भाग 2/14: मज़ाक है क्या...
अब तक दिवाकर खुलने लगे थे, तो बोले, “ऐसी बात नहीं है, जब हम ग्रेजुएशन में जयपुर थे तो....”| “बस!!” मंदार बीच में ही बात कटते हुए बोला| “बस, हम जानते थे, ये देखिए, हम पूरी व्यवस्था से आए हैं| अरे बड़े-बाबू का जनमदिन है मज़ाक है क्या.....ये बताइए, रम चल जाएगी ना...वरना कुछ और ले कर आएं|”
“अरे ये सब क्या है मंदार...बहुत साल हो गए....इसकी क्या ज़रुरत थी|” दिवाकर संकोचते हुए बोले|
“कुछ नहीं बड़े-बाबू, अपने घर से इतना दूर रह रहे हैं, वो भी अकेले....अरे जनमदिन है आपका....आज तो बनती है..मना मत कीजिएगा|” मंदार जोर देते हुए बोला|
दिवाकर मंदार का लिहाज़ रखते हुए बोले, “अच्छा ठीक है, ले आए हो तो ले लेंगे, पर ये प्लास्टिक का ग्लास रहने दो...हम कांच का लाते हैं|”
मंदार उचकते हुए बोला, “ये हुई न बात बड़े-बाबू....अब आएगा मज़ा.....खूब ज़मेगा रंग जब मिल बैठेंगे तीन यार...हम, हमारे बड़े-बाबू और हमारे अकेलेपन का साथी रम|.... बड़े-बाबू, नमकीन –शमकीन हो तो लेते आइएगा|....क्या बात है बड़े-बाबू दिल खुश कर दिया”
तभी मंदार के फ़ोन की घंटी बजी|
“हलो....हाँ डार्लिंग कैसी हो?”
“हम भी बढ़िया हैं....बस तुम्हारी याद में जी रहे हैं और दिन काट रहे हैं....”
“हाँ, आज तो बड़े-बाबू का जनमदिन है तो जशन की तैयारी है...बस वहीँ आया हूँ...”
“प्रॉमिस, ज्यादा नहीं पिऊंगा....अरे अभी तो शुरू भी नहीं की है”
“हाँ डोंट-वरी, परेशान मत हो....हम ठीक ठाक घर पहुँच जाएँगे....”
“मिस यू टू....अरे मेरा बस चले तो कल ही आ-जाऊँ तुम्हे लेने....”
“ओके....गुड नाईट....लव यू टू...”
जब तक मंदार की बातें चालू थी तब तक दिवाकर तैयारी कर चुके थे| मेज़ पर नमकीन और दो कांच ग्लास भी सज चुके थे| दिवाकर फ्रिज से कोल्डड्रिंक लाते हुए बोले, “किसका फ़ोन था?”
मंदार मुस्कुराते हुए बोला, “अरे वो हमारी मिसेज़ का फ़ोन था, खोज़ खबर ले रहीं थीं....आज कल मायके में हैं न इसीलिए|” फिर बात बढ़ाते हुए बोला, हम लोग तो रांची से हैं, पर डॉली का घर पाली में है| पहले तो हमारी पोस्टिंग जोधपुर थी तो नजदीक था, अब जयपुर पटक दिया है तो पांच महीने बाद मायके गई है|”
“और तुम्हारी आज़ादी चालू है...” दिवाकर चुटकी लेटे हुए बोले|
मंदार ने ग्लास हाथ में उठाई और सधे हाथों से पेग बनाते हुए बोला, “ऐसा नहीं है बड़े-बाबू, वो तो आपका जनमदिन है सो हम ले आए, वरना हमारा रेगुलर नहीं है.....जब डॉली की याद आती है तो कभी-कभी पी लेते हैं, वो भी पूछ कर.....बहुत प्यारी है हमारी मिसेज़|” ऐसा लगा बोलते- बोलते कहीं खो गया हो, फिर अचानक बोला, “ये लीजिये बड़े-बाबू...चियर्स, आपकी लम्बी उमर के लिए....वन्स अगेन हैप्पी बर्थडे बड़े-बाबू|” इतना बोलते ही मंदार पूरा ग्लास एक सांस में गटक गया|
उधर दिवाकर ने एक बार ग्लास को देखा फिर मदार को देखते हुए बोले, “लगता है काफी स्ट्रांग बना है|”
“अरे क्या बड़े-बाबू, नार्मल ही तो है, इतना भी नहीं पीजियेगा क्या?....अरे जनमदिन है आपका मज़ाक है क्या..” मंदार उकसाते हुए बोला|
दिवाकर ने ग्लास होंठों से लगाई और धीरे –धीरे गटकने लगे, खैर एक दो बार नमकीन चबाने के बाद वो भी ग्लास खाली करने में कामयाब रहे|
अब मामला एक –एक की बराबरी पर था|
“क्या बात है बड़े-बाबू! ये हुई न बात.....ज्यादा स्ट्रांग तो नहीं था?” मंदार दिवाकर को टटोलते हुए बोला|
अब दिवाकर भी सुर पकड़ने लगे थे, बोले, “अरे नहीं ये तो हल्का है....चल जाएगा| ये बताओ कुछ स्नैक्स में बनाऊँ?”
मंदार बेहिचक बोला, “अरे बड़े-बाबू तकल्लुफ़ न कीजिए, नमकीन काफी है, बैठिए, कुछ बातें कीजिए....आप से बातें करने को तो पूरा ऑफिस तरस जाता है| आप किसी से घुलते ही नहीं बड़े-बाबू|’
इतना बोलते –बोलते मंदार ने दोनों ग्लास वापस भर दिए|
दिवाकर ने अपना ऐनक उतार कर साइड टेबल पर रखा और ग्लास हाथ में उठा ली, ग्लास को ध्यान से देखते हुए बोले, “ऐसा नहीं है मंदार, बस समझ नहीं आता बेफजूल क्या बात करें...बात होगी तो लगाव होगा, और अब किसी से इमोशनली कनेक्ट होने का जी नहीं करता|”
मंदार ने पहले की ही तरह एक घूँट में ग्लास खाली कर दिया और होंठों पर उँगलियाँ फेरते हुए बोला, “छोटा मुँह बड़ी बात बड़े-बाबू, लेकिन हमने तो यही सीखा है, बात करने से दूरियां कम होती हैं....और वैसे भी चार दिन की ज़िन्दगी में क्या चुप-चुप रहना| बात करेंगे तो न किसी को जानेंगे.....अब देखिए, इससे पहले आप को पता था क्या, हम रांची से हैं और दो साल पहले हमारी शादी हुई है...वो भी आप के ही प्रदेश में, और आज कल हम बैचलर लाइफ जी रहे हैं ....”
मंदार ने पास ही रखे मोबाइल पर अपनी पत्नी की तस्वीर को देखा| कुछ कह न पाया पर मन ही मन बहुत मिस कर रहा था मानो| फिर बात को घुमाते हुए बोला, “छोड़िए ये सब बड़े-बाबू, ये बताइए शादी काहे नहीं किए अब तक?....कोई प्यार –व्यार का चक्कर है क्या?”
“रुको हम पनीर फ्राई कर के आते हैं....” दिवाकर सोफे से उठने लगे तभी मंदार ने उनकी आखों में देखा और हाथ पकड़ते हुए बोला, “क्या बात है बड़े-बाबू? पहले भी देखा, ऐसे ही सवाल पर बिलकुल कन्नी काट गए.....कुछ बताइए तो सही...अरे दिल में रख कर घुटियेगा इससे अच्छा बोल दीजिए, पता तो चले कौन हमारे बड़े बाबू को मुरझाता छोड़ बैठी है|”
“चलो –चलो, ज्यादा भावुक न हो मंदार, पेग बनाओ पेग...हम अभी पनीर फ्राई कर के आते हैं|” दिवाकर पूरे रौब से बोले और किचन की ओर चल दिए|
इधर मंदार ने ग्लास हाथ में उठाई, आँखों से पैमाना मापा और एक-एक पेग और बना दिया| फिर दोनों ग्लास हाथ में उठाते जा टिका किचन के दरवाज़े पर, बोला, “ये लीजिए बड़े-बाबू आपका पेग” फिर कटी हुई पनीर में से एक टुकड़ा मुंह में डालते हुए बोला, “बड़े-बाबू ऐसे नहीं जाने देंगे, आज तो आपको बताना ही होगा.....अरे आपका जनमदिन है....कोई मज़ाक है क्या?”
दिवाकर ने मंदार को देखा फिर कुछ देर ग्लास को घूरते रहे और फिर अचानक पूरा ग्लास खाली कर दिया, बोले, “बैठो आता हूँ| तुम एक पेग और बनाओ....लेकिन थोड़ा हल्का”
मंदार ने दिवाकर की ग्लास को देखा, फिर दिवाकर को और आश्चर्य के भाव में सर झटकते हुए बोला, “क्या बात है बड़े-बाबू....आइए जल्दी आइए”
स्वरचित कहानी
स्वप्निल श्रीवास्तव (ईशू)
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