आखिर बात कया है‘...मन ही मन मुस्कराई वह - ‘सारी कसर एक ही पत्र में पूरी कर दी है... थोड़ा सा सब्र नहीं हो सका... दिन ही कितने रह गए हैं, मुलाकात होने में‘ - चलो आराम से पढ़ेगी और पलंग पर लेट... पत्र खोला।

‘नेही... नेही... नेही... नेही...‘

पत्र रख आँखें मूँद ली। लगा ये शब्द कागज पर नहीं उभरे... वरन् उसके कानों में प्रतिध्वनित हो रहे हैं, लगातार। आगे था...

‘नेही, जाने क्यों आज जी कर रहा है, यही नाम लिखता रहूँ, ताजिंदगी। आज लग रहा है, यह मात्र दो अक्षरों से बना शब्द नहीं, धड़कता हुआ एक अहसास है... मेरे पूरे वजूद को थामे रखनेवाली एक सुदृढ़ शक्ति है। क्यों होता है, नेहा ऐसा? आज जब बिछड़ने का समय आया, तब ये अहसास गहरा रहा है कि दुनिया का कोई भी बंधन... इस स्नेह बंधन से मजबूत नहीं... कितना मुश्किल, सच कितना मुश्किल है, इसकी जकड़न से छुटकारा पाना।‘

एकबारगी ही दिल की धड़कन गई गुना बढ़ गई। पत्र काँप गया... ‘बिछड़ने का समय‘ ‘छुटकारा पाना‘ ये सब क्या है। झटके से उठ बैठी और एक साँस में ही, धड़कते हृदय से पूरा पत्र पढ़ गई।

पत्र क्या था... व्यक्ति के कर्त्तव्य और आकांक्षा के द्वन्द्व का दर्पण था। दिल की गहराई से निकले शब्दों में, शरद ने स्थिति बयान की थी। शरद का एक सीनियर था, "जावेद" जो दरअसल भैया का दोस्त था. स्कूल में भैया और 'जावेद', शरद को अपने छोटे भाई से भी बढ़कर मानते थे. शरद की तरह ही, हँसमुख, खुशमिजाज, साथ ही एक सीमा तक मजाकिया। दोनों की जोड़ी ‘लारेल-हार्डी‘ के नाम से मशहूर थी हॉस्टल में। 'जावेद' को देखकर ही शायद शरद को भी 'आर्मी' ज्वाइन करने का शौक चढ़ा और जब जावेद की बटालियन में ही उसे भी शामिल किया गया तब तो जावेद ने जैसे उसे अपनी छत्र छाया में ही ले लिया. 'जावेद' भैया के साथ कई बार घर भी आ चुका था भैय्या से भी अच्छी घुटती थी उसकी.

उसके इतिहास से वाकिफ थी वह। उसने घरवालों के कड़े विरोध के बावजूद गाँव में साथ-साथ बगीचे से आम चुराने वाली, पोखर में तैरने वाली... कबड्डी खेलने वाली अपनी बचपन की संगिनी उर्मिला को अपनी जीवन-संगिनी बनाया था, जबकि उर्मिला ने सिर्फ स्कूली शिक्षा ही पा रखी थी... उर्मिला का घर-बार भी छूट गया था और अब दोस्त ही उनके सब-कुछ थे। दोस्तों का घर ही अब उनका घर था।

और अब वही जावेद जिसने पूरे समाज से लोहा लेकर उसे सुरक्षा प्रदान की थी... अब समाज की बेरहम व्यंगबाणों से बींधने को उसे अकेला, निस्सहाय... निहत्था छोड़ गया था। साथ में दो वर्ष की नन्ही मुन्नी और छः महीने के दूधमुहें बच्चे की जिम्मेवारी भी सौंप गया था।

जावेद ने बड़ी बहादुरी से अपने जख्मों की परवाह किए बिना दुश्मनों से लोहा लिया था। देश को तो उस चौकी पर विजय दिला दी... उसने जबकि अपनी जिंदगी हार बैठा। हॉस्पिटल में एक-एक साँस के लिए संघर्ष करते, जावेद की कोशिशों का साक्षी था, शरद। तन-मन की सुध भूल अपने जिगरी-दोस्त को काल के क्रूर हाथों से बचाने की पुरजोर कोशिश की थी, शरद ने। पर नियति ने अपने जौहर दिखा दिए। बड़ी निर्ममता से नियति के हाथों छला गया वह। शरद ने जैसे लहू की स्याही में कलम डुबो कर लिखा था... अक्षर कई जगह बिगड़ गए थे।