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बड़े बाबू का प्यार - भाग 1 16: हैप्पी बर्थ डे वन्स अगेन.....


भाग 1/16: हैप्पी बर्थ डे वन्स अगेन.....

“बड़े-बाबू.....ओ बड़े-बाबू.....दरवाज़ा खोलिए, कब से घंटी बजा रहे हैं”, मंदार दरवाज़ा पीटते हुए बोला|थोड़ी देर में दरवाज़ा खुला और दिवाकर झांकते हुए बोले, “अरे मंदार, तुम यहाँ, इतनी रात.....?”

मंदार दरवाज़ा धकेल कर अन्दर आते हुए बोला, “अरे हटिए बड़े-बाबू, सारा सवाल दरवाज़े पर ही कीजिएगा क्या....कब से दरवाज़ा पीट रहे हैं| वैसे जनमदिन की फिर से शुभ-कामना, हैप्पी बर्थ डे वन्स अगेन.....”

दिवाकर ने सिटकनी चढ़ाई और अपना हाथ तौलिये में पोछते हुए बोले, “अरे वो कपड़े धो रहा था तो घंटी की आवाज़ सुनाई नहीं पड़ी....आओ बैठो|”

दिवाकर न्यू इंडिया इन्श्योरेन्स में ब्रांच ऑफिसर थे और स्वभाव से बेहद ही इन्ट्रोवर्ट| ऑफिस में काम से काम और फिर घर| पिछले छह साल से ट्रांसफर हो कर कोटा से जयपुर आए थे पर मजाल है जो एक आदमी भी जानता हो दिवाकर कहाँ से हैं और परिवार और उनका परिवार क्या है|

बस कुर्सी का लिहाज़ था जो सभी बड़े-बाबू कहते थे, बाकि न चाय न गपशप, खाना भी तब खाते थे जब सब खा कर उठ जाते| शुरू – शुरू में तो लोगों ने कोशिश की पर जब अगले ने ही कोई इंट्रेस्ट न दिखाया तो लोगों ने पूछना भी बंद कर दिया| अब तो बस सुबह गुड-मॉर्निंग और शाम गुड-नाईट का नाता था|

“अरे क्या बड़े-बाबू, आज जनमदिन है आपका और आप कपड़े धो रहे हैं, पार्टी-वार्टी कीजिए, कहीं घूमने जाइए| क्या बड़े-बाबू.....?” मंदार ताना मारते हुए बोला|

मंदार भी दिवाकर के साथ ही इन्श्योरेन्स ऑफिस में था, छह महीने पहले ही जोधपुर से ट्रांसफर हो कर आया था और अब जयपुर में असिस्टेंट ब्रांच ऑफिसर था| रहने वाला रांची का और व्यवहार में दिवाकर का बिलकुल उलट, छह महीने में पूरा ऑफिस मंदार को अन्दर और बाहर से जानने लगा था और मंदार पूरे ऑफिस को| क्या महिला कर्मचारी, क्या कैशिअर और क्या चपरासी हर कोई मंदार का फैन था| कोई भी विषय उठा लो मंदार घंटों बातें कर सकता था| जितना व्यवहारी था उतना ही कार्यकुशल| ऐसा नहीं था की दिवाकर से बात बढ़ाने की कोशिश न की हो पर जब हर सवाल का जवाब हाँ या ना में आए तो बात बढ़े भी तो कैसे? बस पूरे ऑफिस में शर्त लगी थी कि मंदार बड़े-बाबू को शीशी में न उतार पाएगा, और मंदार ने शर्त मंज़ूर कर ली थी, कहता था हारना पसंद नहीं है उसे| इसी सिलसिले में सीधे दिवाकर के घर आ धमका था|

“अब कहाँ घूमने जाएं, अपने लिए तो अपना घर ही सही है, इतना काम रहता है, इसी में समय कट जाता है|” दिवाकर चेहरे पर नकली मुस्कान लाते हुए बोले|

“छह साल हो गए आपको जयपुर में बड़े-बाबू, सब बता रहे थे......अच्छा बताइए तो कितना जान पाए हैं जयपुर को, क्या- क्या घूमें हैं...?” मंदार ताना मारते हुए बोला|

दिवाकर थोड़ा गंभीर हुए और बोले, “ऐसी बात नहीं है, हवामहल और चाँदपोल गए थे जब माँ और बाऊ जी आए थे| और वो क्या....हाँ, जलमहल भी गए थे|”

“अरे क्या बड़े बाबू, हम स्रवनकुमार वाले दर्शन की बात नहीं कर रहे हैं, इतने मॉल हैं, शापिंग कॉम्प्लेक्स हैं, सिनेमा हाल हैं......ये बताइए कितना उमर हो गया आपका|” मंदार बोला

“ऐसी बात नहीं है....वैसे उम्र से क्या मतलब है तुम्हारा...., तुमसे एक या दो साल बड़े होंगे या बराबर|” दिवाकर जोर देते हुए बोले|

मंदार मुस्कुराया और बोला, “अरे वो बात नहीं है बड़े-बाबू, आज जनमदिन है तो केक– वेक कटेगा.....आफिस में तो सब इंतज़ार करते रह गए, इसीलिए तो हम आए हैं| अब अकेले है तो क्या सेलिब्रेट भी नहीं कीजिएगा.......बताइए क्या व्यवस्था है| खाने की क्या तैयारी है|”

“अरे क्या सेलिब्रेट....देखते हैं फ्रिज में मटर रखी होगी, अभी आलू मटर बनाते हैं|” इस बार दिवाकर का कॉन्फिडेंस खिल के आया, लगा की पाक कला में काफी महारत है और उन्हें इस पर गर्व भी|

सारे गुमान को ठेंगा दिखाते हुए मंदार बोला, “अरे क्या बड़े-बाबू...आपका जनमदिन है...मज़ाक है क्या.... आलू – मटर.....अरे आलू को रखिए डलिया में, देखिये हम क्या लाए हैं|....आज बनेगा मटर-पनीर और साथ में पूड़ी....बताइए तो फ्रिज कहाँ है? पनीर रख दें.....और लाइए प्याज़...सब्जी की तैयारी करते हैं|”

इतना बोल कर मंदार उठा ही था कि दिवाकर ने लपक कर मंदार का हाथ पकड़ लिया| खाना बनाने का मौका और वो भी कोई दिवाकर के हाथ से छीन ले, हो ही नहीं सकता था| उधर हाव भाव से लगा की दिवाकर थोड़ा खुलने लगे थे, मुस्कराते हुए बोले, “अरे मंदार क्या है ये सब, बोल देते, मैं पहले से तैयारी कर के रखता” दिवाकर ने पनीर मंदार के हाथ से पकड़ी और फ्रिज में रख आए|

“अच्छा बड़े-बाबू, कभी जानने का मौका नहीं मिला, अपने परिवार के बारे में तो बतलाइए....” मंदार बात बढ़ाने की कोशिश करता हुआ बोला|

“हम लोग टोंक से हैं, शुरुआती पढाई टोंक में, फिर ग्रेजुएशन जयपुर से| ग्रेजुएशन के बाद इसी कंपनी में नौकरी वो भी कोटा शहर में घर के पास और अब छह साल से जयपुर में हूँ|”

“और फैमिली?” मंदार ने पूछा

“वो सब टोंक में ही हैं, माँ , बाऊ जी और छोटी बहन|” दिवाकर ने जवाब दिया|

“और शादी?....वाइफ ?” मंदार ने जोर देते हुए पूछा|

“ये बताओ, कैसी मटर पनीर खाओगे, गाढ़े रसे वाली या नार्मल?” दिवाकर मंदार का सवाल लगभग गोल करते हुए बोले|

मंदार रुका, फिर कुछ सोच कर बोला, “जैसा भी बना लीजिए बड़े-बाबू, हमें तो पनीर से मतलब है, बस पनीर मस्त फ्राई कर दीजिएगा|” फिर कुछ देर ठहरने के बाद मंदार बोला, “अच्छा ये बताइए बड़े-बाबू, बर्थडे सूखा –सूखा मनेगा क्या, सेलिब्रेट नहीं कीजिएगा का?”

“अरे बन तो रहा है पनीर-पूरी, अब क्या खीर भी खाओगे?” दिवाकर पूछते हुए बोले|

“अब इतने भी भोले न बनिए बड़े-बाबू.....कुछ गला गीला करने का इंतज़ाम है या मेहमान को बिलकुल सूखा रखिएगा?.....आप बिलकुल नहीं लेते क्या?” मंदार चुटकी लेते हुए बोला|

स्वरचित कहानी
स्वप्निल श्रीवास्तव (ईशू)
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भाग 2/14 : मज़ाक है क्या?

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