लिखी हुई इबारत - 7 Jyotsana Kapil द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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लिखी हुई इबारत - 7

श्वान चरित


आज अरसे बाद पंचायत बैठी थी और कई वर्षों बाद ऐसी कोई घटना हुई थी, जिस पर, सभी के बीच व्याप्त आक्रोश को महसूस किया जा सकता था। कोलाहल के बीच मुखिया के पदार्पण के साथ ही गुर्राने के स्वर में और बढ़ोत्तरी हो गई।
आसन ग्रहण करने के पश्चात मुखिया ने हाथ उठाकर सबको शांत होने का इशारा किया। सभा मे एकदम से शांति छा गयी।तभी धकियाते हुए ' टॉमी ' को लाया गया।
" पंचायत की कार्यवाही आरम्भ की जाए। " मुखिया का गम्भीर स्वर गूँजा।
" टॉमी पर अभियोग लगाया जाता है कि इसने हमारी जाति के सम्मान को ठेस पहुँचाई है। इसने अपने मालिक के यहाँ आये लुटेरों के फेंके, माँस के टुकड़े , चुपचाप खा लिए और उनके घर होने वाली लूटपाट को निर्विरोध सम्पन्न हो जाने दिया।"
" टॉमी, तुम्हे अपनी सफ़ाई में कुछ कहना है ?" मुखिया ने उसे अवसर प्रदान करते हुए कहा।
"मुखिया जी, मेरे मालिक एक नम्बर के बेईमान आदमी हैं । उन्होंने अपने हिस्सेदार को धोखा देकर, उसका सब कुछ हड़प लिया। इस बात का मुझे बहुत बुरा लगा था । इसलिए उन्हें सबक सिखाने के लिए ही, मैंने उन्हें बचाने का प्रयास नहीं किया।"
" शायद तुम भूल रहे हो टॉमी, कि अपनों को धोखा देना इंसानी फ़ितरत है। वह बरसों से यही करता आ रहा। पर यह श्वान प्रजाति के नैसर्गिक स्वभाव के सर्वथा विरुद्ध है। तुम्हारी इस हरक़त से समूची कुकुर जाति संशय के घेरे में आ गई है।"
" लेकिन मुखियाजी, जैसे को तैसा का सबक तो मिलना ही चाहिए। " टॉमी ने प्रतिवाद किया।
उसकी बात सुनकर वहाँ उपस्थित श्वान समुदाय नाराज़गी से चिल्लाने लगा। पंचायत में टॉमी को सज़ाए-मौत देने की माँग होने लगी। मुखिया ने सबको शांत होने का इशारा किया और कुछ देर सोचने के बाद कहा
"साथियों, हमें वफादारी का पर्याय माना जाता है। आज टॉमी ने जो किया, उससे हमारी साख को गहरी ठेस पहुँची है। उसके इस कृत्य से हमारे मान सम्मान को खतरा पैदा हुआ है। भविष्य में फिर हम पर कभी कोई विश्वास नहीं कर पाएगा। ऐसे कुकृत्य के लिए मृत्युदंड बहुत मामूली सज़ा है।" कहते हुए मुखिया ने कुछ पल का विराम लिया।
"इसकी सज़ा यही है कि इसकी पूँछ सीधी कर दी जाए और आज से हम सब इसे टॉमी की जगह 'आदमी' ही कहकर पुकारेंगे।" मुखिया की बात समाप्त होते ही सभी ने वाऊ... उ...उ की जोरदार ध्वनि निकालकर प्रस्ताव का अनुमोदन किया।

प्रतिकार


साक्षात्कारकर्ताओं के चेहरे पर दृष्टि डालते ही उसके चेहरे के भाव बदल गए। उनके मध्य एक गरिमामयी सौम्य नारी को देख वह लड़खड़ा सी गई। इसके बाद किसने क्या प्रश्न किये और उसने क्या जवाब दिए, उसे कुछ पता न था।
बाहर आकर बैग से उसने पानी की बोतल निकाली और प्यास से सूखते गले को तर किया। निराशा उसके वजूद पर हावी हो गई थी। बड़ी उम्मीद से आज वह साक्षात्कार देने आयी थी। पर वहाँ अपनी कॉलेज की पुरानी सहपाठिनी शिवि को देखकर उसकी आशा निराशा में बदल गई।
बरसों पहले अपने धन के मद में चूर, उसने बार -बार अपनी चाटुकार सखियों के साथ शिवि का अपमान किया था। उसकी सादगी और निर्धनता का उपहास किया था। आज वक़्त बदल गया था, शिवि उस बड़ी कम्पनी में उच्च पदासीन थी और वह ... ? आज अर्थाभाव में दर दर की ठोकरें खा रही थी।
" ऐश्वर्या मदान जी?" पीछे से चपरासी ने आवाज़ लगाई तो वह रुक गई।
" आपको मैम ने रुकने के लिए बोला है, दस मिनट बाद वो आपसे बात करेंगी। "
" आज मौका मिल गया उसे अपने अपमान का बदला लेने का। अब सूद समेत सारे हिसाब बराबर करेगी वो। " वह रूआंसी हो उठी। एक बार मन हुआ कि चली जाए पर कदम आगे बढ़ ही न सके। कुछ समयोपरान्त उसे अलग कक्ष में बुलाया गया।
" आओ ऐश्वर्या, बैठो। "
" तुम्हे यहाँ इस मामूली सी नौकरी के लिए आया देखकर मैं हैरान रह गई। "
" हूँ, वक़्त बदलते देर नहीं लगती "
" हाँ ये तो है। " कहते हुए शिवि ने उसका जायजा लिया। " कल से जॉइन कर सकती हो ?"
" मैं ?"
" हाँ "
" हाँ, क..क्यों नहीं, थैंक्स ... एन सॉरी ... मैं अपने पुराने व्यवहार के लिए बहुत शर्मिंदा हूँ ... मुझे माफ़ कर दीजिए। "
" वो तो मैं कबका भूल चुकी, याद है तो सिर्फ इतना, कि कभी अनजाने में भी ऐसा कुछ न कर जाऊँ की कल को किसी के सामने नज़रें झुकानी पड़ें ।" शिवि के शब्द सुनकर लज्जा से उसका चेहरा स्याह पड़ गया।