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बड़े बाबू का प्यार - आखिरी भाग 14 14: शह और मात 


आखिरी भाग 14/14: शह और मात

एक साधारण सी तीन मंजिला बिल्डिंग के बाहर बाइक रुकती है, दोनों बिल्डिंग को देखते है फिर महिपाल गेट पर चौकीदार से बात करता है। महिपाल को बाइक लगा कर अंदर आने का इशारा करता है फिर दोनों सीढ़ी चढ़ने लगते हैं| सीढ़ी चढ़ते- चढ़ते मनोज महिपाल से पूछता है, “सर कुछ बोलोगे? कहाँ ले कर आए हो…किसका घर है?”

अब तक दोनों पहली मंजिल के एक दरवाज़े पर होते हैं, महिपाल घंटी बजाता है और मुस्कराते हुए मनोज से बोलता है, “कातिल के घर!”

मनोज चौक जाता है|

दरवाज़ा खुलता है और अन्दर से एक लड़की निकलती है, “यस”

महिपाल बोलता है, “हेल्लो दिव्या!” फिर दरवाज़ा धकेलता है और अन्दर पहुँचता है और मुस्कराते हुए बोलता है, “और कहानीकार कैसे हो?”

अन्दर सोफे पर शराब का ग्लास पकड़े मंदार बैठा होता है|

मनोज पिस्टल हाथ में लिए गेट पर पोजीशन ले लेता है|

दिव्या और मंदार दोनों की हवाइयां उड़ चुकी होती है, फिर भी मंदार संभलते हुए बोलता है, “सर आप? यहाँ कैसे….?”

महिपाल मुस्कराता है और मनोज से कहता है, “मनोज कहानी सुनोगे?…एक कहानी सुनाता हूँ”

मनोज अभी भी असमंजस में होता है|

महिपाल बोलना शुरू करता है, “एक कहानीकार होता है…जो अपने शब्दों के जाल में किसी को भी फंसा लेता है, एक बार उसे पता चलता है कि उसकी पत्नी का प्रेम प्रसंग किसी और के साथ रह चुका होता है….कहानीकार ये बात पचा नहीं पाता है और अपनी प्रेमिका के साथ मिल कर पहले एक कहानी गढ़ता है फिर उस कहानी को अमल में लाता है और उसके बाद पहले अपनी पत्नी को मारता है फिर उसके पुराने प्रेमी को….क्यों ठीक कहा न…मिस्टर कहानीकार”

अब तक मंदार के चेहरे के भाव बदल चुके होते हैं…लगा मानों आत्मसमर्पण कर चुका हो, फिर हँसते हुए बोलता है, “क्या बात है इंस्पेक्टर साहब…यहाँ तक पहुचे कैसे?”

अब महिपाल के तेवर बदल चुके थे, वो गुस्से में बोलता है, “साले, तुमने क्या कानून को उपन्यास समझ रखा है…जैसा चाहोगे घुमा दोगे..अरे कानून के हाथ तुम्हारी कलम से कहीं ज्यादा लम्बे हैं…जहाँ तुम्हारी सोच ख़तम होती है, वहां से तो हम सोचना शुरू करते है….’साले चरसी’….तुझे क्या लगा, ये जो सिगरेट में गांजा मिला कर पीता है…पकड़ा नहीं जाएगा…” फिर आगे बोलता है, “अरे तुझ पर तो शक मुझे तभी हो गया था जब तू उस दिन थाने के बाहर मिला था…तेरी सिगरेट की गंध बाकी सिगरेट से थोड़ी अलग थी….और ठीक वैसी ही सिगरेट की गंध मुझे दिवाकर के घर पर मिली थी|

मंदार हँसते हुए बोला, “लेकिन वैसी सिगरेट तो कोई भी पी सकता है, और हम दोनों तो वहां मौजूद भी नहीं थे…आपने मेरे कॉल रिकॉर्ड देखा था”

महिपाल हंस कर बोलता है, “लेकिन मैंने तो दोनों की बात ही नहीं की…”

अब मंदार झेप जाता है, उसे लगा वो अपने ही शब्दों में फंस गया था|

“अब आगे की कहानी तुम बताओगे या हमसे सुनोगे” महिपाल बोला

मंदार शराब का एक घूँट लगाता है फिर बोलना शुरू करता है, “साला… राजपूत की बीवी….किसी और का इश्क…मज़ाक है क्या?….डाली के प्यार की खबर तो हमको पहले ही लग चुकी थी….लेकिन शादी कर चुके थे तो चुप थे…खैर.. डॉली मायके गई तो दिव्या से हमारी नजदीकी बढ़ गई और बातों- बातों में हमने दिव्या को सब बता दिया….फिर हम दोनों ने ही मिल कर उसे रास्ते से हटाने का फैसला किया….सब कुछ प्लान के मुताबिक था…हम बड़े- बाबू के घर गए, उन्हें शराब पिलाई फिर शराब के नशे में पाली ले गए…वहां दोनों को आमने सामने किया फिर वापस आ गए| अगले दिन मौका देख डॉली को ख़तम कर दिया, फिर दिव्या को बुलाया और डॉली के फोन से बड़े-बाबू को फ़ोन करवाया कि उससे मिलना चाहती है, वो भी अर्जेंट”

“बस यहीं तुम्हारी कहानी कमज़ोर पड़ गई कहानीकार तुमने एक नहीं दो –दो गलतियाँ कर दी…” महिपाल ताना मारते हुआ बोला| “डॉली के क़त्ल का टाइम और डॉली के फ़ोन से दिवाकर को किये गए फ़ोन के टाइम में फर्क था…रिपोर्ट के मुताबिक डॉली का कत्ल 4 से 5 के बीच हुआ था और और जो कॉल हुई थी वो 4 बज कर 46 मिनट पर की गई थी …..10-15 मिनट में तुम्हारे घर पहुंचना, फिर बात करना और उसके बाद क़त्ल करना पॉसिबल नहीं है| दूसरा तुम्हारे घर पर जो सिगरेट के बड मिले थे उसमे एक बड पर लिपस्टिक का निशान था….जो दिव्या मैडम का था….इनको सिगरेट पीते हमने तुम्हारे ऑफिस में ही देख लिया था….अब छोटे शहर में ये नज़ारा आम थोड़े होता है|”

मनोज महिपाल का तर्क सुन कर चौंक जाता है फिर मुस्कराता है|

“अब आगे सुनाओ…” महिपाल मंदार को इशारा करता है

मंदार सिगरेट जलाता है और बोलता है, “प्लान के मुताबिक हम दोनों दरवाज़ा लॉक कर बाहर आ जाते है, फिर दिव्या हमारा फ़ोन लेकर रॉयल बार के पास चली जाती है और हमारा इंतज़ार करती है… हम वहां से बड़े-बाबू के घर के पास आ कर उसके लौटने का इंतज़ार करते है| बड़े-बाबू डॉली से मिलने आते है पर दरवाज़ा नहीं खुलता..फिर वह लौट कर वापस घर आ जाते है….थोड़ी देर बाद हम उनके घर जाते है और उनको पुरानी बातें भूलने को बोलते है…फिर हम दोनों शराब पीते है….मौका पा कर हम बड़े-बाबू की शराब में नशे की गोली मिला देते है और फिर तीसरे पेग में गोलियों का ओवरडोज़ दे देते हैं|”

“दिलीप को क्यों मारा उस बेचारे की क्या गलती थी…” इस बार मनोज पूछता है

मंदार हंसा फिर एक घूँट शराब पीते हुए बोला, “वो बेचारा तो बिना बात फंस गया…जब हम बड़े-बाबू के घर से निकले तो वो गेट पर ही मिल गया..पहले तो हम घबरा गए…फिर हमने उसे बहकाते हुए कहा कि बड़े-बाबू घर पर नहीं हैं और अपने साथ ब्लू हैवन बार ले गया….थोड़ी देर बाद हमने कहानी बनाई कि हमारा फ़ोन बड़े- बाबू के लॉन में छूट गया है और फिर दिलीप का फ़ोन ले कर हम बड़े बाबू के घर के पास आ गए…वहां PCO से दिव्या को फ़ोन किया और उसे पास बुलाया|

“बस उसी समय दिलीप की पत्नी का फ़ोन आ जाता है और तुम अपना फ़ोन समझ कर कॉल उठा लेते हो” महिपाल बीच में मंदार को रोकते हुए बोलता है|

मंदार चौक जाता है…मनोज भी आश्चर्यचकित होता है|

महिपाल मनोज से बोलता है, “याद है दिलीप की बीवी ने क्या कहा था….कि कॉल के समय नेटवर्क प्राब्लम थी और बारिश हो रही थी”

मनोज सहमती में सर हिलाता है|

“लेकिन जयपुर में पिछले 20 दिन से बारिश ही नहीं हुई” महिपाल मनोज को देखते हुए बोलता है

मनोज कुछ सोचता है फिर मुस्कुरा देता है

“और एक बात….,दिव्या दिवाकर के घर के पास भी सिगरेट पीती है…चरस वाली सिगरेट के बड पर लिपस्टिक के निशान मिले थे झाड़ी में…दिवाकर के घर के पास|” महिपाल आगे बोलता है

“हाँ कहानीकार…आगे सुनाइए…” महिपाल ताना मारते हुए मंदार से बोलता है

“वहां से हम और दिव्या दिलीप को पिक करते हैं और एक लॉज दिलाने ले जाते हैं…वहां शराब पिलाते हुए दिलीप को नींद की गोलियों का ओवर डोज़ दे देते हैं|

“ये वही लॉज है ना, जहाँ तुम और दिव्या अक्सर जाया करते थे…” महिपाल उसे रोकते हुए बोलता है…फिर आगे बोलता है, “और वहीँ दिलीप की बीवी का फ़ोन फिर से आ जाता है…लेकिन इस बार फ़ोन गलती से उठाती है….दिव्या! पर मंदार के इशारे पर फ़ौरन ही फ़ोन काट देती है| वापस फ़ोन आने पर मंदार बात करता है और बोलता है की मौसम ख़राब होने के कारण बात नहीं हो पा रही है…फिर दिव्या DTH का ID लेकर नीचे रिचार्ज कराने जाती है…”

दिव्या चौंक जाती है और मंदार को देखने लगती है|

“जी मैडम छोटे शहरों में लड़कियां अगर खुले आम सिगरेट पिएं तो उनपर कई निगाहें होती है…ठीक वैसी ही एक निगाह रिचार्ज शॉप पर काम करने वाले लड़के की भी थी…वैसे भी उसने तुम्हे पहले भी देखा था…इसी लॉज में|”

रही बात शक के यकीन में बदलने की तो कहानीकार तुम्हारी कहानी में दिवाकर तुम्हारे साथ सिगरेट पीता है…जबकि उसकी मेडिकल हिस्ट्री में उसे अस्थमा था और सिगरेट पीना सख्त मना था…उसके घर वालों ने भी यही बताया है…|”

महिपाल दिव्या की तरफ मुड़ता है और बोलता है, “और रही बात यहाँ तक पहुंचने की तो आप की सिगरेट और आपकी नज़र पर मेरी नज़र तब से थी जब मैं तुम्हारे ऑफिस आया था…वही छोटे शहरों में लड़कियों का सिगरेट पीना….और चोर निगाह से पुलिस वाले को देखना….बस दोनों कड़ियों को जोड़ा…ऑफिस से आपका एड्रेस लिया और आ गए आप लोगों को ले जाने|

“तीन-तीन क़त्ल के जुर्म में,यू बोथ आर अंडर अरेस्ट” महिपाल मंदार का कॉलर पकड़ कर उसे उठाते हुए बोलता है। फिर मनोज से बोलता है, “मनोज! थाने फ़ोन कर के टीम बुला लो और एक महिला कांस्टेबल भी बोल देना|”

समाप्त।।

स्वरचित कहानी
स्वप्निल श्रीवास्तव(ईशू)
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